कम बोलने वाले लोगों को बुद्धिमान क्यों माना जाता है

कम बोलने के फायदे क्या हैं

दोस्तो, क्या आप जानते हैं कि कम बोलने वाले लोगों को बुद्धिमान क्यों माना जाता है। शास्त्रों में साधु संतों की बहुत सी विशेषताएं बताई गई हैं और उनमें से एक विशेषता है अपनी वाणी पर संयम होना। हम देखते हैं कि आए दिन लोग नई नई तरह की समस्याओं में सिर्फ अपनी जरूरत से ज्यादा बोलने की आदत की वजह से पड़ जाते हैं।

वाणी पर संयम नहीं रख पाने वाले लोगों के रिश्ते भी खराब हो जाते हैं और वे मानसिक तनाव का शिकार भी हो जाते हैं। शास्त्रों में धीर पुरुषों का उल्लेख मिलता है। धीर पुरुष उसे कहा जाता है जिसका अपनी वाणी पर, भूख पर और क्रोध पर नियंत्रण होता है।

जो लोग इन चीजों पर नियंत्रण रख पाते हैं उन्हें धीर पुरुष कहा जाता है और शास्त्रों के अनुसार सबसे ज्यादा सुखी और समस्याओं से दूर धीर पुरुष होते हैं। 

कम बोलने वाले लोगों को बुद्धिमान क्यों माना जाता है

कम बोलने वाले लोग इसलिए बुद्धिमान माने जाते हैं क्योंकि कम बोलने वाले लोगों में सुनने की क्षमता ज्यादा पाई जाती है। जो लोग ज्यादा सुनते हैं उनका ज्ञान बढ़ता चला जाता है और वे और भी बुद्धिमान बनते जाते हैं। जो लोग सुनने में अच्छे नहीं होते वे कभी कुछ नहीं सीख पाते।

एक शिष्य की कथा जो बहुत बोला करता था

कम बोलने से संबंधित एक कथा हम आपको बताने जा रहे हैं जिससे आपको मौन रहन की शक्ति का पता चलेगा। एक बार एक गुरुकुल में एक शिष्य रहता था। शिष्य बहुत ही बोला करता था और कभी भी मौन नहीं हुआ करता था।

वह हमेशा दूसरों की निंदा करता रहता था और अपने आप को सबसे ज्यादा श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश करता था। वह इस बात का घमंड करता था कि गुरुकुल में सबसे श्रेष्ठ वही है क्योंकि वह अपना संपन्न परिवार छोड़कर गुरुकुल में रह रहा है इसलिए उससे बड़ा त्यागी और कोई नहीं।

वह कहा करता था कि उसके पास इतना धन है कि अगर वह कुछ भी ना करे तो भी जीवन भर सुख पूर्वक रह सकता है लेकिन फिर भी वह इतना बड़ा त्यागी है कि सब कुछ छोड़ कर आश्रम में रह रहा है। वह कहता था कि उसके समान धनी गुरुकुल में और कोई भी नहीं।

वह शिष्य हमेशा ही दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास करता रहता था, उसके अनुसार वह सबसे महान था।

शिष्य की परीक्षा

एक दिन गुरुजी ने सभी शिष्यों को अपने पास बुलाया जिसमें वह शिष्य भी शामिल था। गुरुजी ने कहा कि जो कोई भी लोग अपने आप को काबिल समझते हैं वे अपने मन में कोई एक संकल्प लें और पूरे साल उस संकल्प का निर्वाह करें।

गुरुजी ने कहा कि जिसने भी संकल्प ले लिया है वह जा सकता है। सभी वहां से चली गई किंतु वह शिष्य जो अपने आप को सबसे ज्यादा बुद्धिमान समझता था वह वहीं पर रुका रहा। जब गुरु जी ने कहा कि क्या तुमने कोई संकल्प नहीं लिया जो तुम अभी यहीं रुक हो

तब उस शिष्य ने कहा कि गुरुजी मैं कोई छोटा-मोटा संकल्प कैसे ले सकता हूं आखिर में कोई साधारण शिष्य नहीं हूं। कृपया आप मुझे बताइए कि मुझे कौन सा संकल्प लेना चाहिए। गुरुजी ने कहा कि मेरे द्वारा बताया गया संकल्प तो बहुत ही कठिन होगा इसलिए तुम अपने हिसाब से कोई संकल्प ले लो और साल भर उसका निर्वाह करो।

शिष्य ने लिया मौन रहने का संकल्प

शिष्य अपनी जिद पर अड़ा रहा और उसने कहा कि वह छोटा संकल्प नहीं लेगा तब गुरुजी ने उससे कहा कि तुम 1 साल तक मौन रहने का संकल्प ले लो। शिष्य ने कहा कि यह तो बहुत ही छोटा संकल्प है तब गुरुजी ने कहा कि पहले इस संकल्प का पालन करो इसके बाद मैं तुम्हें एक बड़ा संकल्प से संकल्पित करूंगा।

शिष्य मान गया और उसने मौन रहना लागू कर दिया। जैसे जैसे दिन बीतते गए शिष्य की बेचैनी बढ़ती गई। पहले कुछ दिन तो शिष्य को कोई परेशानी महसूस नहीं हुई लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया शिष्य परेशान होने लगा।

वह अपने जीवन काल में कभी भी इतना मौन नहीं रहा था। जब भी कोई शिष्य कोई अच्छा काम करता था तो वह शिष्य अपने आप को सबसे श्रेष्ठ साबित करने के लिए कुछ ना कुछ अवश्य बोलता था लेकिन अब वह कुछ बोल नहीं पा रहा था और इसलिए उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।

3 महीने तो वह किसी तरह खेल गया लेकिन इसके बाद वह गुरुजी के पास जाकर बोला कि अब मुझसे मौन नहीं रहा जाता। मैं यह संकल्प तोड़ रहा हूं। यह सब उसने गुरु जी को एक पर्ची पर लिखकर बताया। गुरु जी यह पढ़कर बहुत ही हंसे और उन्होंने कहा कि तुम तो अपने आप को सबसे श्रेष्ठ कहते थे तो अब क्या हुआ यह इतना संकल्प भी तुमसे पूरा नहीं हो पा रहा है।

शिष्य ने जाना कम बोलने का फायदा क्या है

शिष्य गुरु जी की बात सुनकर बहुत ही शर्मिंदा हुआ और अपने मान सम्मान और गौरव को बचाए रखने के लिए किसी तरह से 1 साल मौन रहने का फैसला किया। शिष्य जैसे तैसे दिन काटता गया और आगे जाकर वह नई ही ऊंचाइयों को छू गया। उसके चेहरे पर एक अजीब सा तेज देखा जा सकता था और वह मानसिक रूप से पूर्णतया शांत था।

उसने मौन रहने के महत्व को समझ लिया था और अब वह ज्यादा बोलने से बचने लगा था। एक कम बुद्धि वाला शख्स जो अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश में लगा रहता था वह भी मौन रहकर बुद्धिमान हो गया ।

1 साल बाद उस शिष्य के अंदर एक अजीब सा ठहराव और गहरा असर देखा जा सकता था। वह अब ये समझ चुका था कि अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने में कुछ हासिल नहीं होता बल्कि अपने आपको विनम्र रखने में और अपने आप को दूसरों से निम्न समझने में ही हमारा विकास हो सकता है।

क्योंकि अगर हम अपने आप को श्रेष्ठ समझते हैं तो हम अपने विकास की ओर ध्यान नहीं देते। लेकिन अगर हम अपने आप को श्रेष्ठ नहीं समझते तो हमारे मन में लगा रहता है कि हमें अपने आप में सुधार करने की आवश्यकता है और इसलिए हम अपने आप को सुधार पाते हैं। 

कम बोलना सेहत के लिए फायदेमंद है

कम बोलना सेहत के लिए भी अच्छा माना जाता है क्योंकि ज्यादा बोलने से हमारे शरीर की शक्ति नष्ट होती है। अगर हम बिना वजह या बिना किसी आवश्यकता के ही बोलते रहते हैं तो इससे हमारे स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव होता है। अगर हमें ज्यादा बोलने की जरूरत है तब तो ज्यादा बोलना लाजमी है लेकिन अगर हमें ज्यादा बोलने की जरूरत नहीं है और फिर भी हम ज्यादा बोलते हैं तो यह बिल्कुल भी लाजमी नहीं है।

कम बोलना रिश्तों में मिठास बनाए रखने के लिए भी लाभकर

इसके अलावा कम बोलने वाले लोग अपने रिश्तों में भी अच्छे होते हैं क्योंकि ज्यादा बोलने से कभी-कभी रिश्तों में दरार भी पड़ जाती है। जो लोग ज्यादा बोलते हैं उन्हें कभी कभी याद भी नहीं रहता कि उन्होंने किस समय क्या बोल दिया और उनकी कुछ बातें सामने वालों को बुरी लग जाती हैं जिससे उनके रिश्ते खराब हो जाते हैं।

लेकिन इसके विपरीत बुद्धिमान लोग को होते हैं। जो ज्यादा नहीं बोलते या जरूरत पड़ने पर ही बोलते हैं उन्हें याद रहता है कि उन्होंने किस समय कौन सी बात की थी क्योंकि वे बिना वजह कोई बात नहीं करते। इस कारण वे अंजाने में अपशब्द बोलने से बच जाए हैं और इस वजह से उनके रिश्ते में भी मिठास बनी रहती है।

कम बोलने वाले फिजूल के लड़ाई झगड़ों से बच जाते हैं

कम बोलने वाले लड़ाई झगडे से भी बच जाते हैं क्योंकि बहुत सारी लड़ाईयां सिर्फ इसलिए खड़ी होती हैं क्योंकि दोनों पक्षों में से कोई भी मौन होने के लिए राजी नहीं होता। अगर एक पक्ष एक शब्द बोलता है तो दूसरा पक्ष 100 बोलता है।

इसी तरह बात बढ़ते बढ़ते लड़ाई झगड़े पर पहुंच जाती है। लेकिन जो बुद्धिमान लोग होते हैं वे कम बोलना पसंद करते हैं और जहां पर लड़ाई झगड़े वाली स्थिति पैदा होने का डर हो वहां पर ये लोग बिल्कुल भी नहीं बोलते हैं।

बुद्धिमान लोगों को कम प्रयासों में ज्यादा सफलता प्राप्त होती है

बुद्धिमान लोगों की यह निशानी होती है कि वे कम प्रयासों में ही ज्यादा फायदा प्राप्त कर लेते हैं। उदाहरण के तौर पर एक गधा दिन भर काम करता है और इसके बदले में उसे कुछ घास ही मिलती है। गधे में इतनी भी अक्ल नहीं होती है कि घास तो जंगल में मौजूद है और उसके लिए उसे दिन भर काम करने की आवश्यकता नहीं है।

उसी तरह जो बुद्धिमान नहीं होते उनका हाल ऐसा होता है कि उन्हें ज्यादा प्रयास करने पर भी उतनी ज्यादा उपलब्धि नहीं मिल पाती है। इनके विपरीत बुद्धिमान लोग होते हैं जो कम प्रयासों में ज्यादा सफलता प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे लोगों की ये खास बात होती है कि ये कम बोल कर ही अपने सारे काम बना लेते हैं जबकि कम बुद्धिमान लोगों को अपने काम करवाने के लिए बहुत कुछ बोलना पड़ता है।

आपने देखा होगा कि घर के बुजुर्ग जो बात एक बार बोल दें उसका पालन पूरा घर करता है लेकिन वहीं अगर दूसरे लोग किसी बात को बार-बार बोलें तब भी उसका पालन नहीं होता क्योंकि बुजुर्ग लोग बुद्धिमान होते हैं इसलिए उनकी बात का पालन होता है। भले ही बुजुर्ग किसी बात को एक बार ही क्यों ना बोलें उसका पालन होता है लेकिन घर के दूसरे सदस्यों को बुजुर्गों के बराबर बुद्धिमान नहीं समझा जाता इसलिए कभी कभी उनकी बात का पालन नहीं किया जाता।

दोस्तों आशा करते हैं कि यह लेख पढ़कर आप समझ गए होंगे कि मौन रहने की क्या विशेषता है और साथ ही यह भी कि काम बोलने वाले लोगों को बुद्धिमान क्यों समझा जाता है।

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