सुख और दुख दोनों ही बंधन में कैसे डालते हैं

Sukh aur dukh donon hi bandhan mein kaise dalte hain

मित्रो क्या आप जानते हैं कि हमें सुख और दुख दोनों ही बंधन में कैसे डालते हैं, अगर नहीं तो इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे, हम शास्त्रों के उद्धरणों के अनुसार यह समझने की कोशिस करेंगे कि sukh aur dukh donon hi bandhan mein kaise dalte hain

दोस्तों, जब भी जीवन में दुःख आता है तो व्यक्ति उस दुःख के कारण बंध जाता है क्यूंकि वह सुखी होना चाहता है लेकिन उसके जीवन में आया वह दुःख उसे सुखी होने नहीं देता। वहीँ दूसरी और जब जीवन में सुख आता है तो व्यक्ति उसमें इतना खो जाता है कि वह भविष्य में आने वाले दुःख को नहीं देख पाता और फिर उसी बंधन में पड़ जाता है। भगवत गीता में जब अर्जुन ने भगवान प्रश्न किया कि प्रभु अगर में इन लोगों को मार दूंगा तो मुझे पाप लगेगा और इसलिए में युद्ध नहीं करना चाहता।

सुख और दुःख को एक सामान समझो

तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि तुम युद्ध से मिलने वाली लाभ और हानि, सुख और दुःख को एक सामान समझो फिर तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा। कहने का आशय यह है कि अर्जुन को दोनों ही स्थिति में अपना नुक्सान दिखाई दे रहा था, अगर अर्जुन के द्वारा कौरव मारे गए तो उसे पाप लगेगा और अगर पांडव मारे गए तो उनके प्राण चले जायेंगे इसलिए अर्जुन की युद्ध करने की इच्छा नहीं थी।

इसी तरह इस संसार में सुख और दुःख दोनों ही हमें बंधन में डालते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि जो भी व्यक्ति अपनी आत्मा का कल्याण चाहता हो उसको आस्तिक बनना चहिये और भगवान की पूजा करनी चाहिए। लेकिन सुख में व्यक्ति भगवान की पूजा नहीं कर पाता और दुःख में भी नहीं कर पाता इसलिए सुख और दुःख दोनों ही बंधन में डालते हैं।

सुख और दुःख मौसम की तरह आते जाते रहते हैं

भगवत गीता में बताया गया है कि सुख और दुःख मौसम की तरह आते जाते रहते हैं इसलिए व्यक्ति को इन्हें सहन करना सीखना चाहिए। इसक मतलब अगर सुख आया है तो दुःख भी एक दिन आएगा और दुःख आया है तो सुख भी एक दिन आएगा। शास्त्रों के अनुसार अगर व्यक्ति भगवान की पूजा करता है तो उसपर भगवान की कृपा बानी रहती है और मुश्किल समय में भगवान उसकी रक्षा करते हैं।

लेकिन जो व्यक्ति भगवान की पूजा नहीं करता उसपर भी दुःख आता है और जो पूजा करता है उसपर भी। जब नास्तिक व्यक्ति पर दुःख आता है तो वह दुःख के मारे भगवान की पूजा नहीं कर पाता और सुख के समय वो सुख में इतना खो जाए है कि उसे भगवान की याद नहीं रहती और इस तरह सुख और दुःख दोनों ही बंधन में डालते हैं।

सुख और दुःख में सामान रहना चहिए

भगवत गीता में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति सुख और दुःख में सामान भाव रखे तो वह मुक्ति के योग्य हो जाता है अर्थात जो व्यक्ति सुख और दुःख में सामान भाव नहीं रखता वह मुक्ति के योग्य नहीं है और बंधन में पड़ा रह जाता है। और इस तरह सुख और दुःख दोनों ही बंधन में डालते हैं अगर दोनों दो सामान भाव से नहीं देखा जाए तो।

भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि यह संसार दुखालय है और मेरी भक्ति करने वाले फिर दोबारा दुखों से भरे इस संसार में नहीं लौटते। तो इस प्रकार से संसार का सुख और दुःख दोनों ही दुःख साबित हुआ और इलसिए दुःख और सुख दोनों ही बंधन में डालते हैं। दुःख तो हमेशा ही बंधन में डालता है जैसे कि अगर कोई व्यक्ति दुखी है किसी बीमारी के कारण और उस बीमारी का इलाज नहीं हो पा रहा है तो वह दुखी ही रहेगा।

सुख और दुख के बंधन से बचने का उपाय

वह व्यक्ति दुखी नहीं रहना चाहता वल्कि सुखी रहना चाहता है लेकिन हो नहीं पा रहा। इसी को कहते हैं बंधन में होना, अर्थात उस व्यक्ति को जबरजस्ती बंधन में रहकर वह दुःख झेलना पड़ रहा है। इस बंधन से मुक्त कैसे हुआ जाए इसका उपाय भगवत गीता में बताया गया है। भागवत गीता के दूसरे अध्याय के छप्पनवें श्लोक में भगवान बताते हैं कि जो व्यक्ति दुःख के समय में विचलित नहीं हो और सुख की कामना ना करे व स्थिर बुद्धि ऋषि कहलाता है।

इसका मतलब अगर कोई व्यक्ति दुःख में है और वह उस दुःख से परेशान ना होकर उसे झेल ले और साथ ही सुखी होने की कामना ना करे तो वह किसी प्रकार के बंधन में नहीं रहेगा। इस प्रकार आप समझ गए होंगे कि सुख और दुख दोनों ही बंधन में कैसे डालते हैं और इस बंधन से बचने का उपाय क्या है। अंत तक बने रहने के लिए आपका शुक्रिया!

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