स्त्रियों को सबसे ज्यादा मजा कब आता है?

स्त्रियों को सबसे ज्यादा मजा कब आता है?

मित्रों पौराणिक काल से ही ये एक बहस का विषय रहा है कि स्त्रियों को सबसे ज्यादा मजा कब आता है? जब कोई स्त्री पुरुष एक दूसरे के साथ समागम करते हैं तो किसे ज्यादा आनंद आता है । मित्रों आज भी विज्ञान सौ प्रतिशत यह पता नहीं लगा पाया है कि संभोग के दौरान स्त्री और पुरुषों में से कौन ज्यादा इसका आनंद लेता है ।

लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आज से हजारों साल पहले लिखी गयी महाभारत में ये बात विस्तार से बताई गई है कि सम्बंध बनाते समय स्त्री और पुरुष में से किसको ज्यादा आनंद आता है ।

आज की इस पोस्ट में हम आपको महाभारत में वर्णित इसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं । नमस्कार मित्रों आपका एक बार फिर से स्वागत है । महाभारत में वर्णित तथा के अनुसार एक बार पांडुपुत्र युधिष्टिर अपने पितामह भीष्म के पास पहुंचे और उन्हें प्रणाम किया । तब भीष्म ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए पूछा, हे वक्त तुम चिंतित लग रहे हो ।

बताओ क्या बात है? तब युधिष्ठिर ने कहा मैं एक दुविधा में फस गया हूँ । क्या आप उसे सुलझाने की कृपा करेंगे? यह सुनकर भीष्म बोले पौत्र पहले तो मुझे अपनी दुविधा बताओ, फिर मैं उसे सुलझाने का प्रयास करूँगा ।

संभोग करते समय स्त्री और पुरुष में से किसको ज्यादा आनंद आता है

युधिष्टर ने कहा पितामह! कई दिनों से मैं इस प्रश्न का हाल नहीं खोज पाया कि संभोग करते समय स्त्री और पुरुष में से किसको ज्यादा आनंद आता है ।

तब भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा पौत्र आओ मेरे पास बैठ जाओ । फिर मैं तुम्हें इससे जुडी भंग स्वाणा और सकरा की कथा के बारे में बताता हूँ । इसके बाद युधिष्ठिर भीष्म पितामह के निकट जाकर बैठ गए । फिर भीष्म बोले, हे धर्मराज! बहुत समय पहले भंग सुहाना नाम का एक राजा हुआ करता था । उसकी न्यायप्रियता के कारण उसकी प्रजा सदैव आनंद में रह करती थी परंतु दुर्भाग्य से उसकी कोई संतान नहीं थी ।

एक बार पुत्र की इच्छा में राजा भंग कसवाणा ने एक यज्ञ का अनुष्ठान किया जिसका नाम अग्निशन होता था क्योंकि उसे अग्नि केवल अग्नि देव का ही आदर हो रहा था ।

यह देखकर देवराज इंद्र नाराज हो गए और राजा भंग स्वाणा पर अपना क्रोध निकालने के लिए मौके की तलाश करने लगे । परंतु बहुत दिनों तक राजा भंग स्वाणा से यग में कोई गलती नहीं हुई । जिसके बाद देवराज इंद्र का क्रोध और बढ गया ।

राजा को अब प्यास भी लगने लगी थी

फिर कुछ दिनों बाद जब एक दिन राजा भंग स्वाणा शिकार के लिए निकले तो देवराज इंद्र ने सोचा कि अपने अपमान का बदला लेने का यह सही समय है और फिर जब राजा भंग स्वाणा जंगल पहुंचे तो इंद्र ने उनपर सम्मोहन मान छोड दिया जिससे वह राजा अपना सुधबुध खो बैठा और उस जंगल में इधर उधर भटकने लगा । सुधबुध खो देने के कारण राजा भंग स्वाणा को ना तो दिशा की समझ रह गई थी और ना ही उसे अपने सैनिक दिख रहे थे ।

इस तरह राजा भंग स्वाणा कुछ देर बाद अपने सैनिकों से बहुत दूर चले गए । राजा को अब प्यास भी लगने लगी थी । फिर उसे एक छोटी सी नदी दिखाई जो बडी ही सुंदर लग रही थी ।

नदी को देखकर राजा उस की ओर बढा और फिर पहले उसने अपने घोडे को पानी पिलाया और खुद पानी पीने के लिए नदी के पानी में प्रवेश किया । परंतु राजा के पानी में प्रवेश करते ही उसका शरीर धीरे धीरे बदलने लगा और देखते ही देखते राजा भंग स्वाणा एक स्त्री में बदल गया ।

जिसके बाद राजा भंग स्वाणा को खुद पर शर्म आने लगी और मैं जोर जोर से रोने लगा । उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर किस कर्म के कारण उसके साथ यह सब हुआ है । फिर भंग स्वाणा मन ही मन ईश्वर से कहने लगा हे प्रभु! आपने ये कैसा अनर्थ कर दिया है । इस रूप को लेकर मैं अपने राज्य वापस कैसे जाऊंगा?

अभी कुछ दिन पहले ही मुझे अग्निष्वात्ता यहाँ से सौ पुत्रों की प्राप्ति हुई है । उनसे मैं क्या करूँगा? और तो और महल में मेरी रानी मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी ।

राजा भंग स्वाणा अपनी रानी से जाकर मिले और फिर वे जंगल की ओर चले गए

उनके सामने इस रूप में कैसे जाऊँगा ईश्वर आपने तो मुझसे राजपाट के साथ साथ मेरा पौरुष भी ले लिया । साथ ही मेरी प्रजा का क्या होगा? फिर काफी देर तक इस तरह से विलाप करने के बाद वह राजा अपने राज्य वापस लौटा । उधर राजा भंग स्वाणा ने जब स्त्री रूप में अपने राज्य में प्रवेश किया तो उसे देखकर सभी लोग हैरान हो गए ।

फिर उस ने राज महल जाकर अपने सभी सभासदों की सभा बुलाई और उन्होंने अपने पुत्रों और मंत्रियों से कहा मैं अब राजपाठ चलाने लायक नहीं रह गया हूँ ।

इसलिए आप सभी मिलकर इस राज्य को चलाइए और ये भी ध्यान रखिएगा कि मेरी अनुपस्थिति में मेरी प्रजा को कोई कष्ट ना हो । मैं अपना बाकी का जीवन वन में बिताऊंगा । इतना कहकर राजा भंग स्वाणा अपनी रानी से जाकर मिले और फिर वे जंगल की ओर चले गए ।

वन में जाकर स्त्री रूपी वाह राजा एक तपस्वी के आश्रम में जाकर रहने लगे । फिर कुछ सालों बाद उन्होंने उस तपस्वी के कई पुत्रों को जन्म दिया और जब वे बडे तो राजा भंग स्वाणा उन्हें अपने राज्य ले गए और वहाँ जाकर पहले से मौजूद अपने पुत्रों से कहा जब मैं पुरुष था तो जैसे तुम सभी मेरे पुत्र हूँ, वैसे ही मेरे स्त्री रूप में भी ये सभी मेरे पुत्र है । लो अपने भाइयों को संभालो । उसके बाद राजा भंग ।

देवराज इंद्र ने अपना असली रूप दिखाकर राजा को उसकी गलती के बारे में बताया

बाकी सभी पुत्र मिलकर रहने लगे । उधर जब देवराज इंद्र ने देखा कि राजा भंग स्वाणा इतना अपमानित होने के बाद भी अपने बच्चों के साथ सुखपूर्वक रह रहा है तो उनका क्रोध और बढ गया और फिर उनके मन में प्रतिशोध की भावना जाग्रत हो चली । फिर देवराज इंद्र सोचने लगे कि क्या मैंने इस राजा को पुरुष से स्त्री बनाकर गलती तो नहीं कर दी ।

इसके बाद इंद्र ने एक ब्राह्मण का वेश धारण किया और राजा भंग स्वाणा के राजमहल पहुँच गए । राजमहल पहुँच देवराज इंद्र भाइयों के बीच फूट डालने के उद्देश्य से उनके कान भरने शुरू कर दिए । कुछ दिन के बाद इंद्र की यह योजना सफल हो गई और राजा भंग स्वाणा के सभी पुत्र आपस में ही लडने लगे और देखते ही देखते सभी ने एक दूसरे को मार डाला ।

इधर इस बात का जैसे ही भंग स्वाणा को पता चला वे शोकाकुल हो उठे और पुत्र के वियोग में जोर जोर से रोने लगे । तभी ब्राह्मण देश में इंद्रदेव उसके पास पहुंचे और उससे पूछा पुत्री तुम रो क्यों रही हो? तब भगवान ना ने रोते हुए इन रूबी ब्राह्मण को सारी घटना बतलाई तो देवराज इंद्र ने अपना असली रूप दिखाकर राज को उसकी गलती के बारे में बताया ।

इंद्रा बोले हे राजन! तुमने यज्ञ में केवल अग्निदेव की पूजा की और मेरा अपमान किया । इसलिए मैंने ही तुम्हारे साथ ये सब क्या देवराज इंद्र के मुख से ऐसी बातें सुनकर भंग स्वाणा उनके चरण पकडते हुए बोले है, देवेंद्र अनजाने में मुझसे बडा अपराध हो गया । कृपया कर मुझे क्षमा कर दे ।

स्त्रियों को सबसे ज्यादा मजा कब आता है?

यह देखकर इंद्र को दया आ गई और उन्होंने राजा को प्रदान देते हुए कहा है, स्त्री रूपी राजन, तुम अपने सभी पुत्रों में किसी एक को जीवित देख सकते हो । तब भंग स्वाणा ने कहा कि देवेंद्र अगर ऐसी बात है तो मैंने स्त्री रूप में जिन पुत्रों को जन्म दिया था, उन में से किसी एक को जीवित कर दीजिए ।

यह सुन इंद्र हैरान हो गए और फिर उसका कारण पूछा तो भंग सोना ने कहा है, देवेंद्र स्त्री का प्रेम कभी भी पुरुष के प्रेम से बहुत अधिक होता है । इसलिए मैं अपनी कोख से जन्मे पुत्र का जीवन दान मांगती हूँ । राजा भंग स्वाणा की बातें सुनकर इंद्र प्रसन्न हो गए और उन्होंने राजा के सभी पुत्रों को जीवित कर दिया ।

फिर उन्होंने राजा भंग स्वाणा को पुरुष रूप में परिवर्तित वरदान दिया परंतु स्त्री रूपी राजा भंग स्वाणा ने इंद्र से कहा हे देवराज! मैं स्त्री रूप में ही खुश हूँ और अपने जीवन के अंत तक स्त्री ही रहना चाहती हूँ । यह सुनकर इंद्र ने उससे पूछा राजन! तुम पुरुष बनकर अपना राजपाट नहीं संभालना चाहते तो भंग सुहाना बोले नहीं क्योंकि संयोग के समय स्त्री को पुरुष से कई गुना ज्यादा आनंद और सुख मिलता है ।

इसलिए मैं स्त्री ही रहना चाहती हूँ । यह सुनकर इंद्र ने तथास्तु कहा और वहां से अंतर्ध्यान हो गए ।

इस तरह कथा समाप्त होने के बाद भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि ये पोत अब तो तुम्हें समझ आ गया होगा कि स्त्री को संभोग के समय पुरुष से ज्यादा आनंद आता है । तो मैं उम्मीद करता हूँ की आप युधिष्टिर की तरह इस बात को समझ गए होंगे कि संभोग के समय स्त्री और पुरुष में कौन ज्यादा आनंद प्राप्त करता है और यह भी कि स्त्रियों को सबसे ज्यादा मजा कब आता है?। अगर समझ गए हो तो नीचे कमेंट कर के जरूर बताये ।

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