नास्तिक दर्शन कौन सा है – इसे पढ़कर लोग बन जाते हैं नास्तिक

नास्तिक दर्शन कौन सा है इसका उल्लेख शास्त्रों में मिलता है

दोस्तों क्या जानते हैं कि नास्तिक दर्शन कौन सा है? आपने चार्वाक सिद्धांत के बारे में तो जरूर सुना होगा। क्या आप जानते हैं कि चार्वाक सिद्धांत पढ़ने के बाद व्यक्ति नास्तिक क्यों बन जाता है। हम आपको पुराणों में वर्णित एक कथा बतलाते हैं जिससे यह पता चलता है कि को पढ़ने पर नास्तिक क्यों बन जाते हैं सभी।

आप तो जानते ही होंगे कि देवता और असुर सौतेले भाई हैं। देवताओं और असुरों के मध्य हमेशा ही स्वर्ग के आधिपत्य के लिए युद्ध होते रहे हैं। जब समुद्र मंथन हुआ था तब भी देवता और असुरों के बीच अमृत को लेकर वाद विवाद हो गया था। समुद्र मंथन से निकले अमृत पर देवता और असुर दोनों ही अपना अधिकार जताने की कोशिश कर रहे थे।

ऐसे में भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर असुरों को मोहित करके उनसे अमृत छीन लिया और उसे देवताओं को दे दिया। भगवान हरि के द्वारा देवताओं का पक्ष हमेशा ही लिया जाता रहा है। जब असुरों के राजा बलि ने तीनों लोकों पर अपना शासन कर लिया था तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर उनसे तीन पग भूमि मांगी।

और आप तो जानते ही हैं कि भगवान ने तीन पग भूमि में राजा बलि के तीनो लोकों सहित राजा बलि को भी नाप लिया और अपना दास बना लिया। भगवान ने एक बार फिर देवताओं को स्वर्ग दिला दिया। यह सब देखकर असुर बड़े हैरान थे। वे भगवान विष्णु से ईर्ष्या तो करते थे लेकिन साथ ही यह भी जानते थे कि जीत उसी की होती है जिसके साथ विष्णु होते हैं।

असुरों ने सोचा कि वे भगवान विष्णु को प्रशन्न करने के लिए बुरे कर्मों को त्याग देंगे

असुरों ने सोचा कि वे उनके दुश्मन देवता हमेशा ही धर्म का आचरण करते हैं और कोई भी बुरे कर्म नहीं करते जिस कारण भगवान विष्णु उनकी सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। अगर हम लोग भी बुरे कर्म छोड़कर अच्छे कर्म करना शुरू कर दें तो फिर हमारे में और देवताओं में क्या अंतर रह जाएगा और फिर भगवान विष्णु हमारी भी मदद करेंगे।

इस तरह का विचार करके असुरों ने सारे बुरे कर्म त्याग दिए और वे भी अच्छे कर्म जैसे कि यज्ञ, दान, तपस्या इत्यादि करने लगे। वहीं जहां देवताओं में इस बात का घमंड होता था कि वे सबसे श्रेष्ठ हैं, उन्हीं के पास ज्ञान है और रही सबसे ज्यादा पुण्य करने वाले हैं वहीं असुरों में इस बात की दीनता रहती थी कि वह कितने बुरे कर्म करते रहे हैं और अभी हाल में जाकर ही तो सुधरे हैं।

लोग असुरों का सम्मान करने लगे और कई बार तो देवताओं से ज्यादा भी असुरों का सम्मान होते हुए देखा जाने लगा। यह सब देखकर देवताओं को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी और वे सब एकत्रित होकर भगवान विष्णु के पास गए। उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि असुरों का कुछ करना पड़ेगा क्योंकि वह अब धर्म का काम करने लगे हैं।

भगवान ने कहा कि इसमें बुराई ही क्या है। जो असुर पृथ्वी पर ऋषि मुनियों को और स्वर्ग में देवताओं को चैन से जीने नहीं देते थे वह अब खुद ही ऋषि-मुनियों और देवताओं का कार्य करने लगे हैं इससे भला और क्या हो सकता है। देवताओं ने कहा कि उनसे श्रेष्ठ और भले ही कोई हो जाए लेकिन जब उनके शत्रुओं का सम्मान उनसे अधिक होता है तो उन्हें बड़ा कष्ठ होता है।

भगवान विष्णु ने एक माया पुरुष की रचना की जिनको चार्वाक के नाम से जाना गया

भगवान विष्णु ने कहा कि ठीक है फिर मैं तुम्हारे लिए कुछ करता हूं। भगवान विष्णु ने एक माया पुरुष की रचना की और उसे धरती पर जन्म लेने के लिए भेजा। माया पुरुष चार्वाक नाम से जाना गया। चार्वाक जैसे जैसे बड़े हुए उन्होंने देखा कि इस पृथ्वी पर सभी दुखी हैं और किसी को भी सुखी होने का सही मार्ग पता नहीं है।

चार्वाक ने देखा कि लोक भविष्य में सुखी होने के लिए अपना आज का सुख को रहे हैं। लोग स्वर्ग जाने के लिए यज्ञ, हवन, पूजन इत्यादि कर रहे हैं और अपने आज के समय को व्यर्थ गांव आ रहे हैं। उस समय भारत देश में बहुत सारे यज्ञ किए जाते थे और लोगों को नए दर्शन की हमेशा लालसा रहती थी।

चार्वाक ने अपने चार्वाक दर्शन की रचना की

उनकी इसी लालसा को पूरा करने के लिए चार्वाक ने अपना चार्वाक दर्शन दिया। चार्वाक ने कहा कि स्वर्ग और नरक कुछ नहीं होता। ना देवता होते हैं और ना ही कोई भगवान है। यह प्रकृति पांच भौतिक तत्वों से मिलकर बनी है और जीव का शरीर भी उन्ही पांच तत्वों से मिलकर बना है। इसके अतिरिक्त और कुछ कुछ नहीं है। शास्त्रों में लिखी बातें केवल कल्पनाएं हैं इसलिए मनुष्य को इसी जीवन में सुखी होने का प्रयास करना चाहिए ना कि स्वर्ग जाने के लिए तपस्य करनी चाहिए।

चार्वाक नके सिद्धांत से प्रभावित होकर लोग देवताओं की और भगवान की पूजा अर्चना करने से कोसों दूर हो गए। यह देख कर देवता एक बार फिर भगवान विष्णु के पास गए और उन्होंने कहा कि हमने तो आपसे असुरों को नास्तिक बनाने के लिए कहा था आपने जो सभी लोगों को ही नास्तिक बना दिया।

भगवान ने कहा कि यह सब उन्होंने देवताओं के कहने पर ही किया है और वहीं दूसरी ओर किसी के विचारों पर कोई दूसरा अधिकार नहीं कर सकता। हर व्यक्ति को अपने विचारों के अनुसार जीने की स्वतंत्रता है इसलिए चार्वाक को रोकना उचित नहीं और साथ ही उन्हें भी जो चार्वाक के सिद्धांत को अपनाना चाहते हैं। अगर चार्वाक के पास अपने कोई विचार हैं तो उन्हें उन विचारों को जाहिर करने से कोई नहीं रोक सकता इसीलिए देवता निश्चिंत रहें।

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