भगवत गीता के अनुसार पाप कर्मों से मुक्ति का तरीका

सुख और दुःख का कारण क्या है

मित्रों, भगवत गीता के अनुसार पाप कर्मों से मुक्ति का तरीका जानने से पहले आपको समझना होगा कि कर्म हैं, पाप कर्म क्या हैं और ये हमें किस तरह बंधन में डालते हैं। कर्मों को लेकर अलग अलग धर्म शास्त्रों के अलग मत हैं।

हिन्दू शास्त्रों में कर्म का उल्लेख बड़े ही अच्छे से किया गया है। इसको एक उदहारण से समझने की कोशिश करते हैं। जब किसी व्यक्ति पर शनि की साढ़े साती चल रही होती है तो वह सोचता है कि उसके दुखों का कारण शनि देव हैं। शनि की साढ़े साती वो समय है जो बड़ी मुश्किल से कटता है।

इस समय व्यक्ति का स्वास्थ खराब हो जाता है, धन की समस्या आती है, कोर्ट कचहरी के चक्क्कर काटने पड़ते हैं और इसके साथ और भी अनेक प्रकार की समस्याएं आती हैं। जब भी कोई अपनी कुंडली किसी ज्योतिषी को दिखाता है और पाता है कि उस पर शनि की साढ़े साती चल रही है तो वह बहुत ही निराश हो जाता है और ज्योतिषी से साढ़े साती दूर करने का उपाय पूंछता है।

तब ज्योतिषी उसे कुछ उपाय करने को कहते हैं और व्यक्ति उन उपायों को करने लगता है। उसे कुछ समय का आराम जरूर मिलता है लेकिन पूरा आराम नहीं मिल पाता। इसका कारण है कि ज्योतिषी उसे पूरी बात नहीं बताता और पैसे कमाने के लिए उसे कई प्रकार के उपाय बताता है।

शास्त्रों में बताया गया है कि कोई भी किसी के सुख और दुःख का कारण नहीं है वल्कि सुख और दुःख का कारण व्यक्ति के अपने ही कर्म हैं।

सुख और दुःख का कारण व्यक्ति के अपने ही कर्म हैं।

इसे इस तरह से समझते हैं, मान लीजिये अगर कोई व्यक्ति एक मोटरसाइकिल से जा रहा हो और वह शराब पीकर गाड़ी चला रहा हो। आगे चलकर उसका एक्सीडेंट हो जाये और वह मर जाए। इस घटना को देखकर सब यही कहेंगे कि इसमें उस व्यक्ति की ही गलती थी क्यूंकि शराब पीकर गाड़ी चलाना गलत बात है।

अब मान लीजिये की एक व्यक्ति ट्रैफिक के नियमों के अनुसार धीमी गति से गाड़ी चलाता है। वह कुछ दूर ही जाता है और हाईवे पर उसे एक ट्रक मिलता है जिसके ड्राइवर ने शराब पी हुयी होती है। वह व्यक्ति आगे चलकर red light पर रुक जाता लेकिन पीछे से आ रहा वह ट्रक ड्राइवर नहीं रुकता और उसे टक्कर मार देता है।

उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और इस घटना को देखने वाले कहते हैं कि उसकी मृत्यु का जिम्मेदार ट्रक वाला है और उस व्यक्ति की इसमें कोई भी गलती नहीं थी।

इस तरह हम अपने मत अनुसार सही गलत का निर्णय कर लेते हैं लेकिन अगर शास्त्रों की माने तो दूसरे वाले व्यक्ति की मृत्यु के जिम्मेदार उसके अपने कर्म थे और पहले वाले व्यक्ति की मौत के जिम्मेदार भी उसके अपने कर्म थे। यह बात कुछ समझ नहीं आती और अहा तक कि भगवत गीता में भगवान भी कहते हैं कि कर्म की गति को समझ पाना बहुत ही कठिन है।

भगवत गीता के अनुसार कर्म अकर्म और विकर्म क्या है?

भगवान कृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय के अठारवें श्लोक में बताते हैं कि कर्म कि तीन प्रकार के होते हैं जो हैं कर्म, अकर्म और विकर्म लेकिन इनको समझना बहुत ही कठिन है।

कर्म क्या है?

कुछ ऐसे कार्य हैं जिनको शास्त्रों में वैध माना गया है। अगर ऐसे कर्मों को फल प्राप्ति की इच्छा से किया जाता है तो इसे कर्म कहते हैं। कर्म करने से बंधन उत्पन्न होता है।

श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार अच्छे और बुरे कर्म दोनों ही आत्मा को बंधन में डालते हैं। अगर कोई अच्छे कर्म करता है तो उसे अच्छा फल प्राप्त होता है और अगर कोई बुरे कर्म करता है तो उसे बुरा फल प्राप्त होता है लेकिन कर्मों का फल अवश्य प्राप्त होता है।

विकर्म क्या है?

दूसरे होते हैं विकर्म जो बुरे कर्म हैं और इनका फल हमेशा बुरा होता है जो व्यक्ति को भोगना ही पड़ता है। तीसरे होते हैं अकर्म जो बंधन नहीं डालते और इनके करने से ब्यक्ति सभी दुखों से ऊपर उठ जाता है।

अकर्म क्या है?

अकर्म वो कर्म हैं जिन्हें फल की इच्छा के बिना ही किया जाता है जैसे की अगर कोई भगवान की पूजा करता है और बदले में कुछ नहीं चाहता हो यह एक अकर्म है। अकर्म करने से कोई बंधन प्राप्त नहीं होता और अकर्म करने से व्यक्ति अपने पूर्व पापों से भी छुटकारा पा लेता है।

भगवत गीता के अनुसार पाप कर्मों से मुक्ति का तरीका

अगर कोई व्यक्ति बिना फल की आसक्ति के कर्म करने में सफल नहीं हो पाता तो उसके लिए भगवत गीता में एक और उपाय बताया गया है। भगवत गीता के अठारवें अध्याय के चौसठवें श्लोक में भगवान कहते हैं कि सभी धर्मों को छोड़कर मेरी केवल शरण में आ जाओ और में तुम्हें सारे पापों से मुक्त कर दूंगा।

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