शिव जी की सच्ची कहानी। किस तरह से एक दर्जी को चोरों से बचाया

मित्रों, एक बार की बात है गांव में भगवान शिव का एक रघु नाम का बहुत बड़ा भक्त रहा करता था। वह एक गरीब परिवार से था। रघु को कपड़े की सिलाई करके जितने पैसे मिलते थे वह अपने घर को उसी से चलाया करता था। वहीं कपड़े सिलते समय या फिर कुछ भी काम करते समय वह बस भोलेनाथ का स्मरण करते रहता और सच्ची और साफ मन से भगवान शिव का जाप करता। दोस्तो, कहते हैं ना कि भगवान अपने सच्चे भक्तों की परीक्षा ज़रूर लेता है। बस फिर क्या था एक दिन रघु के पड़ोस में एक परिवार रहने के लिए आया। इस परिवार में एक व्यक्ति ऐसा था जो रघु से ईर्ष्या भाव रखता था और कहता था यह रघु। मशीन चलाते चलाते लगातार परमात्मा को याद करता रहता है। इसकी मशीन चलने के कारण मेरी नींद खराब हो जाती है। मैं ऐसा कुछ करता हूँ जिससे यह परमात्मा का चिंतन भी छोड़ दे और इसकी मशीन भी गायब हो जाए। एक दिन उसे एक उपाय मिला। रघु किसी कार्य से दूसरे शहर गया हुआ था। तब वह व्यक्ति ने रघु के घर में घुसकर उसकी मशीन चुरा ली। इसके बाद जैसे ही रघु घर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी सिलाई मशीन तो चोरी हो गई है। पहले तो उसने यहां वहां बड़ी मशक्कत के साथ अपनी सिलाई मशीन को खोजना शुरू किया, लेकिन जब उसे सिलाई मशीन अपनी नहीं मिली तो उसने अपने भोलेनाथ से प्रार्थना करते हुए सोचा कि मेरे प्रभु को अगर यही मंजूर है तो यही सही। वहीं रघु बहुत परेशान था, क्योंकि उसके पास अब घर चलाने का कोई जरिया नहीं बचा था।

जिसके बाद उसने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई क्योंकि उसने अपने परमात्मा पर सब कुछ छोड़ दिया था। उसे लगा कि महादेव उसकी परीक्षा ले रहे हैं। ऐसे में भगवान शिव ही उसका बुरा कभी नहीं सोच सकते। कुछ ना कुछ कारण ज़रूर होगा जिसके लिए उसकी मशीन चोरी हुई है। वहीं दूसरी तरफ भोलेनाथ अपने भक्त को दुखी नहीं देख पाए और फिर वह अपने भक्त के लिए धरती पर उतर आए। दोस्तों जिस व्यक्ति ने रघु की मशीन चुराई थी अगले ही दिन उस व्यक्ति के दाएं हाथ पर छाले हो गए जो कि बहुत बड़े बड़े वाले थे। लेकिन हैरानी वाली बात तो यह है कि जब पूरे शरीर को छोड़कर उसने अपने हाथों से रघु की मशीन को चुराया था बस उन्हीं हाथों को दर्द भुगतना पड़ा। फिर जब वह व्यक्ति अपने हाथों को दिखाने के लिए डॉक्टर के पास गया तो डॉक्टर ने भी कहा यह तो बहुत बड़े और भयानक छाले हैं। यह तुम्हें कैसे हुए? तब उसने कहा, मुझे नहीं पता कि आखिर कैसे हुआ। मैं रात को सो रहा था। सुबह उठा तो मेरे हाथ का यह हाल था।

जिसके बाद डॉक्टर ने अपनी औषधि और ज्ञान का इस्तेमाल करते हुए उस व्यक्ति का इलाज कर दिया। फिर जैसे ही उसके हाथों के छालों में सुधार होने लगा वैसे ही दूसरे दिन उसके दूसरे हाथ में भी पहले से पड़े पड़े छाले हो गए। जिसके बाद फिर वह भागा भागा डॉक्टर के पास गया और कहा डॉक्टर पहले हाथ के तो छाले ठीक नहीं हुए। दूसरे हाथ पर भी छाले हो गए। अब मेरी तकलीफ बढ़ती जा रही है। आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे मेरी तकलीफ कम हो जाए। तभी डॉक्टर ने उसे अपने पास बुलाकर बड़े ही प्यार से पूछा कि तुमसे एक बात पूछना चाहता हूँ, क्या तुमने अपने जीवन में कोई पाप कर्म किया है जिसकी सजा तुम्हें इस तरह से मिल रही है? मुझे ऐसा लगता है कि जैसे तुमने अपने हाथों से कोई बड़ा पाप कर्म किया है, भगवान के सामने अपना पाप कबूल कर सकते हो तो उनकी कृपा से तुम्हारा जो भी हाथ है, वह ठीक हो जाएगा।

पहले तो व्यक्ति संकोच की वजह से कुछ नहीं बता पा रहा था, लेकिन धीरे धीरे डॉक्टर की बात सुनकर उसने डॉक्टर को सबकुछ बता दिया और कहने लगा मेरे घर के पास एक व्यक्ति रहता है। कुछ दिन पहले मैंने उसकी मशीन चोरी कर ली थी। वह अपनी सिलाई मशीन चलाकर भरण पोषण किया करता था। हो सकता है कि उस पाप के कारण मुझे यह भुगतना पड़ रहा है। जब डॉक्टर ने मित्रों यह सारी बात सुनी तो वह कहने लगे तुम यह मशीन जल्दी से वापस उसके घर पहुंचा दो। भगवान ने चाहा तो तुम्हारा हाथ जल्दी ठीक हो जाएगा। तब वह व्यक्ति घर आया और मौका देखकर दोबारा से रघु के घर में जाकर उस मशीन को उसी जगह पर रख दिया जहां से उसने उस मशीन को उठाया था। जैसे ही वह व्यक्ति मशीन रखकर अपने घर लौटा तो वह देखकर हैरान परेशान हो गया कि उसका हाथ बिल्कुल ठीक ठाक हो गया है। अब उसे भी यकीन हो चुका था कि हर वक्त भगवान की नजर के सामने ही रहता है वह। दोस्तों, अब आप भी जब किसी के साथ कुछ गलत करने जा रहे हों तो ध्यान रखिएगा कि परमात्मा की नज़र हम सब पर रहती है और हमें कभी न कभी उस गलत कर्म की सज़ा ज़रूर मिलती है। वहीं धरती पर स्वयं भोलेनाथ के आने की कहानी का ज़िक्र हो ही रहा है तो आपको एक और ऐसी कहानी से रूबरू करवाते हैं जिसकी मानें तो एक बार खुद भोलेनाथ को धरती पर आकर किसान बनना पड़ा था। एक बार की बात है एक गांव में दयाराम नाम का एक किसान अपनी पत्नी शीला के साथ रहा करता था।

किसी तरह गन्ने की खेती करके वह अपने परिवार का गुजर बसर किया करता था। लेकिन कुछ समय से बारिश न होने की वजह से गन्ने की फसल भी कुछ खास अच्छी नहीं हो पा रही थी। इसलिए खेती करने के बाद जो भी समय बचता उसमें दयाराम मजदूरी करता था, ताकि घर खर्च के लिए किसी तरह रुपये निकल आएं। उधर दयाराम की पत्नी शीला महादेव की बहुत बड़ी भक्त थी। उनकी पूजा के बिना उसके दिन की शुरुआत नहीं होती थी। शीला की एक बहुत अच्छी आदत थी मित्रों, वह जब भी खाना पकाती तो उसमें तीन हिस्से भगवान के लिए निकाल दिया करती थी। पहला भगवान गणेश के लिए, दूसरा शिव जी और पार्वती जी के लिए और तीसरा देवी। पूर्णा के लिए इन सभी भगवानों का भोग निकालने के बाद वह दयाराम के साथ अपनी थाली लगाकर खाना खाती थी। खाना खाने के बाद वह भोग की थाली का भोजन गाय को खिला दिया करती थी। इसी तरह उनका जीवन किसी तरह तो कट रहा था। एक दिन दयाराम काम से वापस लौटा तो उसने देखा उसकी पत्नी गाय को रोटी खिला रही है। यह देखकर वह बहुत हैरान हुआ। उसने कहा, अरे यह तुम क्या कर रही हो? यहां अपना खाना इतना मुश्किल से नसीब से होता है और उसमें भी तुम इन गायों को रोटी खिला देती हो। अरे कुछ तो सोचो मेरी मेहनत के बारे में। शीला ने कहा, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? आपको पता नहीं कि गाय में 33 कोटि देवी देवता वास करते हैं। क्या पता महादेव की कृपा हम पर हो जाए और आपकी कमाई बढ़ जाए।

दयाराम ने कहा, अब तक तो कुछ नहीं हुआ, आगे क्या ही होगा? खैर जो तुम्हें सही लगता है, तुम करो। ये सब। अगले दिन मित्रों जब दयाराम मजदूरी पर गया तो उसे सच में दुगना फायदा हुआ। उसे जब दिहाड़ी मिली तो वह बहुत खुश हुआ। उसने सोचा कि यह सब उसकी पत्नी के विश्वास का ही नतीजा है इसलिए आज की कमाई मैं उसी को दूंगा। दयाराम खुशी खुशी घर पहुंचा और जोर जोर से चिल्लाकर शीला को पुकारने लगा। शीला ने कहा, क्या हुआ? क्यों चिल्ला रही हो? दयाराम ने कहा, देखो आज कितनी कमाई हुई है मेरी। यह सब तुम्हारी भक्ति का ही फल है। इसलिए यह सब तुम रखो। इन रुपयों का तुम्हें जो करना है, चाहे वह करो। शीला यह सब देखकर बहुत खुश हुई। उसने कहा, करना क्या है? चलिए मंदिर चलते हैं। शिवजी के दर्शन भी कर लेंगे और इसमें से कुछ पैसे दान भी कर देंगे ताकि जरूरतमंदों की मदद हो सके। इसके बाद मित्रों दोनों शंकर जी के मंदिर गए, पूजा अर्चना की और धन दान करके घर वापस आ गए। इसी तरह उनका घर चलता रहा। पर एक दिन दयाराम की तबियत अचानक खराब हो गई। डॉक्टर ने उसे बताया कि तुम्हारा दिल कमजोर हो गया है, इसलिए अब कम से कम तुम्हें तीन महीने तक कोई काम नहीं करना है। यह सुनकर तो शीला की सांसें ही अटक गई। वह जोर जोर से रोते हुए बोली, हे महादेव! अब घर कैसे चलेगा? अगर ये काम नहीं करेंगी तो खाने और दवाइयों के पैसे कहां से ही आएंगे? पर मित्रो, कहते हैं ना जब आपकी भक्ति सच्ची होती है तो आपके दुख में भगवान भी दुखी होते हैं। ये सब देखकर भगवान शिव बहुत दुखी हुए। उन्होंने तय किया कि वह अपने भक्तों की मदद खुद करेंगे। उन्होंने इंद्रदेव से कहा कि मैं अपने भक्त के खेत में खुद किसानी करूंगा। आप सही समय पर वर्षा कर देना। इतना ही नहीं उन्होंने देवी अन्नपूर्णा से कहा कि आप इस बार दयाराम के खेतों में अच्छी फसल करवा देना। इसके बाद मित्रों भगवान शिव किसान का रूप रखकर दयाराम के खेत में दिनरात मेहनत करने लगे और सही समय आने पर उसके खेतों में गन्ने की फसल लहलहाने लगी। एक दिन शीला सो रही थी और उसके सपने में महादेव ने उसे दर्शन दिए और कहा शीला मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं। इसलिए अब समय आ गया है कि तुम्हें तुम्हारी भक्ति का फल दिया जाए।

तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। तुम्हारे खेत में मैंने खुद किसानी करके फसल उगा दी है, जिसे बेचकर तुम अपनी जिंदगी अच्छे से बिता सकती हो। इतना ही नहीं, बहुत जल्द तुम्हारे घर एक नन्हा मेहमान भी आएगा। अब यह सब कहकर मित्रों भगवान शंकर अंतर्ध्यान हो गए। तभी शीला की नींद भी खुल गई। उसने बिना समय गवाएं सारी बात दयाराम को बताई। जिसके बाद दोनों पति पत्नी सच का पता लगाने खेत पहुंचे। खेत में दोनों ने जो देखा उसके बाद वह हक्के बक्के रह गए। खेत में गन्ने की ऐसी फसल पिछले कई सालों से नहीं हुई थी। दोनों भगवान शिव का शुक्रिया कर रहे थे और तुरंत दर्शन के लिए मंदिर पहुंच गए। उन्होंने भगवान शिव का अभिषेक कर उन्हें तरह तरह के पकवानों का भोग लगाया। पूजा करके दोनों लौट ही रहे थे कि तभी मंदिर की सीढ़ियों पर एक नन्हा बालक जोर जोर से रो रहा था। शीला ने जब उसे देखा तो उसकी ममता उमड़ आई। वह सोचने लगी आखिर इतने छोटे बच्चे को सीढ़ियों में छोड़कर कौन चला गया? तभी भगवान शिव पुजारी के भेष में आए और बोले, पुत्री, एक दुर्घटना में इस बच्चे के माता पिता की मृत्यु हो गई है। अगर तुम इसे पाल पाओ तो ले जा। यह सुनते ही शीला की आंखों से आंसू छलक आए। मित्रों, उसने दयाराम से कहा, हमारे वैसे भी कोई संतान नहीं है। क्यों न हम इसका ही पालन पोषण करें। इसे माता पिता की छाया मिल जाएगी और हमें संतान का सुख। दयाराम ने कहा भगवान शिव की मर्जी के आगे भला मैं क्या ही कह सकता हूं। आज से यह बालक हमारा हुआ। इस तरह मित्रों, शीला की सच्ची भक्ति ने उसकी जिन्दगी खुशियों से भर दी। तो मित्रों, आज की विडियो में फिलहाल बस इतना ही। अगर आप भी शिवजी के सच्चे भक्त हैं तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं। इसके साथ ही अगर आपके साथ या आपके किसी जानने वाले के साथ महादेव से जुड़ी कोई सच्ची घटना हुई है तो हमें कमेंट करके ज़रूर बताइए या हमारी वेबसाइट पर पूरी कहानी बता सकते हैं।