धीरेंद्र शास्त्री महाराज का बचपन

महराज धीरेंद्र शास्त्री जी का बचपन कैसा था

महाराज धीरेंद्र शास्त्री जी बचपन में अपने गांव में भिक्षा मांग करते थे । महराज जी के पिताजी कुछ करते नहीं थे । महराज जी ने अपने गांव में 8 वर्षों तक भिक्षा मांगी । महराज जी को कोई उधार भी नहीं देता था और उनके घर पर कोई निमंत्रण कार्ड भी नहीं देता था ।

महराज धीरेंद्र शास्त्री जी को बचपन में वृंदावन जाना था लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे । महराज जी को 2000 रुपयों की आवश्यकता थी लेकिन उनको किसी ने उधार पैसे नहीं दिए । महराज जी के पिताजी कुछ करते नहीं थे और सारा भार महराज जी के सिर पर ही था ।

महराज धीरेंद्र शास्त्री जी अपने दादा गुरु जी के पास गए और धन मांगा । उनके दादा गुरु जी ने कहा कि बेटा अगर में तुमको कुछ लाख रुपए दे भी दूं तो कुछ दिन बाद खत्म हो जाएंगे । उनके दादा गुरु ने उनको बागेश्वर बालाजी के सामने खड़ा करके कहा कि आज से तुम इनके और ये तुम्हारे ।

महराज को अपनी बहन की शादी कराने के लिए मुसलमान से मदद लेनी पड़ी

महराज धीरेंद्र शास्त्री जी का कहना है कि उनके दादा गुरु जी ने उनको जो दिया वो और किसी ने नहीं दिया । महराज जी को अपनी बहन की शादी कराने के लिए अपने एक मुसलमान दोस्त से मदद लेनी पड़ी । महराज जी ने तभी से संकल्प लिया कि धाम पर जो भी चढ़ावा आएगा उसे गरीब बेटियों की शादी में लगाएंगे ।

महाराज धीरेंद्र शास्त्री जी का एक ही मकान था जिसकी छत से पाई गिरता था और महराज जी बारिश के दिनों में पलंग के नीचे सोया करते थे । महराज धीरेंद्र शास्त्री जी कहते हैं गरीब का लोग मजाक उड़ाते हैं । गरीब को ही सारे नियम कानूनों का पालन करना पड़ता है ।

महराज धीरेंद्र शास्त्री जी जिस गांव में रहते थे इस गांव में उस गांव के ब्राह्मण थे । महराज जी जब गांव में पढ़ने जाते थे तो तिलक लगाकर जाते थे । महराज जी सरकारी स्कूल में पढ़ते थे और वहां के बच्चे जबरजस्ती उनका तिलक मिटा देते थे ।

जब धीरेंद्र शास्त्री जी को वृंदावन पढ़ने जाना था तो 2000 रुपए किराया नहीं था और 15 दिन तक किसी ने उनको उधार नहीं दिया जिस कारण वे वृंदावन जा नहीं पाए । शास्त्रों में सही कहा गया है कि सब स्वार्थ के लिए ही प्रीति करते हैं । इससे संबंधित एक कथा हम आपको बताते हैं ।

सब स्वार्थ के लिए प्रीति करते हैं

एक गुरु का एक चेला था जिसका नाम अशीसदास था । वह योग की कला में निपुण हो गाया था और योग करते करते वह 30 मिनट तक सांस रोकने के काबिल हो गया । कुछ दिन तक वह चेला गुरु जी के पास नहीं आया तो उन्होंने पूछा क्या बात है । चेला कहने लगा कि गुरु जी हमारा विवाह हो गया ।

गुरु जी ने कहा कि अब तुम किसी काम के नहीं बचे । चेला ने कहा कि महराज जी हमारी पत्नी बड़ी सुशील है । हमारे बिना वह खाना नहीं खाती, हम जब तक सोएं नहीं तब तक सोती नहीं, घर का पूरा काम करती, नहाने जाएं तो कपड़े देख देती ।

चेले ने कहा कि महराज जी आप तो वैरागी आदमी आपने कहां यह सब देखा । हमारी तो जिंदगी सुधार गई जब से विवाह हो गया । माहत्मा जी ने कहा कि तब तो तुम बिलकुल काम से गए । चेला हंसे लगा कि गुरु जी आप यह क्या उल्टा भाषण दे रहे ।

गुरु जी ने चेले के कान में कुछ कहा कि ऐसा करके तुम्हारी समझ में सब कुछ आ जायेगा । चेला केसे ही घर गया तो उसकी पत्नी ने कहा आइए प्राणनाथ आप आ गए । चेला ने कहा कि आज हमारा खीर खाने का बहुत मन है । पत्नी ने खीर बना रही थी तब तक चेला घर के ऊपर चढ़ गया और घर के खप्पर ठीक करने लगा ।

महात्मा ने खोली अपने शिष्य की आंखें

चेला खप्पर सुधारते सुधारते घर के ऊपर उल्टा लटका गया । केसे ही खीर बन गई चेले ने अपनी सांस को रोक लिया क्योंकि वह तो इस कला में निपुण था । पत्नी आई और कहने लगी प्राणनाथ आओ खीर बन गई । चेले ने कुछ नहीं बोला, फिर दोबारा पत्नी ने आवाज लगाई लेकिन कोई उत्तर नहीं आया । पत्नी पास गई तो देखा कि पति देव लटके हैं ।

पत्नी 2 चार मिनट तो देखती रही फिर देखा की सांस नहीं चल रही है । पत्नी को लगा कि कहीं ये चल तो नहीं बसे । कुछ समय और बीता तो पत्नी को लगा कि ये तो मर गए । पत्नी को लगा कि रात बहुत हो गई है और अगर अभी से रोना शुरू किया तो कल शाम तक खाने को नहीं मिलेगा ।

पत्नी ने दो चार कटोरा खीर, काजू, दूध और पानी पीकर पत्नी ने फिर रोना शुरू किया । सभी लोग रोने की आवाज सुनकर वहां आ गए । सभी चेले को देखने लगे लेकिन चेला तो सांस रोक लटका ही था । सबको लगा चेला मार गया और सभी उसे मरघट ले जाने के तैयारी करने लगे ।

जब मरघट ले जाने की बात आई तो चेले के गुरु जी भी वहां पर आ गए । घर वाले कहने लगे कि महराज जी आप तो इतने बड़े माहत्मा हैं अपने चेले को जिंदा कर दीजिए । महराज ने कहा कि ठीक है एक कटोरा दूध लेकर आओ । घर वाले दूध लेकर आए और महराज जी ने दूध को चेले के सिर पर घुमाकर कहा कि को ये दूध पाएगा वो मर जायेगा और ये जिंदा हो जायेगा ।

सबसे पहले चेले के पिता से कहा कि तुम्हारा तो बुढ़ापा है तुम दूध क्यों नहीं पीते । महात्मा ने चेले की माता जी से कहा । मां ने बहाना बनाया कि हम मर गए तो इसके पिता को कौन खाना देगा । पत्नी से कहा तो पत्नी ने कहा कि हम तो दूसरा विवाह करेंगे ।

पत्नी ने कहा कि महराज जी आप तो। वैरागी हैं आपके आगे पीछे कोई नहीं आप ही दूध क्यों नहीं पी लेते । माहत्मा जी ने कहा ठीक है तो में फिर दूध पी लेता हूं । महात्मा जी ने दूध पी लिया और चेले के ऊपर हाथ फेरा । चेला कौन सा मरा था वह उठ गया और सब कुछ छोड़ छाड़ कर गुरु जी के साथ चला गया ।

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