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बलराम जी ने दुर्योधन को क्यों नहीं मारा
जब पांडव वनवास के समय तीर्थ पर गए थे तब वे घनघोर तपस्या करने लगे और तभी उनसे भगवान कृष्ण और बलराम मिलने के लिए आए । इसके बाद बलराम की ने कहा कि यह गलत है क्योंकि धर्मराज युधिस्ठिर वनवास के दुख भोग रहे हैं और पापी दुर्योधन राज पाठ का सुख भोग रहा है ।
बलराम जी ने कहा कि धृतराष्ट्र ने गलत किया है । धृतराष्ट्र को यह समझ नहीं आता कि उनके पुत्र पांडवों का सामना केसे करेंगे । भीम को तो युद्ध के लिए अस्त्र शस्त्र की भी जरूरत नहीं पड़ती । बलराम जी ने कहा कि द्रोपदी तो यज्ञ से उत्पन्न हुई हैं इसलिए उन्हें वन के दुख नहीं मिलने चाहिए ।
सात्यकि ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण और बलराम को जाकर दुर्योधन को मार देना चाहिए । सात्यकि ने कहा कि बलराम जी तो अपने क्रोध से ही सारे संसार का खात्मा कर सकते हैं तब दुर्योधन क्या ही है । सात्यकि ने कहा कि यादव सेना को तुरंत ही दुर्योधन और उसकी सेना पर आक्रमण करना चाहिए ।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि युधिस्ठिर अपने के अलावा किसी और के द्वारा जीती हुई प्रथ्वी कभी नहीं लेंगे । युधिस्ठिर ने कहा कि भगवान सही कह रहे हैं क्यूंकि उनके स्वभाव को केवल भगवान कृष्ण ही जानते हैं । इसके बाद भगवान कृष्ण और बलराम सात्यकि के साथ वापिस चले गए ।
इसके बाद लोमश ऋषि युधिस्ठिर को च्यवन मुनि के आश्रम तक ले गए । च्यवन मुनि ने इस तरह तपस्या की कि उनके शरीर पर मिट्टी की बांबी बन गई । एक दिन राजा सर्याति वहां पर घूमने आए और अपनी सुकन्या को भी ले आए । उस कन्या ने च्यवन मुनि के ऊपर बनी मिट्टी की बांबी को देखा और उनकी आंखें कांटों से फोड़ दिया ।
च्यवन मुनि को क्रोध आया और मुनि ने राजा की सेना के मल मूत्र द्वार बंद कर दिए और राजा समझ गया कि उसके राज्य में रह रहे च्यवन मुनि का किसी ने कुछ अहित किया है । इसके बाद राजा ने च्यवन मुनि के पास जाकर क्षमा किया ।
च्यवन मुनि ने कहा कि जिस कन्या ने उनकी आंखें फोड़ी हैं इसलिए उसको लेकर ही वे राजा की सेना को ठीक करेंगे । एक बार अश्विन कुमार को वह सुकन्या दिखी और वे उसके पास आकर कहने लगे कि वे देवताओं के वैद्य हैं और च्यवन मुनि को जवान और खूबसूरत बना सकते हैं ।
सुकन्या ने कहा यह बात मुनि को आकर बता दी । मुनि राजी गए और अश्विन कुमारों ने उन्हें जवान कर दिया । जब राजा ने सुना कि मुनि जवान हो गए हैं तो वे उनसे मिलने आए । राजा ने कहा कि वे मुनि से यज्ञ करवाना चाहते हैं और मुनि तुरंत ही मान गए । च्यवन मुनि ने जब यज्ञ के समय अश्विन कुमारों को सोमरस देने की कोशिश की तो इंद्र ने माना कर दिया ।
च्यवन मुनि नहीं माने और उन्होंने सोमरस दे दिया । इंद्र ने मुनि पर अपना बज्र छोड़ना चाहा लेकिन मुनि ने अपने तपोबल से एक राक्षस उत्पन्न किया जो इंद्र को मारने के लिए आगे बड़ा और इंद्र ने मुनि की बात मान ली ।
युवनाश्व राजा की कहानी जिन्होंने पुत्र को जन्म दिया
इसके बाद युद्धसिथिर युवनाश्व के तीर्थ पर पहुंचे और लोमश ऋषि ने युवनाश्व की कथा सुनाई । युवनाश्व ने बहुत से अस्वमेव यज्ञ किए और एक यज्ञ के समय राजा को बहुत प्यास लगी और उसने एक कुटिया में जाकर जल पी लिया ।
कुछ समय बाद यज्ञ में मोजूद मुनि जनो ने पूछा कि यह जल कौन पी गया । ऋषि ने कहा कि वह जल अभिमंत्रित था और यज्ञ के बाद राजा की पत्नी को पीना था ताकि राजा को एक पुत्र प्राप्त हो । इसके बाद राजा से एक पुत्र पैदा हुआ लेकिन यह आश्चर्य है कि राजा कि मृत्यु नहीं हुई ।
पुत्र का नाम राजा ने मांधाता रखा । राजा मांधाता ने बहुत से यज्ञ किए थे । इसी प्रकार लोमश ऋषि ने बताया कि एक बार इंद्र और अग्नि महाराज उशीनर की परीक्षा लेने आए । अग्नि ने कबूतर का रूप लिया और एक बाघ से बचने के लिए राजा की शरण ली ।
बाघ ने कहा कि वह उसका भोजन है और भूख मिटाने का प्राणी का धर्म है इसलिए राजा को उसका आहार वापिस कर देना चाहिए । भोजन के बिना कोई प्राणी जीवित नहीं रह सकता इसलिए बाघ मार जायेगा और इसके बच्चे भी मार जायेंगे और राजा को पाप पड़ेगा इसलिए यह केसा धर्म है जिसका वर्णन राजा कर रहे हैं ।
बाज का रूप लेकर इंद्र आए थे और राजा की परीक्षा ले रहे थे । इसके बाद राजा ने ने अपना एक राज्य बाज को दे दिया । बाज ने कहा कि उसे राजा के शरीर का मांस चाहिए । राजा ने तराजू में एक तरफ कबूतर को रखा और दूसरी तरफ अपना मांस रखा लेकिन वह कबूतर के वजन के बराबर नहीं हुआ ।
इसके बाद राजा स्वयं ही तराजू के पलड़े पर बैठ गए । इसके बाद बाज इंद्र के और कबूतर अग्नि के रूप में आ गए और राजा को वरदान दिया कि संसार में उनका हमेशा यश रहेगा ।
इसके बाद लोमश ऋषि ने युधिस्ठिर को अस्तावक्र की कहानी सुनाई । लोमश जी ने बताया कि उद्दालक के पुत्र स्वेतकेतु को सरस्वती देवी के दर्शन हुए थे । उद्दालक का एक शिष्य कहोड़ था जिसके साथ उद्दालक ने अपनी बेटी की शादी करवा दी । एक दिन कहोड़ मंत्र जाप कर रहे थे तब उनकी पत्नी सुजाता के गर्भ में पल रहा बच्चा बोल पड़ा कि कहोड़ गलत मंत्र पड़ते हैं ।
कहोड़ को गुस्सा आ गया और बालक को श्राप दिया कि वह आठ जगह से टेड़ा उत्पन्न होगा । जब एक दिन सुजाता को दर्द हुआ तो कहोड़ राजा जनक के पास धन लेने गए लेकिन वहां राजा के कुशल बंदी ने उन्हें शास्त्रार्थ में हरा दिया और शास्त्रार्थ के नियम के अनुसार जल में डूबो दिया ।
अष्टावक्र को इस विषय में कुछ लता नहीं था लेकिन जब वे 12 साल के हो गए तब अष्टावक्र को अपने पिता की मौत के बारे में पता चल गया और वे राजा जनक के पास गए ।
अष्टावक्र राजा जनक से कहा कि वे बंदी नाम के व्यक्ति से शास्त्रार्थ करने आए हैं जो ब्राह्मणों को हराकर जल में डूबो देता हैं । राजा ने अष्टावक्र से पूछा कि सोने के समय कौन आंख बंद नहीं करता । अष्टावक्र ने कहा कि मछली सोते वक्त आंख बंद नहीं करती ।
राजा जनक ने पूछा कि कौन पैदा होने के बाद चेष्टा नहीं करता है । अष्टावक्र ने कहा कि अंडा पैदा होने के बाद चेष्टा नहीं करता । इसके बाद अष्टावक्र ने बंदी से शास्त्रार्थ किया और उसे हराकर जल में डुबो दिया ।
इस लेख में इतना ही । आगे की कहानी पड़ेंगे अगले लेख में । अगले लेख की जानकारी पाने के लिए अगले क्लिक करने व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन कर सकते हैं – WhatsappGroup ।