युधिस्ठिर गए तीर्थ, नारद जी ने बताया प्रयाग तीर्थ का महत्व

हम सम्पूर्ण महाभारत बतला रहेगें जिसमे यह भाग 20 है । भाग 19 में हमने बताया था कि राजा नल ने अपना खोया हुआ राज्य केसे वापिस लिया । उसके पहले के भागों में हमने बताया था कि अर्जुन ने किस तरह स्वर्ग जाकर देवराज इंद्र से युद्ध विद्या सीखी ।

उसके पहले हमने बताया था कि किस प्रकार पांडवों को धोखे से वनवास के लिए भेजा गया था और उनका राज्य छीन लिया गया था ।

तीर्थ स्थल के नाम

धर्मराज युधिष्ठिर ने नारद मुनि से तीर्थों की जानकारी लेकर तीर्थ जाने का मन बनाया । युधिस्ठिर ने अपने पुरोहित धौम्य मुनि के पास जाकर तीर्थ जाने के लिए सलाह ली । युधिस्ठिर ने धौम्य मुनि से कहा कि अर्जुन के वापिस आ जाने के बाद तीर्थ के लिए जाएंगे ।

धौम्य मुनि ने भी युधिस्ठिर को कई प्रकार के तीर्थों का वर्णन बताया । उन्होंने गया के बारे में बताया कि अगर कोई गया में पिंडदान कर दे तो उसकी पिछली 10 पीढ़ियां तर जाती हैं । उन्होंने बताया कि पूर्व दिशा में स्थित नैमिषारण्य तीर्थ पवित्र है और गोमती नदी के तट पर स्थित है ।

विश्वामित्र का स्थान और कौसिकी नदी भी पूर्व में ही है । ब्रह्मा जी का तीर्थ पुष्कर भी पूर्व में है और अगस्त्य मुनि का आश्रम भी पूर्व में है । परशुराम जी का महेंद्र पर्वत भी पूर्व में है ।

दक्षिण दिशा में गोदावरी नदी है और गोकर्ण आश्रम भी बहुत पवित्र है । दक्षिण के प्रभास तीर्थ और पिंडारक तीर्थ तो विख्यात हैं ।

पश्चिम दिशा में पवित्र नर्मदा नदी के बारे में बताया । नर्मदा तट पर ही एक आश्रम में कुबेर जी का जन्म हुआ था । केतुमाला, मैध्या ,गंगा द्वार तीर्थ के बारे में भी बताया ।

उत्तर दिशा में सरस्वती नदी हैं जिनमे स्नान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है । उत्तर से ही गंगा जी एक पर्वत से निकलीं थी जिसका नाम गंगा द्वार है । धौम्य मुनि ने कहा कि युधिस्ठिर को सभी भाइयों के साथ तीर्थ पर जाना चाहिए ।

इसके बाद लोमस ऋषि वहां पर आ गए । लोमश ऋषि ने बताया कि वे स्वर्ग से आए हैं और उन्हें इंद्र ने भेजा है । लोमश ऋषि अर्जुन की खबर देने के लिए आए हैं । उन्होंने बताया कि अर्जुन ने शिव जी से वह सारी विद्या सीख ली है जिससे कौरवों को जीता जा सके ।

लोमश ऋषि ने बताया कि अर्जुन ने स्वर्ग के देवताओं से कई सारे दिव्य शस्त्र प्राप्त कर लिए हैं । चित्रसेन गंदर्भ से गाना बजाना भी अर्जुन ने सीख लिए है । इसके बाद लोमश ऋषि ने युधिस्ठिर से कहा कि वे कर्ण से बिलकुल न डरें ।

ऋषि ने कहा कि कर्ण अर्जुन के सामने नहीं टिक पाएगा । अर्जुन और कर्ण का कोई मुकाबला ही नहीं है, लोमश ऋषि ने यहां तक कह दिया कि कर्ण अर्जुन के सौलवें हिस्से के बराबर है । इसके बाद लोमश ऋषि ने धर्मराज युधिष्ठिर के मन की बात जानते हुए कहा कि उन्हें तीर्थ स्थानों पर जाना चाहिए ।

लोमश ऋषि के बारे में आपको बता दें कि लोमश ऋषि की आयु बहुत ही ज्यादा लंबी है । मनुष्यों के एक साल के बराबर देवताओं का एक दिन होता है । इस प्रकार देवताओं की आयु करोड़ों वर्ष होती है ।

इसके बाद जब ब्रह्मा जी का एक दिन होता है तो उसमे 14 बार देवताओं की उम्र निकल जाती है । इस प्रकार ब्रह्मा जी की आयु अरबों खरबों वर्ष होती है । जब ब्रह्मा जी की आयु समाप्त हो जाती है तब लोमश ऋषि के शरीर से एक बाल गिर जाता है ।

जब तक उनके शरीर से सारे बाल नहीं गिरते तब तक उनकी आयु समाप्त नहीं होगी ।

युधिस्ठिर लोमश ऋषि के साथ तीर्थ पर गए

इसके बाद युधिस्ठिर ने भाइयों और लोमश ऋषि के साथ तीर्थ का विचार बनाया । कुछ ब्राह्मण भी युधिस्ठिर के साथ हो लिए । उसी समय व्यास देव वहां आए और उन्होंने बताया कि मन की शुद्धि ही पूर्ण सिद्धि है इसलिए तुम किसी से द्वेष भाव न रखो । सबसे मित्र भाव रखो तभी तीर्थ सफल होंगे ।

पांडव नैमिषारण्य गए और उन्होंने वहां दान दिया । उसके बाद पिंडदान किया, इसके बाद प्रयाग गए और फिर गया पहुंचे । गया में बहुत सारे ब्राह्मण थे जो धर्मराज युधिस्ठिर के पास आए और शास्त्र की चर्चा की । उन्होंने बताया कि यह महाराज गय ने बहुत यज्ञ करवाए थे ।

इसके बाद धर्मराज अगस्त्य मुनि के आश्रम में गए । लोमश ऋषि ने अगस्त्य मुनि के बारे में बताया कि एक बार उन्होंने अपने पितरों को देखा, पितरों ने कहा कि अगस्त्य मुनि एक पुत्र पैदा करें तो उन सब का उद्धार हो जायेगा ।

मुनि ने पितरों के उद्धार के लिए विवाह करने का मन बनाया । अगस्त्य मुनि ने विदर्भ जाकर लोपामुद्रा से विवाह करने का प्रस्ताव रखा ।

विदर्भ के राजा ने सोचा कि में अपनी राजकुमारी का विवाह तपस्वी से केसे कराऊं, ये तो महलों में रहने वाली है जंगल में केसे रहेगी । मुनि विदर्भ नरेश को श्राप न दे दें इसलिए लोपामुद्रा ने उनसे विवाह कर लिया ।

एक बार लोपामुद्रा ने अगस्त्य मुनि से कहा कि वे उसी प्रकार रहना चाहती हैं जिस प्रकार महल में अपने पिता के घर रहती थीं । अगस्त्य मुनि ने एक दैत्य के पास जाकर धन मांगा । दैत्य ने अगस्त्य मुनि को एक सोने का रथ, गाएं और बहुत सारा धन दे दिया ।

अगस्त्य मुनि ने लोपामुद्रा को सब सुविधाएं दीं जो राजमहल में होती हैं । इसके बाद अगस्त्य मुनि को एक पुत्र प्राप्त हुआ और उनके पितरों का उद्धार हो गया ।

लोमश ऋषि ने बताया कि उस दिन के बाद ही यह स्थान अगस्त्य आश्रम के नाम से प्रचलित हुआ । लोमश ऋषि ने बताया कि सारे पांडवों को वहां स्नान करना चाहिए । इसके बाद युधिस्ठिर ने पूछा कि इस स्थान से जुड़ी कथा बताएं ।

लोमश ऋषि ने कहा कि एक बार परशुराम जी क्षत्रियों का संहार करने निकले थे और राम भगवान की परीक्षा लेने गए थे । परशुराम ने राम भगवान से कहा कि अगर वे उनके धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा दें तो ही वे क्षत्रिय हैं । प्रभु ने तुरंत ही ऐसा कर दिया और फिर परशुराम को दिव्य दृष्टि दी जिससे वे देख पाए कि श्री राम ही भगवान हैं ।

भगवान की परीक्षा लेने के कारण उनका सारा तेज गायब हो गया और वे बहुत दुखी रहने लगे । पितरों ने परशुराम जी को बताया कि वे वधुसरकृता नदी में स्नान करें जिससे उनका तेज वापिस आ जायेगा । परशुराम जी ने ऐसा ही किया और उनका तेज वापिस आ गया ।

लोमश ऋषि ने कहा कि दुर्योधन ने भी युधिस्ठिर महाराज का तेज छीन लिया है इसलिए इस तीर्थ में स्नान करने से उनका भी तेज वापिस आ जायेगा । युधिस्ठिर ने ऐसा ही किया और वे भी तेजवान हो गए ।

अभी के लिए इतना ही । मिलेंगे आगे पोस्ट में आगे की कहानी के साथ । किस प्रकार पांडवों ने इतने बड़े धोखे के बाद अपने आप को तैयार किया । उधर अर्जुन ने स्वर्ग जाकर युद्ध के लिए अपने आप को तैयार किया तो यहां बाकी पांडवों ने तीर्थ जाकर अपने आप को तेजवान बनाया ।

व्यास देव, देवर्षि नारद लोमश मुनि ने की पांडवों की मदद । आगे क्या क्या हुआ बताएंगे अगले पोस्ट में । अगले पोस्ट की जानकारी व्हाट्सएप ग्रुप पर दी जाती है । आप आगे क्लिक करके व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन कर सकते हैं – WhatsappGroup

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