गरुड़ पुराण के अनुसार यमपुरी का वर्णन

यमपुरी का वर्णन

इसके बाद उन्होंने पूछा कि यात्रा पूरी करने के बाद यमपुरी में पापियों का क्या होता है, सूत गोस्वामी ने बताया कि जैसे ही यमपुरी की यात्रा पूरी करके पापी जीव वहां पहुंचता है तो वहां का मंजर देख करकांप जाता है वहां पर यमराज और चित्रगुप्त मौजूद होते हैं

यमराज सभी के विषय में जानती हैं क्योंकि भगवत महापुराण में बताया गया है कि यमराज भी जीवात्मा के साथ है जय में स्थित रहते हैं और उसकी शुभ अशुभ कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं इतना सब कुछ जानते हुए भी यमराज चित्रगुप्त सिपाहियों की बाप के बारे में पूछते हैं

साथ ही यमराज पापियों के पाप के बारे में श्रवणों से भी पूछते हैं, श्रवण ब्रह्मा के पुत्र हैं और वे बहुत ही ज्ञानी हैं और दूर तक दृष्टि रखने वाले हैं । श्रवण की श्रावणी नाम की पत्नियां हैं जो स्त्रियों की चेष्टाओं को भलीभांति जानती हैं और वह सब श्रवण, श्रावणी और चित्रगुप्त यमराज को पापियों के पाप कर्मों के बारे में बताते हैं । यह तीनों प्राणियों की मानसिक वाचिक और क्रियाकलापों द्वारा किये गए शुभ और अशुभ कर्मों को भली-भांति जानते हैं जिसे वे यमराज को बताते हैं ।

इसके अलावा सूर्य, चंद्रमा अग्नि, आकाश, वायु, जल भूमि हृदय, दिन-रात दोनों संध्याएं और धर्म यह सब मनुष्य के कर्म के साक्षी होते हैं । धर्मराज, चित्रगुप्त, सूर्य आदि और श्रवण मनुष्य के शरीर में स्थित रहते हैं और सभी पापों और पुण्यों को देखते रहते हैं । इस प्रकार पापियों के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करके याम उन्हें बुलाकर अपना भयंकर रूप दिखाते हैं ।

दान न देने वाले और कभी धर्म ना करने वाले सभी पापी यमदूत के रूप को देखकर अत्यंत भयभीत हो जाते हैं

यम के भयंकर रूप को देखकर वे पापी डर जाते हैं, हाथों में दंड लिए होते हैं और बड़ी-बड़ी आँखों वाले होते हैं और भैंसों के ऊपर बैठे होते हैं और बहुत ही कर्कश आवाज वाले होते हैं । बिजली जैसे प्रभाव वाले और 32 भुजाओं वाले और लाल लाल आंखों वाले, भयंकर भुजाओं वाले और लंबी नाक वाले होते हैं ।

दान न देने वाले और कभी धर्म ना करने वाले सभी पापी यमदूत के इस रूप को देखकर अत्यंत भयभीत हो जाते हैं और इसके बाद चित्रगुप्त उनसे कहते हैं कि हे पापियो, दुराचारियो, अहंकार से युक्त तुम मूर्खों ने पाप क्यों किया है । काम और क्रोध से आसक्त होकर पापियों की संगति से जो तुमने पाप किया है वह तुम्हें दुख देने वाला है, तुमने वह पाप क्यों किया?

जिस प्रकार पूर्व जन्म में तुम ने हर्षोल्लास पूर्वक पाप कर्म को किया है उसी प्रकार अब तुम्हें यातना भी भोगनी चाहिए । अब इस समय तुम इस यातना से क्यों भयभीत हो रहे हो जब तुम पाप करते समय भयभीत नहीं हुए ।

तुम लोगों ने जो बहुत सारे पाप किए हैं वही तुम्हारे दुख के कारण हैं । इसमें हम लोग कारण नहीं है, चाहे कोई मूर्ख हो या पंडित हो, कोई दरिद्र हो या धनवान हो, कोई बलवान हो या निर्बल यमराज सभी से समान व्यवहार करने वाले कहे जाते हैं ।

यमदूतों से कहते हैं कि इन पापियों को इनके पाप का दंड दो

चित्रगुप्त के इस प्रकार के वचनों को सुनकर सभी पापी अपने पूर्व जन्म में किए गए पापों के बारे में सोचते हैं और चुपचाप बैठ जाते हैं । इसके बाद यमराज यमदूतों से कहते हैं कि इन पापियों को इनके पाप का दंड दो जिसके बाद यमराज के आज्ञाकारी यमदूत प्रचंड और चांडक नाम के यमदूत पास में बांधकर उन्हें नरक की ओर ले जाते हैं ।

वहां पर जलती हुई अग्नि के समान एक विशाल वृक्ष है, यह वृक्ष 5 योजन में फैला है और एक योजन ऊंचा है । उस बृक्ष में उल्टा लटका कर सलाखों से बांधकर यमदूत उन पापियों को पीटते हैं । वह पापी रोते रहते हैं और उनकी रक्षा करने वाला कोई नहीं होता ।

इस प्रकार उस शाल्मली बृक्ष से बंधे और यमदूतों की मार से पीड़ित पापी उल्टे लटकते रहते हैं । वे पापी यमदूतों से कहते हैं कि हमारे पापों को क्षमा करो लेकिन यमदूतों में दया नहीं होती है और वे केवल यमराज की आज्ञा का पालन करते हैं ।

यमदूत उन पापियों को अत्यधिक पीटते हैं, इस प्रकार की मार से वे पापी मूर्छित हो जाते हैं तब बेहोश हुए उन पापियों को देखकर यमदूत कहते हैं कि हे पापियो तुम लोगों ने पाक क्यों किया, ऐसा दुराचरण क्यों किय? तुम्हें कभी जल तक का दान क्यों नहीं किया जो बहुत ही सुलभ है और किसी के द्वारा भी दान दिया जा सकता है ।

कुछ पापियों को यमपुरी में चारों ओर से जलते हुए अंगारों से युक्त लकड़ियों से बानी भट्टी में तपाया जाता है

कुत्ते तथा कौवे के लिए भी तुमने कभी भोजन नहीं दिया । कभी अतिथियों का स्वागत नहीं किया, पितरों का कभी तर्पण नहीं किया । यमराज तथा चित्रगुप्त का ध्यान नहीं किया और उनके मंत्रों का जप नहीं किया और यहां तक कि तुमने तो परम भगवान कृष्ण का भी जप नहीं किया, तुमने कभी देवताओं की भी पूजा नहीं की । गृहस्थ आश्रम में रहते हुए तुमने कभी भी विधि विधानों का पालन नहीं किया ।

तुमने कभी भी संतों की सेवा नहीं की इसलिए तुमने जो भी किया है उसका फल होगा । क्योंकि तुमने अधर्म किया है इसलिए तुम्हें यहां पर पीटा जा रहा है । भगवान हरि ही ईश्वर हैं, वही अपराधों को क्षमा करने में सक्षम हैं । हम तो उन्हीं की आज्ञा से पापियों को दंड देने वाले हैं । ऐसा कहकर यमदूत दया रहित होकर उन पापियों को पीटते हैं और पीटे जाने के कारण जलते हुए अंगार के सामान होकर पापी नीचे गिर जाते हैं ।

नीचे गिरने के कारण वृक्ष के नुकीले पत्तों से उनका शरीर कट जाता है और नीचे गिरे प्राणियों को कुत्ते खाते हैं और वे रोते रहते हैं । रोते हुए उन पापियों के मुख में यमदूत धूल भर देते हैं और उन पापियों को पासों से बांधकर मुगदरों से पीटते हैं । उस समय पापी काष्ठ की भांति दो टुकड़ों में काट दिए जाते हैं और कुछ पर कुल्हाड़ी चलाकर उनके खंड खंड कर दिए जाते हैं ।

कुछ पापियों को चारों ओर से जलते हुए अंगारों से युक्त लकड़ियों से बानी भट्टी में तपाया जाता है । कुछ को खोलते हुए तेल में कढ़ाई के अंदर तला जाता है ।

अलग-अलग प्रकार के पाप कर्मों के लिए अलग-अलग प्रकार की नरकों मे भेजा जाता है

किन्हीं को मतवाले हाथियों के रास्ते में फेंक दिया जाता है और किन्हीं के हाथ पैर बांधकर उनको कुएं में फेंक दिया जाता है । किन्हीं को पर्वतों से गिराया जाता है । किन्हीं को कुंडों को डुबो दिया जाता है जहां कीड़ों द्वारा काटे जाने के कारण वे दुःख पाते हैं । कुछ पापियों को पेनी चोंचों वाले मांस भक्षी पक्षियों द्वारा आघात पहुंचाया जाता है ।

इस प्रकार सम्यक रूप से प्रताड़ित करने के बाद यमदूत उन पापियों को नर्क में फेंक देते हैं । उस वृक्ष के समीप ही अनेक प्रकार के नरक हैं । उन नरकों मे प्राप्त होने वाली यातनाओं का वर्णन वाणी से नहीं किया जा सकता । नरकों की संख्या 8400000 है लेकिन उनमें सबसे ज्यादा भयंकर जो नरक है उनकी संख्या 21 है ।

अलग-अलग प्रकार के पाप कर्मों के लिए अलग-अलग प्रकार की नरकों मे भेजा जाता है । इन नरकों में गिरे हुए मूर्ख पापी नरक यातना को भोगते होते हैं ।

उसके बाद पक्षीराज गरुड़ ने भगवान विष्णु से पूछा कि वह कौन से पाप है जिनके कारण मनुष्य वैतरणी नदी में गिरते हैं और किन पापों के कारण नरक में जाते हैं कृपया मुझे वह बतलाइए ।

भगवान ने कहा कि पाप कर्मों मे लगे हुए और शुभ कर्मों से विमुख प्राणी एक नरक से दूसरे नरक को जाते रहते हैं । वह एक दुख के बाद दूसरा दुख पाते हैं और एक भय के बाद दूसरा भय उन्हें सताता रहता है । धार्मिक लोगों के लिए धर्मराज के पुर जाने के लिए तीन दिशाओं में द्वार स्थित हैं । लेकिन पापी लोगों के लिए दक्षिण का मार्ग है ।

अशुभ वचन बोलने वाले और सदा दूषित चित्त वाले ही दक्षिण मार्ग से होकर बहने वाली वैतरणी नदी से धर्मराज के पुर में जाते हैं

इसी मार्ग में वैतरणी नदी है जिसमे जो पापी पुरुष जाते हैं वे कुछ इस प्रकार हैं । जो ब्राह्मणों की हत्या करने वाले होते हैं जो मदिरा पान करते हैं, जो गाय को आघात पहुंचाते हैं, जो बाल हत्यारे होते हैं, जो स्त्री की हत्या करते हैं, गर्भपात करने वाले और गुप्त रूप से पाप करने वाले ।

जो गुरु के धन को हरण ते हैं, देवता और ब्राह्मण का धन हारते हैं, व्यभिचारी, बाल हत्यारे, जो ऋण लेकर उसे लौटते नहीं, धरोहर का अपहरण करने वाले, विश्वासघात करने वाले, गुणवानों की प्रशंसा ना करने वाले ।

सज्जनों के साथ वैर रखने वाले और नीचों के साथ अनुराग रखने वाले । सत्संगति से दूर रहने वाले, तीर्थों, सज्जनों, गुरुजनों और देवताओं की निंदा करने वाले । वेद पुराण मीमांसा और वेदांत सूत्र को दूषित करने वाले । दुखी व्यक्ति को देखकर प्रसन्न होने वाले और प्रशन्न को दुख देने वाले । अशुभ वचन बोलने वाले और सदा दूषित चित्त वाले ही दक्षिण मार्ग से होकर बहने वाली वैतरणी नदी से धर्मराज के पुर में जाते हैं ।

Leave a Reply