सुदामा जी की कहानी
सुदामा जी भगवान कृष्ण से मिलने के लिए गए । सुंदमा जी जब द्वारका पहुंचे तो उन्होंने द्वारपालों से कहा कि हमें कनैया कहां हैं । द्वारपालोंं ने कहा कि ये कनैया कौन । सुदामा जी ने कहा कि वे श्री श्री श्री महाराजाधिराज सर्व तंत्र स्वतंत्र द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण चंद्र सरकार से मिलना है ।
द्वारपालो ने कहा कि कौन हैं तुम्हारे, सुदामा जी ने कहा हमारे मित्र हैं । द्वारपाल ने कहा की पूछ कर आए हैं । द्वारपाल ने भगवान से जाकर कहा कि प्रभु एक व्यक्ति आया है द्वार पर एक दुर्बल व्यक्ति खड़ा है, न जाने कौन से गांव से है, कपड़े नहीं पहने हैं, पांव में पादुका नहीं हैं ।
द्वारपाल पूरा नाम नहीं बोल पाए केवल सु ही बोल पाए इतने में मोहन दौड़कर चले आए और सुदामा को गले से लगा लिए । रुकमणी जी को बहुत अचंभा हुआ कि यह मेहमान कैसा अजीब आया है । भगवान ने अपने बराबर में सुदामा जी को बैठाया और जल मंगवाया ।
ठाकुर जी ने सुदामा जी के लिए आज 56 प्रकार के भोग बनवाए । सुदामा जी ने थोड़ा सा प्रसाद पाया और सुदामा जी को अपने शयन कक्ष में ले गए । सुदामा जी आराम करने लगे और भगवान सुदामा जी के पैर दबाने लगे ।
भगवान् ने सुदामा जी से चने छीन लिए
भगवान ने सुदामा जी से पूछा कि भाभी जी ने कुछ भेजा तो नहीं । सुदामा जी ने भगवान का वैभव देखा और सोचा कि भगवान तो जानते हैं लेकिन रानियां क्या सोचेंगी । सुदामा जी तीन घरों से मांगकर चावल लाए थे । भगवान ने पोटली पकड़ ली और चावल खाने लगे ।
एक एक मुट्ठी में भगवान सुदामा जी को एक एक लोक दिए जा रहे थे । पहली मुट्ठी चावल लेते ही प्रभु जी ने स्वर्ग सुदामा जी के नाम कर दिया । दूसरी मुट्ठी में पृथ्वी लोक का वैभव दिया । तीसरी मुट्ठी जैसे ही भगवान जैसे ही खाने लगे तो रुकमणी जी ने रोक भगवान को रोक लिया कि प्रभु वैकुंठ दे रहे हैं ।
कल के दिन सुदामा जी ने कह दिया निकल जाओ तो फिर । भगवान ने सोचा सही बात है क्यों आफत ली जाए । सुदामा दिन कई दिन रुके । एक दिन भगवान ने ही कहा कि क्यों सुदामा जी भाभी जी की याद नहीं आ रही क्या । भगवान ने सुदामा जी को खाली हाथ ही भेज दिया तो सुदामा जी ने दोबारा कहा कि अब हम जाते हैं ।
भगवान ने कहा कि ठीक है चले जाओ । दरवाजे तक जैसे ही सुदामा जी पहुंचे तो भगवान ने रोका । सुदामा जी ने सोचा कि याद आ गाई अब प्रभु कुछ देंगे । भगवान ने कहा कि सुदामा ये रंग बिरंगे कपड़े मत पहनो रास्ते में चोर मिलेंगे और पिटाई कर देंगे इसलिए वही धोती पहन लो । सुदामा जी ने सोचा की अदभुद लीला है प्रभु की और धोती पहन कर जाने लगे ।
भगवान ने सुदामा को रैंक से राजा बना दिया
थोड़ी देर बाद सुदामा जी ने कहा कि तुम्हारी भाबी ने संदेशा भेजा है । एक महीने में दो एकादशी होती हैं लेकिन हमारे घर तो रोज ही एकादशी रहती है । प्रभु ने कहा कि हमारी भी खबर ले जाओ कि अब को हो गया सो गया अब रोज द्वादशी होगी ।
जब सुदामा जी वापिस आए तो उन्होंने देखा कि उनकी नगरी सोने की बन गई । उनको अपना घर मिल नहीं रहा था तो वे परेशान हो गए । सुदामा जी की धर्मपत्नी शुशीला आईं तो सुदामा जी ने सोचा कि ये कोई रानी हैं । सुदामा जी ऊपर नहीं देख रहे थे लेकिन तभी उनके बच्चे भी आ गए ।
इसके बाद सुशीला ने सुदामा जी उनकी आरती उतारी और कहा । सुदामा जी ने पूछा कि यह सब कैसे तो सुशीला जी ने कहा कि जिनके पास तुम गए थे ये उन्हीं की देन है ।
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