श्रृंगी ऋषि की कहानी
लोमश ऋषि ने धर्मराज युधिस्ठिर को बताई श्रृंगी ऋषि की कहानी । इस लेख में हम महाभारत की कहानी बतला रहे हैं । यह भाग 21 है । अगर आपने भाग 20 नहीं पड़ा है और पड़ना चाहते हैं तो आगे क्लिक करके पड़ सकते हैं – अगस्त्य मुनि की कहानी, अगस्त्य मुनि ने समुंद्र केसे सुखाया ।
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इसके बाद युधिस्ठिर हेमकूट पर्वत पर गए जहां हमेशा बारिश होती थी । कोषिकी नदी ने पास जाकर । इसके तट पर पर महर्षि विश्वामित्र का आश्रम है और विभांडक ऋषि का आश्रम है । विभांडक के पुत्र ऋषि श्रृंगी ने अपने तप से सूखा पड़ने पर वर्षा करवा दी थी ।
एक बार विभांडक स्नान करने गए और वहां पर उर्वशी को देखकर उनका स्खलन हो गया और एक हिरण ने आकर वहां जल पी लिया । इसके कारण उस हिरण के यहां एक पुत्र हुआ जिनका नाम था ऋषि श्रृंगी जिनके सिर पर एक सींग था ।
इनको अपने पिता के अलावा किसी और के बारे में पता ही नहीं था और उन्होंने वन में रहते हुए कभी भी किसी भी स्त्री को नहीं देखा था । इस कारण से ऋषि श्रृंगी अखंड ब्रम्हचारी थे । एक बार अयोध्या के राजा दशरथ के मित्र रोमपद थे जिन्होंने किसी ब्राह्मण की बात न मानकर उन्हें नाराज कर दिया था ।
इसके बाद रोमपद के राज्य में वर्षा नहीं हो रही थी । राजा के मंत्रियों ने बताया कि अगर ऋषि श्रृंगी उनके राज्य में आ जाएं तो वर्षा होनी शुरू हो जाएगी । इसके बाद राजा ने अपने राज्य की कुछ कन्याओं को बुलाकर कहा कि वे ऋषि श्रृंगी को लुभाकर ले आएं ।
कन्याओं ने राजा से एक नाव बनवाई और उसपर एक कुटिया बनवाई और उसे ऋषि श्रृंगी के यहां ले गईं । इसके बाद एक कन्या ने ऋषि श्रृंगी के पास जाकर उनसे बात चीत की । ऋषि श्रृंगी को कन्या ने राजा के यहां से लाए हुए कुछ खाद्य पदार्थ दिए । ऋषि श्रृंगी ने इसी पदार्थ कभी नहीं देखे थे इसलिए वे बहुत खुश हुए ।
जब वे उस कन्या के साथ मिलने जुलने लगे तब उस कन्या ने उन्हें लुभाने की कोशिश करने लगी और कुछ समय बाद चली गई । इसके बाद जब बिभांडक मुनि वापिस आए तो उन्होंने ऋषि श्रृंगी की हालत देख कर पूछा कि क्या आश्रम में कोई आया था । ऋषि श्रृंगी ने कहा कि आश्रम में एक ब्रह्मचारी आया था जिसकी जटाएं बहुत लंबी थीं ।
गले में सोने के आभूषण थे और वह बहुत ही सुंदर था । उसकी वाणी बहुत ही सुरीली थी । उसने मुझे स्वादिष्ट भोजन और पीने के पदार्थ दिए । ऋषि बिभांडक ने कहा कि वह राक्षस था जो सुंदर रूप लेकर आया था । राक्षस ऐसा ही करते हैं और तपस्या में विघ्न डालते हैं ।
इसके बाद बिभांदक मुनि उस कन्या को खोजने लगे लेकिन वो उन्हें कहीं नहीं मिली । इसके बाद वह कन्या फिर ऋषि श्रृंगी के पास गई और उसने उन्हें अपने आश्रम में आने का न्योता दिया । ऋषि श्रृंगी उसे एक ब्रह्मचारी समझ रहे थे और उसकी मीठी बोली से बहुत ही ज्यादा आसक्त थे इसलिए जाने केलिए तुरंत ही मान गए ।
कन्या ने ऋषि श्रृंगी को नाव वाली कुटिया में बिठाया और मीठी मीठी बातें करते हुए उलझाए रखा । तबतक राजा की भेजी बाकी कन्याएं नाव को तैराकर अंग देश ले आईं । इसके बाद जेसे ही ऋषि श्रृंगी ने अंग देश में कदम रखा रहा वर्षा होनी शुरू हो गई ।
जब राजा रोमपद को लगा कि ऋषि विभांडक उन्हें श्राप दे देंगे तो उन्होंने अपनी बेटी का विवाह अपनी बेटी से करवा दिया । जब बिभांडक मुनि को राजा रोमपद पर शक हुआ और अंग देश को भस्म करने के लिए चले गए । सब नगरवासियों ने ऋषि का बहुत स्वागत किया ।
जब ऋषि ने देखा की उनका पुत्र राजा के पद पर है तो उनका क्रोध शांत हुआ । इसके बाद बिभांडक मुनि ने अपने पुत्र को यह कहकर वहां छोड़ दिया कि जबतक तुम्हारे पुत्र नहीं हो जाते तब तक यहां रहो और फिर वापिस वन में आ जाना ।
इसके बाद ऋषि लोमश ने बताया कि यह आश्रम उन्हीं ऋषि श्रृंगी का है । इसके बाद युधिस्ठिर कलिंग देश में आए जहां वैतरणी नदी बहती है । इस प्रकार धर्मराज युधिस्ठिर महेंद्र पर्वत पर गए और वहां कई महान से भी महान ऋषियों के दर्शन किए ।
इसके बाद युधिस्ठिर ने कहा कि लोमश ऋषि परशुराम जी के विषय में भी कुछ बताएं ।
परशुराम की कहानी
ऋषि ने बताया कि भगवान परशुराम भ्रगुवंश में उत्पन्न हुए थे और हैहयवंश में उत्पन्न हुए कार्तवीर्य अर्जुन का वध किया था जिसके 1,000 भुजाएं थीं । उसके पास एक सोने का विमान था और भगवान दत्तात्रेय से वरदान पाकर अजेय था और देवता, यक्ष और मनुष्यों को दुखी कर रहा था ।
परशुराम ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे और बड़े ही तेजस्वी थे । इसके बाद एक बार कार्तवीर्य अर्जुन ने परशुराम जी के आश्रम में आकर उनकी गाय के बच्चों को हर लिया । इसके बाद परशुराम जी ने कार्तवीर्य अर्जुन से युद्ध करके उसकी 1000 भुजाएं काट दीं और फिर उसे युद्ध में हराकर मार दिया ।
कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों को यह देखकर बड़ा दुख हुआ और उन्होंने जमदग्नि मुनि के आश्रम में जाकर उन्हें मार डाला । जब परशुराम जी को यह पता चला तब उन्होंने अपने पिता का अग्नि शंकर करने के बाद पृथ्वी पर से सारे क्षत्रियों का संहार करने की प्रतिज्ञा की ।
परशुराम जी लाल के समान हो गए और उन्हीं अकेले ही कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों को मार दिया । इसी प्रकार 21 बार भगवान परशुराम ने प्रथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया ।
अभी के लिए इतना ही । आगे की कहानी बताएंगे अगले पोस्ट में । अगले पोस्ट की जानकारी व्हाट्स ग्रुप पर दी जाएगी । अगर आप व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करना चाहते हैं तो आगे क्लिक करें – WhatsappGroup ।
ज्ञान वर्धक, बहुत अच्छी लगी
Very nice and knowledgeable post about a part of mahabharat, thankyou.
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इस युग मे ऐसी जानकारियां बहुत जरूरी हैं।👍🌹👌🙏🕉️