शिशुपाल का वध भगवान श्री कृष्ण ने किया था । इस सीरीज में हम पूरी महाभारत बतला रहे हैं जिसमे आज शिशुपाल की कहानी का वर्णन है ।
अभी तक हमने पड़ा कि किस तरह पांडवों ने जरासंध का वध किया । इस पोस्ट में हम पड़ेंगे आगे की कहानी ।
अर्जुन सहित सभी भाई पृथ्वी के सभी राजाओं को जीतने के लिए निकल पड़े । अर्जुन उत्तर की ओर जाकर कई राजाओं पर विजय प्राप्त की लेकिन राजा भगदत्त के साथ कई राजाओं ने अर्जुन के साथ एक साथ युद्ध किया था ।
यह युद्ध कई दिनों तक चलता रहा और इसमें कोई भी पक्ष जीत नहीं पा रहा था तभी अचानक से राजा भागदत्त ने कहा था कि वे देवराज इंद्र के मित्र हैं इसलिए अब अर्जुन से युद्ध नहीं करेंगे क्योंकि अर्जुन इंद्र के पुत्र हैं । इस तरह अर्जुन ने राजा भगदत्त ने महाराज युधिस्ठिर को कर देकर उनका अधिपत्य स्वीकार किया ।
उधर भीम ने पूर्व के कई राजाओं को पराजित किया और उनसे कर वसूल करके बहुत सारा धन इंद्रप्रस्थ में जमा किया । इसी प्रकार सहदेव ने युद्ध करके दक्षिण दिशा के राज्यों को धर्मराज युधिष्ठिर के अधीन किया था । सहदेव ने कुंतीभोज पर भी आक्रमण किया परंतु उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया ।
उसके बाद सहदेव ने महेशमति को जीतने के बाद लंका के राजा विभीषण के पास एक दूत भेजा और उन्होंने महाराज युधिस्ठिर को अपना राजा मान लिया और कर के रूपने कई अनुपम उपहार दिए । इसी प्रकार मेकअप नकुल ने पश्चिम दिशा की ओर के राजाओं को जीता था और इसी बीच वे भगवान कृष्ण के पास पहुंच गए थे । भगवान ने प्रेम पूर्वक नकुल को कई सारे उपहार दिए थे । इस प्रकार पृथ्वी के सारे राजा महाराज युधिस्ठिर के अधीन थे और अब वे राजसूय यज्ञ करने के लिए तैयार थे ।
यज्ञ करने से पहले युधिस्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से सलाह लेना उचित समझा । भगवान से महाराज युधिस्ठिर ने यज्ञ करने कीनाग्य मांगी थी और भगवान ने प्रेम पूर्वक उन्हें आज्ञा दे दी थी । व्यास देव, भीष्म पितामह, अश्वत्थामा और पूरे विश्व के सभी महत्वपूर्ण राजा आए हुए थे । महाराज युधिस्ठिर ने दुशासन को भोजन की व्यवस्था का कार्य सौंपा । अश्वत्थामा को ब्राह्मणों की सेवा में । महात्मा विदुर को खर्च और तिजोरी संभालने का काम दिया गया था ।
शिशुपाल के 100 पाप और उसका वध
दुर्योधन भेंट में आए समानों की देखभाल करता था । भगवान श्री कृष्ण स्वयं यज्ञ में आए ब्राह्मणों के पांव पखारते थे । युधिस्ठिर ने भीष्म पितामह से पूछा कि सबसे पहले किस ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए । भीम ने कहा कि सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए । युधिस्ठिर ने ऐसा ही किया और इसे देखकर शिशुपाल क्रोध आवेश में आ गया और भगवान से गलत सलत बोले लगा ।
शिशुपाल इतना बोलकर सभा से बाहर जाने लगा था लेकिन महाराज युधिस्ठिर और पितामह भीष्म ने उसे उसके कार्य के लिए गलत ठहराया । पितामह भीष्म ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ब्रह्माण्ड में सबसे श्रेष्ठ हैं इसलिए जो उनकी पूजा नहीं करता उसे समझाने का कोई मतलब नहीं है । ऐसा व्यक्ति नितांत मूर्ख है और उसे समझाने की जरूरत नहीं । इतना सुनकर शिशुपाल के क्रोध ने उसपर कब्जा कर लिया और वह यादवों से युद्ध करने के लिए सभी राजाओं को पुकारने लगा ।
शिशुपाल के कहने पर कई मंदबुद्धि राजा शिशुपाल के साथ हो गए थे । शिशुपाल के द्वारा भगवान की निंदा सुन भीम से रहा नहीं गया और वे शिशुपाल को मार ही डालने वाले थे लेकिन उन्हें पितामह भीष्म ने रोक लिया और शिशुपाल के विषय में कुछ बताया ।
पितामह भीष्म ने कहा कि जब शिशुपाल पैदा हुआ तो उसकी तीन आंखें और 4 हाथ थे जिसे देखकर उसके परिवार वाले दर गए थे । तभी परिवार वालों के लिए भविस्यवाणी हुई की डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि आपका पुत्र बड़ा ही बलशाली होगा ।
शिशुपाल की मां ने पूछा कि उसके पुत्र की मृत्यु कैसे होगी तब भविस्यवाणी से आवाज आई कि जिस किसी की भी गोद में जाकर शिशुपाल के दो हाथ नीचे गिर जायेंगे और तीसरी आंख गायब हो जाएगी उसी के हाथों तुम्हारे पुत्र शिशुपाल की मृत्यु होगी ।
शिशुपाल को देखने के लिए कई राजा आए थे और कुछ दिनों बाद भगवान कृष्ण और बलराम भी शिशुपाल को देखने के लिए आए थे । भगवान कृष्ण ने जैसे ही अपनी गोद में किया तो उसके दो हाथ गिर गए और उसकी तीसरी आंख गायब हो गई ।
शिशुपाल की मां ने भगवान श्री कृष्ण से विनती की कि वे शिशुपाल के सारे अपराध माफ कर देंगे । भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि वे शिशुपाल के 100 इस अपराध क्षमा कर देंगे जिनके लिए उसे मृत्यु दण्ड मिलना चाहिए । पितामह भीष्म ने भीम से कहा कि इसी वजह से शिशुपाल को भगवान कृष्ण के अलावा और कोई नहीं मार सकता है ।
शिशुपाल ने भगवान कृष्ण को युद्ध के लिए चुनौती दी । भगवान कृष्ण ने यदुवंशियों को बताया कि यह शिशुपाल हमारे ही वंश का है लेकिन इसने हमारा अहित करने की जी तोड़ कोशिश की । एक बार इसने द्वारका को जलाने का प्रयास किया । एक उसने यदुवंशियों के यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया था ।
भगवान कृष्ण ने कहा कि इसके कार्यों को उन्होंने इसलिए क्षमा किया क्योंकि उन्होंने शिशुपाल की मां को शिशुपाल की 100 गलतियां क्षमा करने को कहा था । भगवान ने कहा कि अब शिशुपाल 100 से अधिक अपराध कर चुका है इसलिए अब भगवान उसे मारने जा रहे हैं ।
इतना कहने के बाद भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध कर दिया । शिशुपाल के शरीर से एक दिव्य ज्योति निकली और उसने भगवान को प्रणाम किया और फिर देखते ही देखते भगवान कृष्ण के शरीर में समा गई ।
यज्ञ में आए सभी राजा यज्ञ पूरा होने के बाद वापिस चले गए थे । भगवान श्री कृष्ण भी द्वारका चले गए थे लेकिन दुर्योधन और शकुनी इंद्रप्रस्थ में रुक गए थे । दुर्योधन एक बार इंद्रपस्थ में घूमते हुए जल तो स्थल समझकर पानी में गिर गया था और सभी पांडव उसे देखकर हंसने लगे थे । दुर्योधन क्रोध से भर गया लेकिन उसने उस समय कुछ नहीं कहा ।
पांडवों की समृद्धि को देखकर दुर्योधन ईर्ष्या से भर गया था और वापिस जाते वक्त वह शकुनी से कहने लगा कि अब उससे पांडवों का एश्वर्य देखा नहीं जाता इसलिए वह अब अपने प्राण त्याग देना चाहता है । तब शकुनी ने दुर्योधन को याद दिलाते हुए कहा कि उसके पास द्रोण और भीष्म जैसे महाबली हैं और वह भी सारी पृथ्वी को जीत सकता है ।
दुर्योधन ने कहा कि वह पांडवों पर ही आक्रमण करेगा क्योंकि इस समय सारी पृथ्वी उन्हीं के शासन में है इसलिए उनको जीत लेने पर उन्हें और किसी से युद्ध करने की आवश्यकता नहीं रह जायेगी । शकुनी ने कहा कि इस समय पांडवों को देवता भी नहीं हरा सकते क्योंकि वे भगवान कृष्ण द्वारा संरक्षित हैं इसलिए कोई दूसरा रास्ता खोजना पड़ेगा ।
शकुनी ने कहा कि बाकी कलाओं में तो पांडव निपुण हैं लेकिन पांडवों को जुआ खेलने जैसे बुरे काम नहीं आते हैं और में जुआ खेलने में माहिर हूं । शकुनी ने कहा कि उसे जुआ में इंसान टोंकुल्या देवता भी नहीं हरा सकते हैं इसलिए दुर्योधन को महाराज धृतराष्ट्र के द्वारा पांडवों के लिए जुआ खेनले के लिए बुलाना चाहिए ।