सत्यनारायण भगवान की कथा कुछ इस प्रकार है, सोनकादिक ऋषि नैमिषारण्य में स्थित सूत गोस्वामी के आश्रम पहुंचे और उन्होंने सूत गोस्वामी से प्रश्न किया कि संसार में दुख से मुक्ति और सुख एवं समृद्धि प्रदान करने के लिए सरल उपाय क्या है ।
महर्षि सूत गोस्वामी ने सोनकादिक ऋषियों को बताया कि यह प्रश्न नारद जी ने भगवान विष्णु से किया था और भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया था कि संसार में सुख शांति और सुख प्राप्ति के लिए एक ही मार्ग है और वह है सत्यनारायण भगवान की कथा ।
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सूत गोस्वामी बताते हैं कि विष्णु भगवान ने नारद मुनि से कहा कि आप यहां किस प्रयोजन से आए हैं । नारद जी ने कहा कि संसार में पाप कर्मों के द्वारा विभिन्न योनियों में जन्म लेकर प्राणी बड़े ही दुखी हैं ।
कोई ऐसा सरल उपाय है जिससे उनके दुखों का निवारण हो सकेगा कृपया आप मुझे वह बताएं ।
विष्णु भगवान ने कहा कि जिस व्रत से करने पर प्राणियों से मुक्त हो जाता है वह मैं आपको बताता हूँ जो स्वर्ग और मृत्युलोक में दोनों में ही आसानी से किया जा सकता है ।
वह सरल उपाय है सत्यनारायण भगवान की कथा जो एक महत्वपूर्ण व्रत है । अगर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान की कथा और व्रत का पालन किया जाए तो मनुष्य जल्दी ही दुख से छूट सकता है ।
सत्यनारायण भगवान की कथा
भगवान विष्णु ने कहा कि यह सत्यनारायण भगवान की कथा सभी प्रकार के दुखों को खत्म करने धन की वृद्धि करने और सौभाग्य एवं संतान देने में सर्वथा समर्थ है । मनुष्य को सत्यनारायण भगवान की कथा मंगलवार को करनी चाहिए ।
केले का फल, दूध अथवा चावल, शक्कर या गुड़ यह सब सामग्री संग्रहित कर लेनी चाहिए और बंधु बांधवों के साथ सत्यनारायण भगवान की कथा सुनकर ब्राह्मणों को दान देना चाहिए । उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और भक्ति पूर्वक प्रसाद वितरण करना चाहिए ।
इसी के साथ नृत्य और गीत आदि का आयोजन भी करना चाहिए । इन सब के बाद सत्यनारायण भगवान की कथा पूरी होने के बाद सत्यनारायण भगवान्का स्मरण करते हुए सभी को अपने घर चले जाना चाहिए ।
ऐसा करने से मनुष्य की सारी अभिलाषा अवश्य पूरी होती है और विशेष रूप से मृत्यु लोक में कलयुग के लिए यह बहुत ही सरल और छोटा उपाय है ।
सत्यनारायण भगवान की कथा – प्रथम कथा
श्री सूत गोस्वामी ने कहा कि काशी नगर में एक अत्यंत गरीब ब्राह्मण रहता था जो भूख और प्यास से व्याकुल होकर प्रतिदिन यहां वहां घूमता रहता था ।
भगवान को एक दिन उस पर दया आ गयी और भगवान एक ब्राह्मण का रूप लेकर उसके पास आ गए । भगवान ने उससे पूछा कि तुम क्यों दुखी होकर यहां वहां घूमते रहते हो ।
ब्राह्मण बोला मैं अत्यंत गरीब हूं और मैं भिक्षा मांगने के लिए यहां वहां घूमता रहता हूं । यदि आपके पास मेरी गरीबी को दूर करने का उपाय है तो कृपया मुझे जरूर बताएं ।
ब्राह्मण के रूप में आए परम भगवान ने कहा कि तुम्हें सत्यनारायण भगवान की कथा करवानी चाहिए क्योंकि उससे मनुष्य के सभी दुखों का नाश होता है । व्रत के सभी विधि विधान ब्राह्मण को बताकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए । गरीब ब्राह्मण ने सोचा कि वह सत्यनारायण भगवान की कथा जरूर करवाएगा ।
ब्राह्मण धन-संपत्ति के साथ अपने परिवार वालों की सानिध्य में सत्यनारायण भगवान की कथा करने के लिए तैयार हुआ
वह ये सोचकर सो गया कि अगले दिन उठकर वह सत्यनारायण भगवान की कथा करेगा । अगले दिन वह ब्रह्मण कथा के लिए धन मांगने गया और उसे भिक्षा में उसे बहुत सारा धन मिल गया ।
उसके बाद उसने सत्यनारायण भगवान की कथा की और इस कथा के करने से वह सभी दुखों से मुक्त हो गया और संपत्ति से युक्त हो गया ।
उस दिन के बाद उसने प्रत्येक महीने सत्यनारायण भगवान की कथा की और इस प्रकार वह सभी पापों से मुक्त हो गया और अंत में उसने दुर्लभ मोक्ष पद को प्राप्त किया इसलिए पृथ्वी पर जब भी कोई मनुष्य सत्यनारायण भगवान की कथा और व्रत करेगा तो उसी समय उसके दुख नष्ट हो जाएंगे ।
उसके बाद सोनकादिक ऋषियों ने भगवान विष्णु से पूछा कि उस ब्राह्मण ने पृथ्वी पर सत्यनारायण भगवान की कथा किस प्रकार की कृपया यह भी बतलाइए ।
ब्राह्मण धन-संपत्ति के साथ अपने परिवार वालों की सानिध्य में सत्यनारायण भगवान की कथा करने के लिए तैयार हुआ और इसी बीच एक लकड़हारा वहां आया और उस ब्राह्मण के घर के बाहर लकड़ी रखकर ब्राह्मण को देखने लगा ।
उसने ब्राह्मण से पूछा कि हे ब्राह्मण श्रेष्ठ आप यह क्या कर रहे हैं । ऐसा करने से कौन से फल की प्राप्ति होती है मुझे भी बतलाइए ।
ब्राह्मण ने कहा कि यह सत्यनारायण भगवान की कथा है जो सभी फलों को प्रदान करती है और सभी दुखों को खत्म करती है । इसी कथा से मुझे यह सारा धन प्राप्त हुआ है ।
इतना सुनकर वह लकड़हारा वहां से चला गया और उसने सोचा कि आज लकड़ी बेचने से जो धन प्राप्त हुआ है उससे सत्यनारायण भगवान की कथा करूंगा । इस प्रकार चिंतन करके जब वह आगे गया तो उसे लकड़ी बेचने पर दोगुना मुनाफा हुआ ।
इस प्रकार प्रसन्न होकर वह फल, शक्कर, घी दूध इत्यादि अपने घर ले गया । इसके बाद उसने अपने घर वालों को बुलाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान की कथा की । उस व्रत के प्रभाव से वह धन संपत्ति से युक्त हो गया और मृत्यु होने पर बैकुंठ लोक चला गया ।
सत्यनारायण भगवान की कथा – द्वितीय कथा
सूत गोस्वामी बोले कि प्राचीन काल में एक राजा था जो बड़ा ही सत्यवादी और बुद्धिमान था । वह विद्वान राजा रोज मंदिर जाता था और ब्राह्मणों को धन देकर उन्हें संतुष्ट किया करता था ।
उसकी पत्नी बहुत ही अच्छे स्वभाव वाली थी । राजा एक दिन अपनी पत्नी के साथ भद्र शीला नदी के तट पर सत्यनारायण भगवान की कथा कर रहा था और तभी वहां पर एक बनिया आ गया और राजा से श्री सत्यनारायण भगवान की कथा के बारे में पूछने लगा ।
राजा ने कहा इसी कि यह सत्यनारायण भगवान की कथा है जिसके करने से सभी दुखों का नाश होता है । वह बनिया भी मन में यह निश्चय करके गया कि अगर उसके यहां पुत्र पैदा हो जाएगा तो वह वह सत्यनारायण भगवान की कथा अवश्य करवाएगा ।
ऐसा ही हुआ और उस बनिया के यहां कलावती नाम की पुत्री का जन्म हुआ । उस बनिया की पत्नी का नाम लीलावती था । लीलावती ने बनिया से मधुर वाणी में कहा कि हे स्वामी अब तो आपके यहां पुत्री का जन्म भी हो गया है अब आप सत्यनारायण भगवान की कथा क्यों नहीं करवाते ।
तब उस बनिया ने कहा कि जब इसका विवाह हो जाएगा तब मैं सत्यनारायण भगवान की कथा करूंगा । कुछ समय बाद कलावती बड़ी हो गई और उसके विवाह का समय आ गया ।
वह बनिया अपनी पुत्री के लिए वर खोजने लग गया । उसने एक बनिया के सुंदर और सुशील पुत्र के साथ कलावती का विवाह कर दिया । इस समय भी बनिया ने सत्यनारायण भगवान की कथा नहीं की और अब सत्यनारायण भगवान को क्रोध आ गया और उन्होंने बनिया को श्राप दे दिया कि वह कठिन दुख को प्राप्त करेगा ।
एक चोर राजा का धन चुराकर भाग रहा था और वह वहां आ गया जहां यह बनिया अपने जमाई व्यापारी के साथ रहता था । वह चोर उस बनिया के पास आकर छुप गया और उसने राजा का धन बनिया के यहां ही छोड़ दिया ।
जब राजा के सैनिक वहां आए तो उन्हें लगा कि उस बनिया ने ही चोरी की है और उन्होंने उसे पकड़कर राजा के सामने हाजिर कर दिया । राज ने दोनों को तुरंत ही कारागार में डाल दिया ।
सत्यनारायण भगवान की कथा न करने के कारण उस बनिया का व्यापार खत्म हो गया और वहां उसके घर में चोरी होने के कारण उसका सारा धन खत्म हो गया ।
उस बनिया की पत्नी ने दोबारा सत्यनारायण भगवान की कथा की और इससे सत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए ।
लीलावती अनेक दुखों से युक्त होकर भूख और प्यास से व्याकुल होकर यहां वहां भागने लगी । एक दिन ऐसे ही घूमते घूमते एक जगह उसे सत्यनारायण भगवान की कथा होते हुए दिखी । वहां बैठकर उसने कथा सुनी और फिर वापिस आ गयी ।
उस बनिया की पत्नी ने भी घर पर सत्यनारायण भगवान की कथा और व्रत किया । उसने सत्यनारयण भगवान से प्रार्थना की कि राजा उसके पति को छोड़ दें और उसे वह सारा धन प्राप्त हो जाए जो चोर ने उसके घर से लूटा था ।
इसके बाद सत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और उस राजा के सपने में आए । सत्यनारयण भगवान ने उस राजा से बनिया को छोड़ देने के लिए कहा और कहा कि राजा उसका सारा धन भी वापिस कर दे जो उसने लिया था ।
राजा ने ऐसा ही किया । जब वह बनिया अपने गांव आया तो एक व्यक्ति ने आकर उसकी पत्नी को इस बात कई सूचना दी सूचना दी । जैसे ही उसकी पत्नी को यह पता चला तो वह बनिया से मिलने के लिए चली गई ।
उस बनिया की पुत्री कलावती भी जो उस समय व्रत कर रही थी वह सत्यनारायण भगवान की कथा को बीच में ही छोड़ कर अपने पति से मिलने चली गयी ।
इस बात से सत्यनारायण भगवान क्रोधित हो गए और उन्होंने उस नाव को डूबा दिया जिसपर बनिया और उसका जमाई आ रहे थे । उसी के सात सारे धन को भी सत्यनारायण भगवान ने डुबो दिया ।
उस बनिया की पत्नी ने दोबारा सत्यनारायण भगवान की कथा की और इससे सत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए ।
सत्यनारायण भगवान ने कहा कि तुम्हारी कन्या कलावती ने सत्यनारायण भगवान की कथा को अधूरा छोड़ा और वह अपने पति से मिलने के लिए चली गई इसलिए उसके पति को मैंने डुबो दिया ।
लेकिन अगर वह वापिस जाकर कथा का प्रसाद ग्रहण करेगी और सत्यनारायण भगवान की कथा को पूरा करेगी तो उसका पति उसे प्राप्त हो जाएगा । कलावती ने वापिस जाकर सत्यनारायण भगवान की कथा को संपन्न किया और उसे नौका में डूबा हुआ उसका पति वापिस मिल गया ।
इसके बाद वह परिवार नियमित रूप से सत्यनारायण भगवान की कथा करने लगा जिसके फलस्वरूप मृत्यु आने पर वह बैकुंठ चला गया ।