परशुराम जयंती – परशुराम जी के जीवन की कहानी ।

दोस्तों परशुराम जी की कहानी कौन नहीं जानता । परशुराम जी भगवान के सकत्यावेश अवतार हैं । भगवान के बहुत सारे अवतार हुए हैं जिनके बारे में आप आगे क्लिक करके पढ़ सकते हैं – भगवान के सारे अवतारों का वर्णन । आज के हमारे इस लेख में हम आपको बताएँगे कि भगवान के परशुराम अवतार के जीवन की कहानी ।

परशुराम का जन्म

आपने रामायण जरूर पढ़ी होगी जिसमे दो वैकुण्ठ के द्वारपाल जय और विजय के बारे में बताया गया है । जय और विजय ने ब्रह्मा जी के पुत्र चार कुमारों को वैकुण्ठ जाने से रोक दिया । चार कुमारों ने उन्हें श्राप दिया कि तुम पृथ्वी पर 3 जन्मों के लिए राक्षस बनोगे ।

पहले जन्म में वे दोनों हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु बने । दूसरे जन्म में वे रावण और कुम्भकर्ण बने । तीसरे में दन्तवक्र और शिशुपाल के रूप में उनका जन्म हुआ । अगर आप भगवान कृष्ण द्वारा शिशुपाल के वध की की कहानी पढ़ना चाहते हैं तो आगे क्लिक करके पढ़ सकते हैं – शिशुपाल वध, भगवान ने शिशुपाल के 100 पाप क्यों क्षमा किए

जय और विजय के वंश में गाधि नाम के एक राजा हुए । गाधि के यहाँ सत्यवती नाम की एक पुत्री हुईं । सत्यवती के पुत्र हुए जमदग्नि ऋषि जिनके पुत्र परशुराम हुए ।

परशुराम जी के जीवन की कहानी

परशुराम जी ने पूरी पृथ्वी पे से समस्त छत्रियों का 21 बार संहार किया था । राजा परीक्षित ने सुकदेव गोस्वामी से पुछा कि परशुराम जी ने 21 बार पूरी पृथ्वी पे से क्षत्रियों को मारकर ख़त्म क्यों किया उनका क्या दोष था ।

सुकदेव गोस्वामी ने कहा कि कार्तवीर्य अर्जुन ने भगवान के स्वांश दत्तात्रेय की पूजा करके एक हजार भुजाएं प्राप्त कीं और उसके पास आठ सिद्धियां भी थीं जिनके बल पर वह पृथ्वी पर निडर होकर घूमने लगा । एक दिन कार्तवीर्य अर्जुन नर्मदा नदी में स्नान कर रहा था और उसने अपने बाहुबल से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया ।

जल रुक जाने के कारण रावण का एक खेमा नर्मदा नदी में डूब गया । दस सिरों वाले रावण को यह पसंद नहीं आया और वह कार्तवीर्य अर्जुन से युद्ध करने के लिए आ गया । कार्तवीर्य अर्जुन ने रावण को बड़ी ही आसानी से बंधी बनाकर महिस्मती के किले में कैद कर लिया और कुछ समय बाद ऐसे ही उसे छोड़ दिया ।

एक बार जब कार्तवीर्य अर्जुन शिकार करने निकला तो वह जमदग्नि ऋषि के आश्रम के पास पहुँच गया । ऋषि के पास कामधेनु गाय थीं जो हर वास्तु प्रदान करने में सक्षम थीं । ऋषि ने राजा का अच्छी तरह से स्वागत किया । कार्तवीर्य अर्जुन ने सोचा कि जमदग्नि ऋषि उससे ज्यादा यशस्वी हैं क्यूंकि उनके पास कामधेनु गाय है ।

कार्तवीर्य अर्जुन की मृत्यु

राजा ने ऋषि की कामधेनु गाय को चोरी कर लिया । जब वह कार्तवीर्य अर्जुन कामधेनु गाय चुरा कर भाग रहा था तब परशुराम जी को इस बात का पता चला । परशुराम जी ने कार्तवीर्य अर्जुन का पीछा उसी तरह किया जिस तरह एक हाथी शेर का पीछा करता है । कार्तवीर्य अर्जुन माहिष्मती पुरी में प्रवेश करने ही वाला था कि उसे परशुराम जी हाथ में फरसा लिए उसका पीछा करते हुए दिखे ।

कार्तवीर्य अर्जुन ने 17 अक्षोहणी सेना भेजी लेकिन परशुराम जी ने अकेले ही उन सब का सफाया कर दिया । एक अक्षोहणी सेना में 21870 रथ और इतने ही हाथी होते हैं । 201350 पैदल सैनिक और 65610 घोड़े होते हैं । भगवान परशुराम ने कार्तवीर्य अर्जुन की 17 अक्षोहणी सेना में मौजूद हाथी घोड़े और सैनिक सभी को अकेले ही मार दिया ।

इसके बाद कार्तवीर्य अर्जुन युद्ध भूमि में दाखिल हुआ और उसने आते ही अपनी 1000 भुजाओं से 500 धनुषों से एक साथ तीर चलाये । भगवान परशुराम ने एक ही धनुष से इतने तीर छोड़े कि कार्तवीर्य अर्जुन के सारे धनुष टूट गए । इसके बाद कार्तवीर्य अर्जुन ने अपनी भुआजों से कई सारे पर्वतों और बृक्षों को उखाड़ लिया और परशुराम जी को मारने के लिए दौड़ा ।

परशुराम जी ने उसके आक्रमण करने से पहले ही तेजी से दौड़कर उसकी सारी भुजाएं काट डालीं और अंत में उसका सर काट डाला । इतना करने के बाद परशुराम जी कामधेनु को छुड़ाकर जमदग्नि ऋषि के पास ले गए । जमदग्नि ऋषि ने परशुराम को इस कृत्य के लिए डांटा और कहा कि परशुराम जी को कार्तवीर्य अर्जुन का वध नहीं करना चाहिए था ।

परशुराम जी तपस्या करने के लिए चले गए

क्यूंकि वे एक ब्राह्मण हैं और ब्राह्मण अपनी क्षमाशीलता के कारण ही दुनिया में जाने जाते हैं । जमदग्नि ने अपने पुत्र परशुराम से कहा कि एक सम्राट की हत्या का पाप ब्रह्महत्या से भी अधिक होता है इसलिए अगर तुम भगवान अच्युत्त का ध्यान करते हुए तीर्थों का भ्रमण करो तो वे इस पाप से मुक्त हो सकते हो ।

भगवान परशुराम ने ऐसा ही किया । कार्तवीर्य अर्जुन के 10000 पुत्र अपने पिता की मौत को भुला नहीं पा रहे थे । एक दिन वे जमदग्नि ऋषि के आश्रम में पाप कर्म करने का दृढ़ निश्चय करके दाखिल हुए । उन्होंने जमदग्नि ऋषि को भगवान के ध्यान में लीं देखा और मौके का फायदा उठाकर उनको मार डाला ।

परशुराम जी की माता उन पुत्रों से अपने पति के जीवन की भीख मांगती रहीं लेकिन वे नहीं रुके । जब परशुराम जी वापिस लौटे तब उन्होंने अपनी माँ से सारा वृतांत सुना । उन्होने कार्तवीर्य अर्जुन की नगरी महिष्मति पुरी में जाकर उसके 10000 पुत्रों को मारकर उनके सिरों से एक पहाड़ बना दिया ।

अपने पिता की मौत का बदला लेने के बहाने धरती पर से 21 बार अधर्मी क्षत्र्यिओं का वध किया ।

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