पांडवों ने दुर्योधन को गंधर्वों से क्यों बचाया । जब दुर्योधन धोखे से पांडवों को मारने के लिए गया तभी इंद्र ने अपने बेटे अर्जुन की रक्षा करने के लिए कुछ गंदर्भों को भेज दिया जिन्होने दुर्योधन को पकड़ लिया लेकिन अर्जुन और भीम ने गंदर्भों से लड़कर उसे बचा लिया ।
महाभारत श्रंखला के भाग 23 में हमने पड़ा कि किस तरह युधिष्ठिर महाराज ने नहुष का अजगर के रूप से उद्धार किया और वह स्वर्ग चले गए । स्वर्ग जाने से पहले युधिष्ठिर महाराज ने नहुष से कुछ सवाल पूछे । अगर आप भाग 23 पड़ना चाहते हैं तो आगे क्लिक करके पड़ सकते हैं – नहुष कौन थे? नहुष इंद्र थे लेकिन एक श्राप के कारण अजगर बन गए ।
धर्मराज युधिष्ठिर ने पूछा कि संसारी कष्टों से निवारण कैसे हो । नहुष ने बताया कि जो व्यक्ति दान देता है, वाणी से दूसरों को सम्मान देता है, सत्य बोलता है और अहिंसा का पालन करता है वो स्वर्ग को प्राप्त करता है । नहुष ने कहा कि यह तीनो ही जरूरी हैं और तीनों में से कौन सा प्रधान है यह परिस्थिति पर निर्भर करता है ।
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हमें अगला जन्म कैसे प्राप्त होता है
युधिष्ठिर ने पूछा कि हम अगला जन्म कैसे प्राप्त करते हैं तब नहुष ने कहा कि हमें अगला जीवन अपने कर्मों के आधार पर मिलता है । इसके बाद नहुष के स्वर्ग जाने के बाद पांडव वापिस आ गए ।
वहां पर भगवान कृष्ण आये और उन्होंने अर्जुन से भेंट की । इसके बाद भगवान कृष्ण ने कहा कि अगर युधिष्ठिर कहें तो वे अपने बेटे प्रदुमन्य को भेजकर दुर्योधन पर आक्रमण करके उसे मार देते हैं । धर्मराज ने मना किया और कहा कि अब बस 13 वर्ष पूरे होने ही वाले हैं उसके बाद हम दुर्योधन को उसके पापों की सजा देंगे ।
जब शकुनि को पता चला कि पांडव वन में कहाँ पर हैं तो उसने दुर्योधन से कहा कि पांडवों को जाके मार देना चाहिए । दुर्योधन ने कहा कि पिताजी ऐसा नहीं करने देंगे, तभी कर्ण ने कहा कि हम धृतराष्ट्र से कह देंगे कि वे सब गौशाला में गायों की गिनती करने जा रहे हैं ।
इसके बाद कर्ण और शकुनि धृतराष्ट्र ने उनके पास जाकर यह बात कही । धृतराष्ट्र ने कहा कि गौशाला के पास ही पांडव रह रहे हैं और दुर्योधन कुछ न कुछ जरूर करेगा इसलिए दुर्योधन को छोड़कर तुम सब चले जाओ ।
कर्ण ने कहा कि वहां की गाय दुर्योधन को ही पहचानती हैं इसलिए उसका जाना जरुरी है । धृतराष्ट्र ने कहा कि ठीक है पर दुर्योधन पर नजर रखना ।
पांडवों ने दुर्योधन को गंधर्वों से क्यों बचाया
जब कौरव वहां जाकर मस्ती कर रहे थे तभी वहां गंधर्भ भी आ गए और उन्होंने कहा कि यह समय गंधर्भों का है इसलिए कौरव वहां से चले जाएं ।
दुर्योधन नहीं माना और उसकी गंधर्वों से लड़ाई हो गयी । इसके बाद कर्ण ने बहुत अच्छे से लड़ाई की और बहुत गंधर्वों को मार दिया । जब चित्ररथ को पता चला कि कर्ण ने गंदर्भों को मारा है तो उसने अपनी मायावी विद्या का इस्तेमाल करके कर्ण को हरा दिया और कर्ण अपने प्राण बचाकर भाग गया ।
जब दुर्योधन ने कर्ण को भागते हुए देखा तो वह भी पीछे के रास्ते से निकलने लगा लेकिन चित्ररथ से उसे पकड़ लिया । उसके बाद कुछ सैनिक पांडवों के पास जाकर मदद मांगने लगे। भीम ने माना कर दिया कि वे दुश्मन की मदद नहीं करेंगे लेकिन युधिष्ठिर महाराज ने हाँ कर दिया ।
भीम ने इसे गलत बताया लेकिन युधिष्ठिर महाराज ने कहा कि धर्म के अनुसार उन्हें दुर्योधन की मदद करनी चाहिए । पांडव जैसे ही गए उन्होंने सब गंदर्भों के धनुष काट दिए और दुर्योधन को छोड़ देने के लिए कहा लेकिन गंदर्भ नहीं माने । अर्जुन ने एक एक करके सारे गंदर्भों को बिजली की तेजी से मारना शुरू कर दिया ।
चित्ररथ ने अर्जुन के साथ भी मायावी विद्या खेली और अपने आप को गायब कर दिया । अर्जुन ने शब्दभेदी बाण छोड़ कर चित्ररथ का हाल खराब कर दिया और फिर दोबारा दुर्योधन को वापिस माँगा ।
तब चित्ररथ ने कहा कि इंद्र ने ही गंदर्भों को दुर्योधन को पकड़ कर लाने के लिए कहा था क्यूंकि वे जानते थे कि कौरव वहां किस मकसद से आये हैं । चित्ररथ ने कहा कि एक बार दुर्योधन को वे उसे लेकर जाने दें । अर्जुन ने कहा कि युधिष्ठिर महाराज की आज्ञा है कि दुर्योधन को छुड़ा कर लाना है इसलिए वे उसे स्वर्ग नहीं लेकर जाने देंगे ।
अर्जुन ने चित्ररथ से कहा कि इंद्र से कहना कि उनके बेटे अर्जुन ने दुर्योधन को नहीं ले जाने दिया और वी तुमपर कुपित नहीं होंगे । इसके बाद चित्ररथ चला गया और इंद्र ने वहां पर आकर अमृत का छिड़काव किया जिससे मरे हुए गंदर्भ दोबारा से जीवित हो गए ।
कर्ण का पिछ्ला जन्म
कर्ण असल में पिछले जन्म में एक राक्षस था जिसका नाम था सहस्त्रवाहु जिसको यह वरदान मिला था कि उसके शरीर पर 1000 कवच होंगे और 1000 भुजाएं । उसने वरदान प्राप्त किया था कि उसकी एक भुजा और एक कवच वह व्यक्ति काट सकता है जो 100 सालों तक तपस्या करेगा ।
नर और नारायण ऋषि ने उसके 999 कवच काट दिए थे । जब नर ऋषि उससे युद्ध किया करते थे तब नारायण ऋषि 100 साल तपस्या किया करते थे और उसके बाद नारायण ऋषि उससे लड़ के उसका एक कवच और भुजा काट देते थे ।इसके बाद 100 साल तपस्या पूरी करके नर ऋषि उससे लड़ते थे और नारायण ऋषि तपस्या किया करते थे ।
दुर्योधन पाताल क्यों गया
इसके बाद दुर्योधन ने पांडवों ने क्षमा मांगी और फिर वापिस जाकर अपनी पार्टी को बताया कि पांडवों ने दुर्योधन को गंदर्भों से बचाया था । इसके बाद दुर्योधन ने कहा कि भाई इस बेज्जती के बाद वह जिन्दा नहीं रह सकता लेकिन कर्ण ने उसको समझाया कि दुर्योधन को बचाना पांडवों का कर्तव्य ही था ।
शकुनि ने भी समझाया कि दुर्योधन को ऐसा नहीं करना चाहिए । दुर्योधन ने किसी की नहीं मानी और वह अनशन पर बैठा गया । जब राक्षशों को पता चला तो उन्होंने दुर्योधन को लाने के लिए एक राक्षसी को भेजा । इसके बाद वह राक्षसी दुर्योधन को लेकर राक्षसों के पास चली गयी ।
राक्षसों ने दुर्योधन को बताया कि उसे उन्हीं ने बनाया था । राक्षशों ने बताया कि उन्होंने शिव जी को यज्ञ करके प्रसन्न किया था ताकि दुर्योधन का ऊपर का भाग बज्र का बने और पारवती जी ने दुर्योधन का नीचे का भाग कोमल बनाया था ताकि वह सुन्दर दिखे ।
दानवों ने कहा कि वे स्वर्ग में हार गए हैं लेकिन पृथ्वी पर जीतने के लिए उन्होंने दुर्योधन का सहारा लिया है । राक्षसों ने कहा कि उनका पूरा षड्यंत्र है कि सारी दुष्ट आत्माएं भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य के अंदर प्रवेश करेंगी । कर्ण के अंदर खुद नरकासुर प्रवेश कर जायेगा ।
इन दुष्ट आत्माओं से ग्रसित होकर वे सब और शक्तिशाली हो जायेंगे । राक्षसों ने बताया कि वह एक अक्षोहणी सेना तैयार कर रहे हैं ताकि वह युद्ध में दुर्योधन की मदद कर सके ।
यही एक अक्षोहणी सेना थी जो भगवान ने दुर्योधन को दी थी जब वह मदद मांगने के लिए उनके पास आया था । राक्षसों दुर्योधन को इतना समझकर वापिस भेज दिया । इसके बाद जब दुर्योधन वपिसा आया तो उसने देखा कि धरती के अंदर से कुछ दुष्ट आत्माएं आयीं हैं और भीष्म पितामह, कृपाचार्य और द्रोणाचार्य में प्रवेश कर गयीं हैं ।
यह देखकर दुर्योधन को विश्वास हुआ कि वह पांडवों को जीत सकता है और उसने अपना अनशन तोड़ दिया ।
इसके बाद भीष्म पितामह ने दुर्योधन को समझाया कि उसे पांडवों से संधि कर लेनी चाहिए । दुर्योधन सोच रहा था कि सैतानी आत्माएं अभी अभी भीष्म पितामह के अंदर गयीं लेकिन इनको कुछ हानि नहीं पहुंचा पायीं । दुर्योधन समझ गया कि भीष्म पितामह भगवान के भक्त हैं इसलिए इनपर बुराई का कोई असर नहीं पड़ा ।
इसी तरह से द्रोणाचार्य के ऊपर भी दुष्ट आत्माओं के प्रवेश करने पर कोई खास असर नहीं पड़ा । अभी के लिए इतना ही, आगे की कहानी आपको बताएँगे अगले भाग यानि भाग 25 में ।
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