अभी तक हमने पाया कि किस तरह पांडवों और कौरवों के बीच चौसर का खेल खेला गया और पांडव अपना राज्य हार गए जिसके बाद धृतराष्ट्र ने पांडवों को उनका राज्य लौटा दिया और फिर धृतराष्ट्र ने पुत्र मोह में पड़कर दोबारा दोनो पक्षों को जुआ खिलवाया जिसमे हारने वाले पक्ष को 12 वर्ष के लिए वनवास और तेरहवें वर्ष के लिए अज्ञातवास में रहने की शर्त रखी गई ।
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इसके बाद पांडव वनवास के लिए चले गए । पांडव जैसे ही गए सारी प्रजा दुखी हो गई और वह भी पांडवों के साथ वन जाने की जिद करने लगी । देवर्षि नारद हस्तिनापुर आए और उन्होंने सब को बताया कि द्रोपदी के अपमान के कारण पूरे कौरव वंश का नाश हो जाएगा ।
यह सुनकर दुर्योधन द्रोणाचार्य से मदद मांगने गया । द्रोणाचार्य ने कहा कि पांडव साधारण व्यक्ति नहीं वल्कि देवताओं के पुत्र हैं और सबसे बड़ी बात वे भगवान कृष्ण के भक्त हैं इसलिए उन्हें मारने में कोई भी समर्थ नहीं है लेकिन अगर तुम मेरी शरण में आए हो तो में अपने सामर्थ्य के हिसाब से तुम्हारी मदद करूंगा । द्रोणाचार्य ने दुर्योधन से कहा कि 13 वर्ष तक तुम जितना इस राज्य का आनंद लेना चाहते हो ले लो क्योंकि उसके बाद तुम्हें मरना ही है ।
धृतराष्ट्र द्रोणाचार्य की यह बात सुनकर भयभीत हो गए और उन्होंने विदुर को बहुत सारे उपहार और सेवक लेकर पांडवों को वन से वापिस लाने के लिए भेजा । धर्मराज युधिस्ठिर ने कहा कि वापिस जाना धर्म के विरुद्ध है इसलिए वे अब वापिस नहीं आयेंगे । जब संजय को यह बात पता चली तो उसने धृतराष्ट्र को डांटते हुए कहा कि अब हस्तिनापुर को कोई नहीं बचा सकता और यह वंश धृतराष्ट्र गलती की वजह से ही खत्म होगा ।
संजय ने धृतराष्ट्र से कहा कि जब पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य ने उनको जुआ खिलवाने से रोका था तब उन्होंने किसी की नहीं सुनी इसलिए अब कुछ नहीं हो सकता । धृतराष्ट्र ने संजय से कहा कि द्रोपदी कोई सहाधारण स्त्री नहीं वल्कि यज्ञ से उत्पन्न हुई देव कन्या हैं इसलिए द्रोपदी के क्रोध से पूरी पृथ्वी भस्म हो सकती है तो हस्तिनापुर की क्या बिसात । धृतराष्ट्र ने कहा कि वह ये बात जानते थे इसलिए उन्होंने भरी सभा में द्रोपदी को वरदान में पांडवों का राज्य वापिस देकर द्रोपदी के क्रोध को शांत किया था ।
वन में जाकर सारे पांडवों ने वनवास की पहली रात एक बरगद के पेड़ के नीचे रुकने का फैसला किया । पांडवों के पास कुछ ऋषि आए और उन्होंने कहा कि वे पांडवों के साथ रहेंगे और खुद ही अपने भोजन का प्रबंध कर लिया करेंगे । युधिस्ठिर ने कहा कि उन्हें यह उचित नहीं लगता । इसके बाद युधिस्ठिर ने सूर्य देवता से भोजन के लिए कहा और सूर्य देवता ने युधिष्ठिर को एक अक्षय पात्र दिया जिसमे अन्य कभी खत्म नहीं होता था ।
अक्षय पात्र की एक शर्त थी कि जैसे ही द्रोपदी उसमे से भोजन कर लिया करतीं थी वैसे ही उसमे उस दिन के लिए भोजन खत्म हो जाया करता था । इसलिए द्रोपदी सभी पांडवों के भोजन कर लेने के बाद ही भोजन किया करतीं थी । युधिस्ठिर ने उस पात्र की मदद से सारे ब्राह्मणों को भोजन करवाया ।
उधर धृतराष्ट्र को अपने पुत्रों की चिंता सता रही थी । धृतराष्ट्र ने विदुर से पूछा कि इस समस्या से निकलने का क्या उपाय है ।
विदुर ने कहा कि इसका केवल एक ही उपाय है कि दुर्योधन और उसके सुभचिंतक सभी पांडवों से माफी मांगे और युधिस्ठिर को राजा बना दिया जाए । धृतराष्ट्र ने क्रोधवश विदुर से कहा कि लगता है तुम पांडवों के पक्ष में हो इसलिए यहां से पांडवों के पास जा सकते हो । विदुर पांडवों के साथ वन में रहने आ गए लेकिन बाद में धृतराष्ट्र को लगा कि उन्होंने गलती कर दी है और संजय को भेजकर विदुर को वापिस बुला लिया ।
दुर्योधन ने युक्ति लगाई कि वह वन में जाकर पांडवों के मार देगा और सब मामला सुलझ जाएगा । व्यास देव ने अपनी दिव्य दृष्टि से यह देख लिया और इससे पहले की दुर्योधन अपनी सेना लेकर वन जाता वे हस्तिनापुर आकर धृतराष्ट्र को समझाने लगे । व्यास देव ने धृतराष्ट्र से कहा कि वे अपने पुत्र को रोक लें क्योंकि अगर वह वन में पांडवों को मारने गया तो लौटकर नहीं आएगा । धृतराष्ट्र ने कहा कि महर्षि आप ही मेरे पुत्र को समझाएं वह मेरी एक नहीं सुनता ।
व्यास देव ने शुरू से ही अपने पुत्र धृतराष्ट्र को समझाने की कोशिश की लेकिन धृतराष्ट्र ने कभी उनकी बात नहीं मानी । जब व्यास देव की ही बात धृतराष्ट्र ने नहीं मानी तो विदुर, भीष्म, द्रोण और कृपाचार्य की बात केसे मान लेते । ध्यान देने वाली बात यह है कि व्यास देव महाविनास को टालने हस्तिनापुर आते थे । इस बार अगर व्यास देव नहीं आते तो कौरव समाप्त हो जाते । यहां तक कि जब गांधारी ने अपने गर्भ के 100 टुकड़े कर दिए थे तब व्यास देव ने ही इनके प्राणों की रक्षा करके इन्हें जीवन दान दिया था ।
इन 100 टुकड़ों को जोड़कर दुर्योधन और उसके भाइयों को व्यसदेव ही इस संसार में लाए थे और इस समय आकर उन्होंने एक बार फिर कौरवों की जान बचाई । धृतराष्ट्र ने जब कहा कि वह अपने पुत्र को नहीं समझा सकता तो व्यास देव ने मैत्रेय मुनि को उसे समझाने के लिए भेजा लेकिन दुर्योधन ने उनका तिरस्कार कर दिया । जब मैत्रेय मुनि दुर्योधन को समझा रहे थे कि दुर्योधन पांडवों से माफी मांग ले तो वह पैर से जमीन कुरेद रहा था और दांत पीसकर मैत्रेय मुनि को क्रोध से देख रहा था ।
मैत्रेय मुनि ने तब श्राप दिया कि आने वाले समय में कौरवों और पांडवों के बीच एक भयंकर युद्ध होगा जिसमे भीम दुर्योधन की वह जंघा तोड़ देंगे जिससे वह जमीन कुरेद रहा था । इसके बाद धृतराष्ट्र ने मैत्रेय मुनि से क्षमा मांगी तब मैत्रेय मुनि मुनि ने धृतराष्ट्र से कहा कि अगर उनका पुत्र पांडवों से मित्रता करने को राजी हो जाता है तो उनका श्राप उसे नहीं लगेगा और अगर वह अपनी दुश्मनी कायम रखना चाहते हैं तो श्राप जरूर लगेगा ।
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