अभी तक हमने देखा कि किस तरह पांडवों को मारने का षड्यंत्र दुर्योधन ने रचा लेकिन पांडव किसी तरह सुरंग से बचकर निकल गए । आपने पड़ा होगा कि एक भीलनी और उसके पांच बच्चे भी इस रात उस घर में जलकर मारे गए थे । अगर आपने पिछली पोस्ट नहीं पड़ी है तो आगे क्लिक करके पड़ सके हैं – पांडवों को जलने का षड्यंत्र ।
इसी तरह की धार्मिक पोस्ट पड़ते रहने के लिए हमारा व्हाट्सएप ज्वाइन करें । ग्रुप ज्वाइन करने के लिए यहां क्लिक करें – WhatsappGroup
सबको भीलनी और उसके बच्चों के कंकाल देखकर यही लग रहा था कि वो माता कुंती और पांडवों के कंकाल हैं । सब जगह शोक की लहर थी, जनता जानती थी कि यह दुर्योधन ने ही करवाया है । दूसरी ओर पांडव सुरंग से निकलकर एक गंगा नदी के किनारे पहुंच गए । वहां विदुर द्वारा भेजे गए एक गुप्तचर ने उन्हें नदी पार करवाकर जंगल में भेज दिया । गुप्तचर ने बताया कि विदुर जी का आदेश है कि पांडव कुछ समय भेष बदलकर ही छुपे रहें ।
भीम का पहला विवाह
जंगल में चलते चलते भीम के अलावा सारे भाई थक गए और आराम करने लगे । तभी वहां एक राक्षसी हिडिंबा आई जो पांडवों को मारना चाहती थी लेकिन भीम को देखकर मोहित हो गई और भीम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखने लगी । इतने में ही हिडिंबा का भाई हिडिम्बासुर भी वहां आ गया और भीम पर उसने हमला कर दिया । भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध बहुत लंबा चला और भीम ने उसे मार डाला ।
भीम ने वापिस आकर हिडिंबा को वापिस लौट जाने को कहा लेकिन हिडम्बा ने माता कुंती से कहा कि अगर भीम उससे विवाह नहीं करते तो वह अपने प्राण त्याग देगी । तब माता कुंती ने भीम को हिडिंबा से विवाह करने का आदेश दिया । भीम ने एक शर्त पर विवाह किया कि जैसे ही हिडिंबा से उनका एक पुत्र हो जाएगा वे हिडिंबा को छोड़ देंगे । भीम और हिडिंबा का पुत्र घटोत्कच उत्पन्न हुआ जो भीम के समान बलशाली और हिडिंबा जैसा मायावी था । वह पांडवों के प्रति सम्मान की भावना रखता था और वे भी उससे बड़ा स्नेह किया करते थे ।
पुत्र होने के बाद हिडिंबा भीम से दूर चली गई थी और अपने पुत्र को पांडवों के पास छोड़ गई थी । घटोत्कच का मन राक्षसों में ही लगता था इसलिए वह भी माता कुंती से आज्ञा लेकर वापिस चला गया था । उसने कहा था कि जब कभी भी पांडवों को उसकी सहायता की जरूरत होगी तब वह मात्र एक बार बुलाने पर हाजिर हो जायेगा ।
पांडव कहां छिपे
पांडवो को जंगल में वेदव्यास जी मिले जिन्हें उन्हें एक ब्राह्मण के घर पर भेष बदलकर रहने को कहा । पांडव ब्राम्हण के भेष में उस ब्राह्मण के घर रहने लगे थे । एक दिन उस ब्राह्मण के घर के सभी सदस्य रो रहे थे । माता कुंती ने पांडवों से कहा कि इस ब्राम्हण ने हमे छुपने की जगह दी है इसलिए इसका हमारे ऊपर एहसान है । हमे इसकी मदद करके इसका एहसान चुकाना चाहिए ।
जब कुंती ने ब्राम्हण परिवार से रोने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि उनके गांव के बाहर एक राक्षस बकासुर रहता है ।
गांव वाले बकासुर के लिए रोज एक गाड़ी अन्न और 2 भैंसे भेजते हैं लेकिन जो व्यक्ति गाड़ी और भैंसे लेकर जाता है बकासुर उसे भी खा जाता है । इस बार गाड़ी और भैंसे पहुंचाने की बारी उस ब्राह्मण के परिवार की है इसलिए सभी रो रहे हैं । माता कुंती ने कहा कि मैं अपने पुत्र भीम को इस काम के लिए भेज देती हूं । वह बड़ा ही बलवान और होशियार है जो राक्षस को भोजन भी पहुंचा देगा और जिंदा भी वापिस आ जायेगा ।
भीम गाड़ी लेकर आगे आगे जा रहे थे और गाड़ी का भोजन स्वयं ही करते जा रहे थे । जब बकासुर ने भीम को आते देखा तो वह खुश हुआ लेकिन पास आने पर उसने देखा कि भीम उसका भोजन खाए जा रहे हैं तो उसने भीम पर हमला कर दिया । 10,000 हाथियों के बल से युक्त भीम ने बकासुर को मार डाला और गांव के चौराहे पर पटक दिया । गांव वालों ने जब बकासुर को मरा पाया तो वे बड़े ही प्रसन्न हुए और ब्राह्मण के घर पहुंचे । पांडव छुप कर रह रहे थे इसलिए उन्होंने ब्राह्मण को सच छिपाने के लिए कहा था और ब्राह्मण ने गांव वालों को एक झूठी कहानी बनाकर संतुष्ट कर दिया ।
पांडवो को द्रोपदी के बारे में पता केसे चला
एक दिन उस ब्राह्मण के घर पर एक और ब्राह्मण आए हुए थे जो उनको काफी सारे राज्यों के बारे में विस्तार से बता रहे थे । जब ब्राह्मण ने द्रुपद का जिक्र किया तो पांडवों ने द्रुपद के बारे में विस्तार से सुनना चाहा क्योंकि उन्होंने ही उसका आधा राज्य जीता था और उसे बंधी बनाकर द्रोणाचार्य को दे दिया था ।
ब्राह्मण ने बताया कि राजा द्रुपद द्रोणाचार्य के द्वारा अपने अपमान के कारण परेशान रहते हैं । अब वह पहले से कमजोर हो गए हैं और यहां वहां भटकते रहते हैं । वो आश्रम आश्रम जाते हैं ताकि कोई ब्राह्मण यज्ञ करके उन्हें ऐसा पुत्र दिलाए जो द्रोण को मार सके लेकिन उन्हें कोई ऐसा ब्राह्मण नहीं मिलता । एक बार द्रुपद को एक ब्राह्मण उपयज मिले जिनकी उन्होंने बड़े ही अच्छे से सेवा की लेकिन उपयज ने द्रुपद का काम करने से मना कर दिया ।
जब मना करने के बाद भी द्रुपद ने एक साल और उपयज की सेवा की तब उन्होंने उसे अपने बड़े भाई यज के बारे में बताया । उन्होंने कहा कि यज यह काम कर देंगे । ऐसा ही हुआ, यज ने द्रुपद का काम कर दिया और यज्ञ करके उसे ऐसा पुत्र दिलाया जो द्रोण का वध कर सके । यज्ञ से एक कन्या भी प्राप्त हुई और इसी के साथ भविस्यवाणी हुई कि वह कन्या देवताओं का प्रयोजन सिद्ध करने के लिए उत्पन्न हुई है । पुत्र का नाम धृष्टद्युम्न रखा गया और पुत्री का नाम द्रोपदी ।
पांडव द्रोपदी के बारे में सुनकर बैचेन हो रहे थे । ब्राह्मण ने द्रोपदी के स्वयंवर के बारे में सुना तो वे वहां जाने के लिए तत्पर हो गए लेकिन उन्हें व्यास देव जी बात याद आई कि वे उसी ब्राह्मण के घर में ही रहेंगे जब तक व्यास देव अगला आदेश उन्हें न दें । पांडवों व्याकुल हो रहे थे इसलिए उन्होंने व्यास देव का ध्यान किया और वे प्रकट गए । व्यास देव सबके मन की बात जानने वाले थे, उन्होंने पांडवों से बिना कुछ पूछे ही कहा कि उन्हें पांचाल जाना चाहिए ।
पूछने पर व्यास देव ने द्रोपदी के पिछले जीवन का प्रसंग बताया । पिछले जन्म में द्रोपदी एक ब्राह्मण की कन्या थी जिसका विवाह नहीं हो रहा था । उसने शिव जी की तपस्या की और शिव जी प्रकट हो गए । शिव जी ने वरदान मांगने को कहा तो द्रोपदी ने पांच बार बोल दिया कि उन्हें एक बलशाली पति प्राप्त हो, एक धार्मिक पति प्राप्त हो, एक सहनशील पति प्राप्त हो इत्यादि ।
तब शिव जी ने कहा था कि तुम्हे अगले जन्म में पांच पति प्राप्त होंगे क्योंकि तुमने पांच बार पति मांगा है । व्यास देव ने बताया कि शिव जी के वरदान अनुसार पांच पांडव ही द्रोपदी के पति के रूप नियुक्त हैं इसलिए उन्हें द्रोपदी के स्वयंवर में जाना चाहिए ।
आगे की कहानी बताएंगे अगले पोस्ट में । अगली पोस्ट की जानकारी पाने केलिए व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करें । ग्रुप ज्वाइन करने के लिए यहां क्लिक करें – WhatsappGroup