अभी तक हमने पड़ा किस तरह सारे राजा इंद्रप्रस्थ देखने के लिए आए और भगवान कृष्ण ने उस सभा में शिशुपाल का वध कर दिया । उस सभा में दुर्योधन भी आया हुआ था जो पांडवों का इंद्रप्रस्थ देखकर जल गया और वापिस जाकर उसने अपने मामा शकुनि से उसे जीतने के लिए कहा । इस पोस्ट में हम पड़ेंगे आगे की कहानी ।
इसी तरह की धार्मिक और ज्ञानवर्धक पोस्ट पड़ते रहने के लिए हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करें । ग्रुप ज्वाइन करने के लिए आगे क्लिक करें – WhatsappGroup
जब शकुनी ने दुर्योधन की यह बात सुनी तो उसने पांडवों का सारा राज्य जुए में जीतने की योजना बनाई । उसने दुर्योधन के द्वारा धृतराष्ट्र को बहलाकर उनसे युधिस्ठिर को जुए के लिए आमंत्रित करवाया ।
राजा धृतराष्ट्र ने विदुर को जुए का आमंत्रण लेकर भेजा
महात्मा विदुर पांडवों के पास जुए का निमंत्रण लेकर गए और पांडव जुआ खेलने के लिए के लिए तैयार हो गए । महात्मा विदुर, पितामह भीष्म, द्रोण और कृपाचार्य सहित सभी इस जुए के विरुद्ध थे और धृतराष्ट्र को ऐसा करने से रोक रहे थे । धृतराष्ट्र ने किसी की एक नहीं सुनी और महाराज युधिस्ठिर को जुए के लिए आमंत्रित कर दिया । युधिस्ठिर महाराज धृतराष्ट्र की आज्ञा नहीं टाल सके और जुआ खेलने के लिए तैयार हो गए ।
सबसे पहले शकुनी ने पांसे फेंकना शुरू किया और महाराज युधिस्ठिर अपना धन और फिर उसके बाद अपना राज्य इंद्रप्रस्थ हार गए । उसके बाद वे अपने भाइयों को हार गए और फिर अंत में स्वयं को हार गए । शकुनी के पास दिव्य पांसे थे जो उसके पिता की अस्थियों से बने थे और हमेशा शकुनी को जिताया करते थे । शकुनी ने पांसों की मदद से युधिस्ठिर के राज्य को और फिर सारे भाइयों को भी जीत लिया ।
अगर आप जानना चाहते हैं कि शकुनी को यह जादुई पांसे कहां से प्राप्त हुए तो आगे क्लिक करके यह पड़ सकते हैं – शकुनी का सबसे बड़ा रहस्य जो महाभारत युद्ध का मुख्य कारण बना
शकुनी के कहने पर फिर युधिस्ठिर ने द्रोपदी को दाव पर लगाया और वे वह दाव भी हार गए । दुर्योधन ने दुशासन से द्रोपदी को भरी सभा में लाने के लिए कहा । जब द्रोपदी ने सभा में आकर सबसे पूछा कि यदि युधिस्ठिर जुए में अपने आप को हार चुके थे तो उन्हें द्रोपदी को दाव पे लगाने का क्या अधिकार था । सारी सभा में केवल विकर्ण ने अपनी आवाज उठाई थी और कहा था कि ऐसा करना गलत है लेकिन युधिस्ठिर और कर्ण ने उसे तुरंत ही चुप करा दिया था ।
उसके बाद द्रोपदी ने सारी सभा में सभी से न्याय मांगा था लेकिन किसी ने भी आगे आकर कुछ नहीं कहा था । इसके बाद कर्ण की आज्ञा से दुशासन ने द्रोपदी के वस्त्र उतारने शुरू कर दिए थे लेकिन द्रोपदी ने भगवान कृष्ण का नाम पुकारकर मदद मांगी और दुशासन कपड़े उतारने की कोशिश करता रहा लेकिन वापिस से उतने ही कपड़े द्रोपदी के ऊपर आ जाया करते थे और इस तरह थक हार कर दूसाशन रुक गया ।
भीम ने दुशासन का यह कार्य देखकर प्रतिज्ञा की थी के वे रणभूमि में उसकी छाती चीरकर उसका खून पियेंगे । दुर्योधन भरी सभा में अपनी जांघ पीट रहा था और उसे देखकर भीम ने यह प्रतिज्ञा की थी कि अगर भीम ने दुर्योधन की वह जंघा नहीं तोड़ी तो उन्हें अपने वंश के पूर्व पुरुषों की तरह सद्गति प्राप्त नहीं होगी ।
इसके बाद द्रोपदी से धृतराष्ट्र ने वरदान मांगने को कहा था । द्रोपदी ने सारे पांडव भाइयों को आजाद करने के लिए कहा था और धृतराष्ट्र ने ऐसा कर दिया था । दुर्योधन और कर्ण इस बात से काफी दुखी हुए थे और उन्होंने धृतराष्ट्र से कहा था कि वे पांडवों को दोबारा जुए के लिए बुलाएं ।
इस बात के लिए कोई भी सहमत नहीं था, यहां तक कि गांधारी ने भी धृतराष्ट्र को ऐसा करने से मना किया था लेकिन पुत्र मोह में पड़कर उन्होंने किसी की नहीं मानी । धृतराष्ट्र ने युधिस्ठिर को दोबारा जुए का निमंत्रण भेज दिया ।
इस कार्य में सभी ज्ञानी जन कौरवों का सर्वनाश देख पा रहे थे । महात्मा विदुर और भीष्म पितामह सहित सबको यह समझ आ रहा था कि इस कार्य से कौवों के कुल का नाश हो जाएगा लेकिन पुत्र मोह में पड़कर धृतराष्ट्र यह बात नहीं समझ पाए ।
धृतराष्ट्र ने वैसा ही किया जैसा दुर्योधन और दुशासन ने उनसे करने को कहा । धृतराष्ट्र के जुए के आमंत्रण को युधिस्ठिर दोबारा से नहीं ठुकरा पाए क्यूंकि वे धृतराष्ट्र का सम्मान किया करते थे । इस बार शकुनी ने अपनी बुद्धि इस्तेमाल करते हुए दुर्योधन से कहा कि इस बार जुए में यह शर्त रखनी चाहिए कि जो भी दाव हारेगा उसे 12 वर्षों के लिए वनवास जाना पड़ेगा और तैरवें वर्ष में अज्ञातवास में रहना होगा ।
दुर्योधन यह बात जान गया था कि द्रोपदी के अपमान के बाद अब पांडव उसको माफ नहीं करेंगे । इसलिए उसने यह योजना बनाई कि वह पांडवों को 12 वर्षों के लिए वनसवास और तेरवें वर्ष के लिए अज्ञातवास में भेज देगा और जब तक वे 13 वर्ष में वापिस आयेंगे वह देश भर के राजाओं को इकट्ठा करके पांडवों से लड़ने की शक्ति जुटा लेगा ।
युधिस्ठिर जानते थे कि दूसरी बार हुआ खेलने का अंजाम क्या होगा लेकिन उन्होंने सोचा कि जब विधि का यही विधान है तो उन्हें ऐसा ही करना चाहिए । इस प्रकार सोचकर युधिस्ठिर सभी पांडव भाइयों सहित दोबारा जुआ खेलने के लिए आ गए ।
इस बार शकुनि ने कहा कि जो भी जुए में हारेगा वह 12 वर्षों के लिए वनसवास जायेगा और सारा राज्य दूसरे पक्ष को मिल जाएगा । जब हारा हुआ पक्ष वनवास से वापिस आएगा तो दोनो पक्षों में उनके राज्यों को आधा आधा बांट दिया जायेगा ।
शकुनी ने यह शर्त भी रखी थी कि अगर तेरवें वर्ष में हारा हुआ पक्ष कहीं छुपकर नहीं रहता और जीता हुआ पक्ष उन्हें पहचान लेता है तो हारे हुए पक्ष को दोबारा से 12 वर्षों के लिए वनवास और 1 वर्ष के लिए अज्ञातवास के लिए जाना होगा । दुर्योधन ने यह योजना बनाई थी कि वह इसी तरह पांडवों को बार बार वनवास के लिए भेजता रहेगा ।
शकुनी ने पांसे फेंके और हमेशा की तरह जीत गया । पांडवों को 12 वर्षों के लिए वनवास के लिए जाना पड़ा । अभी के लिए इतना ही, आगे की कहानी बताएंगे अगली पोस्ट में । अगली पोस्ट की जानकारी के लिए आगे क्लिक करके हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करें – WhatsappGroup