पिछले पोस्ट में हमने देखा किस कर्ण और दुर्योधन की मित्रता हुई , इस पोस्ट में हम पड़ेंगे कि पांडवों के खिलाफ षड्यंत्र की शुरुआत कैसे हुई । अगर आपने पिछली पोस्ट नहीं पड़ी है तो यहां क्लिक करके पड़ सकते हैं – द्रोणाचार्य का गुरुकुल ।
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राजा कौन बनेगा
जब राजा चुनने की बारी आई तो धृतराष्ट्र ने अपने पुत्र दुर्योधन को राजा बनाना चाहा लेकिन विदुर और भीष्म पितामह ने युधिस्ठिर के राजा बनाए जाने की बात सामने रखी । जनता भी युधिस्ठिर को राजा बनाना चाहती थी और भीष्म पितामह भी । जब पांडवों को पता चला कि युधिस्ठिर को राजा बनना है तो वे विश्व विजयी बनने के लिए निकल पड़े ।
आस पास के राजाओं पर आक्रमण करके उन्होंने यह काम शुरू किया । अर्जुन ने सौवीर देश के राजा दत्तामित्र को तक मार गिराए जिसे पाण्डु नहीं मार पाए थे । पांडवों ने बहुत ही जल्दी हस्तिनापुर का विस्तार चारों और फैला दिया । पांडवों का यश जैसे जैसे फैल रहा था वैसे वैसे सारे राजा खुद ही समर्पण कर दे रहे थे ।
पांडवों के इस यश को देखकर धृतराष्ट्र को बड़ी ईर्ष्या होने लगी और इस विषय पर चर्चा करने के लिए उन्होंने अपने मंत्री कणिक को बुलाया । कणिक ने धृतराष्ट्र से कहा कि यह तो बड़ी ही गंभीर बात है क्यूंकि ऐसा होने पर उनके पुत्रों को दूसरों पर आश्रित होकर रहना पड़ेगा । पांडवों की जी हुजूरी घमंडी कौरवों से नहीं हो पाएगी इसलिए उनका भविष्य खतरे में है ।
षड्यंत्र की शुरुआत
कणिक ने धृतराष्ट्र को एक कहानी सुनाई जिससे उनकी समस्या का समाधान हो सके । कणिक ने कहा कि एक जंगल में एक शेर, भेड़िया, नेवला और लोमड़ी ये चारों रहा करते थे और मिलकर शिकार करते थे । एक हिरण था जिसका शिकार ये कर नहीं पा रहे थे तब लोमड़ी ने एक चूहे से कहा कि जब हिरण सो रहा हो तो उसका पैर कुतर देना ताकि अगली बार वह भाग ना पाए और उसका शिकार हो जाए ।
चूहे ने अपना काम कर दिया और अगली बार जब हिरण का शिकार करने के लिए शेर पीछे दौड़ा तो उसने मिनटों में ही उसे मार डाला । जब शेर उस हिरण को खाने ही वाला था तभी वहां लोमड़ी आई और उसने शेर को रोका । लोमड़ी ने कहा कि अगर किसी जानवर को चूहा काट ले तो शेर उसे खाने से मार जाता है । शेर दर गया और हिरण के पैर पर चूहे के दांतों के निशान देखकर वहां से भाग ही गया ।
इसके बाद भेड़िया आया टुंडी ने कहा कि शेर ने कहा है कि मैं अभी अपने परिवार को लेने जा रहा हूं, वापिस आकर इस हिरण को खाऊंगा और तब तक भेड़िया भी आ जायेगा तो हम सब मिलकर उसे भी खायेंगे । यह सुनकर भेड़िया भी भाग खड़ा हुआ ।
इसके बाद नेवला आया जिसे लोमड़ी ने यह कह कर भागा दिया कि शेर और भेड़िया तुम्हारा शिकार करने निकले हैं और तुम यहां हो । चूहे से कहा कि से तीनो कह रहे थे कि चूहा खाने से शुरुआत करेंगे और चूहा भी भाग खड़ा हुआ और अंत में केवल लोमड़ी ने सारे हिरण को खा लिया ।
कणिक ने कहानी सुनाकर कहा कि इसी तरह पांडवों को अगर रास्ते से हटा दिया जाए तो फिर द्र्योधन ही राजा बनेगा। धृतराष्ट्र ने हामी भर दी और फिर कौरवों ने मिलकर पांडवों को जिंदा जलाने का षड्यंत्र रचा । गंगा नदी ले किनारे वर्णावृत नामक स्थान पर कौरवों ने एक महल बनवाया । अपने मंत्री पुरोचन की मदद से दुर्योधन ने घर के अंदर सारी जलने वाली चीजें भरवा दीं केसे की घी, तेल, घास इत्यादि ।
दुर्योधन और पुरोचन ने दिया षड्यंत्र को अंजाम
महल का निर्माण होते ही कौरवों ने पांडवों की बड़ी ही अच्छे से खातिरदारी करनी शुरू कर दी । सब को यह शक हो रहा था कि आखिर कौरव पांडवों से इतना प्रेम क्यों कर रहे हैं जबकि वे तो उनसे दुश्मनी रखा करते हैं । एक दी । कौरवों ने पांडवों को गंगा नदी के तट पर बने उस मकान में शिव पूजा के लिए आमंत्रित किया ।
पांडव तो बड़े ही शील स्वभाव वाले और धार्मिक थे और वे उस महल में चले भी गए । सबको शक था लेकिन विदुर जी ने समझ लिया कि आखिर बात क्या है और युधिस्ठिर को सावधान कर दिया कि यह घर जलने वाले पदार्थों से बना है ।
जब पांडव पहुंचे तो पुरोचान ने इतने अच्छे से उनका स्वागत किया कि पूछो ही मत । पुरोचन ने पांडवों की इतनी अच्छे से खातिरदारी की कि वह छटवे भाई की तरह घनिष्ठ हो गया लेकिन उसके इरादे नेक नहीं थे ।
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि अगर कोई शत्रु या हमसे द्वेष का भाव रखने वाला व्यक्ति अचानक से ही उदार हो जाता है और जरूरत से ज्यादा ही प्रेम दिखाने लग जाता है तो सावधान होकर उससे दूर जाने में ही भलाई है । साथ ही हमें यह भी सीखना चाहिए कि हमे ऐसे व्यक्ति की बात पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए जिसे हमारे नुकसान से फायदा पहुंचे । जैसे की यहां पर था कि अगर पांडवों की मृत्यु हो जाती तो दुर्योधन को भारी फायदा होता और वह राजा बन जाता ।
पांडव भगवान के भक्त थे और भगवान अपने भक्तों की हमेशा रक्षा किया करते हैं । इस बार उन्होंने विदुर के रूप में उनकी रक्षा की और विदुर जी ने रातों रात एक सुरंग तैयार कर दी जो आग लगने पर पांडवों को महल के बाहर ले जा सके । एक दिन पुरंजन को पांडवों ने इतना ज्यादा खाना खिला दिया कि वह उठ भी नही पाया और वहीं सो गया । उसी दिन वहां आग लगी और पांडव सुरंग से निकल गए ।
पुरोचन को उसके कर्मों का फल मिला जो मन में मारने का भाव रखता था और बाहर से सगे भाई की तरह पेश आता था । पुरोचन के साथ एक भीलनी और उसके पांच बच्चे भी इस रात वहां पर थे और वे भी जलकर मर गए । सबको लगा कि वे पांच बच्चे पांडव ही थे जिनके कंकाल बाद में प्राप्त हुए थे ।
पांडव सुरंग से बाहर निकले और राजमहल की और बड़े । दुर्योधन बड़ा खुश हो रहा था कि पांडव मारे गए । लेकिन विदुर और भगवान कृष्ण को छोड़कर बाकी सब भी यही सोच रहे थे । जनता बड़ी दुखी थी और यह बात सुनकर तो धृतराष्ट्र को भी दुख हुआ लेकिन पुत्र मोह के कारण वे चुप रहे ।
आगे की कहानी पड़ेंगे अगले पोस्ट में । अगली पोस्ट की जानकारी पाने के लिए हमारा व्हाट्सऐप ग्रुप ज्वाइन करें । ग्रुप ज्वाइन करने के लिए यहां। क्लिक करें – WhatsappGroup ।