अचानक से एक अजगर ने भीम को जकड़ लिया और भीम ने पूरा दम लगा लिया लेकिन छूट नहीं पाए । अजगर ने बताया कि वो नहुष है और वो पहले इंद्र था । ब्रह्मर्षि के प्रति अपराध करने के लिए अगस्त्य मुनि ने नहुष को श्राप देकर अजगर बना दिया था ।
इस लेख श्रृंखला में हम साड़ी महाभारत कथा बतला रहे हैं जिक्स यह भाग 23 है । अगर आप भाग 22 पड़ना चाहते हैं तो आगे क्लिक करके पद सकते हैं – पांडवों की स्वर्ग यात्रा, अर्जुन से मिलने के लिए स्वर्ग गए ।
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स्वर्ग से आकर अर्जुन ने युधिष्ठिर महराज को क्या कहा
इसके बाद पांडव आगे बढ़ गए और मातलि अर्जुन को वहां पर लेकर आ गए । मातलि ने बताया कि अर्जुन बड़े ही पराक्रमी हैं । उसने बताया कि जब वे रथ चलाते हैं तब इंद्र कुछ झटका खाते हैं लेकिन अर्जुन कभी भी झटका नहीं खाते ।
अर्जुन ने सभी भाईओं को बताया कि अर्जुन ने स्वर्ग में शस्त्र प्राप्त किये और चित्रसेन गंदर्भ से गाना बजाना भी सीख लिया । अर्जुन ने बताया कि स्वर्ग में किस तरह इंद्र उनको अपने ही सिंहासन पर बैठाया करते थे ।
अर्जुन ने बताया कि किस तरह उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया । इसके बाद अर्जुन ने कुछ दानवों से युद्ध भी किया जिनको देवी देवता नहीं हरा सकते थे क्यूंकि उन्होंने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि उन्हें कोई भी देवी या देवता नहीं मार सकता ।
अर्जुन ने यह भी बताया कि इंद्र ने उनसे कहा था कि अगर अर्जुन उन राक्षसों को मार देते हैं तो दुर्योधन को मारना उनके लिए कोई कठिन कार्य नहीं होगा । अर्जुन दोनों हाथों से तीर चलाने में निपुण थे । सारे दैत्य जिहोने देवताओं से ना मरने का वरदान प्राप्त किया था और जिनक नजर स्वर्ग पर थी वो राक्षस नियतकवच और उसके सैनिक थे । अर्जुन ने नियतकवच और उसके सैनिकों को सारी दिशाओं में युद्ध करके मार दिया ।
इसके बाद यह कथा अपने भाईओं को सुनाने के बाद अर्जुन ने स्वर्ग से विदा ली और युधिष्ठिर के साथ मातलि के साथ रथ पे सवार होकर वापिस आ गए । इसके बाद वहां पर मार्कण्डेय ऋषि आये और युधसिथिर महाराज ने उनकी पूजा अर्चना की ।
धर्मराज युधिष्ठिर ने मार्कण्डेय ऋषि से कलयुग के लक्षण पूछे । मार्कण्डेय ऋषि ने बताया कि कलयुग में ब्राह्मण शूद्रों के काम किया करेंगे । सूद्र वैश्य के काम करने में रूचि लेंगे और वैश्य क्षत्रियों की तरह बनने का प्रयास करेंगे । ब्रह्मचारी दूसित रहेंगे और हमेशा दुविधा में रहेंगे ।
गृहस्थ सारे ग्रहमेधि हो जायेंगे और इन्द्रिय तृप्ति में ही रूचि लेंगे । वानप्रस्त आश्रम लुप्त हो जायेगा । संन्यास जीवन हमेशा खतरे में रहेगा और सन्यासियों के खिलाफ साजिश रची जाएगी । सन्यासी बनने की योग्यता किसी बिरले एकाद में ही होगी ।
ब्राह्मण अपने पहनावे से पहचाने जायेंगे ज्ञान से नहीं और वेद शास्त्र पड़ना बंद कर देंगे । शूद्र शास्त्र पड़ेंगे और शास्त्रों का गलत मतलब निकाल कर लोगों को गुमराह करेंगे । जो अच्छा बोलेगा उसी को अच्छा पंडित माना जायेगा बहले हे वह कुछ भी क्यों न बोले ।
राजा मलेक्ष होंगे और अपनी प्रजा का शोषण करेंगे । मनुष्यों की संख्या कम हो जाएगी और बच्चे बचपन से ही बत्त्तमीज होंगे । वे बड़ों का अपमान करने में रूचि लेंगे । पत्नियां हमेशा अपने पति से दुखी और असंतुष्ट रहेंगी । पत्नियां असंतुष्ट होने के कारण घर के बहार संतोष ढूंढ़ने का प्रयास करेंगी ।
पति भी असंतुष्ठ रहेंगे और घर से बहार संतोष ढूंढ़ने की कोशिस करेंगे । ग्रशस्थ हमेशा एक दूसरे को देख कर के दुखी हुआ करेंगे । गाय दूध देना कम कर देंगी और साधू भी भगवान की बात न करके पैसा कमाने के तरीके बताने लग जायेंगे । शिष्य भी अपने गुरु की गद्दी हड़पने की फिरात में रहेंगे और गुरु की जान लेने में नहीं हिचकिचाएंगे ।
कलयुग में सबसे बड़ा नशा धन का होगा । कलयुग के अंत में लड़कियां सात साल की उम्र में मां बनना शुरू कर देंगी और 10 साल की उम्र में लड़के पिता बनने लगेंगे । 16 साल की उम्र में बुढ़ापा आ जायेगा ।
लोग वेदों की निंदा करेंगे और शास्त्रों का भी पालन नहीं करेंगे और जो पालन करेंगे वो गलत सलत तरीके से उनका प्रचार प्रसार करेंगे । कलयुग में लोग कामचोर होंगे और सूद्र से भी निचले स्तर के होंगे ।
इसके बाद मार्कण्डेय मुनि ने बताया कि भगवान कल्कि आकर ऐसे लोगों को मारकर उनका कल्याण करेंगे । भगवान एक हजार साल तक राज करेंगे और दोबारा से सतयुग को लेकर आएंगे । मार्कण्डेय मुनि ने बताया कि उन्होंने कई बार चरों युगों को आते जाते देखा है ।
मार्कण्डेय मुनि ने कहा कि महा प्रलय के समय वे भगवान श्री कृष्ण की शरण में चले गए थे । वहां जाकर मार्कण्डेय मुनि को पता चला कि भगवान कृष्ण में ही सारी श्रष्टि व्याप्त है । उन्हीं से सारे अवतार आते हैं । उन्हीं से ब्रह्मा जी और शिव जी आते हैं । मार्कण्डेय मुनि से यह सुनने बाद पांडवों ने और मार्कण्डेय मुनि ने भगवान कृष्ण और सत्यभामा की पूजा की ।
नहुष की कहानी
जब पांडव विशाखयुक्त स्थान पर थे तब भीम अकेले ही शिकार करने चले गए और रास्ते में आने वाले सारे पेड़ पौधों को तोड़ने लगे । अचानक से एक अजगर ने भीम को जकड़ लिया और भीम ने पूरा दम लगा लिया लेकिन छूट नहीं पाए । अजगर ने बताया कि वो नहुष है और वो पहले इंद्र था । ब्रह्मर्षि के प्रति अपराध करने के लिए अगस्त्य मुनि ने नहुष को श्राप देकर अजगर बना दिया था ।
जब नहुष ने क्षमा मांगी तब अगस्त्य मुनि ने कहा कि जब कोई ऐसा व्यक्ति जो नहुष से ज्यादा शक्ति शाली होगा लेकिन उसकी कुंडली से निकल नहीं पायेगा और उसको आत्म ज्ञान दे देगा तो नहुष अजगर का शरीर त्यागकर वापिस स्वर्ग आ जायेगा । कुछ समय में युधिष्ठिर महाराज वहां पर आये और देखा कि एक अजगर ने भीम को कुंडली में लपेटा हुआ है । नहुष ने पूरी बात बताई और कहा कि अगर युधिष्ठिर उसे आत्मज्ञान दे दें तो वह भीम को छोड़ देगा ।
युधिष्ठिर महराज ने हाँ कर दी और सबसे पहले नहुष ने पूछा कि ब्राह्मण कौन है तो युधिष्ठिर ने बताया कि जिसके पास सत्यता है, दान की भावना है, क्षमा है, सत्य व्यवहार है और जो सुख दुख, यश अपयश आदि द्वंद्व से मुक्त है वह ब्राह्मण है । नहुष ने कहा कि यह गुण अगर सूद्र में है तो क्या वह ब्राह्मण है तब धर्मराज युधिष्ठिर ने बताया कि फिर वह ब्राह्मण ही है क्यूंकि वर्ण का निश्चय जन्म से नहीं गुणों से होता है ।
नहुष ने कहा कि यह सब गुण कैसे आते हैं तो युधिष्ठिर ने बताया कि जब कोई व्यक्ति किसी प्रामाणिक आचार्य के सत्संग में आता है तभी उसमें यह गुण आते हैं । मनु महाराज ने भी बताया है कि जन्म से किसी व्यक्ति को ब्राह्मण या क्षत्रिय नहीं माना जाता । इसके बाद नहुष ने युगों के बारे में पूछा तब महाराज युधिष्ठिर ने बताया कि सतयुग में सभी सात्विक हुआ करते थे और उनकी धर्म और दान में हमेशा रूचि रहती थी ।
ये मनुष्य पृथ्वी पर नहीं वल्कि पृथ्वी से ऊपर चला करते थे । उसके बाद धीरे धीरे मनुष्यों का स्तर गिरना शुरू हो गया और वे पाप काम करने लगे । इसके बाद नहुष ने पूछ्के कि ब्रम्ह कौन हैं तो युधिष्ठिर ने बताया कि जब भगवान के बारे में निर्विशेस चर्चा होती है तो उसको ब्रम्ह कहते हैं । इसके बाद नहुष ने आत्म ज्ञान प्राप्त किया और वो अपने असली रूप में आ गया ।
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