नारद जी द्वारा भगवान विष्णु को श्राप
स्थान का बहुत महत्व होता है । जिस स्थान पर बैठकर भगवान की भक्ति की जाती है वहां जाने पर भगवान के प्रति भक्ति भाव अपने आप आ जाता है । एक बार नारद जी तपस्या करने के लिए बैठ गए ।
इंद्र को चिंता होने लगी कि कहीं इंद्र की गद्दी छिन ना जाए । इंद्र ने नारद जी के पास कामदेव को भेजा लेकिन नारद जी के ऊपर उनकी कोई काला नहीं चली । कामदेव ने सोचा कि एक बार शिव जी ने उनको भस्म कर दिया था इसलिए इस बार कामदेव नारद जी की शरण में आ गए ।
नारद जी के मन में अभिमान आ गया कि हमने तो काम को जीत लिया । नारद जी शिव जी के पास गए और कहने लगे कि हमने काम को जीत लिया । शिव जी ने कहा कि ठीक है हमें बता दिया लेकिन भगवान विष्णु को यह नहीं बता देना । नारद जी को लगा कि शिव जी को ईर्ष्या भर गई है इसलिए ऐसा कह रहे हैं ।
एक दिन नारद जी भगवान विष्णु के पास गए । दूर से ही भगवान विष्णु ने देखा और कहा ही नारद जी आइए । नारद जी जैसे ही भगवान विष्णु के पास गए भगवान ने उठकर नारद जी को गले से लगा लिया और नारद जी को आशन बैठने को से दिया । भक्त का प्रथम लक्षण तो यही है कि वही काम करना चाहिए जिसमे भगवान प्रसन्न रहें ।
नारद जी को आया घमंड
शंकर जी ने समझाया था लेकिन नारद जी नहीं माने । आज तक नारद जी भगवान विष्णु को राम कथा सुनाते थे लेकिन आज काम कथा सुनाई कि किस तरह नारद जी ने कामदेव को जीत लिया । आज तक भगवान विष्णु नारद जी को बड़े अच्छे से सुनते रहते यह लेकिन आज वो नारद जी से कहने लगे कि आप कब जायेंगे ।
भगवान ने एक लीला की और माया का एक नगर बना दिया जिसमे बड़े बड़े घर थे । नारद जी जब कथा सुनाकर निकले तो उसी नगर से निकले । नारद जी उस नगर के राजा शीलनिधि के पास गए । राजा ने कहा कि अगर उनकी बेटी को नारद जी आशीर्वाद दे दें तो बहुत ही अच्छा होगा । पहले तो नारद जी उस कन्या को देखकर मोहित हो गए । वो कन्या कोई और नहीं लक्ष्मी जी ही उस रूप में प्रकट हुई हैं । बहुत देर तक नारद जी उस कन्या को देखते रहे और फिर उसके हाथ की रेखा देखी ।
नारद जी ने देखा कि जो इस कन्या से विवाह करेगा वह अजर अमर रहेगा और पूरी पृथ्वी पर राज करेगा और कोई उसे जीत नहीं सकेगा । नारद जी ने यह सब राज को बता दिया लेकिन नारद जी ने सोचा कि कुछ भी करके इस कन्या से विवाह करना है ।
नारद जी ने सोचा विवाह केसे होवे । नारद जी ने सोचा कि श्री हरि से सुंदरता उधार मांग लेनी चाहिए । नारद जी ने ऐसा ही किया और कहा कि दो चार दिन के लिए आप अपनी सुन्दरता मुझे उधार दे दो । भगवान मान गए और नारद जी को सुंदरता अपने जैसी दे दी । भगवान ने हाथ पैर और पूरा शरीर नारद जी को दे दिया लेकिन मुख बंदर जैसा दे दिया ।
नारद जी का हुआ ऐसा अपमान
नारद जी स्वयंवर में गए और वहीं जाकर बैठ गए । नारद जी ने एक व्यक्ति से पूछा कि बताओ बेटी कौन से द्वार से आयेगी । नारद जी दरवाजे के सामने बैठ गए । जैसे ही लड़की ने नारद जी के देखा अपनी दिशा ही बदल ली । उसी समय शंकर जी के दो गण आए और वे दोनो नारद जी के रूप को देखकर हंसने लगे ।
उसी समय एक सुंदर भेष धारण करके एक राजकुमार आया और जब कन्या ने उस सुंदर व्यक्ति को देखा तो उसके गले में वर माला डाल दी । सभी राजा निराश हो गए । जब जल में नारद जी ने अपनी परछाई को देखा तो तो पड़े । नारद जी का क्रोध इतना बड़ गया कि भगवान को ही श्राप देने चले ।
नारद जी के हाथ फड़फड़ाने लगे और नारद जी ने रास्ते में ही देखा कि जो व्यक्ति राजकुमारी को लेकर जा रहे हैं वे भगवान श्री हरी ही हैं । नारद जी को देखकर भगवान मुस्कुराने लगे और पूछने लगे कि हे नारद जी आप कहां जा रहे हैं ।
नारद जी भगवान को श्राप दे दिया कि और कहा कि जिस तरह मेरी एक नारी के कारण जगत में हंसी हुई उसी तरह आपको एक अवतार ने नारी के वियोग में रहना पड़ेगा ।
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