नारद जी ने बताई संतो की महिमा
नारद जी पिछले जन्म में दासी पुत्र थे । उनकी माता घर घर जाकर बर्तन साफ करती थी तब उनका भोजन पानी चलता था । संतो की टोली उनके गांव में आई और नारद जी संतो की सेवा करने लगे । संत भगवान की पूजा करें तो नारद जी भी पूजा करें ।
संत कथा सुनाते थे तो नारद जी भी कथा सुनते थे और कीर्तन गाते थे । इसके बाद संत महात्मा जाने लगे और पीछे पीछे नारद जी भी जाने लगे । संतो ने कहा कि बेटा लौट जा अगर तुम्हारी मां आज्ञा दें तो आ जाना । संतो ने नारद जी को जप करने के लिए माला दी और इतना कहकर वे सभी महात्मा चले गए । नारद जी घर पर वापिस आए । घाट वापिस आकर नारद जी माला जपने लगे । नारद जी की माता जी को डर लगने लगा कि नारद जी बाबा ना बन जाएं ।
एक बार एक संत महात्मा घर आए तो नारद जी की माता ने पूछा कि नारद जी की शादी कब होगी । नारद जी ने सुन लिया और सोचा कि यह एक नई समस्या है ।नारद जी बोले कि हमने भगवान से प्रार्थना की कि ऐसा ना हो । उसी दिन नारद जी की माता को एक काले नाग ने काट लिया और उनकी मृत्यु हो गई । नारद जी ने भगवान को धन्यवाद दिया और माता जी का अंतिम संस्कार करके उसी दिशा में चले गए जिस दिशा में महात्मा गए थे ।
नारद जी रास्ते में एक वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान का ध्यान करने लगे । भगवान नारद जी के हृदय में प्रकट हो गए और नारद जी भगवान को देख रहे थे तब तक भगवान अदृश्य हो गए । नारद जी बिना पानी की मछली की तरह भगवान को देखने के लिए बेहाल हो गए ।
नारद जी रोने लगे आकाश वाणी हुई कि इस समय तिहारी भक्ति पूर्ण नहीं हुई आगे चलके तुम्हें भगवान के दर्शन होंगे । नारद जी ने कहा कि इस तरह संतो के कुछ समय के संग से ही उनको भगवान की प्राप्ति हुई ।