मुद्गल ऋषि की कहानी जो वरदान मिलने के बाद भी स्वर्ग नहीं गए । महाभारत कथा में यह भाग 25 है । भाग 24 में हमने बताया था कि किस तरह अर्जुन और भीम ने दुर्योधन की गन्दर्भों से रक्षा की । अगर आपने भाग 24 नहीं पढ़ा है और पड़ना चाहते हैं तो आगे क्लिक करके पढ़ सकते हैं – पांडवों ने दुर्योधन को गंधर्वों से क्यों बचाया ।
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दुर्योधन ने कराया यज्ञ
दुर्योधन ने कहा कि जिस तरह पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया था उसी तरह कौरव भी करेंगे । इसके बाद कर्ण सभी को जीतने के लिए गया और जीत लिया और उसके बाद राजसूय यज्ञ की तैयारियां कीं । ब्राह्मणो ने बताया कि दुर्योधन राजसूय यज्ञ नहीं कर सकते लेकिन एक और यज्ञ है वैष्णव यज्ञ वो दुर्योधन कर सकता है ।
वैष्णव यज्ञ से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और उससे वैष्णवों को फल प्राप्त होता है लेकिन दुर्योधन को यह बात नहीं पता चली । दुर्योधन ने बहुत सारा दान दिया और यज्ञ संपन्न किया । जब दुर्योधन को पता चला कि यज्ञ से भगवान विष्णु के भक्तों की शक्ति बढ़ती है तो वह फिर निराश हो गया लेकिन कर्ण ने उसे आश्वासन दिलाया कि वह अर्जुन को मरेगा तभी दुर्योधन सुखी हो सकेगा ।
कर्ण ने कहा कि जबतक वह अर्जुन को मार नहीं देता तब तक वह किसी से अपने पैर नहीं धुलवायेगा, मांस नहीं खायेगा और जो भी उससे दान माँगा जायेगा उसे देगा । इसके बाद दुर्योधन को विश्वास हुआ कि कर्ण ऐसा कर सकता है ।
उधर पांडव फिर काम्यकवन की और चले गए और उन्हें वहां व्यास देव मिले और युधिष्ठिर महाराज ने उनसे कहा कि उनके भाईओं और द्रोपदी को वनवास के दुःख भोगते देख उनका मन उदास होता रहता है ।
मुद्गल ऋषि की कहानी
व्यास देव ने कहा कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्यूंकि संसार में सुख दुःख तो हमेशा ही लगा रहता है । व्यास देव ने युधसिठिर को मुद्गल ऋषि की कहानी सुनाई जो केवल जमीन पर पड़े अनाज के दाने ही खाया करते थे ।
इस तरह से जीवन जीने के कारण उनको यह ऐश्वर्य प्राप्त था कि कोई भी ब्राह्मण उनके यहाँ से भूखा नहीं जायेगा । इसके बाद दुर्वाशा मुनि मुद्गल ऋषि की परीक्षा लेने के लिए आये ।
मुद्गल ऋषि जितना भी भोजन लेकर आते थे दुर्वाशा मुनि सारा खा जाते थे । मुद्गल ऋषि भूखे रहते थे पर और दुर्वासा मुनि को भोजन करते थे । इस बात से वे बड़े ही प्रसन्न हुए । दुर्वाशा मुनि ने मुद्गल ऋषि को वरदान दिया कि वह इसी वक्त अपने शरीर के साथ ही स्वर्ग के लिए जा सकते हैं ।
मुद्गल ऋषि ने पूछा कि स्वर्ग केसा है । उन्होंने बताया कि स्वर्ग में कोई कपटी व्यक्ति, हिंसक व्यक्ति, झूठ बोलने वाला व्यक्ति, नास्तिक व्यक्ति नहीं जाता । वहां पर भूख प्यास नहीं सताती, बुढ़ापा नहीं आता और कोई भय नहीं है ।
जो भी इच्छा हो उसे पूरा करने की पूरी सुविधा रहती है । सुन्दर स्त्रियां हैं और शराब के तालाब हैं और सुन्दर बाग बगीचे हैं । स्वर्ग में हमेशा शरीर से खुसबू आती है और
कभी वहां पर मल नहीं त्यागना पड़ता । जो भी फूल शरीर पर पहने जाते हैं वो कभी मुरझाते नहीं हैं और वहां पर कभी कोई बीमारी नहीं होती ।
स्वर्ग का एक नुकसान है कि स्वर्ग में कोई पुण्य कर्म नहीं कर पाता क्यूंकि वहां पर ऐसा करने की ना तो इच्छा आती है और ना ही इसकी सुविधा होती है । जब सारे पुण्य व्यक्ति स्वर्ग मे भोग लेता है तो उसे पृथ्वी पर वापिस भेज दिया जाता है ।
जैसे ही उसके पुण्य क्षीण होना शुरू होते हैं तब उसके गले में पड़ी माला मुरझाना शुरू हो जाती है । जब उसके सारे पुण्य ख़त्म हो जाते हैं तब उसे स्वर्ग से बहार फेक दिया जाता है । स्वर्ग के बाहर राक्षस उसको मार डालते हैं और उसकी आत्मा जमीन पर जाती है और फिर बारिश के साथ वह जमीन में जाकर अन्न में चली जाती है ।
इसके बाद जब कोई व्यक्ति वह अन्न खता है तब वहआत्मा वीर्य में आती है और फिर किसी के गर्भ में जाकर उसका जन्म होता है । पृथ्वी पर स्वर्ग से आये हुए व्यक्ति का जीवन दुखी रहता है क्यूंकि पृथ्वी पर स्वर्ग की तरह सुख उपलब्ध नहीं है ।
यह सुनकर मुद्गल ऋषि नहे पूछा कि फिर ऐसा क्या है जहाँ हमेशा रह सकते हैं तब स्वर्गवासियों ने बताया कि ऐसा तो केवल हरि का धाम ही है जहाँ जाकर फिर दोबारा कभी नहीं आना पड़ता ।
मुद्गल ऋषि ने कहा कि वह धाम कैसे प्राप्त होता है तब स्वर्गवासियों ने बताया कि उसके लिए तो भगवान कृष्ण की ही भक्ति करनी पड़ेगी ।
मुद्गल ऋषि ने कहा कि फिर उनको स्वर्ग नहीं जाना क्यूंकि स्वर्ग से तो एक दिन वापसी होती ही है । मुद्गल ऋषि ने कहा कि वे भगवान के धाम जाना चाहते हैं और इसके लिए वे भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करेंगे । इस तरह मुद्गल ऋषि ने स्वर्ग जाने का वरदान मिलने के बाद भी स्वर्ग को जाना नहीं चाहा ।
इसके बाद पांडव प्रसाद पाकर विश्राम कर रहे थे लेकिन उसी साय उन्हें पता चला कि महर्षि दुर्वासा अपने 10,000 शिष्यों के साथ उनके पास आ रहे हैं । युधिष्ठिर महाराज ने द्रोपदी से पूछा कि क्या उन्होंने अक्षय पात्र से भोजन पा लिया है ।
द्रोपदी ने कहा कि हाँ वे भोजन पा चुकी हैं । सूर्य देव से प्राप्त अक्षय पात्र की यह शर्त थी कि उसमें भोजन कभी भी ख़त्म नहीं होगा लेकिन अगर एक बार द्रोपदी उस पात्र में से भोजन कर लेंगी तो उस दिन के लिए उसमे भोजन ख़त्म हो जायेगा और ।
अभी के लिए इतना ही । दुर्वाशा मुनि और उनके शिष्यों का पेट युधसिथिर महराज ने किस तरह भरा जानेंगे अगले पोस्ट में । अगले पोस्ट की जानकारी व्हाट्सप्प ग्रुप पर दी जाएगी जिसे आप आगे क्लिक करके ज्वाइन कर सकते हैं – WhatsappGroup ।
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