माता कैकई का चरित्र
भगवान श्री राम के कहने पर माता कैकई ने उन्हें वनवास के लिए भेजा । भगवान ने माता कैकई से कहा कि अगर वे ऐसा करेंगी तो उनका बेटा भारत कभी उनको मां नहीं कहेगा । साथ ही लोक परलोक में माता कैकई का अपयश होगा और लोग उनकी निंदा करेंगे ।
अगर माता कैकई ऐसा करेंगी तो उनको विधवा बनना पड़ेगा । लेकिन माता कैकई ने कहा कि अगर राम की इसमें प्रसंत्ता है तो वे तैयार हैं । माता सुमित्रा के दो पुत्र हुए शत्रुघ्न और सुमित्रा । माता सुमित्रा ने एक बेटे को प्रभु राम की सेवा में लगा दिया और दूसरे बेटे को भरत की सेवा में लगा दिया ।
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माता सुमित्रा ने लक्ष्मण जी से कहा कि तुम्हारी मां में नहीं हूं माता सीता हैं । जब लक्ष्मण अयोध्या छोड़कर जाने लगे तो माता सुमित्रा ने कहा कि अवध वहीं है जहां श्री राम हैं । माता सुमित्रा को पता था कि राम या भरत में से कोई एक तो राजा बनेगा ही इसलिए अपने एक एक बेटे को दोनो की सेवा में लगा दिया ।
ऐसा साधारण दृष्टि से लग सकता है लेकिन माता सुमित्रा का इस कोई भाव नहीं था । जब राम भगवान वनवास गए और दसरथ जी का शरीर छूट गया । भरत जी प्रभु राम को वालिया लाने गए लेकिन प्रभु नहीं माने । प्रभु श्री राम जमीन पर सोते थे इसलिए भरत अयोध्या में जमीन में गड्ढा करके सोते थे ।
सत्रुघन जी भगवान श्री राम की अनुपस्थिति में तीनों माताओं को भोजन कराते । वहीं गोशाला में गायों को भोजन कराते । जिन घोड़ों पर बैठकर श्री राम वनवास गए वे भी खाना पानी नहीं के रहे थे । शत्रुघन जी घोड़ों को भी भोजन कराते और पूरी प्रजा को भी आश्वासन देते ।
तीनों माताओं में कैकई माता निंदा की नहीं अपितु वंदना की पत्र हैं । माता कैकई जब कप भवन में गईं तब दशरथ जी के आते ही उन्होंने दो वरदान मांगे । जब देवासुर संग्राम में महाराज दशरथ युद्ध कर रहे थे तब उनके रथ के पहिए की कील निकल गई तो माता कैकई ने अपनी उंगली से रथ को कील की जगह लगा दिया ।
राजा दशरथ ने कहा कि माता कैकई ने युद्ध में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है इसलिए वे कैकई को दो वरदान देना चाहते हैं । माता कैकई ने कहा कि वे दोनो वरदान बाद में मांग लेंगी ।
एक कथा यह भी है कि कैकई के पिता ने उनके विवाह के वक्त एक शर्त रखी वो यह थी कि कैकई के पुत्र ही राजा बनेंगे । वसिष्ठ जी के कहने पर यह बात दशरथ जी ने मान की और कहा कि भविष्य में कैकई को दो वरदान राजा दशरथ देंगे ।
माता कैकई ने कहा कि राजा दशरथ ने उनको वचन नहीं दिए । राजा दशरथ ने कहा कि हमारा संकल्प है रघुकुल रीत सदा चली आई, की प्राण जाएं पर वचन न जाई । कैकई माता ने कहा कि पहला वरदान है कि भरत को राजा बनाया जाए । दूसरा वरदान मांगा कि राम को 14 वर्षों के लिए वनवास भेजा जाए ।
यह सुनकर दसरथ जी का हृदय कांपने लगा और मुख से कुछ नहीं कह पाए । 14 वर्ष लेकर कई लोगों के अलग अलग तर्क हैं । बाल्मिकी रामायण के अनुसार कैकई ने 14 वर्षों के लिए केवल राम के लिए वनवास मांगा । वहीं रामचरितमानस के अनुसार कैकई ने प्रभु श्री राम के साथ साथ लक्ष्मण और माता सीता के लिए भी वनवास मांगा ।
महाराज दशरथ सहम गए और शरीर कांपने लगा । दूसरा वरदान सुनकर दशरथ जी ने कहा कि अगर राम चले गए तो वे जिंदा नहीं रह पाएंगे । जब प्रभु श्री राम को यह बात पता चली तो वे तुरंत ही तैयार हो गए । भगवान ने कुछ किंतु परंतु नहीं किया लेकिन धन्य हैं प्रभु श्री राम जिन्होंने राज पद को अपने पिता की आज्ञा से छोड़ दिया ।
इसके बाद प्रभु श्री राम ने पूरी बात माता कौशल्या को बताई । कौशल्या माता ने कहा कि कैकई भी तुम्हारी माता हैं । इसके बाद प्रभु श्री राम सहित लक्ष्मण जी और माता सीता को सुमंत्र वनवास लेकर गए । सारी प्रजा कैकई को दोष दे रहे थे और राम के वनवास से दुखी थे ।
सारे अवध वासी पीछे पीछे जाने लगे । सब भगवान के साथ वनवास जाने के लिए तैयार थे । भगवान ने रात के समय सुमंत्र से कहा कि तेजी से रथ चलाओ और हमें वन ले चलो । सभी अयोध्या वासी सोते रहे और भगवान वन चले गए । सबसे पहले भगवान विसाध राज के यहां गए ।
जब भगवान से रहे थे तब लक्ष्मण जी पहरा दे रहे थे । निसाध राज माता कैकई को दोष देने लगे । लक्ष्मण जी ने निसाध राज को समझाते हुए कहा कि कोई किसी के सुख दुख का दाता नहीं सब अपने कर्मों के कारण ही सुख दुख पाते हैं ।
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लक्ष्मण जी कहते है कि अगर किसी को स्वप्न में बहुत साराधन मिल जाए तो क्या फायदा । उसी प्रकार इस संसार में सुख और दुख लगे ही रहते हैं हमें उनसे विचलित नहीं होना चाहिए ।