महाभारत की शुरुआत
महाभारत की शुरुआत स्वर्ग से होती है । महाभारत में बताया गया है कि किस तरह स्वर्ग से देवी, देवता, वसु इत्यादि पृथ्वी पर आए जिन्होंने महाभारत की शुरुआत की ।
महाभारत ग्रंथ की रचना महर्षि वेदव्यास जी ने की थी । महाभारत मे कुल 1 लाख श्लोक हैं और 18 पर्व हैं । जब महर्षि वेदव्यास जी के हृदय मे महाभारत ग्रंथ प्रकाशित हुआ तो उन्होंने इसे एक लाख श्लोक वाले ग्रंथ महाभारत के रूप मे शिव पुत्र गणेश से लिखवाया ताकि इसका प्रचार प्रसार हो सके । वेदव्यास जी ने सबसे पहले वेदों को 4 भागों मे विभाजित किया और फिर उसके बाद उपनिषदों की रचना की । उसके बाद पुराण और सबसे अंत मे इतिहास लिखे जिनमे महाभारत और रामायण आते हैं ।
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महाभारत की शुरुआत मे राजा वशु का उल्लेख है जो पौरवा वंश से संबंधित थे । राजा वशु ने कुछ समय तक कुशलता से राज्य किया और एक दिन अध्यात्म का विचार करके वैरागी होए गए । जब वे ध्यान लगा रहे थे तो इंद्र को लगा कि कहीं वे इंद्र की पदवी ना छीन लें इसलिए इंद्र उनके पास आए और उनसे ध्यान रोकने को कहा । इंद्र ने वशु को समझाया कि वे एक कुशल राजा हैं इसलिए उनके राज्य मे सारी प्रजा भगवान की भक्ति कर सकेगी इसलिए उन्हें वापिस जाकर राज्य संभालना चाहिए ।
राजा वशु बहुत भोले थे इसलिए इंद्र की बात मान गए । इंद्र को इस बात से बड़ी प्रसंत्ता हुई और उन्होंने राजा वशु को एक दिव्य रथ दिया जो तीनो लोकों मे आसानी से जा सकता था । एक हार भी दिया जो राजा को हमेशा जवान रखने का काम करता था और एक दिव्य खंबा दिया जो राजा वशु की प्रजा को उनके अनुकूल रखने का काम करता था । राजा वशु ने वो खंबा अपने राज्य के बीचों बीच गाड़ दिया और खुद इंद्र का दिव्य रथ लेकर दूसरे लोकों मे घूमने लगे ।
राजा वशु ने गिरिका से शादी की जो कि शुक्तिमति की पुत्री थी । एक बार जब राजा वशु जंगल मे आखेट कर रहे थे तब उन्होंने दिव्य शक्ति से अपना वीर्य लिया और एक चील को दे दिया । उन्होंने चील से कहा कि वह इसे उनकी पत्नि तक पहुंचा दे ताकि उनकी संतान उत्पति सके । इस चील को रास्ते मे एक और चील ने देख लिया और दोनो लड़ने लगे । लड़ाई के कारण राजा वशु का वीर्य यमुना नदी मे गिर गया जिसे एक मछली ने ग्रहण किया जिससे उसे मत्स्य नाम का पुत्र और सत्यवती नाम की पुत्री प्राप्त हुई । जब एक मछुआरे ने इस मछली को पकड़ा तो उसके पेट से उसे ये दोनो बालक प्राप्त हुए ।
जब मछुआरा उन बच्चों को राजा वशु के पास लेकर गया तो वे उन्हें पहचान नहीं पाए लेकिन उन्होंने जब ध्यान लगाकर देखा तो उन्हें पता चाला कि ये दोनो उन्हीं के बच्चे हैं । राजा वशु ने पुत्र को अपने पास रख लिया और पुत्री को मछुआरे को दे दिया । सत्यवती के शरीर से मछली की बदबू आया करती थी जिससे वे बड़ी परेशान रहती थी । एक दिन परासर मुनि उनके पास से जुगर रहे थे तभी उन्हें आभास हुआ कि यह समय भगवान के अवतार का समय है । उन्होंने अपने पास सत्यवती को देखा और उनसे इस कार्य के लिए मंजूरी मांगी । परासर मुनि ने सत्यवती से विवाह किया और भगवान वेदव्यास जी का सत्यवती से प्रकाट्य हुआ ।
परासर मुनि ने सत्यवती को आशीर्वाद दिया कि उनके शरीर से आने वाली बदबू अब खुशबू मे बदल जायेगी । उसी वरदान के साथ सत्यवती का नाम पड़ा योजनगंधा क्योंकि उनके शरीर से अब एक योजन दूर तक खुशबू आया करती थी । साथ ही परासर मुनि ने सत्यवती को यह आशीर्वाद दिया कि वे इस क्रिया के बाद भी कुंवारी ही रहेंगी ।
अभी तक पृथ्वी पर राक्षसी प्रवत्ति वाले राजाओं का बोलबाला बहुत बड़ गया था और पृथ्वी माता ने ब्रह्मा जी से विनती की कि वे कुछ सहायता करें । ब्रम्हा जी भगवान विष्णु के पास गए तब भगवान ने कहा कि वे शीघ्र ही अवतरित होंगे और पृथ्वी का बोझा हल्का करेंगे ।
क्यों हुआ गंगा पुत्र भीष्म का पृथ्वी पर जन्म
स्वर्ग में आठ वसु हुआ करते थे जिन्होंने वसिष्ठ मुनि की गाय चुरा ली थी जिस कारण उन्हें वशिष्ठ मुनि द्वारा पृथ्वी पर मनुष्य बनने का श्राप मिला था । स्वर्ग में देवता, वसु, गंधर्व, अप्सरा इत्यादि रहा करते हैं । जब उन्होंने क्षमा मांगी तो वसिष्ठ मुनि ने उन्हें जन्म के साथ ही मृत्यु प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया जिससे उन्हें मानव जीवन के कष्ट ना भोगने पड़े और वे जल्द ही स्वर्ग वापिस आ जाएं । वसिष्ठ मुनि ने कहा कि एक वसु जिसने गाय को चुराने की योजना बनाई थी उन्हें पृथ्वी पर लंबे समय रहना पड़ेगा ।
इसी समय गंगा माता को भी पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप मिला हुआ था । वासुओं ने गंगा माता से उनके पुत्र बनने की विनती की । गंगा मां ने हां बोल दिया । गंगा माता पृथ्वी पर आईं और उन्होंने महाराज शांतनु से विवाह किया । गंगा माता ने शांतनु के समक्ष दो शर्त रखीं । पहली थी कि वे कभी भी गंगा माता से ऊंची आवाज में बात नहीं करेंगे और दूसरा उनसे किसी भी प्रकार का कोई सवाल नहीं पूछेंगे । शांतनु महाराज ने हां बोला और इन दोनो शर्त पर उनकी शादी हो गई ।
जब इनके पुत्र हुए तो गंगा माता ने सारे पुत्र गंगा नदी में बहा दिए और जब वे आखिरी पुत्र को बहाने ले जाने लगीं तो शांतनु ने उनसे सवाल पूछ लिया कि वे ऐसा क्यों कर रही हैं । गंगा माता ने कहा कि शांतनु ने शर्त तोड़ी है इसलिए उनका विवाह संबंध अब टूट चुका है । ऐसा कहकर गंगा माता वहां से चली गईं । शांतनु महाराज के आखिरी बचे पुत्र का नाम देवव्रत था जो अब उनके राज पाट को संभालने लगे थे ।
एक दिन शांतनु महाराज जंगल में शिकार कर रहे थे तभी उन्हें एक अच्छी सुगंध आई जिसका पीछा करते करते वे एक स्त्री से मिले । वो स्त्री सत्यवती थीं जिनपर शांतनु मोहित हो गए और उनसे शादी करने की इच्छा जाहिर की । सत्यवती ने पिता से बात करने को कहा तो महाराज शांतनु उनके पिता के पास गए । पिता ने शर्त रखी कि सत्यवती का पुत्र ही राजा बनेगा ना कि देवव्रत । राजा शांतनु दुखी मन से वापिस चले आये । जब शांतनु को इस बात का पता चला तो उन्होंने सत्यवती के पिता से जाकर इस बारे मे बात की । देवव्रत ने आजीवन ब्राम्हचारी रहने की प्रतिज्ञा ली ताकि सत्यवती के पुत्र ही राजा बने न कि देवव्रत के ।
क्यूंकि यह प्रतिज्ञा बहुत ही कठिन थी इसलिए उनका नाम पड़ा भीस्म । इसके बाद शांतनु और सत्यवती का विवाह हुआ और उनको दो पुत्र हुए चित्रांगदा और विचित्रवीर्य । चित्रांगदा बड़े पुत्र थे लेकिन एक युद्ध मे मारे गए जिसके बाद विचित्रवीर्य को राजा बनना था लेकिन उनकी आयु बहुत कम थी जिस वजह से भीष्म ही सारा राज्य संभालते थे । विचित्रवीर्य की शादी के लिए भीष्म ने स्वयंवर से अंबा, अंबिका और अंबालिका का हरण कर लिया । अंबा ने माना कर दिया लेकिन अंबिका और अंबालिका की शादी विचित्रवेर्य के साथ हो गई । विचित्रवीर्य अपनी शादीशुदा जिंदगी में इतने लिप्त हो गए कि कुछ समय बाद ही रोगों ने उनके शरीर को घेर लिया और उनकी मृत्यु हो गई ।
धृतराष्ट्र और पांडू का जन्म
अब शांतनु के वंश को आगे बड़ाने वाला कोई नहीं बचा था । भीष्म ने सुझाव दिया कि वे किसी ऋषि के माध्यम से अंबिका और अंबालिका से पुत्र प्राप्त कर सकते हैं ताकि उनका वंश आगे बड़ सके । सत्यवती को याद आया कि उनके पुत्र वेदव्यास का कौशल इस कार्य के लिए पर्याप्त है । वेदव्यास जी आए लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी । वेदव्यास जी ने कहा कि अंबा और अंबालिला को एक साल तपस्या करनी होगी उसके बाद उन्हें वेदव्यास जी से पुत्र प्राप्त होंगे ।
सत्यवती ने कहा कि इनसे कहां तपस्या होगी इसलिए कोई दूसरा रास्ता बताइए । वेदव्यास जी ने कहा कि अगर दोनो उनके रूप को बर्दाश्त कर लेती है तो इतना पर्याप्त रहेगा । अंबिका ने वेदव्यास जी का भयानक रूप देखकर अपनी आंखें बंद कर लीं और उन्हें अंधा पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम धृतराष्ट्र रखा गया । वहीं अंबालिका ने आंखें तो खुली रखीं लेकिन दर के मारे उनका शरीर पीला हो गया जिससे उन्हे पीले रंग के पुत्र प्राप्त हुए जिनका नाम रखा गया पांडू ।
यह भी पड़ें – महाभारत का विराट युद्ध
पांडवों और कौरवों के जन्म और आपसी मतभेद की कहानी बताई गई है अगले पोस्ट में । अगला पोस्ट पड़ने के लिए यहां क्लिक करें – पांडवों का जन्म । इसी तरह की दिव्य कथाएं पड़ते रहने के लिए हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करें । ग्रुप ज्वाइन करने के लिए यहां क्लिक करें – GetgyaanWhatsApp