महाभारत के युद्ध की पूरी कथा

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महाभारत के युद्ध की पूरी कथा – 19 दिनों में क्या हुआ

इसके बाद भीष्म पितामह ने कहा कि महाभारत युद्ध में एक समय पर या तो वे रहेंगे या कर्ण । दुर्योधन ने कहा कि वह भस्म पितामह को सेनापति चुनता है और कर्ण ने कहा कि वह जबतक रणभूमि में नहीं आएगा जब तक महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह का वध नहीं हो जाता ।

इसके बाद द्रोणाचार्य ने भी अर्जुन की प्रशंसा करनी शुरू कर दी । दोणाचार्य ने कहा कि अर्जुन ने इंद्र से और शिव जी से कृपा प्राप्त की है । दुर्योधन ने कहा कि अब अर्जुन कई कई द्रोणाचार्य को भी हरा सकता है । दुर्योधन का यह सब सुनकर दिमाग क्रोध से भर गया और कहने लगा कि आचार्य शत्रुओं की प्रशंसा कर रहे हैं ।

द्रौणाचार्य ने भी पांडवों के बल के कुछ नमूने बताये । उन्होंने कहा कि एक तो महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीम में पहले से ही १०,००० हाथियों का बल था और तुमने उसे जहर खिलाकर १०,००० हाथियों का बल और दिलवा दिया । इसके आड़ बताया कि जो गदा मयदानव ने भीम को दी थी उस एक गदा के अंदर १,००,००० गड़ाएं हैं ।

इसके बाद दुर्योधन को पता चला कि जब भगवान उसके पास आये थे तब उसने कहा था कि युधिष्ठिर महाराज ही विश्व पर राज करने के योग्य हैं । लेकिन जब ददुर्योधन कर्ण के पास गया तो उसने बात पलटते हुए कहा कि यह तो उसने ऐसे ही कह दिया था लेकिन वह तो दुर्योधन के साथ है । कर्ण इ यह बात दुर्योधन को बहलाने के लिए की थी लेकिन बार बार अर्जुन से हारकर और भगवान कृष्ण को देखकर वह अब तक जान चूका था कि युधिष्ठिर महाराज ही केवल राजा बनने के योग्य हैं ।

परशुराम जी ने महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म को युद्ध के लिए ललकारा

इसके बाद जब अम्बा ने ब्रह्मचारिणी बनने के लिए संतों से कहा तो उन्होंने मन कर दिया कि यह आश्रम स्त्रियों के लिए नहीं होता । स्त्री । को हमेशा रक्षा की अजरूरत होती है इसलिए उसे गृहस्थ जीवन में ही जाना चाहिए और अम्बा तो राज घराने से हैं इसलिए उनको तो ऐसा बिलकुल नहीं करना चाइये ।

इसके बाद वह एक हुदरवाहन नाम के राजा आ गए जो अम्बा के नाना लगते थे । अम्बा ने कहा कि महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म को हराएगा कौन । राजा ने कहा कि भस्म को कौन हरा सकता है और यहाँ तक कि अगर सारे देवता भी मिल जाएँ तो भी भस्म को नहीं हरा सकते ।

राजा ने कहा कि एक ही ब्यक्ति हैं परशुराम उनके पास ही चलना चाहिए । वो वहां गए लेकिन परशुराम जी उसने दूसरे दिन मिले और कहा कि महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म भीष्म को दंड मिलना चहिये । परशुराम जी ने कहा कि वो भीष्म से कहेंगे कि अम्बा से विवाह कर लें और अगर वो ऐसा नहीं करेंगे तो परशुराम उनसे युद्ध करेंगे ।

भीम ने मन कर दिया और कहा कि उन्होंने ब्रह्मचारी रहने का वचन किया है । परशुराम जी ने कहा कि गुरु आज्ञा दे रहे हैं इसलिए महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म को अम्बा से शादी कर लंबी चाहिए लेकिन महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म नहीं माने और परशुराम जी से कहा कि उनको ऐसी आज्ञा नहीं देनी चाहिए ।

परशुराम जी ने महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म को युद्ध के लिए ललकारा

परशुराम जी ने महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म को युद्ध के लिए ललकारा और अगले दिन दोनों कुरुक्षेत्र में पहुंच गए । इसके बाद महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म रथ पर सवार हुए लेकिन परशुराम जी किसी रथ पर नहीं थे लेकिन भीष्म ने उनको एक रथ दिया जिसमे बहुत सारे हथियार भी थे । इसके बाद महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म ने परशुराम जी से जाकर आशीर्वाद माँगा कि वे विजयी रहे और परशुराम जी ने आशीर्वाद दिया कि वे बहुत अच्छे से लड़ेंगे ।

इसके बाद दोनों में बहुत भयंकर युद्ध हुआ और पहले दिन भीष्म इ परशुराम जी को बेहोश कर दिया और अगले दिन परशुराम ने भस्म पितामह को बेहोश कर दिया । एक बार परशुराम जी ने महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह के सारथी को मार दिया लेकिन उन्होंने देखा कि रथ नीचे नहीं गिर रहा है और उन्होंने देखा कि रथ पर गंगा माता बैठी हैं ।

महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म ने गंगा माता को वापिस भेज दिया और वे खुद ही रथ चला रहे थे और युद्ध भी लड़ रहे थे । इस तरह जब 21 दिन बीत गए जब 8 वसु महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म के पास आये और महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह को बताया कि निंद्रा अस्त्र के बारे में परशुराम जी नहीं जानते इसलिए उनको सुला दो और जो युद्ध करते करते सो जाता है वह हारा हुआ ही माना जाता है ।

अम्बा ने द्रुपद के यहाँ शिखण्डिन के रूप में जन्म लिया

जब भस्म पितामह वह अस्त्र चलाने वाले थे तभी नारद जी ने आकर उनको रोक दिया, फिर देवता भी आ गए और बाद में 8 वसु भी आ गए और उन्होंने भी मन कर दिया । परशुराम जी यह सब देख कर समझ गए कि यह जो अस्त्र था उससे परशुराम जी हार जाते इसलिए उन्होंव हार कबूल की और वापिस चले गए ।

परशुराम जी ने अम्बा से कह दिया कि वे केवल इतना ही कर सकते थे । अम्बा ने कहा कि वह खुद भी मको मारेगी और इस काम को करने के लिए घनघोर तपस्या करने लगी । इसके बाद तपस्या करके अम्बा ने शिव जी को खुश किया और वरदान पाया कि अगले जन्म में अम्बा द्रुपद के यहाँ जन्म लेगी और बाद में पुत्र बन जाएगी और महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म को मार सकेगी ।

अम्बा ने द्रुपद के यहाँ शिखण्डिन के रूप में जन्म लिया और द्रुपद ने यह बात छिपा ली की उनके यहाँ एक पुत्री हुयी है । बाद में जब अम्बा का विवाह हुआ तो सबको पता चला कि अम्बा लड़की है । इसके बाद अम्बा ने सोचा कि वह इतनी बेज्जती नहीं सह सकती और फिर से जंगल चली गयी लेकिन वहां पर अम्बा को एक यक्ष मिला जिसने शिखण्डिन को अपना पुरुषत्व देकर शिखण्डिन को लड़का बना दिया और नाम पद गया शिखंडी ।

इसके बाद जा कुबेर को पता चला कि उनके एक यक्ष ने ऐसा काम किया है तो कुबेर ने उसको श्राप दे दिया कि अब अम्बा हमेसा लड़का रहेगा और वह यक्ष हमेशा लड़की लेकिन बाद में यक्ष के निवेदन के बाद कुबेर ने कहा कि शिखंडी की मृत्यु के बाद वह यक्ष दोबारा से हमेशा के लिए लड़का बन जायेगा ।

महाभारत युद्ध के नियम

इसके बाद महाभारत युद्ध के कुछ नियम बने कि घोड़े वाला हमेशा घोड़े वाले इ साथ ही लड़ेगा, रथ वाला रथ वाले के साथ लड़ेगा और जमीन वाला जमीन वाले के साथ ही लड़ेगा और किसी से भी लड़ाई करने से पहले उसको सूचना देनी होगी । एक नियम यह था कि एक व्यक्ति एक ही व्यक्ति के साथ लड़ेगा ।

इसके बाद नियम यह था कि अस्त्र शास्त्र लेकर जाने वाले को कोई नहीं मारेगा । वहां पर कुछ संगीतकारों को भी लगवाया गया था ताकि महाभारत युद्ध में क्षत्रियों का उत्साह बना रहे । इसके बाद व्यास देव ने संजय को दिव्य दृष्टि दी ताकि वे महाभारत युद्ध की सारी स्थिति धृतराष्ट्र को बताते रहे । यह वरदान भी दिया कि संजय लड़ भी सकते हैं और सबकुछ देख भी सकते हैं, वे थकेंगे नहीं और उनको कोई घाव नहीं लगेगा ।

इसके बाद मोक्षदा एकादशी का दिन आ गया और महाभारत युद्ध शुरू हुआ । जबा वहां पर संख बजे तब वहां पर एक पक्षी का घोसला था । जब उस पक्षी ने देखा कि वहां पर बहुत सारे रथ आ रहे हैं तो उसे लगा कि उसके अंडे नष्ट ना हो जाएँ । हगवां कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि सामने वाले हाथी के गले में जो घंटा है उसमे तीर मार डॉन । वह घंटा चिड़िया के अंडो के ऊपर गिर गया और अठारह दिन बाद जब महाभारत युद्ध खत्म हुआ तो वह घंटा हटा और उसमें से चिड़िया के बच्चे निकल कर बहार आ गए ।

र्जुन ने महाभारत युद्ध न लड़ने के पांच कारण दिए

इसके बाद अर्जुन ने कहा कि वे विपक्ष के सभी योद्धाओं को एक बार पास से देखना चाहते हैं । जब भगवान पास में रथ ले गए तब अर्जुन ने महाभारत युद्ध लड़ने से मन कर दिया । अर्जुन ने महाभारत युद्ध न लड़ने के पांच कारण दिए । पहला था कि वे अपने गुरु जानो और भाईओं को कैसे मार सकते हैं । दूसरा कारण था कि अगर सारे संबंधी इस महाभारत युद्ध में मारे जायेंगे तो वे किसके साथ जीत की कृषि मनाएंगे । तीसरा कारण था कि स्त्रियां वियद्वा हो जाएँगी और वर्णषकर पैदा होंगे जिससे पितरों का पिंडदान नहीं होगा इसलिए वे नर्क में जायेंगे और वर्णषकर को पैदा करने वाला भी नर्क में जायेगा ।

चौथा कारण था कि अपनी महत्वाकांछा को पूरा करने के लिए इतने लोगों को मारने से पाप लगेगा । पांचवां कारण था कि वे निश्चय नहीं आकर पा रहे हैं कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत ।

इसके बाद भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया जिसके विषय में हम बादमने चर्चा करेंगे । जयद्रथ के पिता वृद्धक्षत्र को पता चला कि उनके पुत्र का सर एक वीर योद्धा काट कर फेक देगा । वृद्धक्षत्र ने प्रतिज्ञा ली कि जो उनके बेटे जयद्रथ क्क सर जमीन पर गिरायेगा उसके सिर के भी 100 तिकडे हो जाएंगे ।

जयद्रथ इ राज पाठ संभाल लिया और वृद्धक्षत्र समन्तपंचक नाम के सरोवर के पास जाकर तपस्या करने लगे । भगवत गीता को सुनकर अर्जुन महाभारत युद्ध लड़ने के लिए तैयार हो गए और तभी युधिष्ठिर महाराज और सारे पांडव भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य के पास जाकर आशीर्वाद माँगा । इसके बाद युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से पुछा कि उनकी मृत्यु कैसे होगी तब महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह ने कहा कि उनकी मृत्य का राज कृष्ण जानते हैं इसलिए वे उन्हें से पूछें ।

महाभारत युद्ध शुरू हुआ और पहले दिन कौरवों ने चील की तरह सेना की व्यूह रचना की

इसके बाद द्रोणाचार्य से आशीर्वाद लिया और पुछा कि आपको हम कैसे मार सकते हैं । द्रोणाचार्य ने कहा कि द्रुपद ने यज्ञ करके एक पुत्र धृष्टद्युम्न प्राप्त किया है वह द्रोणाचार्य को मार सकता है । इसी के बीच एक योद्धा बर्बरीक भी थे जिन्होंने अपने गुरुदेव को वचन दिया था कि वे हमेशा कमजोर पक्ष की ओर से लड़ेंगे ।

बर्बरीक के बारे में और अधिक आ आगे क्लिक करके पद सकते हैं – महाभारत के युद्ध में बर्बरीक ने क्या देखा । इस लेख में हमने बताया है कि भगवान बर्बरीक के पास क्यों गए । कृपया आगे बढ़ने से पहले आप उस पोस्ट को पढ़ लें ।

इसके बाद महाभारत युद्ध शुरू हुआ और पहले दिन कौरवों ने चील की तरह सेना की व्यूह रचना की और पांडवों ने चन्द्रमाँ क जैसी व्यूह रचना की और बहुत ही घमासान युद्ध हुआ । भस्म पितामह ने प्रतिज्ञा ली थी कि वे हर दिन काम से काम १०,००० सैनिकों को मारेंगे । पहले दिन और जब दूसरे दिन भी पांडवों में से कोई नहीं मारा तो दुर्योधन भस्म पितामह के को ताने मारा करता था ।

भीम चिंघाड़ते हुए अपनी गदा घुमा घुमा कर सबको मार रहे थे

तानों से तंग आकर तीसरे दिन पितामह ने बहुत ही ज्यादा घमासान युद्ध लड़ा और पांडवों के लगभग १४,००० सैनिक मार दिए । भगवान ने यह देख कर सुदर्शन का आवाहन किया तब तक अर्जुन ने भगवान को रोक दिया कि उन्होंने शस्त्र न उठाने के लिए कहा था । इसके बाद भगवान ने रथ का पहिया उठा लिया और भीष्म पितामह की तरफ दौड़े । अर्जुन ने भगवान से विनती की कि वे अबकी बार भीष्म पितामह से अच्छे से लड़ेंगे ।

उधर भीम चिंघाड़ते हुए अपनी गदा घुमा घुमा कर सबको मार रहे थे । दुर्योधन के 14 भाईओं ने महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीम पर हमला किया और भीम ने एक ही वार में 14 में से 8 को निपटा दिया । दुर्योधन सोचने लगा कि उसके सैनिक मरते जा रहे हैं और पांडवों के सैनिक नहीं मर रहे हैं । भीष्म पितामह ने बताया कि महाभारत युद्ध में पांडवों का बाल भी बाका नहीं हो सकता क्यूंकि उनकी तरफ स्वयं भगवान कृष्ण हैं ।

उस दिन दुर्योधन को विश्वास हुआ कि कृष्ण परम भगवान हैं और अभी तक वह मूर्ख भगवान को एक साधारण ग्वाला ही समझ रहा था इसलिए वह भगवान और अक्षोहणी सेना में से सेना को पसंद कर रहा था । इसके बाद अगले दिन जब युद्ध हुआ तब धृष्टद्युम्न ने देखा की महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीम अकेले ही हजारों सैनिकों को मारते जा रहे हैं ।

भगवान ने अर्जुन को दुर्योधन के पास भेजा और कहा कि उससे वह 5 तीर मांग लेना

इसी तरह सातवां दिन आया और उस दिन दुर्योधन ने दोबारा भीष्म पितामह को ताने दिए और भीष्म पितामह ने 5 तीर मन्त्रों से संचारित करके पांचों पांडवों को मारने के लिए रख लिए । सुरक्षा के लिए दुर्योधन वह पांच तीर लेकर चला गया और उन्हें सुरक्षित करके रख लिया ।

इसके बाद भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को बिना पायल और गहनों के भीष्म पितामह के पास जाने को कहा । भगवान ने कहा कि जब भीष्म पितामह किसी गहरे विचार में डूबे हों तभी जाकर उनको प्रणाम करना । द्रोपदी ने ऐसा ही किया और भस्म पितामह ने द्रोपदी को आशीर्वाद दिया कि वे हमेशा सौभाग्यवती रहें ।

भीष्म पितामह पहचान नहीं पाए थे कि ये द्रोपदी हैं । उन्होंने पूछा कि वे बिना पाल और गहनों के क्यों आयी हैं । पूछने पर द्रोपदी ने बताया कि उन्हें ऐसा करने को भगवान कृष्ण ने ही कहा था ।

भगवान ने अर्जुन को दुर्योधन के पास भेजा और कहा कि उससे वह 5 तीर मांग लेना । अर्जुन ने दुर्योधन को याद दिलाया कि किस तरह अर्जुन ने दुर्योधन को गंदर्भों से बचाया था और दुर्योधन ने भविष्य में अर्जुन को जो वो मांगें वह देने का वडा किया था । दुर्योधन ने कहा कि ठीक है अगर तुम चाहो तो इंद्रप्रस्थ भी लेलो क्यूंकि वह ये बात जानता तह कि कल भीष्म पितामह सबको मार देंगे और इंद्रप्रस्थ उसके पास वापिस आ जायेगा ।

अर्जुन ने कहा कि वो पांच तीर मुझे दे दो । दुर्योधन हक्का बक्का रह गया और पूछने लगा कि उन तीरों के विषय में अर्जुन को किसने बताया तब अर्जुन ने कहा कि उनको तीरों के बारे में भगवान श्री कृष्ण ने बताया । अब तक दुर्योधन जान चुका था कि कृष्ण परम भगवान हैं इसलिए वह कुछ न कह सका ।

इसके बाद अगले दिन भीष्म पितामह बहुत ही खतरनाक तरीके से लड़े और भगवान इस बार हाथ में कोड़ा लिए भीष्म पितामह की और दौड़ पड़े लेकिन अर्जुन ने उन्हें रोक लिया । अर्जुन ने भीष्म पितामह से लड़ाई की और इस तरह नौवां दिन भी गुजर गया ।

अर्जुन ने भीष्म पितामह के लिए एक तीर से सिरहाना बनाया और एक ीर मारके गंगा जी को प्रकट किया

जब भीस्म पितामह ने देखा कि भगवान कृष्ण अर्जुन कि किस तरह रक्षा कर रहे हैं तब उनकी लड़ने की इच्छा खत्म हो गयी । नौवें दिन भगवान ने युधिष्ठिर को भीष्म पितामह के पास उनकी मृत्यु के बारे में जानने के लिए भेजा । भीष्म पितामह ने बताया कि शिखंडी अगर सामने आएगा तो वे उस पर तीर नहीं चलाएंगे क्यूंकि वह मूल रूप से एक स्त्री हैं ।

अर्जुन ने ऐसा ही किया और शिखंडी को सामने रखकर पीछे से तीर चलाये । भीष्म पितामह का शरीर तीरों से भर गया और फिर वे नीचे गिर गए । इस समय चन्द्रमा दक्षिणायन में था इसलिए सारे वसु दुखी हो गए क्यूंकि उत्तरायण में मरने के बाद व्यक्ति ऊपर के लोकों में जाता है । भीष्म ितामह ने वसुओं से कहा कि उनके पास इक्षा मृत्यु का वरदान है इसलिए उन्हें चिंता नहीं करनी चाहिए ।

इसके बाद अर्जुन ने भीष्म पितामह के लिए एक तीर से सिरहाना बनाया और एक ीर मारके गंगा जी को प्रकट किया ताकि भीष्म पितामह की प्यास भुझ सके । इसके बाद भीष्म पितामह ने दुर्योधन से कहा कि अब उसे महाभारत युद्ध रोक देना चाहिए और पांडवों को इंद्रप्रस्थ दे देना चाहिए । वह नहीं माना और वहां से भाग गया ।

रात के समय कर्ण भीष्म पितामह के पास आया और उन्होंने बताया कि कर्ण की मृत्य अर्जुन के हाथों ही होगी और यह बात कर्ण भी जानता है । कर्ण से भीष्म पितामह ने कर्ण से कहा कि वह पांडवों के पक्ष में हो जाए लेकिन उसने कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकता क्यूंकि वह अर्जुन से बहुत ही ज्यादा ईर्ष्या करता है ।

इसके बाद द्रोणाचार्य को सेनापति बनाया गया और दुर्योधन ने द्रोणाचार्य से कहा कि वे युधिष्ठिर महाराज को पकड़कर ले आएं । द्रोणाचार्य ने कहा कि अगर अर्जुन को दुर्योधन कहीं व्यस्त रखे तो वे ऐसा कर सकते हैं । पांडवों के गुप्तचर कौरव सेना में भी थे इसलिए उनको सारी बात पता चल गयी ।

दुर्योधन ने कर्ण से कहा कि वह इंद्र के अस्त्र से घटोत्कच को मार दें

इसके बाद युधिष्ठिर महाराज ने अर्जुन से कहा कि वे हमेसा युधिष्ठिर के साथ ही रहेंगे । इसके बाद उस सेना से पांडवों का युद्ध हुआ जो भगवान ने दुर्योधन को दी थी । एजुन ने उनपर एक ऐसा अस्त्र छोड़ा जिससे सेना मोहित हो गयी और उनको आस पास अर्जुन दिखने लगे और वे महाभारत युद्ध में आपस में ही लड़कर मर गए ।

दुर्योधन ने कर्ण से कहा कि वह इंद्र के अस्त्र से घटोत्कच को मार दें लेकिन कर्ण ने कहा कि इंद्र का दिया हुआ अस्त्र केवल एक ही बार इस्तेमाल किया जा सकता है और वह उससे अर्जुन को मारना चाहता है ।

दुर्योधन ने कहा कि अगर जिन्दा रहे तो अर्जुन से लड़ेंगे न क्यूंकि अगर अभी इंद्र ने वह अस्त्र घटोत्कच पर नहीं चलाया तो वह सारी सेना को अभी ख़त्म कर देगा । कर्ण ने घटोत्कच के ऊपर वह तीर चला दिया और घटोत्कच के प्राण निकल गए लेकिन घटोत्कच ने मरने से पहले अपना अकार बड़ा कर लिया और कौरवों की एक अक्षोहणी सेना को अपने शरीर से कुचल कर मार दिया ।

द्रोणाचार्य हर रोज 500 रथी, 6000 हाथी और १००००० घोड़ा चालक को द्रोणाचार्य रोज मार रहे थे । युद्धिष्ठिर महाराज ने भगवान् कृष्ण से पुछा कि द्रोणाचार्य को मारने का क्या तरीका है । भगवान् ने कहा कि इनको मारने का केवल एक ही तरीका है और वो यह है कि द्रौणाचार्य अपने हथियार को रख दें नहीं तो उनको नहीं मारा जा सकता ।

भगवान् श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर महाराज को एक कथा सुनाई

इसके बाद भगवान् कृष्ण ने कहा कि यह घोसना कर दो कि अस्वथामा की मृत्यु हो चुकी है । भगवान् ने महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीम ने कहा कि वहां पर एक हाथी है जिसका नाम अश्वत्थामा है उसको मार दो । भीम ने ऐसा ही किया और जोर जोर से चिल्लाने लगे कि अस्वथामा मारा गया ।

जब द्रोणाचार्य ने यह बात सुनी तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ क्यूंकि वे जानते थे कि अस्वथामा को भीम नहीं मार सकते । द्रोणाचार्य युधिष्ठिर महाराज के पास यह बात पूछने के लिए आ रहे थे तभी भगवान् ने युधिष्ठिर महराज से कहा कि उन्हें झूठ बोलना है कि अस्वथामा मारा गया है लेकिन वे नहीं माने ।

इसके बाद भगवान् श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर महाराज को एक कथा सुनाई । एक बार कौशिक ऋषि अपने आश्रम में तपस्या कर रहे थे । कुछ डाकू आकर कौशिक ऋषि के आश्रम में चुप गए और जब सैनकों ने आकर कौशिक ऋषि से पुछा कि डाको कहाँ हैं तब कौशिक ऋषि ने बता दिया और सैनिकों ने उन डाकुओं को मार दिया ।

नारायण अस्त्र महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीम को मारने ही वाला था लेकिन भगवान् ने तुरंत भीम का गाला पकड़कर उनका सर जमीन से लगा दिया

इस पाप के कारण कौशिक ऋषि को कई सालों तक नर्क में रहना पड़ा । यदुहैस्थिर महाराज नहीं माने और उन्होंने द्रोणाचार्य से कहा कि अस्वथामा मारा गया लेकिन बाद में यह भी बोल दिया कि वह एक हाथी था । भगवान् ने संख बजा दिया ताकि द्रोणाचार्य बाद वाली बात न सुन सकें । भगवान् की बात न मानने के कारण युधिष्ठिर का रथ जमीन पर आ गया नहीं तो अभी तक उनका रथ जमीन के ऊपर ही चला करता था ।

जब द्रौणाचार्य को पता चला कि उनका बीटा मारा गया तो उन्होंने भगवान् कृष्ण का ध्यान करके अपन प्राण त्याग दिए । इसके बाद धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य का गाला काट दिया । जब अश्वत्थामा को पता चला कि उसके पिता को झूठ बोलकर मारा गया है तो उसने क्रोध में आकर नारयण अस्त्र छोड़ दिया ।

भगवान् कृष्ण ने सारी पांडव सेना से कहा कि वे दंडवत कर दें तो सब ने प्रणाम किया लेकिन भीम ने नहीं किया । नारायण अस्त्र महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीम को मारने ही वाला था लेकिन भगवान् ने तुरंत भीम का गाला पकड़कर उनका सर जमीन से लगा दिया और नारायण अस्त्र सांत हुए ।

अस्वथामा को जबा पता चला कि पांडवों का कुछ नहीं हुआ तब वहां पर वेदव्यास ने उसे आकर समझाया कि वह नारायण अस्त्र को स्वयं नारायण पर चलने की गलती कर रहा है । कृष्ण और अर्जुन ही नर नारायण ऋषि हैं और इस समय वे अपने अदि रूप में आये हैं ।

इसके बाद शल्य ने कर्ण को याद दिलाया कि किस तरह मत्स्य देश में अर्जुन ने कर्ण को हराया था

इसके बाद महाभारत युद्ध का सोलवां दिन आया और दुर्योधन ने कर्ण को सेनापति बनाया । शल्य जो कर्ण के सतही थे वे अर्जुन की तारीफ किया करते थे और कर्ण को हतोस्ताहित किया करते थे । शल्य ने कर्ण को एक कहानी सुनाई कि एक समय एक व्यापारी था जो अपने बच्चों का बचा हुआ खाना एक कौवे को खिलाया करता था ।

एक दिन उस व्यापारी के बच्चू ने कौवे से कहा कि वह तो हंसों से बी ज्यादा बढ़िया है और यह सुनकर कौवा कुछ हंसों के साथ दौड़ लगाने चला गया । कौवा हंसों के साथ प्रतिस्पर्धा में में थक गया और समुद्र में गिर गया तब हंसों ने उसके प्राण बचाये ।

इसके बाद शल्य ने कर्ण को याद दिलाया कि किस तरह मत्स्य देश में अर्जुन ने कर्ण को हराया था । शल्य ने कहा कि कर्ण वही कौवा ही है । कर्ण ने कहा कि उसे जंगल में एक ब्राह्मण ने श्राप दिया था कि एक दिन उसके रथ का पहिया फस जायेगा और वह उसे निकाल नहीं पायेगा और वहीँ मारा जायेगा ।

कर्ण ने कहा कि वह ब्राह्मण का झूठा भेष बनाकर शिक्षा लेने गया था । जब परशुराम जी को पता चला कि कर्ण झूठा ब्राह्मण बनके आया है तब उन्होंने कर्ण को श्राप दिए कि जब उसको इस विद्या की सबसे ज्यादा अधिक जरूरत होगी वह उसे इस्तेमाल नहीं कर पायेगा ।

भीम को अपने बेटे के लिए दुःख था और क्यूंकि कर्ण ने उसे मारा था इसलिए भीम ने कर्ण के बेटे भानुसेन को मार दिया । कर्ण ने युधिष्ठिर महराज पर हमला कर दिया और युधिष्ठिर महराज घयल होकर भाग गए । जब अर्जुन को पता चला तो वे युधिष्ठिर महराज के पास गए ।

दुर्योधन ने दुशासन को भीम से लड़ने भेजा

युधष्ठिर महाराज ने कहा कि अर्जुन को गांडीव फेक देना चाहिए क्यूंकि वे युधिष्ठिर महाराज की रक्षा नहीं कर पाए । अर्जुन ने कहा कि उन्होंने प्रतिज्ञा ली थी कि अगर कोई उनसे गांडीव रखने को कहेगा तो वे उसे मार देंगे । भगवान् ने अर्जुन से कहा कि कटु वचन सुनना मृत्यु के सामान है इलसिए अर्जुन युधिष्ठिर महराज को कटु सब्द सुना दें ।
अर्जुन ने युधिष्ठिर महराज की घनघोर निंदा की कि उन्हीं की वजह से पांडवों को वनवास जाना पड़ा । अर्जुन ने सोचा कि बड़े भाई की निंदा की है इसलिए उन्हें मर जाना चाहिए । बहगवां ने बताया कि खुद की तारीफ करना मृत्यु के सामान है इसलिए तुम अपनी तारीफ कर लो और अर्जुन ने ऐसा ही किया ।

इसके बाद अर्जुन ने बड़े भाई से क्षमा मांगी और अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली कि आज वो या तो कर्ण को मार देंगे या खुद मर जायेंगे । उधर भीम एक साथ धृतराष्ट्र के बीस चालीस पुत्रों को एक सात मारे जा रहे थे ।

इसके बाद दुर्योधन ने दुशासन को भीम से लड़ने भेजा और महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीम ने उसको अपना सर मारने जमीन पर पटक दिया और उसके हाथ मरोड़ कर उखाड़ कर फेक दिए । इसके बाद उसकी छाती फाड़ कर चिल्ला दिए जिससे उसका सारा खून सूख गया । मध्वाचार्य जी ने बताया है कि भीम ने किस तरह दुशासन का खून पिया था और असल में उन्होंने उसका खून सूखा दिए था ।

कर्ण ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया

इसके बाद दुर्योधन के बचे हुए 20 भाई और वहां पर आ गए और भीम ने एक साथ बीसों को मार दिया । इसके बाद अर्जुन ने कर्ण के ऊपर हमला किया और कर्ण के साथ घमासान युद्ध किया । दोनों की लड़ाई इतनी ज्यादा भीषण थी कि सब वहीँ लड़ाई देख रहे थे । कर्ण ने अर्जुन का रथ तोड़ने के लिए रथ पर तीर मारा लेकिन उनका रथ केवल २ फुट पीछे गया और जब अर्जुन ने मारा तो कर्ण का रथ १० फुट पीछे हो गया ।

इसके बाद कर्ण के तीर पर अस्वसेन सर्प बैठ गया तो भगवान् ने रथ के घोड़ों को जमीन पर बैठा दिया और वह तीर अर्जुन के सर पर न लगके मुकुट पर जाके लगा । इसके बाद अस्वसेन ने अर्जुन को मारने के लिए छलांग मारी लेकिन अर्जुन ने एक तेर मांगकर उसे मार दिए।

कुछ समय बाद कर्ण के रथ का पहिया फस गया और कर्ण वहां से भागने लगा और कहने लगा कि महाभारत युद्ध के नियम के अनुसार उसपर तीर नहीं चलाना चाहिए । अर्जुन ने बात मान ली लेकिन भगवान् ने कर्ण को याद दिलाया कि उसने जीवन भर कभी नियम का पालन नहीं किया और आज संकट के समय ज्ञान की बातें कर रहा है ।

कर्ण ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया लेकिन अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़कर उसे निष्फल कर दिया और एक और एक और तीर छोड़कर कर्ण को मार दिया । इसके बाद दुर्योधन का मन पूरी तरह से निराश हो गया और उसने शल्य को सेनापति बनाया । इसके बाद कृपाचार्य ने बतया कि अब युधिष्ठिर को हार मान लेनी चाहिए लेकिन युधिष्ठिर ने कहा कि वह नहीं मानेगा ।

दुर्योधन को लगा कि वह नहीं जीत पायेगा

अब महारभारत केमहाभारत युद्ध का आखिरी दिन यानि दिन 19 आया । शकुनि ने कहा कि सहदेव को पता है कि कौन सा यज्ञ करने से युध्हन में जीत होती है । दुर्योधन ने आकर पुछा और सहदेव ने बता दिया कि महाकाल यज्ञ करने से जीत होती है और इसे अमावस्या के दिन करना होता है ।

भगवान् को सब पता ही होता है इसलिए उन्होंने उसी दिन अमावस्या को ला दिया और पांडवों द्वारा महाकाल यज्ञ करवा दिया । जब शकुनि को पता चला तो वह क्रोध में आकर अगले दिन सहदेव से लड़ने आया और उन्होंने शकुनि को मार दिया ।

अब दुर्योधन को लगा कि वह नहीं जीत पायेगा और तभी गांधारी ने दुर्योधन को बुआलया और कहा कि सुबह सुबह बिना कपडे पहने आए जाना । बीच में भगवान् श्री कृष्ण आये उन्होंने कहा कि अपनी माता के पास बिना कपड़ों के कौन जाट अहइ भाई । दुर्योधन ने भगवान् की बात मानकर एक केले का पत्ता अपने शरीर पर लपेड़ लिया और गांधारी के पास गया ।

जब दुर्योधन को लगा कि आज तो भगवान् ने उसकी मदद कर दी । गांधारी ने अपनी आँखों की पट्टी खोली और जैसे ही दुर्योधन को देखा तो उसका पूरा शरीर बज्र का हो गया लेकिन उसकी जंघा बज्र की नहीं हुयी क्यूंकि उसने वहां केले का पाटा ओढ़ रखा था ।

इसके बाद दुर्योधन द्वैपायन नाम के एक सरोवर में जाकर छिप गया और जैसे ही पांडवों को पता चला तो वे उसके पास आ गए और उसे युद्ध के लिए ललकारा । दुर्योधन ने कहा कि वह सबसे एक एक करके लड़ेगा और युधिष्ठिर महाराज ने कहा कि दुर्योधन किसी एक को चुन ले और अगर उसने किसी के को भी हरा दिया तो वे उसे इंद्रप्रस्थ दे देंगे और खुद वनवास के लिए चले जायेंगे ।

इससे पहले कि दुर्योधन नकुल को चुनता भगवान् ने उसकी बुद्धि घुमा दी

इससे पहले कि दुर्योधन नकुल को चुनता भगवान् ने उसकी बुद्धि घुमा दी और उसने युद्ध के लिए भीम को चुना । भीम कितना भी मारें लेकिन युधिष्ठिर को कोई असर ही नहीं पड़ रहा है । यह युद्ध बलराम जी भी देख रहे थे क्यूंकि इस समय तक वे अपनी तीर्थ यात्रा पूरी करके वापिस आ चुके थे ।

भगवान ने युधिष्ठिर महाराज से कहा कि वे भीम को उसकी प्रतिज्ञा याद दिलाएं लेकिन युधिष्ठिर ने कहा कि यह तो अनुचित होगा । तब भगवान ने स्वयं ही महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीम को याद दिलाया और भीम की समझ में आ गया । असल में जीब को कुछ भी याद रहना और भूलना भगवान श्री कृष्ण की इच्छा से ही होता है जो भगवान ने श्रीमद्भगवद्गीता में भी कहा है ।

इसी तरह भगवान कर्ण को भुला दिया करते थे कि आज वह इंद्र का अस्त्र इस्तेमाल करके अर्जुन को मारने आया है । कर्ण रोज निश्चय करके आता था कि आज वो अर्जुन को मार देगा लेकिन भगवान उसे भुला दिया करते थे । आखिर में वह इंद्र का अस्त्र कर्ण ने घटोत्कच पर चला दिया और तब जाकर ही भगवान अर्जुन का रथ कर्ण के सामने लेकर आये । इससे पहले वे अर्जुन के रथ को कर्ण के सामने कभी आने ही नहीं देते थे ।

भीम ने जैसे ही दुर्योधन की जंघा पर मारा और वह नीचे गिर गया लेकिन वहीँ बलराम जी ने कहा कि यह महाभारत युद्ध के नियम के खिलाफ है । भगवान ने बलराम जी को युधिष्ठिर के सारे बुरे कर्म याद दिलाये और वे मान गए । इसके बाद

धृतराष्ट्र को पता ही था की भीम ने उनके पुत्रों को किस तरह बेदर्दी से महाभारत युद्ध भूमि में मारा है

इसके बाद हस्तिनापुर में बिदुर धृतराष्ट्र को समझा रहे थे कि अब उन्हें वानप्रस्थ जीवन में प्रवेश करना चाहिए । युद्ध जीतने के बाद पांडव धृतराष्ट्र से मिलने के लिए आये । सबसे पहले युधिष्ठिर महाराज ने धृतराष्ट्र के पैर छुए और फिर बारी आयी भीम की ।

इसके बाद भगवान ने भीम को रोक लिया और भीम की जगह पर एक लोहे का पुतला रख दिया । धृतराष्ट्र को पता ही था की भीम ने उनके पुत्रों को किस तरह बेदर्दी से महाभारत युद्ध भूमि में मारा है इसलिए क्रोधन में आकर धृतराष्ट्र ने पुतले को कुचल दिया । इसके बाद धृतराष्ट्र रोने लगे कि उन्होंने क्रोधन में आकर भीम को मार दिया लेकिन भगवान ने उनको शांत करते हुए कहा कि उन्होंने लोहे के पुटले को मारा है ।

इसके बाद गांधारी आयीं और भीम से कहा कि युमने मेरे पुत्रों को क्यों मारा तब महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीम ने कहा कि वो राण भूमि में आये थे इसलिए उन्हें मारना पड़ा । भीम ने कहा कि जब उसके पुत्र द्रोपदी का अपमान कर रहे थे तब आप भी तो वहीँ थीं तब तो आपने कुछ नहीं किया ।

इसके बाद गांधारी युद्ध भूमि पर गयीं और अपने पुत्रों को देखा । धृतराष्ट्र ने पुछा कि वहां पर कितने लोग मरे हैं तब युधिष्ठिर महराज ने बताया कि एक सौ छयासठ करोड़ बीस हजार लोग मरे हैं और चौबीस हजार एक सौ पेंसठ वहां से भाग गए ।

गांधारी को छोड़कर सारे लोग वहां से चले गए और रात होते ही गांधारी को भूख लगी ।

आगे की कहानी पड़ने के लिए आगे क्लिक करें – अश्वत्थामा ने सोते वक्त द्रोपदी के पुत्रों को क्यों मारा ?

इसके बाद गांधारी आयीं और भीम से कहा कि युमने मेरे पुत्रों को क्यों मारा तब भीम ने कहा कि वो राण भूमि में आये थे इसलिए उन्हें मारना पड़ा । भीम ने कहा कि जब उसके पुत्र द्रोपदी का अपमान कर रहे थे तब आप भी तो वहीँ थीं तब तो आपने कुछ नहीं किया ।

इसके बाद गांधारी महाभारत युद्ध भूमि पर गयीं और अपने पुत्रों को देखा । धृतराष्ट्र ने पुछा कि वहां पर कितने लोग मरे हैं तब युधिष्ठिर महराज ने बताया कि एक सौ छयासठ करोड़ बीस हजार लोग मरे हैं और चौबीस हजार एक सौ पेंसठ वहां से भाग गए ।

गांधारी को छोड़कर सारे लोग वहां से चले गए और रात होते ही गांधारी को भूख लगी । गांधारी को पेड़ पर एक आम लगा दिखा । गांधारी ने अपने सारे बेटों की लाशों का ढेर लगा लिया और उनके ऊपर चढ़ कर आम तोड़ लिया ।

उसी समय भगवान कृष्ण आये और उन्होंने बताया की गांधारी दुर्योधन की लाश पर बैठकर ही आम खा रही थीं । इसके बाद गांधारी का मोह टूटा और उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ ।

सारे पांडव और बहुत सारे संत भीष्म पितामह के पास दिव्य ज्ञान लेने गए

इसके बाद सबसे अग्नि संस्कार करने की बात आयी और जब कर्ण का संस्कार होने लगा तो कुंती महारानी रोने लगीं और तब युधिष्ठिर को पता चला कि कर्ण उनका सबसे बड़ा भाई था । कुंती महारानी ने कहा कि उन्होंने पांडवों से यह रहस्य जीवन भर छिपाया कि कर्ण उनका बड़ा भाई था ।

युधिष्ठिर महाराज को बड़ा दुःख हुआ और उन्होंने श्राप दिया कि आज के बाद स्त्रियां कभी भी कोई रहस्य नहीं रख पाएंगी । इसके बाद युधिष्ठिर महाराज ने कहा कि इतने लोगों को मारने के बाद वो राज्य नहीं करना कहते और दोबारा जंगल जायेंगे ।

सभी ने युधिष्ठिर महराज कको समझाया कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए और यहाँ तक कि वेद व्यास जी ने उन्हें आकर समझाया कि उन्हें राज्य करनका चाहिए और तबा जाकर वे राज्य करने के लिए राजी हुए ।

वहां पर युधिष्ठिर महराज कई ब्राह्मणो को दान दे रहे थे और उसी समय दुर्योधन का एक दोस्त राक्षस जो ब्राह्मण का रूप लेकर आया हुआ था लेकिन बाकी ब्राह्मणों ने उसे पहचान लिया और मन्त्र उच्चारण करके मार दिया ।

इसके बाद भगवान श्री कृष्ण अकेले में बैठे हुए थे और युधिष्ठिर महाराज उनके पास गए तब कृष्ण भगवान ने कहा कि वे महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह के बार में सोच रहे हैं । हगवां ने कहा कि युधिष्ठिर को भीम पितामह के पास जाकर उनसे शिक्षा लेनी चाहिए ।

युधिष्ठिर महराज को ज्ञान दिया कि राजा के लिए सबसे जरूरी है कि वह अपनी इन्द्रियों को वश में करे

सारे पांडव और बहुत सारे संत भीष्म पितामह के पास दिव्य ज्ञान लेने गए थे । सबसे पहले महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह ने भगवान श्री कृष्ण के दर्शन किये और उनको प्रणाम किया और कहा कि वे एक बार उन्हें अपना विश्व रूप दिखा दें । भगवान ने उन्हें दिव्य दृष्टि दी और फिर वे भगवान का वहसिव रूप देख सके ।

इसके बाद भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर महराज को आगे बुलाया और भस्म पितामह ने युधिष्ठिर महराज को बताया कि उनको दुखी नहीं होना कहहिये क्यूंकि सब कुछ भगवान ने ही किया है । इसके बाद कृष्ण भगवान ने महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह से कहा कि अब से उन्हें भूख प्यास नहीं लगेगें और उन्हें कोई भी तकलीफ नहीं होगी ।

इसके बाद महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर महराज को ज्ञान दिया कि राजा के लिए सबसे जरूरी है कि वह अपनी इन्द्रियों को वश में करे । राजा को कभी निराश नहीं होना चाहिए भले ही वह हार जाए या कोई उसे धोखा दे दे । राजा को हमेसा सच का साथ देना चाहिए ।

राजा को हमेशा ना तो बहुत नरम होना चाहिए और ना ही ज्यादा गरम । राजा का व्यहवार अच्छा होना चाहिए और उसे कभी भी आलसी और ईर्ष्यालु लोगों को काम पर नहीं रखना चाहिए । जो राजा के मन्त्र होते हैं वे विश्वासपात्र होने चाहिए ताकि उसके खिलाफ षड्यंत्र ना हो ।

महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह ने एक कहानी सुनाई

इसके बाद बताया कि राजा को बहुत ज्यादा कर नहीं लेना चाहिए और उसे शास्त्र भी पड़ना चाहिए । इसके बाद महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह ने एक कहानी सुनाई । उन्होंने एक कहानी सुनाई कि एक व्यक्ति था जिसने बहुत पाप किये और वह मरने के बाद लोमड़ी बन गया और उसे बड़ा दुःख हुआ ।

वो फल खाया करता तह और व्रत रखा करता था इसलिए शेर ने उसको अपने साथ ले लिया और उससे सलाह लेने लग गया जिससे बाकी लोगों को लोमड़ी से ईर्ष्या होने लगी और उन्होंने लोमड़ी को बदनाम करने के लिए शेर का खाना लोमड़ी के यहाँ भिजवा दिया ।

शेर ने लोमड़ी को बुरा भला कहा । लोमड़ी ने शेर से कहा कि अब वह वहां नहीं रहेगी और वहां से चली गयी । इस कहानी का मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति सुधारना चाहता है तो वह गलत संगती में नहीं रहेगा ।

भीष्म पितामह ने बया कि जो व्यक्ति किसी के प्रति गलत सब्द बोलता है तो उसके पुण्य ख़त्म हो जाते हैं । महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह ने बताया कि पाप का स्रोत है लोभ । भीष्म पितामह ने बताया कि अहिंसा का मतलब है सब के सब जीवों के प्रति मैत्री का भाव रखना ।

महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह ने बताया कि व्यक्ति के कर्म ही हैं जो उसके दुःख के कारण हैं

संसार में दुःख का कारन क्या है पूछने पर महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह ने बताया कि व्यक्ति के कर्म ही हैं जो उसके दुःख के कारण हैं । एक बार एक बन्दर और लकड़भग्गे में बहु दोस्ती थी ।

भीष्म पितामह ने एक कहानी सुनाई । एक बार एक चांडाल ने ब्राह्मण के कपडे पहन लिए और उसने एक पंडित से एक मन्त्र सीख लिया जिसके कारण वह अगले जन्म में राजा बन गया ।

अगले जन्म में वह राजा उस पण्डित्त को देख कर हंस रहा तह क्यूंकि अगले जन्म में वह राजा का सेवक बन गया । राजा ने बताया कि उस पंडित ने एक अयोग्य व्यक्ति को शिक्षा दी थी इसलिए उसे एक दास बनना पड़ा ।

युधिष्ठिर महाराज राजा बने और भगवान कृष्ण द्वारका चले गए

उसने बताया कि जिस पंडित को तुमने पिछले जन्म में मन्त्र सिखाया था वह असल में चांडाल था जिसने ब्राह्मण का भेष बना रखा था । यहाँ कहानी सुना कर महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह ने कहा कि कभी किसी अयोग्य व्यक्ति को ज्ञान नहीं देना चाहिए ।

इसके बाद युधिष्ठिर महाराज राजा बने और भगवान कृष्ण द्वारका चले गए और युधिष्ठिर महराज ने दोबारा से राजसूय यज्ञ करवाया । सब राजाओं को जीतने के लिए गए और उसी समय अपने पुत्र बब्रुवाहन के पास लड़ने गए । बब्रुवाहन ने युद्ध किया और उसने अर्जुन को मार ही दिया ।

उलूपी ने एक मणि का इस्तेमाल किया जिसके कारण अर्जुन दोबारा से जिंदा हो गए । उलूपी ने बताया कि जब अर्जुन ने महाभारत युद्ध के शक्तिशाली योद्धा भीष्म पितामह को मारा था तब 8 वसु वह आये थे और उन्होंने अर्जुन को श्राप दिया था कि वह अपने ही बेटे के हाथों मरेंगे ।

धर्म को पाप मिला था जिसके कारण वे एक नेवला बन गए थे और वे अपने उद्धार के लिए पांडवों के राजसूय यज्ञ में आये और पांडवों ने उनका उद्धार किया । इसके बाद धृतराष्ट्र और गांधारी जंगल में चले गए और उनके साथ कुंती और पांडव भी चले गए ।

युधिष्ठिर महाराज ने 36 साल राज और किया

पीछे युयुत्सु और धौम्य ऋषि बच गए । इसके बाद गांधारी, धृतराष्ट्र और कुंती वहीँ वन में रुक गए और एक दिन वहां यज्ञ की अग्नि से आग लग गयी और मर गए । व्यास देव ने बताया वो ऊँचे धाम को प्राप्त हुए ।

युधिष्ठिर महाराज ने 36 साल राज और किया और उसके बाद द्वारका गए तब तक भगवान श्री कृष्ण अपनी लीला समाम्प्त कर चुके थे । द्वारका को प्रणाम करके युधिष्ठिर महाराज सभी पांडवों के साथ स्वर्ग की और बढ़ गए । सबसे पहले द्रोपदी गिर पड़ीं और युधिष्ठिर महाराज ने कहा कि द्रोपदी का विवाह पाँचों से हुआ था लेकिन वे अर्जुन के प्रति ज्यादा आकृष्ट थीं और इसी पक्षपात के कारण उनका पतन हो गया ।

कुछ समय बाद सहदेव गिर गए और युधिष्ठिर महाराज ने बताया कि उसे अपनी बुद्धि पर घमंड था इसलिए उनका पतन हो गया । इसके बाद नकुल गिर गए और युधिष्ठिर महराज ने बताया कि वे खूबसूरत थे और उन्हें इस बात का घमंड था इसलिए उनका पतन हुआ।

इसके बाद अर्जुन गिर गए और युधिष्ठिर ने बताया कि अर्जुन को अपने dhanurdhar ओने पर घमंड था इसलिए उनका पता हो गया। इसके बाद भीम गिर गए क्यूंकि उन्हें भी अपने bal का घमंड था इसलिए उनका भी पतन हो गया।

अंत में केवल युधिष्ठिर महराज और एक कुत्ता उनके साथ स्वर्ग पहुंचा

अंत में केवल युधिष्ठिर महराज और एक कुत्ता उनके साथ स्वर्ग पहुंचा । इंद्र ने उनका स्वर्ग में स्वागत किया और कहा कि यहाँ कुत्ता नहीं आ सकता । युधिष्ठिर महाराज ने कहा कि वो कुत्ता उनकी शरण में है इसलिए उसके बिना वे नहीं जायेंगे। फि वह कुत्ता यमराज में बदल गया और उन्होंने कहा कि वे युधिष्ठिर की परीक्षा ले रहे थे ।

इसके बाद युधिष्ठिर महाराज ने देखा कि युधिष्ठिर और उसके भाई स्वर्ग में हैं तब उनको बताया गया कि ye सब महाभारत युद्ध में मरे थे इसलिए उनको स्वर्ग मिला । इसके बाद युधिष्ठिर महराज ने कहा कि उनके भाई कहाँ हैं तब इंद्र ने एक सेवक के साथ युधिष्ठिर महराज को नर्क में भेजा जहाँ उनके भाई थे । युधिष्ठिर महाराज ने कहा कि वे भी अपने भाईओं को छोड़कर नहीं जायेंगे तभी वहां इंद्र आये और बताया कि यह तो भ्रम था और उनके भाई ऊंचे लोकों में हैं ।

इन्द्र ने बताया कि भगवान की बात एक बार युधिष्ठिर महराज ने नहीं मानी थी जब उन्होंने कहा था कि वो द्रोणाचार्य से कहें कि अस्वथामा मारा गया । इस कारण की वजह से युधिष्ठिर महराज को नर्क के दर्शन करने पड़े एक बार।

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