महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले दुर्योधन ने क्या किया
महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले दुर्योधन ने क्या किया? युद्ध शुरू होने से पहले दुर्योधन ने पांडवों को एक खत भेजा । इसके पहले, एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र की भूमि पर युद्ध करने का निश्चय किया गया । पांडवों ने अपने शिविर लगा लिए और भगवान के सारथी सात्यकि ने उनकी इस काम में मदद की । जब पांडवों ने शिविर लगाकर अपने संख बजाये तो कौरवों ने भी अपने शिविर लगवा लिए । दुर्योधन ने पत्र में एक कहानी भी लिखकर भेजी । कहानी थी एक बिल्ली की जो चूहे खाया करती थी लेकिन एक दिन वह संत बन गयी और एक टांग पर खड़ी होकर तपस्या करने लगी ।
यह भाग 32 है, आप आगे क्लिक करके भाग 31 पढ़ सकते हैं – भगवान श्री कृष्ण स्वयं ही शान्ति दूत बनकर आए
उसकी तपस्या देखने चूहे उसके पास आ जाया करते थे । बिल्ली ने कहा कि जब वह नदी में जाएगी तो उसे 4 चूहे अपने ऊपर बैठा कर ले जाया करें क्यूंकि अब वह कमजोर हो गयी है । जैसे ही 4 चूहे बिल्ली को नदी लेकर जाते थे बिल्ली उन्हें खा जाया करती थी । जब चूहों को पता चला कि उनकी आबादी कम हो रही है तब उन्होंने एक जासूस लगाया और पता चला कि बिल्ली नदी जाकर चूहों को खा जाया करती है ।
दुर्योधन ने खत में लिखा था कि युधिष्ठिर महाराज उस बिल्ली की तरह हैं जो बहार से दिखते हैं कि वो क्षमावान हैं लेकिन युद्ध कर रहे हैं । युद्ध में काफी लोग मरे जायेंगे इसलिए युधिष्ठिर महाराज को समर्पण कर देना चाहिए क्यूंकि उन लोगों की मृत्यु का कारण युधिष्ठिर महाराज ही होंगे ।
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इसके साथ दुर्योधन ने यह भी लिखा था कि वह एक हजार अर्जुन और एक हजार कृष्ण को भी मार सकता है एक की तो बात ही क्या । जब उलूक ने यह सन्देश पढ़कर सुनाया तो सब हंसने लगे और भीम ने क्रोध में आकर उलूक को अपनी गधा दिखाई और कहा कि वे इसी गधा से दुर्योधन की जंघा तोड़ेंगे । और कहा कि दुशासन का तो भीम खून पिएंगे ।
भीम ने कहा कि दुर्योधन को बताना कि यह युद्ध तो एक यज्ञ है । इस यज्ञ में पुरोहित हैं भगवान् श्री कृष्ण, जो आहुति डाली जाएगी वो होगी क्षत्रियों का खून और इस यज्ञ का समापन होगा दुर्योधन की मृत्यु से । और जब भीम दुशासन का खून पिएंगे तब ऐसा होगा जैसे देवताओं ने यज्ञ के बाद सोमरस पिया था । सहदेव ने कहा कि उलूक को और उसके पिता शकुनि को वे मारेंगे ।
अर्जुन ने कहा कि वे बात चीत से जवाब नहीं देंगे रणभूमि में अपने शस्त्रों से देंगे लेकिन एक बात उस दुर्योधन को बता देना कि वे दुर्योधन की 11 अक्षोहणी सेना को अकेले ही मारेंगे । भगवान कृष्ण ने कहा कि दुर्योधन से कहना कि वे सारी कौरव सेना को एक क्षण में ही खा जायेंगे अगर उन्हें रणभूमि में क्रोध आ गया ।
यह सारी बात उलूक ने जाकर दुर्योधन को बता दी । दुर्योधन सबसे पहले भीष्म पितामह के पास गया और कहने लगा कि आप पूरी शक्ति से लड़ना । भीष्म पितामह ने कहा कि वे लड़ेंगे लेकिन वे अर्जुन को नहीं हरा पाएंगे । अर्जुन के पास अग्नि का दिया हुआ रथ है, गांडीव धनुष है और चित्ररथ का दिया हुआ तूणीर है जिसमे बाण कभी खत्म नहीं होते ।
अर्जुन के पास पाशुपास्त्र अस्त्र है जो उसे शिव जी ने दिया है । अर्जुन के पास जो भी अस्त्र शस्त्र हैं वो कभी खत्म नहीं होते भले ही ही वो उसे कितनी बार भी इस्तेमाल कर ले । भीष्म पितामह ने कहा कि हमारे पास जो अस्त्र शास्त्र हैं वो एक बार इस्तेमाल करने पर खत्म हो जायेंगे और यहाँ तक कि जो अस्त्र इंद्र ने कर्ण को दिया था वो भी कर्ण केवल एक बार ही इस्तेमाल करसकता है उसके बाद वह वापिस इंद्र के पास चला जायेगा । भीष्म पितामह ने बताया कि अब तो पांडवों के पास तपोबल भी है ।
इसके बाद भीष्म पितामह ने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि अर्जुन के साथ भगवान श्री कृष्ण हैं इसलिए सैकड़ों भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य मिलकर भी अर्जुन को हरा नहीं सकते । भीष्म पितामह ने कहा कि भले ही उन्होंने परशुराम को हराया हुआ है लेकिन अर्जुन को कोई नहीं हरा सकता क्यूंकि वे नर और नारायण में से नर ऋषि हैं ।
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कुंती महारानी ने कर्ण को समझाने की कोशिस की
इसके बाद कुंती महारानी ने जाकर कर्ण को समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माना । कर्ण ने कहा कि वह बाकी चार पांडवों को वह कुछ नहीं करेगा लेकिन वह अर्जुन के साथ अपनी पूरी दम के साथ लड़ेगा । कर्ण ने कहा कि कुंती महारानी से कहा कि आप चिंता न करें क्यूंकि जीत तो पांडवों की ही होनी है क्यूंकि उनकी तरफ स्वयं परम भगवान कृष्ण हैं ।
कर्ण ने कहा कि वह बहुत सारे अपशगुन देख रहा है जो बताते हैं कि कौरवों की हार होगी । कर्ण ने बताया कि उसकी तरफ के सारे घोड़े और हाथी हमेशा रोते रहते हैं और उनकी सेना के हथियारों का तेज और ओज अब चला गया है । एक पाँव पर खड़े होकर पक्षी वहां पर रो रहे हैं । कर्ण को सपने मे कौरवों के रथ ऊंटों द्वारा चलते हुए दिखते हैं ।
यह सारी बात संजय ने धृतराष्ट्र को बताई ।
जब यह बात दुर्योधन को पता चली तो उसे बड़ा दुःख हुआ क्यूंकि वह सोचता था कर्ण ही उसे युद्ध जितवा सकता है लेकिन वह तो पहले ही कह रहा है कि जीत पांडवों की होने वाली है । इसके साथ उसे इस बात की खुसी भी थी कि कर्ण यह जानते हुए भी कि वह पांडवों का बड़ा भाई है दुर्योधन की और से लड़ रहा है ।
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