महाभारत का विराट युद्ध अर्जुन ने अकेले ही कौरवों को हरा दिया

विराट युद्ध के बारे मे कहा जाता है कि इस युद्ध मे अर्जुन ने अकेले ही सारे कौरवों को हरा दिया था । दरसल जब पांडव अपने अज्ञातवास मे थे तब वे मत्स्य राज मे भेस बदलकर रह रहे थे तभी कौरवों ने मत्स्य देश के राजा विराट पर आक्रमण कर दिया ।

दुर्योधन को पता था कि अगर अज्ञातवास मे कौरव पांडवों को खोज लेते हैं तो पांडवों को दोबारा से 12 वर्ष के लिए वनवास और 1 वर्ष के लिए अज्ञातवास के लिए जाना पड़ेगा । कौरवों ने अपने साथ राजा सुशर्मा को भी ले लिया ।

सुशर्मा ने राजा विराट को हरा दिया

सुशर्मा का रुझान मत्स्य देश के राजा विराट की 60,000 गाय के उपर था । सुशर्मा ने दुर्योधन को सुझाया कि इस वक्त मत्स्य देश का सेनापति वहाँ मौजूद नहीं है इसलिए हम राजा विराट को हराकर वो 60,000 गाय ले आते हैं ।

जब राजा विराट को पता चला कि सारे कौरवों ने एक साथ मत्स्य देश पर हमला किया है तो वो डर गए । राजा विराट ने पांडवों को भी अपने साथ ले लिया और युद्ध के लिए आगे बड़े । अर्जुन बृहन्नला के रूप मे भेष बदलकर रह रहे थे । वो राजा विराट के यहाँ नृत्य सिखाते थे और एक नपुंसक के भेष मे सबकी नजरों से बचे हुए थे ।

राजा विराट ने बाकी पांडवों के साथ बृहन्नला को साथ नहीं लिया क्योंकि उन्होंने सोचा कि एक नपुंसक युद्ध मे क्या ही मदद करेगा । उधर दुर्योधन ने सुशर्मा की बात मान ली और सुशर्मा ने सबसे पहले राजा विराट पर आक्रमण किया । सुशर्मा ने बड़ी ही आसानी से राजा विराट का रथ तोड़ दिया, सारथी को मार दिया और विराट को हरा दिया ।

सुशर्मा ने कहा कि अब वो सारी गाय लेकर जायेगा लेकिन महाराज युधिष्ठिर ने सुशर्मा को युद्ध के लिए ललकारा । सबसे पहले भीम ने सुशर्मा के उपर हमला किया और बड़ी ही आसानी से उसे जमीन पर पटक पटक कर मारा । उसके बाद युधिष्ठिर महाराज और नकुल सहदेव ने भी हमला किया । नकुल सहदेव इतनी कुशलता के साथ तलवार से युद्ध लड़ रहे थे कि एक समय के लिए सुशर्मा को लगा कि ये नकुल सहदेव ही हैं ।

लेकिन सुशर्मा का लक्ष्य पांडवों के अज्ञातवाश को तोड़ना नहीं वल्कि गाय ले जाना था इसलिए वह लड़ता रहा और आखिर मे हार गया । उधर विराट के पुत्र उत्तर को पता चला कि कौरवों की सारी सेना ने मत्स्य देश पर पीछे की तरफ से हमला कर दिया है । उत्तर को लड़ना भिड़ना नहीं आता था इसलिए उसने बहाना बनाया कि उसके पास सारथी नहीं है इसलिए वो लड़ने नहीं जा रहा ।

बृहन्नला के रूप मे छिपे अर्जुन ने सारे कौरवों को युद्ध मे हरा दिया

तब बृहन्नला ने बताया कि वो रथ चला लेती हैं । उत्तर के पास कुछ और बहाना नहीं बचा इसलिए उत्तर ने बिना मन के ही कौरव सेना की और प्रस्थान किया । जब उत्तर ने कौरवों को देखा तो उसने अपना राज पाट छोड़कर भागना शुरू कर दिया । अर्जुन ने उसे पकड़कर रथ पर बैठाया । उत्तर ने कहा कि उनको गाय ले जाने दो, राज्य भी ले जाने दो लेकिन वह उनसे नहीं लड़ने वाला ।

तब बृहन्नला ने कवच पहना और उत्तर को एक वृक्ष के पास ले गयी और उससे कहा कि वहाँ कुछ अस्त्र शस्त्र होंगे वो ले आओ । बृहन्नला ने बताया कि वो ही अर्जुन हैं और वे सब को संभाल लेंगे । तब उत्तर ने रथ चलाना शुरू किया और अर्जुन ने उत्तर को उनके अर्जुन होने का प्रमाण देने के लिए कुछ नमूने दिखाये । जैसे ही अर्जुन ने एक बार अपना देवदत्त संख बजाया तो उत्तर घबरा गए और दूसरी बार रथ के नीचे ही गिर गए । ।

संख की आवाज सुनकर घोड़े अपने घुटनो पर आ गए । भीष्म पितामह ने समझ लिया कि नपुंषक के भेष मे सामने वाला व्यक्ति अर्जुन ही है । भीष्म पितामह ने कहा कि उन्हे युद्ध नहीं लड़ना चाहिए क्योंकि वो सब अब हारने वाले हैं ।

दुर्योधन ने भीष्म पितामह की बात नहीं मानी और कर्ण के बहकावे मे आ गया । कर्ण हमेशा डींगे मारा करता था कि वो अर्जुन को अकेले ही हरा देगा लेकिन कभी भी अर्जुन के सामने टिक नहीं पाता था । कृपाचार्य और अस्वथामा ने दुर्योधन को समझाया कि कर्ण के बहकावे मे ना आए ।

तब दुर्योधन ने भीष्म पितामह से पूछा कि पांडवों के अज्ञातवाश का कितना समय बाकी है । भीष्म पितामह ने बताया कि उनका अज्ञातवाश अब पूरा हो गया है और कौरवों के पास युद्ध लड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है ।

अब इस समय एक तरफ अर्जुन और दूसरी तरफ सारी कौरव सेना थी । अर्जुन ने सबसे पहले अपने गुरुजनो को और भीष्म पितामह को प्रणाम किया । इसके बाद अर्जुन ने अपना रथ भगाना शुरू किया और दुर्योधन का पीछा शुरू कर दिया । दुर्योधन चोरी चोरी 60,000 गाय लेकर भाग रहा था । अर्जुन का पीछा कर्ण ने सबसे पहले किया और अर्जुन ने सबसे पहले ही तीर से कर्ण का कान छेद दिया ।

इसके बाद कर्ण का धनुष तोड़ दिया, सारथी को मार दिया और कर्ण अपने प्राण बचाकर भाग गया । जब दुर्योधन ने कर्ण का हाल देखा तो वो डर गया लेकिन भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के करण युद्ध से नहीं भगा । इसके बाद दुशासन और उसके भाई युद्ध लड़ने आए । अर्जुन ने एक ही तीर मारा जो बहुत सारे तीरों मे बदल गया और दुशासन सहित उसके सारे भाई निहत्ते हो गए, उनके शरीर पर घाव लग गए और वो भी अपने प्राण बचाकर वहाँ से भाग गए ।

इसके वाद कृपाचार्य अर्जुन से युद्ध करने के लिए आए । अर्जुन ने बड़ी ही आसानी से कृपाचार्य को हरा दिया । कृपाचार्य का धनुष तोड़ा, उनका रथ तोड़ा और उनका कवच तोड़कर उन्हें नीचे गिरा दिया । अर्जुन ने तीर मारकर कृपाचार्य के लिए एक बैठक बना दी और कृपाचार्य को एक और तीर मारकर उसपर बैठा दिया ।

इसके बाद अश्वत्थामा ने अर्जुन के उपर हमला किया और अर्जुन ने उसे भी हर हरा दिया । इसके बाद द्रोणाचार्य आए और उन्होंने अर्जुन के उपर तीर चलाना शुरू कर दिया । अर्जुन ने पहले 20 तीर तो अपने गुरु के सम्मान मे झेल लिए, उसके बाद अर्जुन ने द्रोणाचार्य के सारे तीर काट दिए और उनका धनुष तोड़कर उन्हे हरा दिया ।

इसके बाद भीष्म पितामह आए और दोनो के बीच इतना घमशान युद्ध हुआ कि देवता भी इसे देख रहे थे । कई बार अर्जुन ने भीष्म पितामह के अस्त्र काटे और कई बार भीष्म पितामह ने अर्जुन के तीर काट दिये । युद्ध टक्कर का था लेकिन अंत मे अर्जुन ने भीष्म पितामह को हरा दिया । यह देखकर दुर्योधन भागने लगा पर अर्जुन ने उसे भागने से रोका । दुर्योधन लड़ने लगा और कुछ ही पलों मे अर्जुन से हार गया । इसके बाद सारे कौरवों ने एक साथ अर्जुन से युद्ध किया ।

अर्जुन ने संमोहन अस्त्र छोड़ा और उत्तर से सबके कपड़े उतरवा लिए । इसके बाद कौरव युद्ध लड़ने के लायक नहीं बचे और वहाँ से भाग गए ।

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