मानव जीवन का लक्ष्य समझने के लिए आपको कुछ बातें लालच के बारें में जननी चाहिए क्यूंकि लालच ही वह बला है जो हमें जीवन की सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त करने से रोकती है । मनुष्य चाहे कितना ही कमा ले लकिन वह खता रोटी ही है, ऐसा नहीं है कि वह सोना कमायेगा तो सोने के बिस्कुट ( biscuit ) खा सकता है । भले ही वह कितना सोना कमा ले लेकिन खायेगा रोटी ही । लेकिन लालच एक ऐसी बीमारी है जिसके चलते व्यक्ति सोना कमाने में रूचि रखता है । लालची व्यक्ति अपने आप के लिए ही समय नहीं दे पाता तो भगवान के लिए फिर कहाँ से समय दे पायेगा ।
खुद लालच करना तो बुरा मन ही गया है लेकिन लालची लोगों के साथ रहना उससे भी खतनाक हो सकता है । लालची व्यक्ति अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता है, इसलिए लोभी व्यक्ति से हमेशा सतर्क रहना चाहिए ।लालची व्यक्ति कभी भी तृप्त नहीं होता और हमेशा अधिक से अधिक धन बटोरने के लिए प्रयास करता रहता है । वैसे तो हर इंसान ही लालची होता है लेकिन कुछ लोग सामान्य रुप से अधिक लोभी होते हैं ।
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अगर हम एक बोरी चावल घर के बाहर रख दें और एक कौवा उसे देख ले तो वह उतना ही चावल खायेगा जितनी उसे भूख होगी । उसके बाद यदि वहां पर एक कबूतर आएगा तो वह भी अपनी भूख के हिसाब से चावल खायेगा और उड़ जायेगा । परन्तु यदि एक इंसान को वह चावल की बोरी पड़ी हुयी मिल जाये तो वह पूरी बोरी तुरंत ही अपने घर ले जायेगा और किसी को कुछ नहीं मिल पायेगा ।
इसी को कहते हैं लालच । लोभी मित्रों से दूर रहने का आचार्य चाणक्य का मत सही ही है क्यूंकि लोभी व्यक्ति व्यापार में आपसे दगा ( fraud ) करेगा, आपके करियर ( career ) में अपना स्वार्थ ढूंढेगा और यहाँ तक कि अपने फायदे के लिए आपका धन भी हड़प लेगा । लोभी व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं हो सकता, एक लोभी व्यक्ति के पास भले ही 1 करोड़ रुपये क्यों न हों लेकिन वह और धन कमाने के लिए दिन रात मेहनत करेगा । वहीँ पर एक साधारण व्यक्ति जो महीने के बीस हजार रुपये भी कमाता है वह रात को चेन से सोयेगा और सुबह उठकर duty पर जायेगा ।
परन्तु यदि एक लोभी व्यक्ति को देखा जाये तो करोड़ रुपये का बैंक बैलेंस ( bank balance ) होने के बाद भी वह गधे की तरह काम करता रहेगा । वह न तो अपने परिवार के लिए समय दे पाएगा और न ही अपने आप के लिए । इस तरह उसके दिमाग में दिन रात सिर्फ पैसा ही घूमता रहेगा और एक दिन वह मर जायेगा । इस तरह मर जाने से वह यमलोक में भी यमराज के द्वारा दंड का अधिकारी होगा क्यूंकि सारा जीवन उसने पैसे के बारे में ही सोचा । भगवान के बारे में सोचने का समय तो उसे कभी मिला ही नहीं ।
जबकि शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य जीवन का लक्ष्य है भगवान को प्राप्त करना । शास्त्रों में बताया गया है कि जो लोग अपने मानव देह का इस्तेमाल भगवत प्राप्ति के लिए नहीं करते वह अपने ही शत्रु होते हैं । ऐसे लोगों को 84 लाख योनियों में भटकना होता है जबकि जो इंसान परम परमेश्वर भगवान श्री कृष्ण के धाम को प्राप्त कर लेता है वह कभी भी जन्म मृत्यु के इस सागर में यहीं लौटता । भगवान कृष्ण का गोलोक वृन्दावन धाम ही सभी धर्म के विशेषज्ञों द्वारा सर्वोच्च लक्ष्य मन गया है । श्रीपाद शंकराचार्य ने सारे जीवन ब्रम्ह सत्य जगत मिथ्या का प्रचार किया लेकिन अंत में उन्होंने भी स्वीकार किया की मनुष्य जीवन का लक्ष्य भगवान श्री कृष्ण की शरण ग्रहण करना है और इसके बिना जीव का कहीं उद्धार नहीं हो सकता ।
मनुष्य जीवन के संघर्ष
मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक बहुत अधिक दुखों को भोगता है । जब वह छोटा होता है तो उसे चलना नहीं आता, चलना सीखने के लिए वह बहुत संघर्ष करता है । जब वह बड़ा हो जाता है तो उसे नौकरी करनी पड़ती है और कई लोगों को तो नौकरी नहीं मिलती जिससे वह निर्धन हो जाते हैं । निर्धन व्यक्ति जगह जगह दुःख पता है, कोई उसे उधार भी नहीं देता क्यूंकि वह उसे चुका नहीं पाता ।
जिन लोगों की नौकरी नहीं लगती वह यहाँ वहां नौकरी की तलाश में भटकते रहते हैं और दुःख पाते हैं । जिन लोगों को नौकरी लग जाती है या जो लोग business में सफल हो जाते हैं उनकी जवानी बिना दुखों के कट जाती है । लेकिन बुढ़ापा एक ऐसा दौर है जिसमे हर किसी को दुःख भोगना पड़ता है, मानव जीवन का लक्ष्य प्राप्त किए बिना बुढ़ापे के दुखों से नहीं बचा जा सकता । चाहे कोई अमीर हो या गरीब बुढ़ापे में उसे तकलीफ होती ही है । सीढ़ियां चढ़ने में कमर दर्द करने लगती है, दांत मसूड़े दर्द करने लगते हैं और doctor के यहाँ लगातार ही जाना पड़ता है । इनमे से कुछ बेचारे माँ बाप जिनके बच्चे उन्हें बृद्ध आश्रम में छोड़ देते हैं या घर से निकाल देते हैं उन्हें तो 2 वक्त की रोटी भी सही से नहीं मिल पाती ।
इसके अलावा मनुष्य के जीवन में एक और संघर्ष रहता है जो है बीमारी । बीमारी कभी भी किसी को भी हो सकती है । कुछ लोग तो अपनी सेहत का बहुत अच्छे से ख्याल रखते हैं लेकिन कुछ लोग सेहत के साथ खिलवाड़ करते हैं । जो लोग नशा करते हैं उनके बीमार पड़ने की संभावनाएं आम लोगों की तुलना में अधिक होती हैं । बीमारी एक ऐसी समस्या है जिससे हर अमीर अथवा गरीब इंसान को गुजरना पड़ता है । चाहे वह आम सर्दी खांसी ही क्यों न हो या फिर वो कोई बड़ी बीमारी हो लेकिन बीमार हर कोई होता है । कुछ जो बड़ी बड़ी बीमारी हैं उनके इलाज भी आज के समय में उपलब्ध नहीं हैं । रोगों से बचने का प्रयास हम कर सकते हैं लेकिन हम हमेशा रोगों से बच जाएं, ऐसा कर पाना जरा मुश्किल है । मानव जीवन का लक्ष्य प्राप्त किए बना कोई भी बीमारी से हमेशा के लिए नहीं बच सकता ।
भागवत महापुराण में बताया गया है कि मनुष्य जीवन का लक्ष्य है आध्यात्मिक जगत में वापिस लौटना । आध्यात्मिक जगत में आत्मा के लिए कोई संघर्ष नहीं होता और वह हमेशा आनंदमय रहती है । इसके विपरीत इस भौतिक जगत में आत्मा हमेशा दुखों अथवा सुखों से घिरी रहती है । इस जगत में दुःख एवं सुख दोनों को ही आत्मा अपने कर्मों के अनुसार भोगती है । लेकिन उस परम धाम में आत्मा के लिए सिर्फ आनंद होता है और वहां दुःख का कोई निशान नहीं रहता ।
भगवान के धाम जाने कि कई सारी विधियां हैं लेकिन कलयुग में केवल एक ही विधि है जो कारगर है । वह विधि है भगवान का नाम जप । जितना अधिक हम भगवान कृष्ण के पवित्र नामों का जाप करते हैं उतना अधिक ही हम आध्यात्मिक जगत की तरफ बढ़ते हैं । भगवान के सभी नाम एक ही हैं इनमें कोई भेद भाव नहीं करना चाहिए । लेकिन देवी देवताओं के नाम अलग हैं जिनको जपने से आध्यात्मिक जगत की प्राप्ति नहीं होती वल्कि स्वर्ग की प्राप्ति होती है अपने आप में अनित्य और नश्वर है ।
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