इंद्रप्रस्थ का निर्माण किसने किया

अभी तक हमने पड़ा कि किस तरह अर्जुन ने वनवास करते हुए तीन विवाह किए और फिर वनवास पूरा होने पर वापिस इंद्रप्रस्थ वापिस आ गए । अगर आपने अभी तक की कहानी नहीं पड़ी है तो आगे क्लिक करके पड़ सकते हैं – अर्जुन के विवाह

इंद्रप्रस्थ की प्रजा राजा राजा युधिस्ठिर के राज्य में बहुत ही प्रसन्न थी । महाराज युधिस्ठिर का तो क्या ही कहना उनके पोते महाराज परीक्षित के राज्य में भी कहीं अधर्म नहीं था । जब उन्होंने कलयुग को 4 जगहें दी थीं तब वह ऐसी एक भी जगह उनके राज्य में नहीं खोज पाया था ।

इससे पता चलता है कि प्रजा उनके राज्य में कितनी धार्मिक थी । और महाराज युधिस्ठिर तो इतने सत्यवादी थे कि उनके सत्य के प्रभाव से उनका रथ जमीन से ऊपर हवा में चला करता था ।

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वैसे तो इंद्रप्रस्थ का निर्माण हो चुका था लेकिन वास्तविक सभा का निर्माण मयदानव ने किया था जिस सभा को देखने के लिए देवता भी आया करते थे । जिसके उद्घाटन में अप्सराओं ने नृत्य किया था और सभी सुर, असुर, यक्ष, गंधर्भ वहां आये थे ।

इंद्रप्रस्थ मे भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन को मयदानव कैसे मिला


कुछ समय के लिए भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से मिलने के लिए इंद्रप्रस्थ आए थे । भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन इंद्रप्रस्थ में रहते हुए यमुना नदी के किनारे जल विहार करने जाया करते थे । एक दिन जल विहार करते हुए इन दोनो के पास एक ब्राह्मण आया और उसने इन से भोजन की भिक्षा मांगी ।

अर्जुन ने पूछा कि ब्राह्मण बताइए आप क्या खाना चाहेंगे । तब उन्होंने बताया कि वे खांडव वन को खाना चाहते हैं । उन ब्राह्मण से पूछने पर उन्होंने बताया कि वे अग्नि हैं और उस वन को जलाना चाहते है ।

अग्नि ने कहा कि उनकी भूख वन को जलाकर ही मिटेगी लेकिन उस वन मे तक्षक सर्प रहता है जिसकी रक्षा स्वयं देवराज इंद्र किया करते हैं । ब्राह्मण भेष में अग्नि ने बताया कि जब भी वह उस वन को जलाने की कोशिश करते हैं तब तब इंद्र वर्षा करके उनको विफल कर देते हैं ।

अग्नि ने बताया कि कुछ समय पहले वहां एक राजा स्वेतकी रहा करते थे जिन्होंने तपस्या करके शंकर जी को प्रसन्न कर लिया था और शिव जी की आज्ञा से लेकर और महर्षि दुर्वासा से सहायता प्राप्त करके राज स्वेत्की ने एक भव्य यज्ञ करवाया था । उस यज्ञ में इतनी ज्यादा आहुतियां डाली गई थीं कि उस घी को लेकर अग्नि की पाचन शक्ति कमजोर पड़ गई थी और इसी कारण से अग्नि काफी कमजोर हो गए थे ।

इसके बाद अग्नि अपनी परेशानी लेकर ब्रह्मा जी के पास गए थे और ब्रह्मा जी ने उन्हें इस समस्या का समाधान बताया था । समाधान बताते हुए ब्रह्मा जी ने अग्नि से कहा था कि अगर वे खांडव वन को जला दें तो उनका तेज और पाचन शक्ति वापिस आ जायेगी और उनकी निर्बलता दूर हो जायेगी ।

अग्नि ने पूरे सात बार खंडाववन को जलाने की कोशिश की थी लेकिन वह वन देवराज इंद्र के संरक्षण मे था इसलिए वे बार बार वर्षा करके अग्नि को विफल कर देते थे । अग्नि ने कहा कि इसी समस्या के समाधान के लिए ही वे भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के पास आए हैं ।


इसके बाद अग्नि ने वापिस जाकर ब्रह्मा जी से अपनी समस्या कहते हुए कहा कि इंद्र उन्हें खांडव वन जलाने नहीं देते हैं इसलिए वे उन्हें कोई दूसरा रास्ता बताने की कृपा करें । तब ब्रह्मा जी ने अग्नि देव से कहा कि केवल भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन ही इंद्र को हराने मे समर्थ हैं इसलिए तुम्हें उन्हीं से जाकर मदद मांगनी चाहिए ।


इस प्रकार वृतांत बताते हुए अग्नि ने अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण से मदद मांगी । तब अर्जुन ने कहा कि वे अग्नि की मदद अवश्य करते लेकिन उनके पास उनके अस्त्र नहीं हैं । अग्नि बड़े ही प्रसन्न हो गए और उन्होंने जल्द ही वरुण देव को बुलाकर उनसे एक दिव्य गांडीव धनुष लेकर अर्जुन को दे दिया । वरुण देव ने अर्जुन को एक अग्रेयस्त्र भी दिया था ।

तब भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बल पर अग्नि ने एक बार फिर खांडव वन को जलाना शुरू कर दिया । इसके बाद जैसे ही इंद्र ने खांडव वन में वर्षा करना शुरू की तो अर्जुन ने अपने बाणों से आकाश को इस तरह ढक दिया कि एक बूंद पानी जमीन पर नहीं गिर पा रहा था । उस समय तक्षक शार्प खंडाववां मे नहीं था लेकिन उसका पुत्र अश्वसेन उस जंगल मे मौजूद था ।
अस्वसेन की मां ने अश्वसेन को बचाने के लिए उसे अपने पेट के अंदर भर लिया और आसमान में उड़ गई लेकिन अर्जुन ने उसे एक तीर में धराशाई कर दिया । इंद्र ने किसी तरह अर्जुन को भ्रम में डालने के लिए कुछ अनोखी बूंदों की वर्षा की और आंधी चलाकर अश्वसेन को बचा लिया । अर्जुन ने इंद्र के इस कार्य को देखकर इंद्र पर आक्रमण कर दिया और सभी देवता, यक्ष इत्यादि अर्जुन से लड़ने के लिए आ गए ।

अर्जुन ने सबको हारते हुए अग्नि से कह दिया कि अब तुम खांडव वन जला सकते हो । अब अग्नि ने उस वन के जलाना शुरू कर दिया । उस वन में रह रहा मयदानव अग्नि से बचने के लिए वहां से भाग रहा था लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र उसके पीछे लगा दिया ।

तब मयदानव भगवान श्री कृष्ण और और अर्जुन जी शरण मे आ गया और उन्होंने उसे जीवन दान दिया । वन में केवल 6 प्राणी ही जिंदा बच पाए थे, एक अश्वसेन, एक मयदानव और चार पक्षी जिन्होंने अग्नि की स्तुति करके अपने प्राणों की रक्षा कर ली थी ।

मयदानव ने भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से इंद्रप्रस्थ में बनाया था वह दिव्य दरबार

मयदानव ने अपने प्राण बचने की खुशी में भगवान श्री कृष्ण से आज्ञा लेकर इंद्रप्रस्थ में एक दिव्य सभा का निर्माण भी किया था । कुछ दिन बाद भगवान श्री कृष्ण इंद्रप्रस्थ से वापिस द्वारका चले गए थे । मयदानव जब सभा बनाने के लिए समान जुटाने गया था तब वहां से कुछ भेंटे पांडवों के लिए लेकर आया था ।

उसने अर्जुन को देवदत्त नामक शंख दिया था जिसकी ध्वनि सुनकर कौरव कांप जया करते थे । भीम को मयदानव ने एक गधा दी थी और महाराज युधिस्ठिर के लिए सभा का निर्माण किया था ।

मयदानव ने ऐसी सभा का निर्माण किया था कि बड़े बड़े विद्वान भी उसे देखकर धोखा खा जाते थे । जमीन पर कहीं पानी होता था और लगता था कि वहां पानी नहीं है । और कहीं पर लगता था कि पानी भरा हुआ है पर होता नहीं था ।


सभा का जब उद्घाटन हुआ तो उसमे मनुष्य, देवता, यक्ष, गंदर्भ सभी आए हुए थे और उसी सभा में नारद मुनि भी उपस्थित थे । तब महाराज युधिस्ठिर को देवर्षि नारद ने बताया था कि देवराज इंद्र की सभा में केवल राजा हरिश्चंद्र ही मौजूद रहते हैं ।

महाराज युधिस्ठिर ने नारद मुनि से पूछा था कि उनके पिता पाण्डु ने उनके लिए स्वर्ग से कोइ संदेश तो नहीं भेजा तब उन्होंने कहा था कि पाण्डु ने कहा है कि पांडव एक राजस्यु यज्ञ करें ताकि उनके पिता पाण्डु भी राजा हरिशचंद्र की तरह इंद्र की सभा में सोभा पाएं ।


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