गीता का ज्ञान, पहला सूत्र
दोस्तों , गीता में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं की हर व्यक्ति को अपने स्वभाव के अनुसार ही कर्म करना चाहिए । दूसरे का कर्म भय उत्तपन्न करने वाला होता है । मित्रों भगवान के द्वारा कही गई इस बात का जो व्यक्ति पालन करता है वह जीवन में अवश्य सफल होता है । आज के समय में हम देखते हैं कि हर कोई डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहता है लेकिन हर किसी का स्वभाव डॉक्टर या इंजीनियर बनने का नहीं होता ।
यही वजह है कि आज कल के बच्चो में मानसिक तनाव एक आम बात हो गई है । हो सकता है किसी बच्चे का स्वभाव गायक बनने का हो और वह भविष्य में एक बहुत अच्छा गायक बन सके लेकिन वह अपने स्वभाव के विपरीत इंजीनियर या डॉक्टर बनने का प्रयास करता है और निराश होता है ।
भगवान कहते हैं कि अगर खुद का कर्म निम्न ही क्यों न हो फिर भी उसे हमेंत नहीं छोड़ना चाहिए । उदाहरण के तौर पर यदि किसी का पेशा गायन करना है तो उसे अपना पेशा नहीं छोड़ना चाहिए । वह सोच सकता है कि दूसरे पेशे में वह ज्यादा खुश रह सकता है लेकिन ऐसा नहीं है, जबकि अगर वह अपने पेशे पर ही काम करता रहेगा तो एक दिन मशहूर गायक बनकर दुनिया में सोहरत कमाएगा ।
कुछ लोग होते हैं जो इस सूत्र को नजरंदाज करते हैं और दूसरे की नकल करने की कोशिश किया करते हैं । इस तरह के लोग कभी भी सफल नहीं हो पाते क्योंकि वह अपने स्वभाव को छोड़कर दूसरे का स्वभाव अपनाते हैं । वहीं अगर किसी का जन्म कसाई के घर में भी हुआ है तो उसे अपना ही कर्म करना चाहिए । अगर वह यह सोचते हुए अपना कर्म छोड़े कि उसका कर्म निम्न है तो यह उचित नहीं होगा और वह कभी भी सफल नहीं हो पाएगा ।
गीता का ज्ञान, कर्म को कभी नहीं छोड़ना चाहिए
जब अर्जुन भगवान से कहते हैं कि वह युद्ध नहीं करेंगे और सन्यास ग्रहण करेंगे । तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कायर और डरपोक कहते हैं । भगवान कहते हैं कि अर्जुन के मन में यह कलमष आया कैसे । अर्जुन एक क्षत्रिय है और उसे अपना कर्म करना चाहिए । क्षत्रिय का कर्म है धर्म के लिए युद्ध करना और अर्जुन को अपने कर्म का परित्याग करना शोभा नहीं देता ।।
भगवान ने कहा है कि बिना कर्म किए तो जीवन निर्वाह भी नहीं हो सकता । अर्थात बिना कर्म किए कोई व्यक्ति जीवित गिर नहीं रह सकता । भगवान ने बताया कि किसी भी व्यक्ति को अपना कर्म कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए । भगवान श्री कृष्ण ने यह भी बताया है कि कर्म का परित्याग कर देने से यश की नहीं अपितु अपयश की प्राप्ति होती है ।
गीता के अनुसार जो सन्यासी बाहर से तो सन्यास का दिखावा करता है लेकिन उसके मन में विषय के प्रति आसक्ति बनी रहती है वह निश्चित रूप से ढोंगी है । उससे अच्छा तो वह ग्रहस्त है जो अपना कर्म करता है । दोस्तो, हमें कभी भी अपने कर्म का परित्याग नहीं करना चाहिए और झूठा सन्यासी बनकर तो कभी नहीं घूमना चाहिए ।
गीता का ज्ञान, कर्म पर सबका अधिकार है लेकिन फल पर किसी का अधिकार नहीं
गीता के दूसरे अध्याय के सैतालीसवें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति को कर्म करने का तो अधिकार है लेकिन फल पर किसी का कोई अधिकार नहीं । इसलिए हमें न तो कर्म के फल का कारण खुद कर्म मानना चाहिए और न ही कर्म न करने में कभी आशक्त होना चाहिए ।
मित्रों, श्रीमद्भगवद्गीता कि इस सीख के अनुसार हमें फल से आसक्त नहीं होना चाहिए । कुछ लोग होते हैं जो फल कि चिंता किए बिना ही अपना कर्म करते रहते हैं और उन्हें इस तरह काम करने से खूब सफलता प्राप्त होती है । वहीं कुछ लोग इसे भी होते हैं जो हमेशा फल की चिंता करते रहते हैं और अपना कर्म भी ठीक से नहीं करते । इसे लोगों को सफलता भी नहीं मिलती और वह हताश भी जल्दी होते हैं ।
उदाहरण के तौर पर हम एप्पल कंपनी के मालिक स्टीव जॉब्स को ले सकते हैं जिन्होंने अपने काम को ही प्राथमिकता दी । उन्होंने अपने काम को बेहतर करने के लिए इस तरह हद पार कर दी कि उन्हें अपनी ही कंपनी के बाहर कर दिया गया । उन्होंने फल से अधिक ध्यान कर्म करने के ऊपर दिया और आज हम जानते हैं कि टेक्नोलॉजी और गैजेट्स के जगत में एप्पल सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है ।
दोस्तो, इसी तरह हमें भी फल की चिंता न करते हुए अपने कर्म को बेहतर करने के प्रयास करने चाहिए । क्योंकि कर्म पर तो हमारा अधिकार है लेकिन फल पर नहीं । हो सकता है फल हमारे अनुरूप हो या नहीं लेकिन हमें निरंतर अपने प्रयासों को निखारते रहना चाहिए ।
गीता का ज्ञान, न्याय के लिए लड़ना चाहिए
कुछ लोग कहते हैं कि अध्यातिमकता की और चलने से व्यक्ति निर्बल हो जाता है । लेकिन अगर हम देखें तो अर्जुन ने गीता सुनकर निर्बलता नहीं दिखाई अपितु युद्ध किया और बड़े बड़े महारथियों को भी मिट्टी में मिला दिया ।
अर्जुन नहीं चाहते थे कि राज पाते के लिए अपने ही सगे संबंधियों से युद्ध किया जाए लेकिन भगवान ने उन्हें युद्ध करने के लिए कहा । मित्रों, ठीक इसी तरह अगर हमने कोई गलती नहीं की है और सामने वाले ने हमारे साथ अन्याय किया है तो हमें इसके लिए आवाज उठानी चाहिए ।
गीता में ia बात का समर्थन नहीं किया गया है कि अगर कोई एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरत गाल भी आगे कर देना चाहिए । गीता में इस बात को भी नकारा गया है कि अन्याय से परेशान होकर जंगल में भाग जाना चाहिए । बल्कि इस काम के लिए यहां कायरता कहा गया है । न्याय और सत्य के लिए लड़ना एक क्षत्रिय का कर्म है और उसे यह हर हाल में करना चाहिए ।
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