गीता ज्ञान के कुछ महत्वपूर्ण सूत्र

गीता ज्ञान, सुख और दुख में समान भाव रहें

मित्रों, यूं तो हम सब जानते ही हैं कि दुःख के वक्त ज्यादा विचलित नहीं होना चाहिए । सुख और दुख जीवन के दो पहलू हैं जो हर किसी के जीवन में आते जाते रहते हैं । भगवान श्री कृष्ण गीता ज्ञान का उपदेश देते हुए कहते हैं कि व्यक्ति को सुख और दुख दोनो में सम भाव रहना चाहिए । मतलब हमें न तो दुख में दुखी होना चाहिए और ना ही सुख में अधिक हर्षित ।

भगवान आगे कहते हैं कि जो मनुष्य सुख और दुख में विचलित नहीं होता वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य होता है । सुख और दुख मौसम की तरह ही आते जाते रहते हैं, लेकिन इंसान को इनसे विचलित नहीं होना चाहिए । दूसरे अध्याय के संतावनमें श्लोक में भगवान कहते हैं कि जो व्यक्ति ना तो सुभ की प्राप्ति होने पर हर्षित होता है और न ही अशुभ की प्राप्ति होने पर दुखिर होता है वह पूर्ण ज्ञान में स्थित है ।

गीता ज्ञान, क्रोध पर रखें नियंत्रण

गीता ज्ञान का उपदेश देते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि इंद्रिय विषयों का चिंतन करते हुए व्यक्ति कि उनमें आसक्ति उत्पन्न हो जाती है । आसक्ति उत्पन्न होने से व्यक्ति उन चीजों को प्राप्त करने का प्रयास करता है । यदि वह उस चीज को पाने में सफल रहता है तो उसके अंदर लोभ आ जाता है और अगर वह असफल रहता है तो उसके अंदर क्रोध का आगमन होता है । अब हर बार तो व्यक्ति सफल हो नहीं पाता इसलिए वह क्रोध में पड़ जाता है ।

क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से सम्रति विभ्रमित हो जाती है। सम्रति भ्रमित हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है । जैसे ही व्यक्ति क्रोध करता है उसमे मोह उत्पन्न होता है और उसकी सारी स्मृति जाने लगती है । वह अपना सारा ज्ञान भूल जाता है और इसलिए हमें क्रोध नहीं करना चाहिए । क्रोध करने से तो हमारा स्वास्थ भी खराब हो सकता है । डॉक्टर की मानें तो क्रोध करने से बहुत प्रकार की बीमारियों का सामना भी करना पड़ सकता है ।

गीता ज्ञान, मन पर नियंत्रण रखें

गीता ज्ञान का उपदेश देते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मन ही व्यक्ति का शत्रु है और मन ही सबसे बड़ा मित्र । अगर मन पर नियंत्रण कर लिया जाए तो मन ही व्यक्ति का सबसे बड़ा मित्र बन जाता है और अनियंत्रित मन व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है ।

इंद्रिय विषय घोड़े हैं और मन उनका सारथी। अगर मन पर लगाम लगा ली जाए तो व्यक्ति परम कल्याण को प्राप्त हो सकता है। और अगर इसी मन को नियंत्रित ना किया गया तो यह व्यक्ति को नरक भी भेज सकता है। मन से परे बुद्धि है, बुद्धि से परे अहंकार है और अहंकार से भी परे है वह आत्मा । व्यक्ति को अपनी बुद्धि के जरिये मन पर विजय प्राप्त कर लेनी चाहिए।

गीता ज्ञान में नरक के कुछ द्वार बताये गए हैं

भगवान गीता ज्ञान देते हुए सोलवें अध्याय के 21 नंबर के श्लोक में कहते हैं कि नरक की और जाने वाले तीन द्वार हैं । आपको बताते हैं कि किस प्रकार के नरक के द्वार बताये गए हैं।

अत्यधिक क्रोध करने वाला व्यक्ति नरक जायेगा । क्रोध करने से व्यक्ति की सम्रति भ्रमित हो जाती है और उसे पता ही नहीं चलता कि वह आखिर सही कर रह है या गलत ।

क्रोध इतना नकारात्मक है कि इसका कोई भी जवाब नहीं। क्रोध करने से न केवल अध्यात्मिक दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं अपितु इससे आपसी संबंध खराब होते हैं और व्यक्ति निर्धन हो जाता है।

तीसरा नरक का द्वार लोभ बताया गया है । अपनी जरूरत से ज्यादा अर्जित करना और करने की तीव्र इच्छा को ही लोभ कहते हैं ।

तीन प्रकार की तपस्या

भगवान गीता ज्ञान देते हुए बताते हैं कि वह कौन सी तीन तपस्या हैं जो हर सभ्य व्यक्ति को करनी चाहिए । पहली है शरीर की तपस्या, शरीर की तपस्या में माता पिता की सेवा , ब्रामचारी रहना, साफ सफाई का ध्यान रखना और किसी भी प्रकार की हिंसा ना करना, यह सब आते हैं ।

दूसरी तपस्या है वाणी की तपस्या, वाणी की तपस्या है मीठा और सत्य बोलना। किसी से कड़वे वचन ना बोलना और नियमित रूप से वैदिक साहित्य का पाठ करना इत्यादि आते हैं।

तीसरे प्रकार की तपस्या है मन की तपस्या जो है संतोष। संतोष करना भी एक बड़ी तपस्या है । जैसे कि हम देखते हैं कि आज कल तक के लोग संतोष नहीं करते। वह या तो बहुत अधिक लोभी हो जाते हैं जिसे एक नरक का द्वार माना गया है । लोभी व्यक्ति कभी भी संतुष्ट नहीं हो सकता ।

एक कथा के अनुसार एक व्यक्ति ने शिव जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे बहुत सारी जमीन मिल जाए । शिव जी ने उसे वरदान दिया कि जितने दूर तक वह बिना रुके दौड़ते जायेगा उतनी जमीन उसकी हो जायेगी । उस व्यक्ति ने दौड़ना चालू किया और वह लगातार भागता रहा । वह चाहता तो कुछ किलो मीटर दौड़कर रुक सकता था लेकिन लोभ के वशीभूत होकर उसने ऐसा नहीं किया ।

वह लगातार दौड़ता ही रहा और सांस फूल जाने की वजह से मर गया । अंत में उसको उतनी भूमि भी नहीं मिल पायी जितने पर वह मरा हुआ पड़ा था । इसी तरह लोभी व्यक्ति सारे जीवन काम ही करता रहता है और धन को संचय करता रहता है । व्यक्ति चाहे कितना ही धन कमा ले लेकिन रोटी अनाज की ही घायेगा । ऐसा नहीं है कि जो व्यक्ति सोना कमाता है वह सोने की रोटी खायेगा । इसी तरह एक गधे का उदहारण भी है ।

गधा दिन रात धोबी का काम करता रहता है और धोबी जब उसे घास देता है तो वह धोबी का शुक्रिया करता है । गधे में इतनी अकल नहीं होती कि घास तो जंगल में मिल ही जाती है उसके लिए उसे धोबी का काम करने की जरूरत नहीं । लोभी व्यक्ति में भी इतनी अकल नहीं होती कि जब उसका काम कुछ पैसों में ही चल जायेगा तो उसे अधिक कमाने के लिए परिश्रम करने की क्या जरूरत ।

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