गरुड़ पुराण के अनुसार पाप करने वालों के साथ क्या होता है
जब ऋषियों ने सूत गोस्वामी से पुछा कि नरक के बारे में कुछ बताएं तब स्वामी ने उनको यमलोक के भयावह दृश्य के बारे में बताया जिसका वर्णन गरुड़ पुराण में होता है ।
सूत गोस्वामी ने बताया कि यह मार्ग पुण्य करने वालों के लिए तो बड़ा ही सुखद है लेकिन पापियों के लिए यह दुखद है । उन्होंने बताया कि जो लोग हमेशा पाप करते हैं, गलत संगति में रहते हैं एवं देवी संपत्ति से रहित रहते हैं और मोह के जाल में फंसे रहते हैं वे लोग नरक में गिरते हैं । गोस्वामी ने कहा कि पाप करने वालों को मृत्यु के बाद कौन सी सजा मिलती है यह तुम हमसे सुनो ।
सूत गोस्वामी ने बताया कि पाप के कारण व्यक्ति को बीमारियां होती हैं जैसे कि मानसिक रोग या कोई शारीरिक रोग । ऐसे ही पाप के करण व्यक्ति को जन्म, मृत्यु और बुढ़ापा भी आता है । व्यक्ति जब बूढ़ा हो जाता है घर के लोग उसका सम्मान नहीं करते और वह बिना सम्मान के वह ऐसे ही पड़ा रहता है ।
साथ ही बुढ़ापे मे उसका शरीर सही से काम नहीं करता और बीमारियां भी उसे जल्दी घेर लेती हैं । गोस्वामी ने बताया कि जब व्यक्ति मरने वाला होता है तो उसे दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है जिसके कारण वह लोक और परलोक दोनों को देख सकता है । गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के समय व्यक्ति को इतनी पीड़ा होती है जितनी 100 बिच्छू के एक साथ काटने पर होती है ।
गरुड़ पुराण के अनुसार, यमदूतों के दर्शन होने पर व्यक्ति की इंद्रियां शिथिल पड़ जाती हैं
गरुड़ पुराण के अनुसार, यमदूतों के दर्शन होने पर व्यक्ति की इंद्रियां शिथिल पड़ जाती हैं और वह व्यक्ति कुछ नहीं कर पाता । वह अपने परिजनों को मदद के लिए बुलाना चाहता है लेकिन नहीं बुला पाता । जो व्यक्ति पाप करते हैं उनको दोनों हाथों में पास धारण किए और क्रोध पूर्वक नेत्र वाले यमदूतों के दर्शन होते हैं जिनको देखकर वह भय से कांपने लगते हैं ।
इस प्रकार यमदूतों को देखकर वह व्यक्ति अपना मल मूत्र त्याग देता है और उनके हाथों में पकड़ा हुआ वह अपने घर को देखने लगता है । गरुड़ पुराण के अनुसार यमदूत उसके गले में पास बांधकर उसे ले जाते हैं और रास्ते में उसे डराते हैं । उसके पापों को उसे याद दिलाते हैं और साथ ही नरक का तीव्र दुख वे उससे पुनः पुनः वर्णन करते हैं ।
इसके बाद यमदूतों की बात सुनकर बहुत ही डर जाता है और साथ ही उसे रास्ते में चलते हुए भूख और प्यास भी लगती है लेकिन यमदूत उसे पानी और भोजन नहीं देते । गरुड़ पुराण के अनुसार यमदूत उसे रास्ते में पीटते जाते हैं और उसे उन नरकों के बारे में बताते हैं जिनमें उसे लेकर जाया जाना है ।
सूत गोस्वामी ने बताया कि सैकड़ों और करोड़ों साल बीत जाने पर भी बिना भोगे कर्म फल का नाश नहीं होता
गरुड़ पुराण के अनुसार यमदूत उसे नर्क की यातना के दर्शन कराते हैं और उसके बाद उसे छोड़ देते हैं । गरुड़ पुराण के अनुसार इसके बाद जीवात्मा वापस अपने परिवार में आता है और अपने शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करता है लेकिन गरुड़ पुराण के अनुसार यमदूतों के द्वारा पास में बंद किए जाने के कारण वह अपने शरीर में प्रवेश नहीं कर पाता ।
उस समय अपनी भूख प्यास मिटाने का जीव के पास एक ही तरीका होता है जो है उसके परिजनों द्वारा दिया गया पिंडदान । गरुड़ पुराण के अनुसार जिन लोगों का पिंडदान नहीं होता वे भूत बनकर यहीं पर भ्रमण करते रहते हैं और कई कई सालों बाद उनको दूसरा शरीर प्राप्त होता है ।
सूत गोस्वामी ने बताया कि सैकड़ों और करोड़ों साल बीत जाने पर भी बिना भोगे कर्म फल का नाश नहीं होता । अगर जीवात्मा ने कोई पाप किया है तो उसे उसका फल भुगतना ही पड़ता है तभी जाकर वह पाप खत्म होता है और जब तक वह उस पाप को भोग नहीं लेता उसे दोबारा मनुष्य शरीर भी प्राप्त नहीं होता ।
इसलिए पुत्र को चाहिए कि वह अपने पिता का 10 दिनों तक पिंडदान करे । पिंडदान को चार भागों में विभाजित किया जाता है । उनमें से पहले दो भाग पंच भूतों की पुष्टि के लिए होते हैं के लिए होते हैं तीसरा भाग यमदूतों के लिए होता है । चौथे भाग से उस जीव को आहार प्राप्त होता है जो यमदूतों द्वारा ले जाय जाता है ।
9 दिन और 9 रातों में जीव का दूसरा शरीर बन जाता है और दसवे दिन उसमें कुछ शक्ति आती है । पिंड दान के द्वारा जीव का धीरे-धीरे एक लंबा शरीर बनता है जिसके द्वारा वह प्राणी रास्ते में शुभ अशुभ कर्म फल भोगता है और यमपुरी ले जाया जाता है ।
गरुड़ पुराण के अनुसार इस प्रकार जब तेरहवीं की जाती है तो मरने के 13 दिन बाद वह जीव भोजन प्राप्त करता है और 13 दिन बाद यमदूतों द्वारा यम मार्ग में ले जाया जाता है । उस मार्ग में वह अकेला ही होता है और प्रत्येक दिन में 47 योजन चलता है ।
यमपुरी का मार्ग कैसा है
गरुड़ पुराण के अनुसार, सूत गोस्वामी ने बताया कि यम मार्ग में वृक्ष की छाया नहीं है जहां प्राणी विश्राम कर सकता है । वहां पर भोजन और पानी भी नहीं है जिससे वह जीव अपनी भूख और प्यास मिटा सके ।
गरुड़ पुराण के अनुसार उस मार्ग में चलता हुआ हुआ प्राणी कभी कभी तो बर्फीली हवा से पीड़ित होता है और कभी उसे कांटे चुभते हैं, कभी वह सर्पों के द्वारा डसा जाता है । कभी हिंसक पशुओं द्वारा खाया जाता है और कहीं-कहीं बिच्छू द्वारा डसा जाता है । कहीं-कहीं पर उसे आग से जलाया जाता है और तब जाकर वह उस नर्क में पहुंचाया जाता है जिस नरक में उसे उसके पाप के कारण जाना था ।
उस मार्ग में कहीं-कहीं गरम वायु है । कहीं-कहीं पर अँधेरे कुए हैं जिनमें वह गिर जाता है । कहीं-कहीं पर अत्यधिक धुएं से भरे स्थान हैं जिन पर उसे चलना पड़ता है । कहीं-कहीं अंगारों की बारिश होती है और कहीं कहीं बिजली गिरने के साथ साथ सिला भी गिरती है ।
कहीं खून और कहीं गर्म जल की बारिश होती है । कहीं गहरी खाई हैं और कहीं पर्वत की चढ़ाई है और कहीं उसे सकरे स्थाओं के अंदर प्रवेश करना पड़ता है ।
वैतरणी नदी कैसी है
गरुड़ पुराण के अनुसार वहां खून और चर्बी से भरे हुए तालाब है और वहीँ वैतरणी नदी बहती है । वहां 100 योजन चौड़ी सड़क है । वहां पर हड्डियों के समूह से बने पर्वत हैं । मांस और रक्त से भरी वैतरणी नदी बहुत दुर्गम है और उसको पार करना बड़ा ही कठिन है ।
पापी लोग उसे बड़े ही दुख के साथ पार करते हैं । वह नदी सुई के समान मुख वाले भयानक कीड़े मकोड़ों से भरी है और वहां के पानी में मांस भक्षी जलचर, मछली और कौवे रहते हैं । उस नदी के प्रभाव में गिर जाने पर पापी रोते चिल्लाते हैं और यह पैनी चोंच वाले जीव उसे काटते हैं । वह भूख और प्यास से व्याकुल होकर रोता रहता है ।
गरुड़ पुराण के अनुसार यह नदी रक्त के प्रवाह से व्याप्त रहती है और देखने में बड़ा ही दुख उत्पन्न करने वाली है । कभी-कभी इसमें गिरकर पापी दर्द के कारण बेहोश हो जाते हैं । बहुत से बिच्छू और शार्प उस नदी में मौजूद हैं इसलिए उस नदी में गिरे पापियों की रक्षा करने कोई नहीं आता ।
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उस नदी में गिर कर पापी एक क्षण में पाताल में चले जाते हैं और अगले क्षण में ऊपर आ जाते हैं । यह नदी पापियों के गिरने के लिए बनाई गई है और इस नदी का छोर कहीं दिखाई नहीं देता । यह अत्यंत दुख और बहुत डर उत्पन्न करने वाली है ।
यमपुरी के मार्ग में पापी क्या सोचते हैं
गरुड़ पुराण के अनुसार कुछ पापियों को जबरन खींच कर ले जाया जाता है और उनको बीच में कोड़े मारे जाते हैं । अत्यंत क्रूर यमदूत उनको पीटते हैं तब उनको अपने किए हुए पाप याद आ जाते हैं और उनको ग्लानि का अनुभव होता है और इस तरह अति दुःख पाकर पापी यमलोक को आते हैं ।
गरुड़ पुराण के अनुसार रास्ते में पापी अपने पुत्रों को पुकार कर मदद की याचना करता है लेकिन उस मार्ग में उसे कोई नहीं बचा पाता । वह रोता है कि मैंने कभी दान नहीं किया, मैंने कभी हवन नहीं किया, तपस्या नहीं की और पूजा पाठ भी नहीं किया, विधि विधान से कभी तीर्थ भी नहीं गया इसीलिए में यह सजाएं भुगत रहा हूँ ।
वह सोचता है कि मैंने कभी देवताओं की पूजा नहीं की और यहां तक कि मैंने तो परम भगवान की भी पूजा नहीं की, कभी मैंने ब्राह्मणों की पूजा नहीं की, कभी मैं तीर्थों में नहीं गया, कभी मैंने गंगा स्नान नहीं किया, सत पुरुषों की सेवा नहीं की, कभी भी पशु पक्षियों के लिए जलाशय का निर्माण नहीं किया और कभी भी कोई पुण्य नहीं किया इसलिए मैंने जो किया है उसी का फल आज मुझे मिल रहा है ।
गरुड़ पुराण के अनुसार वह सोचता है कि मैंने कभी दान नहीं किया, शास्त्रों का अध्ययन नहीं किया पुराणों को नहीं सुना, संतो की पूजा नहीं की इसलिए मुझे इस स्थिति में रहना पड़ रहा है ।
नारी जीव भी सोचते हैं कि मैंने पति की अच्छे से सेवा नहीं की । पति की आज्ञा का पालन नहीं किया और पतिव्रत धर्म का भी पालन नहीं किया और मैंने गुरुजनों का भी सम्मान नहीं किया जिसके कारण मुझे यह यातनाएं मिल रही हैं ।
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