गजेंद्र मोक्ष, गजेंद्र मोक्ष पाठ के लाभ

गजेंद्र मोक्ष पाठ

श्रीमद्भागवत के आठवें स्कंध में गजेंद्र मोक्ष की कथा आती है जिसमें बताया गया है की एक ग्राहक के द्वारा गजेंद्र के प्राणों की रक्षा भगवान ने किस प्रकार से की ।

आठवें स्कंध के दूसरे अध्याय में गजेंद्र और घड़ियाल के युद्ध का वर्णन है, तीसरे अध्याय में भगवान के द्वारा गजेंद्र मोक्ष का प्रसंग है और चौथे अध्याय में गजेंद्र और ग्राह के पूर्व जन्म की कथा है ।

गजेंद्र मोक्ष के पाठ का महत्व बताया गया है कि यह कलयुग के सारे पाप और दुख को नाश करने का श्रेष्ठ साधन है । तो चलिए गजेंद्र मोक्ष का प्रसंग शुरू करते हैं ।

गजेंद्र का निवास स्थान

छीरसागर से घिरा त्रिकूट नाम का विशाल पर्वत है जो 10000 योजन ऊंचा है । गंधर्व, किन्नर तथा अप्सराएं इस पर्वत पर मनोरंजन करने आते हैं और इस तरह उस पर्वत की गुफाएं स्वर्ग वासियों से भरी रहती हैं । गुफाओं में स्वर्ग के निवासियों के गानों की आवाज गूंजती रहती है जिसे सुनकर वहां के शेर दहाड़ते हैं क्यूंकि उन्हें लगता है कि गुफा में कोई और शेर है जो दहाड़ रहा है ।

उस पर्वत पर ऋतुमत नाम का एक उद्यान है जहाँ सभी ऋतुओं के फल फूल उगते हैं । वहां पर कई प्रकार के वृक्ष हैं । वहां पर कई सारे फूल होते हैं जिनमें मंदार, पारिजात, अशोक, चंपक आदि प्रमुख हैं । सरोवर में चारों ओर कदम, अशोक, नारियल, खजूर आदि के वृक्ष भी थे ।

गजेंद्र का संकट

एक बार हाथियों का प्रमुख जो गजेंद्र के नाम से जाना जाता था उस सरोवर में घूमने निकला और उसने वहां के सारे पौधों और लताओं को नष्ट भ्रष्ट कर दिया । वह गजेंद्र इतना बलवान था कि उसकी सुगंध पाकर अन्य हिंसक पशु जैसे कि वाघ, शेर, गेंडे और अन्य हाथी वहां से भाग जाया करते थे ।

इस हाथी की कृपा से छोटे छोटे जानवर जैसे कि लोमड़ी, बंदर, हिरण इत्यादि बिना किसी डर के उस सरोवर में घूमते रहते थे । वे गजेंद्र के आस पास घूमते रहते थे क्योंकि वह सारे हिंसक पशुओं को भगा दिया करता था ।

हाथियों का राजा गजेंद्र अपने परिवार के साथ रहा करता था और उसके पीछे पीछे अन्य सभी हाथियों के बच्चे चला करते थे । इस प्रकार हाथी के बच्चों के साथ मनमानी करते हुए वह गजेंद्र उस सरोवर के तट पर आ गया ।

गजेंद्र सरोवर में घुस गया और उसने पूरी तरह नहाया और पेड़ पौधे तोड़ने के कारण जितनी भी थकान थी उससे वह मुक्त हो गया । जब वह थकान से मुक्त हो गया तब उसने अपनी सूंढ़ में शीतल जल भरकर कमल के पुष्पों के ऊपर उसका छिड़काव किया ।

वह अपनी सूंढ़ में पानी भरकर अपने परिवार के सदस्यों को नहला रहा था तब तक एक शक्तिशाली घड़ियाल ने हाथी के ऊपर हमला कर दिया और सरोवर के अंदर उसका पैर पकड़ लिया । गजेंद्र ने अपने आप को उस घड़ियाल से बचाने की पूरी कोशिश की लेकिन वह नहीं बचा पाया । उसने अपने परिवार वालों से मदद मांगी लेकिन जल के अंदर जाकर गजेंद्र को कोई नहीं बचा पाया ।

इस तरह हाथी और व्याघ्र का युद्ध चलता रहा और इस लड़ाई को देवता गण तक देखने आये थे । जब बहुत समय बीत गया तो गजेंद्र की मानसिक और शारीरिक शक्ति घटने लगी और इसके विपरीत जल का प्राणी होने के कारण घड़ियाल का शारीरिक और मानसिक बल वैसा ही बना रहा ।

भगवान के द्वारा गजेंद्र का उद्धार

जब गजेंद्र को लगा कि वह अपने बल से उस घड़ियाल से नहीं बच सकता तब वह इस निर्णय पर पहुंचा कि उसे भगवान से मदद मांगनी चाहिए ।

बुद्धि के द्वारा निश्चित करके और मन को स्थिर करके गजेंद्र अपने पूर्व जन्म में सीखी गई सर्वश्रेष्ठ स्तुति को मन ही मन दोहराने लगा और उसका पाठ करने लगा ।

गजेंद्र ने जिस सर्वश्रेष्ठ स्तुति का पाठ किया वह कुछ इस प्रकार है । जिनके प्रवेश करने पर जड़ शरीर और मन आदि भी चेतन बन जाते हैं । ॐ शब्द के द्वारा लक्ष्य किए जाने वाले और संपूर्ण सृष्टि में एवं प्रकृति में पुरुष रूप से प्रविष्ट हुए उन सर्व समर्थ परमेश्वर को मैं मन ही मन नमन करता हूं ।

जिनके आश्रय से यह दृश्य जगत टिका हुआ । जिन के द्वारा इस विश्व की सृष्टि हुई है और जो इसका पालन पोषण करते हैं लेकिन वे इस दृश्य जगत से परे एवं श्रेष्ठ हैं उन भगवान की में शरण लेता हूं । अपनी संकल्प शक्ति से प्रकट किए हुए इस विश्व को प्रलय काल में उसी प्रकार अप्रकट कर देने वाले जो साक्षी रूप से इस जगत को देखते रहते हैं और कभी इसमें लिप्त नहीं होते वह प्रभु मेरी रक्षा करें ।

समय के प्रवाह से प्रलय काल में सारे लोकों और पंचभूत से लेकर संपूर्ण प्रकृति विलीन हो जाने पर उस समय अपार अंधकार प्रकृति ही बची थी । लेकिन उस समय भी जो प्रभु अपने परमधाम में सर्व व्यापक रहते हैं में मेरी रक्षा करें ।

इस प्रकार गजेंद्र ने भगवान की स्तुति की जिसका कुछ अंश हमें आपको बताया । गजेंद्र को दुखी देखकर तथा उसके द्वारा स्तुति को सुनकर भगवान सुदर्शन चक्र धारण करके इच्छा के अनुरूप वेग से चलने वाले गरुण जी की पीठ पर सवार होकर देवताओं के साथ तत्काल ही उस स्थान पर पहुंच गए जहां वह गजेंद्र मुसीबत में फसा हुआ था ।

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सरोवार के भीतर घड़ियाल के द्वारा पकड़े हुए हाथी ने आकाश में गरुड़ की पीठ पर सवार भगवान श्री हरि को आते देखा । गजेंद्र ने बड़ी ही मुश्किल से एक कमल का फूल उठाया और भगवान को प्रणाम किया । हाथी को पीड़ित देखकर श्री हरि तुरंत ही गरुड़ को छोड़कर नीचे झील पर आ गए और दया से प्रेरित हो गए । उन्होंने तुरंत ही चक्र से उस घड़ियाल का मुंह चीरकर उसके चंगुल से हाथी को बचा लिया ।

हाथी का पिछले जन्म

गजेंद्र पिछले जन्म में इन्द्रद्युम्न नाम के एक राजा थे । अपने पिछले जन्म में इन्द्रद्युम्न महाराज ने वैराग्य ले लिया और एक आश्रम में छोटी सी कुटिया बनाकर रहने लगे । उनके सर पर जटाएं थीं और वे हमेशा तपस्या में लगे रहते थे । एक बार वह मौन व्रत धारण किये भगवान की पूजा में तल्लीन थे और भगवत प्रेम के आनंद में डूबे हुए थे तभी वहां पर अगस्त्यमुनि अपनी शिष्य मंडली के साथ आ गए ।

जब उन्होंने राजा को इस हालत में देखा और राजा ने उठकर उनका स्वागत सत्कार नहीं किया तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए । अगस्त्य मुनि ने राजा को श्राप दे दिया कि तुमने ब्राह्मण का अपमान किया है और तुम एक आलसी हाथी की तरह बैठे रहे इसलिए तुम एक हाथी का शरीर प्राप्त करो । इस प्रकार श्राप देकर अगस्त्य मुनि अपने शिष्यों के साथ उस स्थान से चले गए ।

राजा भगवान के भक्त थे इसलिए अगले जन्म में हाथी बनने पर भी उन्हें याद रहा कि भगवान की पूजा और स्तुति किस तरह की जाती है और जब वे संकट में पड़े तब उन्होंने भगवान की स्तुति की और भगवान ने आकर उनका उद्धार किया ।

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