विदुर ने बताये दुष्ट लोगों के लक्षण जब विदुर ने दुर्योधन को समझाने की कोशिस की । उधर अज्ञातवास के बाद अर्जुन ने राजा को बताया कि बृहन्नालाके रूप में स्वयं वे अर्जुन हैं और उन्होंने ही वह युद्ध जीता था । तबेले में और गोशाला में जो काम करते थे वो नकुल और सहदेव हैं । सैरंध्री और कोई नहीं वल्कि द्रोपदी ही हैं ।
पिछली कहानी भाग 29 में बताई गयी हे जिसे आगे क्लिक करके पढ़ा जा सकता है – महाभारत विराट पर्व – पांडवों का अज्ञातवास
इसके बाद विराट ने युधिष्ठिर महराज को शास्टांग प्रणाम किया और कहा कि मत्स्य देश तो वे स्वीकार करें लेकिन उन्होंने मना कर दिया । विराट ने कहा कि काम से काम अर्जुन उनकी बेटी उत्तरा से विवाह कर लें । अर्जुन ने कहा कि वे उत्तरा को अपनी बहु के रूप में स्वीकार करेंगे ।
विराट ने कहा कि अर्जुन उत्तरा से विवाह करते तो सही रहता तब अर्जुन ने कहा कि वे उत्तरा को नृत्य सिखाया करते थे और उन्होंने उत्तरा को हमेशा अपनी बेटी के रूप में देखा है इसलिए उनका विवाह वे अपने बेटे अभिमन्यु के साथ कराएँगे ।
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विदुर ने बताये सज्जन पुरुषों के गुण
उधर धृतराष्ट्र को यह दर सत्ता रहा था कि युद्ध में उसके पुत्र मारे जायेंगे । धृतराष्ट्र ने विदुर को बुलाकर अपने मन का हाल सुनाया । विदुर ने बताया कि सज्जन पुरुषों के अंदर कौन से गुण होते हैं । वो संसार के द्वंदों से विचलित नहीं होते । दूसा यह है कि वे हमेशा ध्यान से सुनते हैं । अगर कोई सुभचिन्तक उनको कुछ बताये तो वे बड़े ध्यान से सुनते हैं । कोई भी आपदा आने पर वे विचलित नहीं होते ।
सबका सम्मान करते हैं और और अपने मन और इन्द्रियों पर संयम रखते हैं । इंद्रिय तृप्ति से हमेशा बचते हैं और कभी भी समय खराब नहीं करते । कोई भी काम हो उसे अधूरा नहीं छोड़ते । न वो किसी की चापलूसी करते हैं और न ही किसी से चापलूसी लेते हैं ।
ये कभी किसी के अंदर दोष नहीं देखते । ये क्षमा करना जानते हैं और कभी भी अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते ।
विदुर ने बताये दुष्ट लोगों के लक्षण
दुष्ट लोगों के गुण भी विदुर जी ने बताये । दुष्ट लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दूसरों का शोषण करते हैं । ऐसे लोग अपने शुभचिंतकों से घृणा करते हैं क्यूंकि वे सत्य बोलते हैं और चापलूसों को बहुत ज्यादा पसंद करते हैं ।
इनका मन हमेशा संसयों से भरा रहता है । ये अविश्वसनीय पर विश्वास करते हैं और विश्वसनीय पर विश्वास नहीं करते और अपनी गलती छुपाने के लिए दूसरों पर दोषारोपण करने से नहीं चूकते । ये दान देने की क्षमता होने पर भी दान देने से हिचकिचाते हैं ।
ये बिना आमंत्रित किये हुए कहीं पर भी पहुँच जाते हैं और बहुत जयादा बोलकर अपना और दूसरों का समय खराब करते हैं । ऐसे लोग हंस के सामान लोगों की प्रशंसा करते हैं और जो कौवे के सामान हैं उनकी प्रशंसा करते हैं ।
विदुर ने बताय कि वे पांच कार्य कौन से हैं जिनके करने से उम्र काम हो जाती है । ये पांच काम हैं ज्यादा खाना, क्रोध करना, काम वासना, वहुत अधिक बोलना, परिवार के प्रति मोह करना ।
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अगर किसी व्यक्ति का व्यवहार सही नहीं होता तो उसकी शारीरिक सुंदरता खराब हो जाती है और शरीर के अंदर बीमारियां आ जाती हैं । गलत व्यवहार करने से बुद्धि का भी नाश होता है और धर्म में रूचि खत्म हो जाती है ।
वास्तव में आपके साथी कौन हैं? विदुर ने बताया कि हमारे वास्तविक साथी हैं ज्ञान, तपस्या, आत्मसंयम और अनासक्ति । जिस व्यक्ति के जीवन में सुभचिन्तक हैं उसके जीवन में कभी अमंगल प्रवेश नहीं करेंगे । दूसरा है दिव्य ज्ञान और यह हमारी भय से रक्षा करता है । तपस्या से कृपा प्राप्त होती है । आत्मसंयम से लाभ प्राप्त होता है । आत्मसंयम न होने से व्यत्कि अपना नुक्सान करता है ।
अनासक्ति से हमें शक्ति और शांति दोनों प्राप्त होते हैं । यहाँ पर विदुर यह बताना चाहते हैं कि अपने बेटे दुर्योध्दान से आसक्त होने के कारण धृतराष्ट्र कमजोर पड़ जाते हैं और अशांत रहते हैं ।
इसके बाद विदुर ने सोचा कि धृतराष्ट्र उनकी बात नहीं मान रहे हैं तब उन्होंने सनद कुमार को बुलाकर कहा कि वे धृतराष्ट्र को ज्ञान दें । सनद कुमार ने भी वही सब बातें कहीं जो विदुर ने कहीं थीं तब धृतराष्ट्र को जाकर विश्वास हुआ ।
जब पांडव वनवास से वापिस आ गए तब सब जगह यह चर्चा चल रही थी कि अब क्या होना चाहिए । द्रुपद ने ब्राह्मणों से कहा कि कौरवों को जाकर कुछ सलाह देना ताकि उनका समय खराब हो जाए । तब तक द्रुपद पांडवों के साथ मिलकर और अन्य राजाओं को उनके पक्ष में करके पांडवों की ताकत बड़ा देंगें ।
इसके बाद जब दुर्योधन को यह बात पता चली तो वह तुरंत ही भगवान कृष्ण के पास चला आया । तभी वहां पर अर्जुन आये और भगवान कृष्ण के चरणों के पास बैठ गए जबकि दुर्योधन भगवान के सर की तरफ सोफे पर बैठा था । भगवान् ने सबसे पहले अर्जुन को देखा और उनकी खबर ली ।
तभी दुर्योधन बोल पड़ा कि पहले वो आया था । दुर्योधन ने कहा कि अगर युद्ध होगा तो भगवान किसकी तरफ होंगे । भगवान ने कहा कि एक तरफ उनकी 10 करोड़ सैनिकों की नारायणी सेना रहेगी और दूसरी तरफ भगवान स्वयं रहेंगे लेकिन वे युद्ध में हथियार नहीं उठाएंगे ।
भगवान ने कहा कि दोनों में से तुम कोई एक को लेने का निर्णय कर लो । भगवान ने कहा कि पहला मौका वे अर्जुन को देंगे क्यूंकि उन्होंने सबसे पहले अर्जुन को देखा था । दुर्योधन ने सोचा कि कहीं अर्जुन नारायणी सेना न मांग लें लेकिन अर्जुन ने भगवान कृष्ण को ही चुना ।
दुर्योधन खुश हो गया और उसने नारायणी सेना ले ली । भगवान ने अर्जुन से पूछा कि उन्होंने भगवान को क्यों चुना जबकि वे निहत्ते रहेंगें । अर्जुन ने कहा कि प्रभु मुझे आप ही चाहिए क्योंकि मुझे जीत हार से कोई फर्क नहीं पड़ता ।
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यहाँ जो सेना भगवान ने दुर्योधन को दी थी वह नारायणी सेना नहीं वल्कि दानवों की सेना थी । इसके बाद दुर्योंधन बलराम जी के यहाँ गया और कहने लगा कि वे दुर्योधन की तरफ से लड़ें । बलराम जी ने कहा कि उनकी कृष्ण से बहुत अधिक आसक्ति है इसलिए वे उसी तरफ से लड़ते हैं जिस तरफ से कृष्ण लड़ते हैं ।
बलराम जी ने कहा कि दुर्योधन उनके पास मदद मांगने के लिए आया है इलसिए वे उसकी यह मदद कर सकते हैं कि वे पांडवों की तरफ से भी नहीं लड़ेंगे । इसलिए बलराम जी महाभारत के युद्ध के समय तीर्थाटन पर निकल गए थे ।
संजय ने पांडवों से आकर कहा कि वे 13 सालों से कंदमूल ही खा रहे हैं और तपस्या कर रहे हैं जिससे उनके शरीर कमजोर हो गए हैं । इसलिए पांडवों को युद्ध के बारे में न सोचकर जो दुर्योधन दे दे उसी में संतुष्ट रहना चाहिए । जब भगवान् कृष्ण ने सुना तो उन्होंने संजय को डांट लगाते हुए कहा कि वो अपने मालिकों को जाकर यह सन्देश दें कि पांडवों की विनम्रता को कमजोरी न समझें ।
अर्जुन ने अभी सबको विराट युद्ध में हराया था और उसी समय सबको मार भी सकते थे लेकिन उन्होंने दया करके सबको छोड़ दिया । इसके बाद भगवान् ने संजय से यह सन्देश भेजने को कहा कि धृतराष्ट्र पांडवों को इंद्रप्रस्थ दे दे । या फिर काम से काम पांडवों को पांच गाँव दे दे ।
संजय ने जाकर धृतराष्ट्र को सुनाया कि अगर दुर्योधन ने पांडवों की बात नहीं मानी तो वे दुर्योधन को उसी तरह घास पर लिटायेंगे जैसे वे इतने साल वन में लेटते रहे हैं । संजय ने वहां पर एक ब्राह्मण आया और उसने अर्जुन से कहा कि तुम्हारे आगे या तो इंद्र रहेंगे या भगवान् कृष्ण तब अर्जुन ने कहा कि वह भगवान् कृष्ण को चुनते हैं ।
यह बात सुनकर धृतराष्ट्र ने कहा कि बिलकुल सही बात कही तुमने । धृतराष्ट्र ने कहा कि विदुर ने सही ही कहा था कि दुर्योधन को पैदा होते ही मार देना चाहिए था । धृतराष्ट्र ने कहा कि उस समय से वे दुर्योधन का त्याग करते हैं । दुर्योधन ने कहा कि वह पांडवों को मारने में सक्षम है तब भीष्म पितामह ने कहा कि अभी कुछ ही समय पहले अर्जुन ने दुर्योधन और कर्ण को बिना कपड़ों के भेजा है ।
कर्ण ने कहा कि इस बार वह जीत जायेगा तब भीष्म पितामह ने कहा कि अर्जुन ने अभी अभी तुम्हारा कान छेद कर तुम्हें बिना कपड़ों के भेजा है । भीष्म पितामह ने कहा कि अब कौरवों को पांडवों से संधि कर लेनी चाहिए । दुर्योधन ने कहा कि वह तो खुद ही पांडवों से युद्ध ही करना चाहता है ।
तब भीष्म पितामह और धृतराष्ट्र ने उन सबको डांट लगायी और दुर्योधन अपने चमचों के साथ वह से भाग गया ।
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