द्रोणाचार्य के आश्रम में पांडवों और कौरवों की शिक्षा
अब तक हमने देखा कि पांडवों और कौरवों का द्रोणाचार्य के आश्रम में प्रवेश किस तरह हुआ । अगर आपने अभी तक की कहानी नहीं पड़ी है तो यहां क्लिक करके पड़ सकते है – कौरवों का जन्म
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द्रोणाचार्य के आश्रम में सारे भाई बहुत ही अच्छे से सारी युद्ध कलाएं सीख रहे थे । लेकिन द्रोणाचार्य अपने बेटे अश्वत्थामा के प्रति ज्यादा केंद्रित थे और उसे कुछ ऐसी विद्याएं सिखाया करते थे जो बाकी पांडवों और कौरवों को नहीं सिखाते थे । गुरुकुल में गुरु के लिए काम करना होता है, जैसे लड़की काट कर लाना या पानी भर कर लाना । द्रोणाचार्य ने अपने बेटे अश्वत्थामा को पानी भरने के लिए एक बड़ा चौड़ा बर्तन दिया हुआ था जिससे वे बड़ी ही जल्दी पानी भर लिया करते थे और वहीं बाकी सब को सकरे ( पतले ) वर्तन दिए हुए थे जिससे उन्हें पानी भर कर लाने में देरी हो जाती थी ।
अश्वत्थामा पानी भर कर जल्दी वापिस आ जया करता था और द्रोणाचार्य उसे कुछ अधिक कलाएं सिखाया करते थे । जब अर्जुन को यह बात पता चली तो वे अपना पानी का वर्तन वरुण अस्त्र से भरकर जल्दी ही गुरु के पास पहुंच जाया करते थे । अर्जुन की लगन देखकर द्रोणाचार्य ने अर्जुन को भी वही विद्याएं सिखाना शुरू कर दीं जो वे अश्वत्थामा को सिखाया करते थे ।
द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य से गुरुदीक्षा
एक दिन एक राजकुमार एकलव्य द्रोणाचार्य के पास आया और उसने भी उनसे युद्ध कला सीखने की इच्छा प्रकट की l द्रोणाचार्य ने यह कहकर उसे टाल दिया कि वे केवल ऊंची जाति वालों को सिखाया करते हैं और एकलव्य एक निम्न जाती के हैं इसलिए वे उन्हें नहीं सिखाएंगे । एकलव्य वहां से चला गया लेकिन उसने छिपकर द्रोणाचार्य के आश्रम से विद्या प्राप्त की और अकेले में उसका अभ्यास करने लगा । जब द्रोणाचार्य को पता चला कि ऐसा हुआ है तो वे एकलव्य के पास पहुंचे और उससे पूछा कि उसके गुरु कौन हैं ।
उसने बताया कि द्रोणाचार्य ही उसके गुरु हैं क्योंकि वह छिपकर उन्हीं से सीखा करता था और उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति भी बना रखी थी । द्रोणाचार्य ने कहा तो फिर मुझे गुरु दक्षिणा दो और मुझे गुरु दक्षिणा मे दाएं हाथ का अंगूठा चाहिए । एकलव्य के अपने दाएं हाथ का अंगूठा काट कर दे दिया । अब वह एक अच्छा योद्धा नहीं बन सकता था क्योंकि अंगूठे के बिना भला कौन धनुष चला सकता है ।
गुरु द्रोणाचार्य ने ऐसा एकलव्य की मनसा जानकर किया । एकलव्य अर्जुन से बेहतर बनना चाहता था लेकिन जहां अर्जुन धर्म की रक्षा करने की मनसा रखते थे वहीं एकलव्य धर्म विरुद्ध कार्य करने में रुचि लेता था । द्रोणाचार्य यह बात पहले ही समझ गए और उससे अंगूठा मांगकर उसकी लीला समाप्त कर दी ।
अगर द्रोणाचार्य ऐसा नहीं भी करते तब भी एकलव्य अर्जुन से बेहतर कभी नहीं बन सकता था । अर्जुन अकेले ही सारी कौरव सेना को हरा दिया करते थे और यहां तक कि देवताओं और गंधर्वों को भी । अर्जुन ने विराट युद्ध में सारे कौरवों को अकेले ही हरा दिया था । विराट युद्ध के बारे में यह आप यहां पड़ सकते हैं – महाभारत का विराट युद्ध ।
जिन व्यक्ति को भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं ही भागवत गीता सुनाई और विराट रूप दिखाते हुए कहा कि यह रूप तुमसे पहले किसी से नहीं देखा वे अर्जुन कितने ही महान होंगे । दूसरी ओर एकलव्य जो भगवान से लड़ने के लिए आया और पहले ही वार में ढेर हो गया । अगर एकलव्य अच्छा व्यक्ति होता तो उसे धर्म का पक्ष चुनना चाहिए था नाकि भगवान से ही युद्ध करने हास्यप्रद मूर्खता करनी चाहिए थी जो प्रायः असुर किया करते हैं ।
अर्जुन की विलक्षणता
एक दिन द्रोणाचार्य ने पेड़ से एक मिट्टी का पक्षी बांध दिया और एक एक करके सबको उसकी आंख पर निशाना लगाने के लिए बुलाया । आचार्य ने सबसे पहले युधिस्ठिर को बुलाकर और उनसे पूछा कि उन्हें क्या दिख रहा है । युधिस्ठिर ने कहा कि उन्हें पेड़ पर बैठा पक्षी दिख रहा है, पेड़ की टहनियां और पत्ते भी दिख रहे हैं । भीम को बुलाया तो उन्होंने कहा कि उन्हें पेड़ पर पक्षी दिखा रहा है और काफी सारे फल दिख रहे हैं ।
इसी तरह एक एक करके सभी आते रहे लेकिन द्रोणाचार्य ने किसी को भी तीर चलाने के लिए नहीं कहा । लेकिन जब अर्जुन की बारी आई तो उन्होंने कहा कि उन्हें सिर्फ पक्षी ही दिख रहा है वल्कि उसकी आंख ही केवल दिख रही है । द्रोणाचार्य ने अर्जुन से तीर छोड़ने को कहा और वो तीर सीधे जाकर पक्षी की आंख पर लगा ।
एक दिन द्रोण नदी में स्नान कर रहे थे लेकिन उनको एक मगरमच्छ ने जकड़ लिया । अब द्रोणाचार्य चाहते तो स्वयं ही मगरमच्छ को मार सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और मदद के लिए पुकारने लगे । गुरु के लिए अपने आप को जोखिम में कोई भी नहीं डालना चाहता था लेकिन जब अर्जुन आए तो उन्होंने जल्दी ही मगरमच्छ को मारकर द्रोणाचार्य की रक्षा की ।
इसी तरह कुरुवंशियों की सिक्षा पूरी हुई और उन सब ने क्या सीखा यह देखने के लिए रंगशाला की व्यवस्था की गई । एक एक करके सभी भाई रंगशाला मे अपना हुनर दिखाने लगे । सबसे पहले युधिस्ठिर आए और उन्होंने गधा और भला चलाकर दिखाया जिससे सब बड़े ही प्रभावित हुए ।
अगली बारी भीम और दुर्योधन की आई । भीम और दुर्योधन बचपन से ही दुश्मनी रखते थे और दोनो कौशल दिखाने की जगह लड़ने लग गए । दोनो को जैसे तैसे अलग किया गया और अगली बारी अर्जुन की आई । अर्जुन ने आते ही तीर छोड़े जो द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और उनकी माता कुंती के चरणों में जाकर फूलों की वर्षा करने लगे ।
इसके बाद उन्होंने अग्नि अस्त्र चलाया जिससे इतनी ज्यादा अग्नि जलने लगी कि मानो सबको ही जला देगी । लेकिन अगले ही क्षण अर्जुन ने वरुण अस्त्र छोड़ा जिससे पानी की वर्षा हुई और सारी अग्नि बुझ गई । यह देखकर सभी लोग बड़े प्रभावित हुए । अर्जुन ने अंतर्ध्यान अस्त्र छोड़कर दिखाया जिससे वे गायब हो गए । अर्जुन ने कई सारे तीर चलाए जैसे कि हवा में पहाड़ बना दिया और फिर तीर मारकर उसे रेत कर दिया ।
आज के लिए इतना बस ही । अगले पोस्ट में पड़ेंगे किस तरह रंगसाला में अचानक से कर्ण का आगमन हुआ और दुर्योधन की उससे दोस्ती हुई । और आगे की कहानी भी जानेंगे अगली पोस्ट में । अगली पोस्ट की जानकारी पाने के लिए यहां क्लिक करके व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करें – WhatsappGroup ।