दूसरों की निंदा करने से क्या होता है

निंदा

निंदा किसे कहते हैं ?

किसी व्यक्ति विशेष के दोषों के बारे में किसी से चर्चा करने को ही निंदा कहते हैं । निंदा करना एक स्वाभाविक सा कार्य है जो आज के समय की जीवन प्रणाली में देखा जाता है । निंदा करने में लोग एक अलग ही आनंद की अनुभूति करते हुए देखे गए हैं । दोस्तों निंदा करने में क्या बारे है? यह हम जानेंगे आज के इस पोस्ट के माध्यम से । क्या हमें दुसरे का उपहास उड़ाना चाहिए या नहीं? यह भी जानेंगे इस पोस्ट में, तो getgyaan पर आपका स्वागत है, बने रहिये अंत तक हमारे साथ ।

निंदा करना पाप है या पुण्य

निंदा करना पाप है या पुण्य यह समझाने के लिए हम आपको एक कथा बताते हैं । एक बार की बात है एक चील सांप को पकड़कर ले गया । चील सांप को पकड़कर आसमान में उड़ रहा था और सांप उसके मुँह से छूट गया । सांप आसमान से नीचे गिरने लगा और एक राजा के बगीचे में गिरा ।

राजा के यहाँ विवाह समारोह चल रहा था और बड़ी मात्रा में भोजन बनाया जा रहा था । सांप सीधे जाकर भोजन के एक बहुत बड़े वर्तन में जाकर मर गया । सांप के जहर से वह सारा भोजन विषैला हो गया ।

विवाह के बाद सारे बरातियों को वह विषैला भोजन परोसा गया जिसे खाकर सारे बाराती एक एक करके मरने लगे । जब सारे बाराती मर गए तो चित्रगुप्त ने सोचा कि इनकी मृत्यु का पाप किसे लगना चाहिए । अब सांप कि कोई गलती नहीं थी क्यूंकि वह तो अपनी जान बचाने के लिए ही चील के मुँह से आजाद हुआ था ।

चील की भी कोई गलती नहीं थी क्यूंकि वह तो अपना पेट भरने के लिए सांप को लेकर जा रहा था । बाद में चित्रगुप्त ने सोचा की इस पाप का जिम्मेदार रसोइये को होना चाहिए लेकिन रसोइए को तो पता ही नहीं चल पाया कि कब वह सांप भोजन की कड़ाई में आकर गिर गया? इसलिए रसोइआ भी पापी नहीं था ।

तब यह सवाल हल करने के लिए एक बैठक बुलायी गयी और सब ने अपने अपने मत दिए । अंत में यह निर्णय लिया गया की बारातियों की मृत्यु का पाप उन लोगों को लगेगा जो बिना वजह सबकी निंदा करते रहते हैं । चित्रगुप्त को राजा के राज्य में कुछ लोग मिल गए जो हमेसा किसी न किसी की निंदा किया करते थे और उन्ही को बारातियों की मौत का पाप लगा ।

दोसतो निंदा करने से हमें वह पाप भी लग सकते हैं जो हमने कभी किए ही नहीं हैं । इसलिए निंदा करते वक्त बहुत ही ज्यादा सावधान रहना चाहिए । जहाँ तक संभव हो सके तो निंदा बिलकुल भी नहीं करनी चाहिए ।

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लोग निंदा क्यों करते हैं?

निंदा करने का मतलब होता है ईर्ष्या करना । जो लोग ईर्ष्यालु होते हैं वे दूसरे की निंदा किया करते हैं । ईर्ष्यालु व्यक्ति का कोई इलाज नहीं होता इसलिए हमेसा उससे दूर रहना चाहिए । ईर्ष्यालु व्यक्ति के साथ आप भले ही कितने भी अच्छे से पेश आएं लेकिन मौका आने पर वह आपके पीठ में खंजर जरूर मरेगा ।

ईर्ष्यालु व्यक्ति को कैसे पहचाने?

ईर्ष्यालु व्यक्ति को बहुत ही आसानी से पहचाना जा सकता है । जब भी आपका कुछ अच्छा हो रहा होगा तो उस व्यक्ति का चेहरा मुरझा जायेगा जो आपसे ईर्ष्या करता है । इस तरह के व्यक्ति आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए हर मुमकिन प्रयास करते हैं । ईर्ष्यालु व्यक्तियों से बचने का एक मात्र उपाय यह है कि इनसे दूर रहा जाए । अगर आपको इनके साथ मजबूरी में रहना पड़ता है तो न्यूनतम संबंधों के साथ ही इनके साथ काम करना चाइए ।

लोग ईर्ष्या क्यूं करते हैं?

इसका कोई साफ कारण नहीं है कि लोग एक दूसरे की निंदा क्यों करते हैं । हर व्यक्ति का अपना एक अलग स्वभाव होता है जिसे वह चाहकर भी नहीं छोड़ पाता । इसी तरह जिस व्यक्ति का ईर्ष्यालु स्वभाव होता है वह हर किसी से ईर्ष्या करता है ।

ईर्ष्या करना सबसे बुरा गुण माना गया है । अक्सर जब लोग आपके स्तर पर नहीं आ पाते तो वह आपसे ईर्ष्या करने लग जाते हैं और आपको नीचा दिखने का प्रयास करते रहते हैं ।

आपके पास अगर कुछ ऐसा है जो सामने वाले के पास नहीं है तो वह आपसे ईर्ष्या करेगा, आचार्य चाणक्य के अनुसार यही इस संसार का नियम मना गया है । आचार्य चाणक्य के अनुसार निर्धन धनी से ईर्ष्या करता है । अनपढ़ पड़े लिखे से और इसी तरह समाज में विपरीत स्तर वाले लोग अक्सर एक दूसरे से ईर्ष्या किया करते हैं ।

निंदा को कैसे सहें?

दोस्तों लोगों का काम ही है निंदा करना, इससे सम्बंधित एक कहानी हम आपको बताते हैं । एक बार की बात है एक 7 पूंछ का चूहा हुआ करता था और वह बहुत परेशान रहता था । चूहे को सब चिढ़ाते रहते थे की उसके पास सात पूंछ हैं ।

लोग उसे 7 पूंछ का चूहा कहकर चिढ़ाया करते थे जिससे वह एक दिन तंग आ गया । उसने सोचा कि एक पूछ कटवा लेने से फिर कोई उसे 7 पूंछ का चूहा नहीं बोल पायेगा और उसने ऐसा ही किया । नाई के पास जाकर उसने अपनी एक पूंछ कटवा ली ।

जैसे ही वह लोगों के सामने आया लोग उसे 6 पूंछ का चूहा कहकर चिढ़ाने लगे । इसी तरह चूहे ने अपनी एक एक पूछ कटवा ली परन्तु लोग उसे चिढ़ाते ही रहे । जब चूहे के पास एक ही पूंछ बची थी तो लोग उसे 1 पूंछ का चूहा कहकर चिढ़ाने लगे । व्याकुल चूहे ने एक बची पूंछ भी कटवा ली और लोग उसे बिना पूंछ का चूहा कहकर चिढ़ाने लगे । अंत में उसे समझ आया की लोग तो निंदा करेंगे ही परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।

कहीं आपके साथ भी देर न हो जाये इसलिए लोगों की निंदा को दिल पर मत लीजिये । दोस्तों, लोग को कहेंगे ही लोगों का काम है कहना, लेकिन आप हमेसा अपने भले के लिए काम करते रहना । इसी के साथ आज का लेख समाप्त करते हैं ।

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