बर्बरीक महाभारत काल के एक महान योद्धा थे जिन्होंने वचन लिया था कि वे उस पक्ष से लड़ेंगे जो पक्ष लड़ाई में कमजोर हो । एक बार की बात है बर्बरीक पांडवों के समक्ष अपना शस्त्र कौशल दिखा रहे थे । उसने ने एक तीर छोड़ा जिसे एक पेड़ के सारे पत्तों को भेद कर तूणीर में वापिस आना था । बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया क्योंकि एक पत्ता भगवान के पैरों के नीचे था । भगवान श्री कृष्ण ने अपना पैर हटाया और फिर वह बाण उस पत्ते को भेद कर तूणीर मे वापिस आ गया ।
भगवान ने तब बर्बरीक से कहा कि वे पांडवों की ओर से लड़े लेकिन बर्बरीक ने मना कर दिया । तब भगवान ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया । बर्बरीक ने अपना सिर काटकर भगवान को दे दिया । बर्बरीक ने भगवान से एक वरदान मांगा कि वे एक जगह रहकर भी सारा युद्ध देख सकें ।
भगवान ने बर्बरीक को दिव्य दृष्टि दी जिससे वे एक जगह रहकर ही सारा महाभारत का युद्ध देख सकें ।
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बर्बरीक ने देखा महाभारत का युद्ध
एक बार की बात है महाराज युधिष्ठिर भीष्म पितामह से आशीर्वाद मांगने गए ।भीष्म पितामह ने पांडवों को विजयी होने का आशीर्वाद दिया ।
महाभारत युद्ध के पहले दिन भीष्म पितामह ने भयंकर युद्ध किया । कोई भी रथी महारथी गंगापुत्र के सामने टिक नहीं पाता था । बर्बरीक भीम पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे । महाभारत के पहले दिन गंगापुत्र भीष्म ने 10,000 सैनिक मारे । भीष्म पितामह ने यह प्रतिज्ञा ले रखी थी कि वो हर दिन कम से कम 10,000 सैनिकों को मारेंगे ।
जब महाभारत युद्ध के दो दिन बीत गए तब दुर्योधन ने भीष्म पितामह को ताने देना शुरू कर दिया । दुर्योधन का कहना था कि भीष्म पितामह पांडवों के प्रति अपने प्रेम के कारण उनको मार नहीं रहे हैं । दुर्योधन को खुश करने के लिए भीष्म पितामह ने यह प्रतिज्ञा ली कि आज के दिन या तो वे अर्जुन को मार देंगे या उन्हें बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण को हथियार उठाना पड़ेगा ।
अगले दिन भीष्म पितामह ने कुछ इस तरह युद्ध किया कि अर्जुन को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने रथ का पहिया उठा लिया । भीष्म पितामह भी भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे और भगवान का यह रूप देख कर वो खुश होए गए और उन्होंने अपना उग्र रूप शांत कर लिया । जब बर्बरीक से जाकर युधिष्ठिर महाराज ने पूछा कि महाभारत के युद्ध में सबसे ज्यादा महान योद्धा कौन रहा ।
तब बर्बरीक ने जवाब दिया कि उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि बाकी सब तो बस हथियार और धनुष बाण चला रहे थे लेकिन वास्तव में सबको भगवान श्री कृष्ण ही अपने सुदर्शन चक्र द्वारा मार रहे थे । इसलिए महाभारत के सबसे महान योद्धा तो भगवान श्री कृष्ण हैं ।
बर्बरीक के दादा भीम ने किस तरह महाभारत का युद्ध लड़ा
बर्बरीक ने देखा कि उनके दादा भीम ने युद्ध मे हाहाकार मचा रखी है । 10,000 हाथियों के बल वाले भीम ने कौरवों के हजारों सैनिकों को मार दिया । भीम इतने अधिक बलवान थे कि अपनी दहाड़ से ही हजारों सैनिकों को मार दिया करते थे ।
जब दुर्योधन ने यह देखा तो उसने अपने 12 भाईयों को इकठ्ठा भीम के साथ लड़ने भेजा जिनमे से 8 को तो भीम ने बड़ी ही आसानी से मार डाला । दुर्योधन परेशान हो गया और उसने पितामह भीम से पूछा कि इतनी अधिक सेना के बाद भी वे पांडवों से जीत क्यों नहीं पा रहे हैं । पितामह भीष्म ने बताया कि वो इसलिए जीत नहीं पा रहे क्योंकि पांडवों के पक्ष मे स्वयं पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण हैं । उस दिन दुर्योधन को पता चला कि कृष्ण परम ईश्वर हैं ।
अगले दिन दुर्योधन ने फिर से भीष्म पितामह पर आरोप लगाना शुरू कर दिया कि वे पांडवों के प्रति अपने स्नेह के कारण सही से नहीं लड़ रहे । तब भीष्म पितामह ने मंत्रों से संचारित करके पांच तीर तैयार किये । भीष्म पितामह ने कहा कि वे अगले दिन पाँचों पांडवों को उन तीरों द्वारा मार डालेंगे । दुर्योधन ने वो पाँचों तीर भीष्म पितामह से मांगकर अपने पास रख लिए ताकि कुछ गड़बड़ ना हो जाए ।
भगवान ने किस तरह की पाँचों पांडवों की रक्षा
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को याद दिलाया कि किस तरह उसने एक बार दुर्योधन की रक्षा की थी और दुर्योधन ने अर्जुन से कुछ मांगने को कहा था । अर्जुन ने कहा था कि वक्त आने पर वे दुर्योधन से अवश्य ही कुछ न कुछ मांग लेंगे । भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वे दुर्योधन से जाकर वो पांच तीर मांग लें ।
दुर्योधन ने अर्जुन का स्वागत किया और जब अर्जुन ने उसे गांधर्वों का युद्ध याद दिलाया तो दुर्योधन मान गया । दुर्योधन ने अर्जुन से कहा कि वो जो कुछ भी मांगेंगे दुर्योधन देने को तैयार है । दुर्योधन को मालूम था कि कल पांचो पांडव मारे जायेंगे और जो कुछ भी दुर्योधन अर्जुन को देगा वो उसके पास वापिस आ जायेगा ।
अर्जुन ने दुर्योधन से वो पाँचो तीर मांग लिए । दुर्योधन हैरान रह गया कि आखिर अर्जुन को उन तीरों के बारे मे कहाँ से पता चला । तब अर्जुन ने बताया कि उसे यह बात भगवान श्री कृष्ण ने बताई है । दुर्योधन यह बात जानकर हैरान नहीं हुआ क्योंकि उसे भीष्म पितामह ने पहले ही बता दिया था कि कृष्ण परम भगवान हैं ।
दुर्योधन भीष्म पितामह से वो तीर दोबारा बनवा सकता था लेकिन अब वो उन्हें नहीं बनाते । दरसल में हुआ ये कि जब भीष्म पितामह गहन चिंतन मे थे कि कल उनको पांडवों को मारना है तभी भगवान ने द्रोपदी को उनके कक्ष मे भेजा और उनके चरण छूने को कहा । भगवान ने कहा कि वे बिना किसी पायल और चप्पल के जाएँ और भीष्म पितामह को चुपके से प्रणाम करें ।
द्रोपदी ने ऐसा ही किया , भीष्म पितामह ने द्रोपदी को सोभाग्यवती होने का वरदान दिया । अब क्योंकि भीष्म पितामह ने द्रोपदी को सोभाग्यवती होने का वरदान दे दिया था इसलिए वे उनके पति यानी पांडवों को नहीं मार सकते थे । इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने पाँचों पांडवों की रक्षा की ।
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