भक्त किसे कहते हैं?
किसी को भी पहनावे से भक्त नहीं माना जाता बल्कि उसके लक्षणों से पहचाना जाता है । जो व्यक्ति भगवान से और गुरु से निश्छल व्यवहार करता हो और हर समय भगवान की सेवा में लीन रहता हो उसे भक्त कहते हैं । भक्ति योग को सबसे ऊपर बताया गया है । भगवान श्री कृष्ण गीता में बताते हैं कि भक्ति योग परम गोपनीय है । अर्जुन भगवान के मित्र हैं इसलिए भगवान उनको यह गोपनीय ज्ञान बतला रहे हैं । जब भगवान ने कर्म योग और सांख्य योग अर्जुन को बताया था तब उन्होंने नहीं कहा था कि यह ज्ञान गोपनीय है ।
भक्त बनने के लिए अहंकार के ऊपर नहीं उठना पड़ता । जो भक्त होता है वो अपने मन, बुद्धि और अहंकार सबको भगवान की सेवा में लगा देता है । इस कारण से भक्त एक ही जन्म में भगवान के धाम चला जाता है और ज्ञानी को अहंकार के ऊपर उठने में कई जन्म लग जाते हैं ।
सभी शास्त्रों में भक्तों को ऊपर बताया गया है । भागवत में बताया गया है कि अहेतुकी और अप्रतिहता भक्ति करने से ही आत्मा खुश हो सकती है । अहेतुकी का मतलब है जिसका कोई हेतु यानि कारण ना हो । और अप्रतिहता का मतलब है कि भक्ति किसी भी स्थिति में न रुके । भागवत के प्रथम स्कंध के दुसरे अध्याय के छटवें श्लोक में कहा गया है कि अगर कोई इस तरह बक्ति करता है तो वह हमेशा के लिए खुश हो जायेगा ।
भक्त सब जगह भगवान को देखता है
इन्द्रियों से परे मन है और मन से परे बुद्धि है । बुद्धि से परे अहंकार है । सबमे भगवान के दर्शन करना ज्ञान कहलाता है । ज्ञानी बनने के लिए सबसे पहले अहंकार के ऊपर उठना पड़ता है । इन्द्रियों से सूक्ष्म मन है है, मन से भी सूक्ष्म बुद्धि है, बुद्धि से भी सूक्ष्म अहंकार है ।
निष्काम कर्म योगी से भी भक्त ऊपर है । भक्त सब जगह भगवान को देखता है और सबमे भगवान को देखता है और भगवान की सेवा में हर समय नियुक्त रहता है इसलिए वह ज्ञानी से ऊपर होता है । ज्ञानी भी सबमे भगवान को देखता है ।
योगी के पास सिद्धियां होती हैं लेकिन योगी की भगवान में ज्यादा रूचि नहीं होती । योगी अपने साधन से मुक्ति पाने का प्रयास करता है । योगी के पास बहुत सारी सिद्धियां होती हैं जैसे की अणिमा, लघिमा इत्यादि । कई सारे योगी ऐसे भी होते हैं जो पारे सी सोना बना लेते हैं लेकिन वे भगवान का भजन नहीं करते इसलिए योगी को भक्त से ऊपर नहीं माना जाता ।
भगवान को केवल भक्त ही जान सकता है
तपस्वी के पास भी बहुत अधिक शक्तियां होती हैं । बहुत सारे तपस्वी हुए हैं जिन्होंने कई सारी अद्भुद करतब किये हैं जैसे कि अगस्त्य मुनि ने एक बार सारा समुद्र ही सूखा दिया । तपस्वी श्राप भी दे सकते हैं । दुर्वाशा मुनि तो श्राप देने के लिए प्रसिद्द हैं । भक्त के पास सिद्धियां होतीं हैं लेकिन वे कभी इनका इस्तेमाल नहीं करते । तपस्वी कभी बीमार भी नहीं पड़ते लेकिन भक्त अक्सर बीमार भी पड़ते रहते हैं ।
भगवान श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं कि भक्त्या मामभिजानाति यानि केवल भक्ति से ही भगवान को जाना जा सकता है । भगवान ये नहीं कहते कि ज्ञानी या ध्यानी उनको जान सकता है ।
भगवान कहते हैं कि वे किसी के साथ भेदभाव नहीं करते और सबके ऊपर समदृष्टि रखते हैं । सभी उनके पुत्र हैं और भगवान सबके सुहृद हैं । लेकिन भगवान कहते हैं कि जो भक्त हैं और भगवान से प्रेम करते हैं भगवान भी उनसे प्रेम करते हैं ।