भगवान कृष्ण की कुछ दिव्य लीलाएं
भगवान कृष्ण अक्सर द्वारका छोड़कर इंद्रप्रस्थ में पांडवों के पास आया करते थे । वर्तमान समय की दिल्ली को प्राचीन काल में इंद्रप्रस्थ कहते थे । यह पांडवों के राज्य की राजधानी थी । भगवान कृष्ण पांडवों से अत्यधिक स्नेह करते थे इसलिए वे समय समय पर इंद्रप्रस्थ आते रहते थे । भक्त प्रह्ललाद को भी एक ही बार भगवान के दर्शन हुए लेकिन पांडवों को भगवान कृष्ण के दर्शन हमेशा ही सुलभ थे ।
समाधी को छोड़कर बड़े बड़े ऋषि पांडवों के यहाँ भगवान के दर्शन करने के लिए आते थे । भगवान कृष्ण अपने आप को योगमाया से छुपा कर रखते थे जिससे कुछ भक्तों के अलावा सभी भगवान को साधारण मनुष्य ही समझते थे । एक बार युद्ध में कर्ण ने एक ही बाण से एक अक्षोहणी सेना नष्ट कर दी । भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन को कुछ नहीं हुआ तब कर्ण असमंजश में पड़ गया ।
वेदव्यास जी ने तुरंत प्रकट होकर कर्ण को समझाया कि ये परम भगवान हैं । ये नर और नारायण हैं जो अपने आदि रूप में अवतरित हुए हैं । इतना सुनने और सब कुछ अपनी आँखों से देखने के बाद भी कर्ण को विश्वास नहीं हुआ ।
भगवान कृष्ण ने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया । एक बार दुर्योधन और अर्जुन दोनों भगवान से मदद मांगने के लिए द्वारका आये । भगवान ने कहा कि एक तरफ वो स्वयं रहेंगे और कोई अस्त्र शास्त्र नहीं उठाएंगे और दूसरी तरफ उनकी 1 अक्षोहणी सेना रहेगी । दुर्योधन नहीं जानता था कि कृष्ण भगवान हैं इसलिए उसने नारायणी सेना को चुना ।
भगवान ने की द्रोपदी की रक्षा
जब भरी सभा में द्रोपदी का अपमान हुआ तो भीष्म पितामह और धृतराष्ट्र इस अन्याय को नहीं रोक सके । दुर्योधन ने दुशासन को आज्ञा दी कि द्रोपदी को पकड़कर लाओ । जब द्रोपदी ने देखा कि कोई उनकी मदद नहीं कर रहा है तो उन्होंने द्वारका वासी कृष्ण को अपनी मदद के लिए पुकारा ।
भगवान तो वहां भी थे लेकिन द्रोपदी ने द्वारका वासी कृष्ण कहकर पुकारा इसलिए वे पहले द्वारका गए और फिर भगवान ने ऐसी कृपा की कि द्रोपदी की साड़ी कभी खत्म ही नहीं हुयी और दुशासन साड़ी खींचते खींचते बेहोश हो गया ।
विष्णुपुराण आदि ग्रंथों में भगवान का जो निरूपण है उसमें भगवान के 6 ऐश्वर्यों को बताया गया है । भक्तमाल में जिन भगवान का निरूपण है वे भक्तों से प्रेम करते हैं । वे अपनी ईश्वरता को विलग कर देते हैं । जिस तरह भगवान कृष्ण अपने भक्त अर्जुन के सारथी बने । वे घोड़ों को खाना खिलाते थे और सारथियों के शिविर में रहते थे ।
ईश्वर को यह सब करने की जरूरत नहीं लेकिन भगवान अपने भक्तों के प्रेम में अपनी ईश्वरता को भूल जाते हैं । भगवान की लीलाओं को देख कर बड़े बड़े विद्वान भी मोहित हो जाते हैं । जब भगवान श्री राम और लक्ष्मण को मेघनाद ने पाश में बाँध दिया तब गरुण जी उनको पाश से छुड़ाने के लिए आये ।
ब्रह्मा जी ने ली भगवान की परीक्षा
इसी तरह जब गरुड़ जी ने भगवान राम और लक्ष्मण को नाग पाश से बचाया तो उनको मोह हो गया कि ये कैसे भगवान हैं जिनको एक राक्षस ने पाश में बाँध लिया । ब्रह्मा जी जब भगवान की लीला देखने के लिए ब्रज में आये तब भगवान कृष्णअपने मित्रों के साथ यमुना के किनारे खेल रहे थे । ब्रह्मा जी ने देखा कि भगवान कृष्ण अपने मित्रों के साथ भोजन कर रहे हैं । छोटे छोटे ग्वाल पाल अपना जूठा भोजन भगवान कृष्ण को देते और वे बड़े प्रेम से पा लेते । ब्रह्मा जी को मोह हो गया कि जो पर ब्रह्म बड़े बड़े ऋषि मुनियों के यज्ञों का भोग नहीं लेते वे जूठा कैसे खा सकते हैं ।
ब्रह्मा जी को लगा कि ये तो भगवान नहीं हो सकते । ब्रह्मा जी ने सोचा कि भगवान की परीक्षा लेनी चाहिए । ब्रह्मा जी को ऐसा नहीं करना चाहिए क्यूंकि वे कोई साधारण जीव नहीं हैं । ब्रह्मा जी ने भगवान के सखाओं के सारे बछड़ों को चोरी कर लिया । भगवान बछड़ों को ढूढ़ने के लिए गए तब तक ब्रह्मा जी ने सारे ग्वाल बालों को भी चोरी कर लिया ।
भगवान तो सब जानते ही हैं । भगवान ने सारे बाल सखाओं का रूप ले लिया और खुद ही सारे बछड़ों के रूप में ब्रज में रहने लगे । एक दिन बलदेव जी को शक हुआ कि गायों का उनके बछड़ों में अत्यधिक प्रेम है । ग्वाल बालों में उनके माता पिता का अत्यधिक प्रेम है । बलदेव जी ने ध्यान लगा कर देखा तो पता चला कि श्री कृष्ण स्वयं ही ग्वाल बाल और बछड़े बनकर रह रहे हैं ।
उधर ब्रह्मा जी को लगा कि चलकर देखते हैं ब्रज में सभी रो रहे होंगे और गाय दूध नहीं दे रही होंगी । जब ब्रह्मा जी ने देखा तो वे मोहित हो गए । उन्होंने वापिस जाकर देखा तो पता चला कि वहां भी बछड़े और ग्वाल पाल हैं और यहाँ भी ।
भगवान ने कहा कि वे हमेशा ग्वाल बालों के ऋणी रहेंगे
ब्रह्मा जी दर गए और उन्होंने असली ग्वाल पालों और बछड़ों को वापिस लौटा दिया । ब्रह्मा जी डर गए और उन्होंने भगवान की बड़ी ही गंभीर स्तुति की । भगवान कुछ नहीं बोल रहे थे इसलिए ब्रह्मा जी ने कहा कि ये ग्वाल पाल और गोपियाँ आपसे बहुत प्रेम करते हैं बदले में आप इनको क्या देंगे ।
भगवान कृष्ण कुछ नहीं बोले तो ब्रह्मा जी ने सोचा कि ये इनको मोक्ष दे देंगे । अगले ही पल ब्रह्मा जी ने सोहा कि मोक्ष तो भगवान ने राक्षसों को भी दे दिया । आगे भगवान ने कहा कि वे प्रेम का बदला नहीं चूका सकते और वे हमेशा उनके ऋणी रहेंगे । ब्रह्मा जी वापिस भी चले गए लेकिन भगवान कुछ बोले नहीं ।
जब इंद्र ने ब्रज में वर्षा की थी तब भगवान ने गोवर्धन पर्वत उठाया था । इंद्र ने भी भगवान से क्षमा स्तुति की थी और भगवान खुश हो गए थे । ऐसा इसलिए क्यूंकि इंद्र ने ब्रज वासियों को डुबोने की लिए वर्षा की थी लेकिन वे सभी एक जगह भगवान कृष्ण के पास एकत्रित हो गए थे । इधर ब्रह्मा जी ने भगवान को उनके भक्तों से अलग कर दिया था इसलिए वे ब्रह्मा जी के द्वारा स्तुति करने पर भी खुश नहीं हुए ।