दोस्तो, क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री राम का एक नाम है धीर प्रशांत । अत्यधिक दुख की घड़ी में जो विचलित न हो और हमेशा प्रसन्न रहे ऐसा व्यक्ति तो भगवान के अलावा मिल पाना मुस्किल ही है । भला ऐसा कौन इस जगत में होगा जो राज्यभिसेख के दिन धर्म का पालन करते हुए वनवास चला जाए ।
भगवान श्री राम का राज्याभिषेक होने ही वाला था तब तक मंथरा ने एक साजिश रच दी । दरअसल महाराज दशरथ की तीन पत्निया थीं, कौसल्या, सुमित्रा और कैकई । भगवान श्री राम माता कौशल्या के पुत्र थे ।
माता कैकई के पुत्र का नाम भरत था और भरत भगवान श्री राम के छोटे भाई थे । प्राचीन समय में बड़े भाई को ही राज्य का उत्तराधिकारी बनाया जाता था इसलिए भगवान श्री राम को राजा बनाने का निर्णय लिया गया और महाराज दशरथ ने राज्यभिसेक की तारीख तय कर दी ।
कैकई को मंथरा ने भगवान श्री राम से दूर कर दिया
जब महारानी कैकई की शादी हुई तो उनके मायके से उनकी सबसे भरोसेमंद और बचपन की दासी मंथरा उनके साथ आई । मंथरा महारानी कैकई की दासी थी और कैकई महाराज दसरथ की सबसे प्रिय पत्नी थीं इसलिए मंथरा पूरे राज्य में दबदबा कायम किए हुई थी ।
मंथरा को अब यह चिंता खाए जा रही थी कि अगर भगवान श्री राम को राजा बना दिया जाएगा तो फिर कैकई की जगह माता कौसल्या को राजमाता कहा जायेगा और मंथरा को फिर कोई नहीं इज्जत देगा । इस डर के मारे मंथरा ने कैकई को बहलाने का प्रयास आरंभ कर दिया ।
मंथरा ने कैकई से कहा कि तुमको दिखाई नहीं देता तुम्हारे साथ कितना बड़ा अन्याय होने जा रहा है । राम का राज्याभिषेक होने से तुम्हारे बेटे भरत का क्या होगा । तब माता कैकई ने मंथरा को पागल बताया और कहा कि राम और भरत दोनो ही उनके बेटे हैं ।
कैकई ने प्रयास जारी रखा और कहा कि यह सब साजिश कौशल्या के द्वारा की गई है । क्योंकि महाराज दशरथ कौशल्या से अधिक तुमसे प्यार करते हैं इसलिए सब तुमसे जलते हैं । राम के राजा बनने से कौशल्या का रुतबा बड़ जायेगा और तुम्हें कोई नहीं पूछेगा ।
राम के राजा बनने से तुम्हारा बेटा भरत उनका नौकर बन जाएगा इसलिए तुम भी कौशल्या की नौकरानी बन जाओगी । यह बात माता कैकई से बर्दाश्त नहीं हो पाई और वे कैकई के द्वारा बहलाए जाने का शिकार बन गईं ।
कौशल्या ने फिर कैकई से कहा कि क्या उपाय किया जाना चाहिए, में कौशल्या की दासी कभी नहीं बनना चाहती चाहे कुछ भी क्यों न करना पड़े । तब मंथरा ने कैकई को याद दिलाया कि महाराज दशरथ ने दो वरदान देने का कैकई से वादा किया था जिसका समय अब आ चुका है ।
एक बार महाराज दशरथ एक युद्ध लड़ रहे थे और कैकई उनका रथ चला रही थीं । कैकई ने इस कुशलता के साथ रथ चलाया कि महाराज दशरथ प्रसन्न हो गए और उन्होंने कैकई से दो वरदान मांगने को कहा । कैकई ने कहा कि वो बाद में वरदान मांग लेंगी जब सही समय आएगा ।
मंथरा ने कैकई को बहलाया कि अब समय आ गया है दोनो वरदान मांगने का । कैकई ने कहा कि वरदान में क्या मांगना चाहिए तब मंथरा ने कहा कि पहला वरदान राम को 14 वर्ष का वनवास और दूसरा भरत का राज्याभिषेक उसी मुहूर्त में जिस मुहूर्त में भगवान श्री राम का राज्याभिषेक होने वाला था ।
कैकई ने ऐसा ही किया और दोनों वरदान महराज दशरथ से मांग लिए । महराज दशरथ का तो मानो जीवन ही छिन चुका था । अपनी प्रिय पत्नी से ऐसा धोखा खाकर कोई क्या ही कर सकता है ।
भगवान श्री राम ने साजिश का जवाब केसे दिया
महाराज दशरथ ने सोचा कि वे किस प्रकार भगवान श्री राम को यह कहेंगे कि उन्हें अपने राज्याभिषेक वाले दिन ही वनवास जाना है । बड़ा साहस करके भगवान श्री राम से महाराज दशरथ ने यह बात कही ।
भगवान श्री राम के चेहरे पर वही प्रसंत्ता दिख रही थी जो यह खबर सुनने से पहले थी । भगवान को राज्य से कोई मोह नहीं था और उन्होंने अपनी कोई बात अपने पिता के खिलाफ नहीं रखी । उन्होंने दिखाया कि एक आदर्श पुत्र को केसा होना चाहिए ।
इस तरह की घटना सुनकर कोई भी शांत नहीं रह पाएगा । मान लीजिए अगर आपके पिता आपको जंगल जाने के लिए कहें तो क्या आप सांत रह पाएंगे । लेकिन भगवान श्री राम जीवन की हर मुस्किल घड़ी में प्रसन्न रहे इसलिए उनका एक नाम है धीर प्रशांत ।
भगवान श्री राम वनवास जाने लगे तो महाराज दशरथ की तो जान पर बात आ गई । केवल महाराज दशरथ ही नहीं वल्कि सारी प्रजा हाहाकार करने लगी और भगवान को राजा बनाने की मांग करने लगी । भरत को जब यह सूचना मिली कि भगवान श्री राम को उनकी माता कैकई के कारण बनवास जाना पड़ रहा है तो उन्होने अपनी माता का मन से परित्याग कर दिया और उनको बहुत ही ज्यादा कड़वे वचन कहे ।
भरत ने भगवान श्री राम की खड़ाऊ ( जूते ) अपने पास रख लिए और उनको अयोध्या के राज सिंहासन पर बैठा दिया । भरत राज्य में रहकर भी भगवान श्री राम के एक दास की तरह जीवन यापन करने लगे । वे जमीन में गड्ढा करके सोने लगे और सारी सुख सुविधाओं का परित्याग कर दिया । यह देखकर माता कैकई को अपने फैसले पर बहुत अधिक पछतावा हुआ ।
कुछ समय बाद महाराज दशरथ राम का वियोग नहीं सह सके और उनकी मृत्यु हो गई । इस तरह कैकई ने अपनी ईर्ष्या के कारण अपने पति और दोनो बेटों को यानि राम और भरत को भी खो दिया । हमे यही सीख लेनी चहिए कि नतीजे हमेशा हमारे पक्ष में नहीं होते इसलिए कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए ।
साथ ही हमें हमें एक तरफा नहीं सोचना चहिए जैसे कुछ लोग सोचते हैं कि वे बिजनेस करेंगे और सफल हो जायेंगे । वे यह नहीं सोचते कि वे असफल भी हो सकते हैं ।
इसी तरह माता कैकई ने सोचा कि उनके इस घिनौने कार्य से भरत को राज्य मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ । अगर वे सोचती कि ऐसा करने के गलत परिणाम भी हो सकते हैं तो शायद वे यह कदम न उठातीं । इसलिए हमें भी अपने जीवन में दोनो पक्षों को नजर में लेकर चलना चाहिए ।