भगवान श्री कृष्ण स्वयं ही शान्ति दूत बनकर आए
इसके बाद भगवान श्री कृष्ण स्वयं ही शान्ति दूत बनकर आए । जब दुर्योधन को पता चला तो उसने सोचा कि वे सब कृष्ण का बड़े ही अच्छे से स्वागत करेंगे ताकि वे कौरवों की तरफ आ जाएं ।
दुर्योधन उस समय नहीं जानता था कि कृष्ण ही परम भगवान हैं । विदुर ने कहा कि भगवान कृष्ण और अर्जुन कभी भी अलग नहीं हो सकते इसलिए भगवान् कृष्ण दुर्योधन के पक्ष में कभी नहीं आएंगे । दुर्योधन ने कहा कि फिर वह उनका स्वागत ही क्यों करें । इस बार पर भीष्म पितामह और धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को डांटा और वह भीष्म पितामह एवं धृतराष्ट्र से डांट खाकर वहां से भाग गया ।
यह भाग 31 है, आप आगे क्लिक करके भाग 30 पढ़ सकते है – विदुर ने बताये दुष्ट लोगों के लक्षण
जब भगवान हस्तिनापुर आए तो दुर्योधन ने उन्हें भोजन के लिए कहा लेकिन भगवान ने मना कर दिया और उन्होंने विदुर जी के यहाँ जाकर भोजन करना पसंद किया । विदुर ने भगवन श्री कृष्ण से कहा कि दुर्योधन को समझाना सार्थक नहीं है इसलिए आप चले जाएँ क्यूंकि अगर वो आपका अपमान करेगा तो यह भीष्म पितामह और मुझसे सहन नहीं होगा ।
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भगवान ने बड़े प्रेम से विदुर जी के यहाँ भोजन किया । विदुरानी भगवान को केले के छिलके खिला रहीं थीं और भगवान खाते जा रहे थे क्यूंकि विदुरानी बड़े प्रेम से भगवान को खिला रहीं थीं और भगवान कृष्ण ही उनके इष्ट थे ।
इसके बाद भगवान कृष्ण ने दुर्योधन के पास जाकर कहा कि वे शांति दूत बनकर आये हैं । उन्होंने दुर्योधन से कहा की उसके लिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि वो पांडवों को इंद्रप्रस्थ वापिस करदे ।
दुर्योधन ने कहा कि वह इंद्रप्रस्थ नहीं देगा । भगवान ने कहा कि फिर वह पांच पांडवों को पांच गाँव दे दें। असल में पांडव क्षत्रिय हैं और बिना भूमि पर शासन किये उनके लिए कोई और कोई गुजर बसर का जरिया नहीं है । क्षत्रिय के लिए शासन करने के लिए भूमि चाहिए होती है और कर लेना ही उसकी कमाई का जरिया है ।
क्षत्रिय न तो ब्राह्मणो की तरह भिक्षा मांग सकता है और ना ही शूद्रों की तरह खेती पाती या मजदूरी कर सकता है और ना ही वैश्यों की तरह वज्ञापार कर सकता है, यह वैदिक सभ्यता का नियम है ।
दुर्योधन ने कहा कि वह पांडवों को सुई की नोक के बराबर जमीन भी नहीं देगा । भगवान ने उसको दोबारा समझाने की कोशिश की कि अभी हाल में अर्जुन ने सारे कौरवों को हराया है और भीम ने तो दुशासन का खून पीने की प्रतिज्ञा ली है इसलिए पांडवों से लड़ना मूर्खता है अतएव दुर्योधन को पांडवों को इंद्रप्रस्थ या कम से कम पांच गाँव दे देना चाहिए ताकि यह युद्ध टल सके ।
इसके बाद सभा में मौजूद सभी वरिष्ठों ने सोचा कि हो सकता है अपनी माँ गांधारी की बात दुर्योधन मान जाए । इसके बाद गांधारी ने भी दुर्योधन को समझाया लेकिन वह नहीं माना । इसके बाद वह क्रोधित होकर भाग गया और अपनी पार्टी में जाकर योजना बनाने लगा ।
उसने कर्ण और शकुनि से कहा कि कृष्ण को पकड़ लेते हैं और फिर उनको लौटाने के बदले में पांडवों से समझौता कर लेंगे की वे अब से किसी देश के राजा नहीं रहेंगे ।
जैसे ही दुर्योधन अपनी पार्टी के साथ वापिस आया तो सात्यकि उसको देखते ही उसके मन के भावों को समझ गए । सात्यकि शरीर के हाव भाव देखकर व्यक्ति की भावनाएं समझ जाते हैं और इस कला में वे बहुत ही निपुण हैं । जब सात्यकि ने उससे पुछा तो दुर्योधन ने कहा कि वह इसी भावना से आया था । विदुर ने दुर्योधन से कहा कि तुम्हारा दिमाग तो सही है ये भगवान हैं, यही परम सत्य हैं, परम नियंता है, परम भोक्ता हैं ।
दुर्योधन नहीं माना और उसने सैनिकों से कहा कि वे कृष्ण को पकड़ लें । जैसे ही सैनिक भगवान को पकड़ने गए तो उन्हें भगवान के शरीर से बहुत सारा तेज निकलते हुए दिखा और उन्होंने देखा कि भगवान के मस्तक से ब्रह्मा जी निकले, सीने से रूद्र निकले, दायीं भुजा से अर्जुन निकले और बायीं भुजा से बलराम जी निकले ।
सैनिकों ने देखा कि सभी ऋषि, गंदर्भ, राक्षस सब भगवान के आगे हाथ जोड़े हुए हैं । भगवान के सैकड़ों पैर थे, सैकड़ों हाथ थे और उनके मुख से ज्वाला निकल रही थी ।
सब ने अपनी अपनी आँखें बंद कर लीं और घबरा गए । केवल विदुर, भीष्म पितामह नहीं डरे क्यूंकि वे भगवान श्री कृष्ण एक भक्त थे । इसके बाद भगवान सीधे कुंती महारानी के पास गए और उन्होंने भी उनसे कहा कि ठीक है अब युद्ध ही ठीक रहेगा । कुंती महारानी ने कहा कि वे यह बात भगवान युधिष्ठिर को समझा दें कि अब कोई और चारा नहीं है ।
इसके बाद भगवान श्री कृष्ण कर्ण के पास गए और उन्होंने उसे बताया कि तुम कुंती के ही पुत्र हो । कर्ण ने कहा कि वह यह बात जानता है लेकिन क्यूंकि उसकी मां कुंती ने उसे त्याग दिया था इसलिए वह कुंती महारानी का साथ नहीं देगा । कर्ण ने कहा कि उसने दुर्योधन का साथ देने का वचन दिया है ।
भगवान ने कहा कि ये छोटी छोटी कस्मे ऊँचे धर्म के लिए तोड़ी जा सकती हैं । कर्ण ने कहा कि वह जानता है कि युधिष्ठिर महाराज के साथ ही धर्म है और इस पृथ्वी पर उन्हीं का राज होना चाहिए । कर्ण ने कहा कि भगवान पांडवों को यह बात न बत्तायें क्यूंकि आहार युधिष्ठिर महाराज को यह बात पता चलेगी तो वे कहेंगे कि कर्ण उनका बड़ा भाई है इसलिए पृथ्वी पर राज कर्ण का होना चाहिए और फिर वे युद्ध नहीं लड़ेंगे ।
कर्ण ने कहा कि वह कुंती महारानी से क्रोधित है क्यूंकि उन्होंने उसे बचपन में त्याग दिया था और उसने दुर्योधन से उसका साथ देने का वादा किया था इसलिए वह दुर्योधन की तरफ से ही लड़ेगा । कर्ण ने भगवान से कहा कि युद्ध कुरुक्षेत्र में ही करवाएं जिससे वहां मरने वाले लोगों की सद्गति हो क्यूंकि वह स्थान बहुत ही ज्यादा पवित्र है ।
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Krishna bhagwan aur Arjun Satya ka rasta apna rhe h,Durdhan asatya ka rasta apna rha h,