भगवान के अवतारों का वर्णन

भगवान के अवतारों का वर्णन

भागवत कथा – भगवान के सारे अवतारों का वर्णन भाग 3 है । अगर आप भाग 2 पढ़ना चाहते हैं तो आगे क्लिक करके पढ़ सकते हैं – भागवत कथा मंगलाचरण

ऋषि लोग एक हजार साल यज्ञ करने के लिए तैयार हुए तभी सूट गोस्वामी वहां पर आ गए । 88,000 सोनकादिक ऋषि यह यज्ञ कर रहे थे तभी वहां पर सूत गोस्वामी आ गए । सोनक जी 88,000 ऋषियों की तरफ से सूत गोवामी से 6 सवाल पूछते हैं ।

  1. पहला सवाल पूछते हैं कि ऐसा क्या मार्ग है जिससे कलयुग के जीवों का कल्याण आसानी से हो जाए ।
  2. दूसरा सवाल पूछा कि किस साधन से जीव आत्मा संसार के बंधन से मुक्त होकर सम्यक रूप से प्रसन्न हो सकती है ।
  3. किस उद्देश्य से भगवान कृष्ण का जन्म हुआ ।
  4. भगवान ने जन्म लेकर क्या क्या किया ।
  5. भगवान विभिन्न अवतार धारण करके क्या क्या काम किये ।
  6. भगवान जब अपने धाम जाने लगे तो धर्म की रक्षा किसने की ।

सबसे पहले सूत गोस्वामी ने सुकदेव गोवामी को प्रणाम किया और उनकी महिमा बताई । जैसे ही सुकदेव गोस्वामी का जन्म हुआ तो वे तुरंत ही जंगल के तरफ चले गए । व्यास देव ने सुकदेव गोस्वामी का पीछा किया लेकिन वे इतने ज्यादा वैराग्य से युक्त थे कि उन्होंने अपने पिता की बात नहीं सुनी ।

भगवान के अवतारों का वर्णन, इसके बाद कहा कि यह भागवत संसार में फसे हुए लोगों के लिए मुक्त होने के लिए उपयुक्त है । दुसरे प्रश्न का उत्तर देते हैं कि जीव के लिए सबसे बड़ा कर्तव्य है कि वह बिना किसी कारण के भगवान अधोक्षज की भक्ति करे । वह भक्ति किसी भी समय रके नहीं तो वह भक्ति करने वाली आत्मा हमेशा के लिए खुश हो जाती है ।

ब्रह्म भगवान का निर्विशेस रूप है

इसके बाद कहते हैं कि भक्ति करने वाले के पास ज्ञान और वैराग्य अपने आप आ जाते हैं । अगर भगवान की कथा में कोई रूचि उत्त्पन्न नहीं हुयी तो यज्ञ करने का कोई फायदा नहीं । धर्म का फल अर्थ नहीं है वल्कि मोक्ष है । अगर पुण्य करने से पैसा प्राप्त होता है तो उसे धर्म के कार्य में लगाना चाहिए । जीवन में अगर ज्यादा पैसा कमा लिया है तो उसे धर्म में लगाना चाहिए ।

धर्म काने से लोगों का मन भगवान की कथा में लगना चाहिए । अगर धर्म करने से भगवान में आसक्ति पैदा नहीं होती तो उस धर्म का कोई मतलब नहीं । अपनी इन्द्रियों को तृप्त करने के लिए धन को न लगाकर धर्म में लगाना चाहिए और धर्म का उद्देश्य मोक्ष है । पैसा का उद्देश्य है जीवन निर्वाह करना । जीवन सही से चल रहा है तो उससे तत्त्व जिज्ञासा करना चाहिए । तत्त्व मतलब भगवान के बारे में जानने जिज्ञासा करनी चाहिए ।

तत्त्व को तीन भागों में बतया गया है जो हैं ब्रह्म, परमात्मा और भगवान । ब्रह्म भगवान का निर्विशेस रूप है । परमात्मा के रूप में भगवान सभी जीवों के ह्रदय में मौजूद रहते हैं । भगवान परम सत्य के सचिदानंद रूप को कहा जाता है ।

इसके बाद बताया कि सब लोगों का अलग अलग स्टार होता है इसलिए अलग अलग वर्ण और आश्रम की व्यवस्था की गयी । धर्म का उद्देश्य है भगवान को खुश करना । अलग अलग स्तर के लोगों के लिए अलग अलग धर्म बताये गए हैं । लेकिन भागवत कथा को सुनने के लिए सभी स्तर के लोग काबिल हैं और भगवान के बारे में श्रवण और कीर्तन करने से जीव का ह्रदय सुद्ध हो जाता है ।

भगवान ने सूकर अवतार लिया और वे पृथ्वी को खोजने के लिए चले गए

रजोगुणी और तमोगुणी लोग देवताओं की पूजा करते हैं इसलिए इसी जगत में फसे रहते हैं लेकिन सतोगुण वाले लोग भगवान की भक्ति करते हैं और इस भौतिक संसार से मुक्त हो जाते हैं । वह लोग समझ पाते हैं कि वासुदेव ही परम ज्ञान हैं और सभी तपस्या उनके लिए ही है ।

भगवान ही सभी जीवों के ह्रदय में मौजूद रहते हैं और वे ही सभी योनियों को बनाते हैं । भगवान ही यह संसार बनाये हैं और भगवान ही विभिन्न रूप में सभी योनियों में रहते हैं । वही यज्ञ पुरुष भगवान नारायण बहुत सारे अवतार लेते रहते हैं । वहीँ अपने अंश से सभी जीवों की रचना करते हैं ।

सबसे पहले ब्रह्मा जी के पहले पुत्र चार कुमार ही भगवान के प्रथम अवतार हैं जो अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किये । दूसरी बार अब मनु महराज श्रिष्टि करने के लिए पृथ्वी को खोजने लगे तो पता चला कि पृथ्वी वहां पर है ही नहीं ।

तब भगवान ने सूकर अवतार लिया और वे पृथ्वी को खोजने के लिए चले गए जिसे हिरण्याक्ष ने छुपा रखा था और उस राक्षस का वध भी किया । उसके बाद तीसरे अवतार देवर्षि नारद हैं । चौथे अवतार हैं नर और नारायण । कर्दम मुनि की नौ कन्याएं थीं और दसवें पुत्र के रूप में भगवान कपिल आये ।

कुछ अवतार भविष्य में होंगे

अत्रि और अनसुइया के यहाँ भगवान के अवतार दत्तात्रेय आये । आठवे अवतार के रूप में भगवान ऋषभदेव आये । इसके बाद भगवान के सकत्यावेश अवतार पृथु महराज थे । 5 अवतार बिना माता पिता के हुए । पहले मत्स्य अवतार, दूसरे भगवान कश्यप ।

तीसरे अवतार भगवान धन्वन्तरि और चौथे भगवान के मोहिनी अवतार । पांचवे बिना मात पिता के अवतार हैं नरसिंहदेव । इसके आड़ भगवान बामन देव । भगवान परशुराम और उनके बाद भगवान वेद व्यास । उनके बाद भगवान के अवतार श्री राम और कृष्ण और बलराम जो पृथ्वी के बड़े हुए भार को हल्का किये और अलौकिक लीलाएं किये । कुछ अवतार भविष्य में होंगे जो हैं भगवान बुद्ध और अंत में भगवान के कल्कि अवतार आएंगे ।

इसके बाद कहते हैं कि बाकि सब अवतार हैं लेकिन भगवान कृष्ण स्वयं भगवान हैं और उन्ही से सारे अवतार आते हैं । आगे की कहानी बताएँगे अगले पोस्ट में । अगले पोस्ट की जानकारी पाने के लिए हमारा व्हाट्सप्प ग्रुप ज्वाइन करें ।

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