भागवत कथा मंगलाचरण

भागवत कथा मंगलाचरण

यह भागवत कथा मंगलाचरण भागवत कथा का भाग 2 है । अगर आप भाग 1 पढ़ना चाहते हैं तो आगे क्लिक करके पढ़ सकते हैं – भागवत कथा की शुरुआत कैसे हुई । अगर आप उपवास में कथा श्रवण कर सकते हैं तो सही है । अगर आपका उपवास कथा सुनने में बाधक बनता है तो उससे बेहतर है आप भोजन करके कथा सुनें ।

वहां पर स्वयं भगवान और उनके भक्त उद्धव, प्रह्लाद, अर्जुन, सुकदेव गोस्वामी भी आये । तीन श्लोक में सुकदेव गोस्वामी ने सबसे पहले मंगलाचरण किया । मंगलाचरण में सबसे पहले भगवान को प्रणाम किया जाता है । उसके बाद कथा में क्या है उसे संछिप्त रूप में बताया जाता है और अंत में श्रोताओं को आशीर्वाद दिया जाता है ।

भगवत कथा मंगलाचरण – पहला श्लोक

भागवत कथा के पहले श्लोक में व्यास देव कहते हैं कि जिनसे इस संसार की श्रष्टि, पालन और संहार होता है । जो अन्वयय और व्ययतिरेक भाव से से इस विश्व के उपादान और निमित्त कारण हैं । जैसे कि एक घड़े के निर्माण में निमित्त कारण है मिट्टी और मिट्टी के बिना घड़ा नहीं बन सकता । घड़े के निर्माण में उपादान कारण हैं कुम्हार, रस्सी, पानी इत्यादि ।

इसी प्रकार इस श्रष्टि के मूल कारण हैं भगवान । जैसे कि मिट्टी ही घड़ा बनाने के लिए मूल कारण है । अन्वयाद का अर्थ है कि इस जगत के अंदर भगवान हैं लेकिन यह जगत भगवान नहीं है । इसके बाद सुकदेव गोस्वामी कहते हैं कि भगवान दृश्य और अदृश्य श्रष्टि के जानकार हैं और स्वराट हैं यानि वो स्वतंत्र हैं ।

इसके बाद सुकदेव गोवामी कहते हैं कि भगवान ने सबसे पहले ब्रह्मा को ज्ञान दिया जिसके कारण ब्रह्मा ने श्रष्टि की रचना की । वह ज्ञान ऐसा है कि उसे समझने में बड़े बड़े विद्वान, देवता और ब्रह्मा तक मोहित हो जाते हैं । जब भगवान गोप बच्चों के साथ खेल रहे थे तो ब्रह्मा जी भी मोहित हो गए थे जबकि वे सबसे पहले व्यक्ति हैं जिनको भगवान ने ज्ञान दिया था ।

ब्रह्मा जी ने सोचा कि जो ग्वालों के साथ खेलता है वह भगवान कैसे हो सकता है । ब्रह्मा जी को ऐसा संदेह नहीं होना चाहिए था क्यूंकि भगवान ने स्वयं उनको अपने बारे में ज्ञान दिया था और वो भी सबसे पहले । यही व्यास देव पहले श्लोक में बताते हैं कि उस दिव्य ज्ञान को समझने में बड़े बड़े विद्वान भी मोहित हो जाते हैं और उसे समझ नहीं पाते ।

भगवान का ज्ञान इतना दिव्य है कि उसे पाने वाले सबसे पहले जीव ब्रह्मा से लेकर बड़े बड़े देवी देवता तक भ्रमित हो जाते हैं

जब भगवान श्री राम माता सीता को खोज रहे थे तब शिव जी की पत्नी सती भ्रमित हो गयीं कि ये भगवान नहीं हो सकते । वे सीता मात अक रूप लेकर भगवान श्री राम के पास आ गयी । भगवान ने कहा कि देवी आप यहाँ क्या कर रहीं हैं आप को शिव जी के पास जाना चाहिए इस तरह जंगल में अकेले नहीं घूमना चाहिए ।

इस तरह भगवान का ज्ञान इतना दिव्य है कि उसे पाने वाले सबसे पहले जीव ब्रह्मा से लेकर बड़े बड़े देवी देवता तक भ्रमित हो जाते हैं । आगे व्यास देव कहते हैं कि इस जगत की श्रष्टि को समझ नहीं पाते और लोग एक वस्तु को दूसरी बस्तु समझ लेते हैं जैसे कि जैसे कि जल को कांच समझ लेना और कांच को जल ।

जिस प्रकार यह 3 गुणों से बनी यह श्रष्टि है वैसे ही भगवान हैं ऐसा भ्रम हो जाता है लेकिन यह सच नहीं है । आगे व्यास देव कहते हैं कि भगवान अपने नित्य धाम में रहते हैं और अपनी स्वरुप शक्ति से हमेशा माया को दूर रखते हैं । उन सत्य स्वरुप भगवान को में नमस्कार करता हूँ ।

भगवत कथा मंगलाचरण – दूसरा श्लोक

दूसरे श्लोक में व्यास देव कहते हैं कि यह भागवत कथा महा मुनि नारायण के मुख से व्यास देव सुने हैं और उनको नमस्कार करते हैं । श्रीमद भागवद सबसे पहले भगवान ब्रह्मा जी को दिए, ब्रह्मा नारद जी को और नारद जी व्यास देव को दिए । व्यास देव कहते हैं कि भागवद कथा में अर्थ, मोक्ष, धर्म, काम की बात नहीं है और इसमें किसी प्रकार का कुहक नहीं है ।

शास्त्रों में कपट धर्म बताय गया है । जैसे कि पैसा कमाने से भौतिक सुख मिलेगा और अगर पुण्य, दान करेंगे तो स्वर्ग मिलेगा और वहां सुख मिलेगा । इस तरह के धर्म को वेदों में खूब बताया गया है लेकिन भागवत में इस प्रकार के कपट धर्म को नहीं बताया गया है । यह कपट इसलिए है क्यूंकि इस तरह से जीव को जन्म मृत्यु में पड़ा रहना पड़ता है और इस जन्म मृत्य में पढ़कर वह तरह वह नरक भी जा सकता है इसलिए यह धर्म किसिस को बताना उसके साथ कपट करना है ।

यहाँ किसी प्रकार का कपट धर्म नहीं है । तीनो तापों को जड़ से उखाड़ कर फेंकने वाले परम तत्त्व की यहाँ पर बात की गयी है । भागवद कथा को केवल सुनने मात्र से व्यक्ति को भगवान का धाम मिल सकता है ।

व्यास देव कहते हैं कि भागवद में वास्तविक वस्तु का निरूपण किया गया है जो अद्वैत तत्त्व ब्रजेन्द्रनंदन की जानकारी है । यह कल्याणकारी है जो तीनो तापों को जड़ से उखाड़ कर फेक देता है और अगर कोई पुण्यवान व्यक्ति सुनने की लालसा और श्रद्धा से युक्त होकर भागवत कथा सुनता है तो उसके ह्रदय में भगवान वराजमान हो जाते हैं । पापी और दुष्कर्मी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता ।

भगवत कथा मंगलाचरण – तीसरा श्लोक

व्यास देव कहते हैं कि यह श्रीमद भागवद वेद रुपी कल्प बृक्ष का पका हुआ फल है । जिसे सुकदेव रूप तोते के मुख से बोलै गया है । अगर किसी पके हुए फल को तोता जूठा कर दे टो यह बड़ा ही स्वादिष्ट हो जाता है । यह ऐसा फल है जिसमे कोई छिलका नहीं है, इसमें कोई भी त्याग करने वाली चीज नहीं है । व्यास देव कहते हैं कि रसिक जन जीवन पर्यन्त इसको बार बार पीते रहो क्यूंकि यह रस इस पृथ्वी पर है ।

Leave a Reply