बेटी को घर की लक्ष्मी क्यों कहा जाता है?

घर की लक्ष्मी, बेटी

मित्रो आप के मन में भी यह सवाल जरूर आता होगा कि कहीं तो बेटी को घर की लक्ष्मी मना जाता है । और कहीं ऐसे लोग भी मौजूद हैं जो एक बेटी को अपने ऊपर बोझ मानते हैं । शास्त्र की और मानवता की दृष्टि से इनमे से कौन सही है ये तो आप जानते ही होंगे ।

परन्तु आज हम आपको बताएँगे कि आखिर ऐसा क्यों है, आखिर बेटियों को ही घर की लक्ष्मी क्यों कहते हैं और बेटों को घर का कुबेर क्यों नहीं कहते? मिलकर चर्चा करेंगे आपके साथ अगर आप अंत तक बने रहे हमारे साथ ।

एक बार स्वामी विवेकानंद वैष्णो देवी की सीढ़ियां चढ़ रहे थे । बगल से एक किसान अपनी बेटी को कंधे पर बिठाकर चढाई चढ़ रहा था । तभी स्वामी विवेकानंद ने कहा कि बाबा आपकी बेटी का बोझा आपको लग रहा होगा इसको मैं उठा लेता हूँ और माता वैष्णो के दरबार तक लिए चलता हूँ । तब किसान ने स्वामी विवेकानंद से कहा की बेटी कभी भी बाप के कंधे पर बोझ नहीं होती । बेटियाँ अगर बाप के कंधे पर हो तो वो हर बोझ को हल्का कर देती है ।

बेटी का महत्त्व

दोस्तो अगर बेटे भाग्य से पैदा होते हैं तो बेटियाँ सौभाग्य से । बेटे अपने माँ बाप का नाम रोशन करते हैं जो कि आज कल बहुत कम ही देखने को मिलता है । फिर भी अगर मान लें तो भी बेटे केवल अपने माँ बाप का ही नाम रोशन करते हैं लेकिन बेटियाँ अपने माँ बाप के साथ साथ अपने पति के माँ बाप का भी नाम रोशन करती है ।

बेटा तो केवल एक कुल को रोशन करता है लेकिन बेटियाँ दो कुलों को रोशन करती है । माता पिता के घर वो बेटी के रूप में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करती है तो ससुराल आकर एक बहू के रूप में सारे कर्तव्यों का पालन करती है ।

कई लोग सोचते हैं बेटियाँ पिंडदान नहीं कर सकती और अगर उनके यहाँ बेटियां ही हों तो उन्हें मुक्ति कैसे मिलेगी । दोस्तो यह बिलकुल भी नहीं है क्यूंकि बेटियां भी पिंडदान कर सकती हैं । धर्म शास्त्रों में कई ऐसी घटनाओं का उल्लेख हे जहाँ बेटियां ने पिंडदान किया है । शास्त्रों के अनुसार जेष्ठ पुत्र उपस्थित ना होने पर बहु या बेटी के द्वारा पिंडदान किया जा सकता है ।रामायण में बताया गया है कि प्रभु श्रीराम के पिता राजा दशरथ की जब मृत्यु हो गई तो माता सीता अर्थात राजा दशरथ की बहु ने ही उनका पिंडदान किया था ।

इसलिए मित्रों वो लोग बहुत किस्मत वाले होते हैं जिनके घर एक बेटी जन्म लेती है । वही वो प्रबल किस्मत के होते हैं जिनके घर एक से ज्यादा बेटियाँ होती है ।

बेटियों का मानव समाज के लिए योगदान

वो बेटियाँ ही होती है जो इस दृष्टि को निरंतर चलायमान होने के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर देती है । जिस दिन इस सृष्टि में बेटियों का जन्म लेना रुक जाएगा उस दिन सृष्टि भी ठहर जाएगी और धीरे धीरे इस सृष्टि का अंत हो जाएगा । बेटी के बिना किसी का भी वंश आगे नहीं बढ़ सकता ।

एक बेटे से ज्यादा एक बेटी हमेशा अपने माता पिता के लिए सोचती है । माता पिता को प्यार और अपनापन बेटी ही दिखा सकती है । बेटी के जन्म को एक जश्न की तरह मनाना चाहिए । माता पिता को बेटी को हमेशा एहसास दिलाना चाहिए कि वो कितनी खास है । मित्रो बेटी कभी भी बाप पर बोझ नहीं होती । वो अपने और अपने परिवार की किस्मत बनाने के लिए जन्म लेती है । मित्रों बेटियाँ कभी भी धन की भूखी नहीं होती वो सिर्फ मान और सम्मान की भूखी होती हैं।

बहुत से लोगों की सोच रहती होती है की बेटी है तो बिना समय गवाए और पढ़ाई में पैसे लगाए जल्द से जल्द शादी कर दो लेकिन ये सोच एक बेटी के भविष्य को बर्बाद कर देती है । जरा सोचिए एक बच्ची के मन में कितने सपने होते हैं कि उसे कुछ करना है । इसलिए अपनी बेटियों को सपने पूरे करने देना चाहिए ।

बेटी का जन्म पुण्यवान व्यक्ति के घर में ही होता है

तो दोस्तो नमस्कार और आपका स्वागत है पौराणिक ज्ञान के स्थान getgyaan पर । दोस्तो एक बार की बात है एक गरीब किसान हुआ करता था जिसके यहाँ तीन बेटियां थीं । किसान बहुत नेक दिल था इसलिए उसे हर बेटी में लक्ष्मी का वास नजर आता था ।

लेकिन उसके पड़ोस में एक अमीर आदमी भी रहता था जिसके यहाँ कोई बेटी नहीं थी । वो अकसर किसान से ढींगे मारा करता था कि वह बड़ा पुण्यात्मा है जो उसके यहाँ एक भी बेटी नहीं है ।

एक दिन किसान से उसकी भेंट हो गयी जब किसान की एक बेटी भी वहां मौजूद थी । किसान के स्वभाव से परिचित उस व्यक्ति ने वही डींगें हांकनी सुरु कर दीं परन्तु इस बार किसान की बेटी ने उसे रोका । उसने कहा कि बेटी हर किसी के नसीब में नहीं होती इसलिए वह व्यक्ति दरिद्र है ।

खुद को अमीर समझने वाला वह छोटी सोच का व्यक्ति सच मुच गरीब था क्यूंकि उसके पास एक भी बेटी नहीं थी । भगवान बेटी उसी को देते हैं जिसने अपने किसी जीवन में अखंड पुण्य किये हों । जो व्यक्ति बेटी को बोझ समझता है वह निश्चित ही दरिद्र है और उसने कभी भी कोई पुण्य नहीं किये हैं ।

बेटी के रूप में कौन जन्म लेता है?

गरुण पुराण में बताया गया है कि जब आत्मा को नया जन्म मिलता है तब आत्मा को उस शरीर के अनुसार व्यवहार में ढल कर अपने कर्म करने होते हैं । शरीर के जरिए कर्म करके ही एक आत्मा अपने जन्म के उद्देश्य को सार्थक भी बना सकती है और निरर्थक भी । यदि कोई पुरुष महिलाओं का आचरण करता है, स्वभाव में महिलाओं वाली आदतें ले आता है या वही काम करना चाहता है जो एक महिला को करना चाहिए तो ऐसे पुरुषों की आत्मा अगले जन्म में स्त्री का शरीर धारण करती है ।

वहीं गरुड़ पुराण में बताया गया है यदि कोई व्यक्ति मृत्यु के अंतिम क्षण में किसी स्त्री को याद करते हुए प्राण त्यागता है तो वो अगले जन्म में स्त्री के रूप में जन्म लेता है । वहीं अगर वो अंतिम क्षण में परमेश्वर का नाम लेता है तो वो मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है ।

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