वाल्मीकि जी की कहानी
महर्षि वाल्मीकि का नाम पहले रत्नाकर था और वे रत्नाकर डाकू के नाम से प्रसिद्ध थे । परिवार का भरण पोषण करने के लिए रत्नाकर लूट पाट किया करते थे । एक दिन नारद जी और ब्रह्मा जी शिव जी में पास गए और कहा कि हमने आज वैकुंठ में एक अदभुद दृश्य देखा ।
भगवान विष्णु चार अंशों में विभक्त क्यों हैं । शिव जी ने कहा कि भगवान पृथ्वी पर अवतार लेंगे और राम नाम के जप से ही व्यक्ति के सारे पाप खत्म होंगे । इसके बाद नारद जी और ब्रह्मा जी पृथ्वी पर आए और सबसे बड़े पापी की खोज करने लगे ।
नारद जी वालिमकी जी यानी डाकू रत्नाकर के पास गए । रत्नाकर ने ब्रह्म जी से कहा कि आप लोग मुझे अपना सारा धन दे दो नहीं तो मारे जाओगे । ब्रह्मा जी ने कहा कि हमारे पास कुछ नहीं है । रत्नाकर ने कहा कि में आप दोनो को मारकर आपके वस्त्र ही छीन लूंगा । ब्रह्मा जी ने कहा कि ये बहुत बड़ा पाप है । ब्रह्मा जी सन्यासी को मारने पर घोर पाप लगता है तुम ऐसा मत करो ।
वाल्मीकि जी यानी रत्नाकर ने कहा कि मेने तो कई सारे संन्यासियो को मारा है । ब्रह्मा जी ने पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया । रत्नाकर ने कहा कि इस कर्म से में अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा हूं । ऐसा ना करने से मेरे परिवार वाले भूख से मर जाएंगे । ब्रह्मा जी ने कहा कि ही रत्नाकर तुम जिन परिवार वालों किए यह पाप कर्म कर रहे हो क्या वे उस पाप के भागीदारी रहेंगे ।
बाल्मीकि ऋषि को ज्ञान कैसे मिला
वाल्मीकि जी यानी रत्नाकर ने कहा कि क्यों नहीं होंगे में यह सब उनके लिए ही तो कर रहा हूं । ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम घर जाकर उनसे पूछकर आओ में यहीं पर तुम्हारा इंतजार करूंगा । रत्नाकर ने घर जाकर अपने परिवार वालों से पूछा कि मेने तुम लोगों के भरण पोषण के लिए मेने बहुत लोगों को लूटा है ।
एक महात्मा ने मुझे बताया है कि ऐसा करने से मेरा पाप बहुत बड़ गया है तो क्या आप सब मेरे पाप में भागीदारी बनेंगे । रत्नाकर के पिता जी ने कहा कि हे रत्नाकर मेने तुम्हे पालकर बड़ा कर दिया और अब तुम जवान हो इसलिए तुम्हारा कर्तव्य है हमारा भरण पोषण करना इसलिए इसके लिए तुम कोई पाप करतें हो तो उसके भागीदार तुम खुद ही हो ।
इसी तरह माता ने कहा कि मेने तुम्हे 9 महीने पेट में पाला है इसलिए अब हमें पालना तुम्हारा कर्तव्य है और इसमें जो पाप तुमने किया है उसके भागीदार तुम ही हो । इसी तरह पत्नी ने भी रूतनाकार से कहा कि विवाह के समय तुमने मेरी रक्षा का और भरण पोषण का वचन लिया था इसलिए में तुम्हारे पापों की भागीदारी नहीं । जब सबने मन कर दिया तब रत्नाकर डाकू से वालिमकि ऋषि बनने के लिए आगे बड़ गए ।
रत्नाकर डाकू ने की घनघोर तपस्या
रत्नाकर बहुत दुखी हुए और ब्रह्मा जी के पैर पकड़कर रोने लगे और कह कि महात्मा आपने सही कहा था । अब में और पाप नहीं करुंगा मेरे पापों से उद्धार के लिए मुझे कोई मार्ग बताएं । ब्रह्मा जी ने कहा कि पहले तुम सरोवर में स्नान करके आप फिर हम तुम्हे मार्ग बताते हैं । रत्नाकर जी सरोवर के पास स्नान करने गए तो सरोवर का सारा जल सूख गया ।
वापिस आए तो ब्रह्म जी ने बताया कि तुम्हारे पापों के कारण सरोवर का जल सूख गया । ब्रह्मा जी ने रत्नकार के सिर पर जल छिड़ककर कहा कि तुम अपने पापों का नाश करने के लिए राम नाम का जप करो । रत्नाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए लेकिन उनके मुख से राम राम नहीं निकला । रत्नाकर ने ब्रह्म जी से कहा कि मेरे मुख से राम नाम नहीं निकलता । ब्रह्मा जी ने कहा कि फिर तुम मरा मरा कहकर तपस्या करो ।
ऐसे ही मरा मरा जपते हुए 60,000 वर्ष बीत गए और रत्नाकर के शरीर को दीमकों के ढक लिया । रत्नाकर के सारे पाप नाश हो गए और उनके मुख से राम राम की ध्वनि निकलने लगी । इसके बाद ब्रह्मा जी वापिस आए और उन्होंने रत्नाकर से कहा कि तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो गए हैं । तपस्या करते वक्त तुम्हारे शरीर के ऊपर दीमकों ने बामी बनाई थी इसलिए आज से लोग तुम्हें वाल्मीकि के नाम से जानेंगे ।
इसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा कि हे बाल्मिकी आप श्री राम भगवान के ऊपर एक ग्रंथ के रचना करो जिससे रामायण के नाम से जाना जाएगा । ब्रह्मा जी ने वाल्मीकि जी को वरदान दिया कि एक दिन महाराज वाल्मीकि एक वृक्ष के नीचे बैठकर राम नाम जप रहे थे और उनके मुख से अपने आप ही एक श्लोक निकल आया और इसके बाद वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की ।