अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य महाभारत का युद्ध छोड़कर कहीं छिप गए थे । जब इन तीनो को पता चला कि दुर्योधन हार गया है और भीम ने उसकी जंघा तोड़कर उसे मरने के लिए छोड़ दिया है तब इन्होने सोचा कि जब हमारा नेता ही हार गया है तो हम लड़कर क्या करेंगे । लेकिन अश्वत्थामा अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहता था ।
अश्वत्थामा के मन मे यह बात खल रही थी कि किस तरह धृष्टद्युम्न ने उसके पिता को मारा है । दरसल जब द्रोणाचार्य ने यह सुनकर अपने हथियार छोड़ दिए कि अश्वत्थामा मारा गया है तब धृष्टद्युम्न ने उनके बाल पकड़कर उन्हें घसीटकर नीचे उतारा और उनका गला काट दिया । असल मे द्रोणाचार्य ने पहले ही भगवान कृष्ण को ध्यान करके अपने प्राण त्याग दिये थे ।
लेकिन अश्वत्थामा को यह बात पता नहीं थी और उसे लग रहा था कि धृष्टद्युम्न ने ही उसके पिता को मारा है इसलिए उसके मन मे धृष्टद्युम्न के प्रति आक्रोश था । अश्वत्थामा को इस बात पर भी आक्रोश था कि किस तरह पांडवों ने उसके पिता को धोका दिया ।
अश्वत्थामा के मन मे इतना आक्रोश था कि वे रात को सोते तक नही थे । ऐसे ही एक रात जागते जागते उसने देखा कि एक पेड़ पर बहुत सारे कौवे सो रहे थे और एक उल्लू ने आकर उनको मार दिया । अश्वत्थामा को पहले तो लगा कि यह कार्य गलत हुआ है और किसी को भी सोते समय नहीं मारा जाना चाहिए । उसने सोचा कि अगर कौवे जाग रहे होते तो उल्लू उनको कभी नही मार पाता ।
अश्वत्थामा ने सोते वक्त धृष्टद्युम्न को और पांडवों के पुत्रों को मार डाला
पांडवों को मार पाना उन तीनो मे से किसी के भी बस की बात नहीं थी जिस तरह उन कौवो को मार पाना उस उल्लू के लिए संभव नहीं था । लेकिन उस उल्लू ने उन सारे कौवो को मार डाला क्योंकि वे सो रहे थे । अश्वत्थामा ने सोचा कि वो पांडवों को सोते समय ही मार देगा ।
जब उसने यह बात कृतवर्मा और कृपाचार्य को बताई तो उन्होंने उसे रोकने का प्रयास किया । लेकिन अश्वत्थामा ने उन लोगों को यह कहकर मना कर दिया कि उसके पास कोई और विकल्प नहीं है क्योंकि उसे अपने पिता की मौत का प्रतिशोध लेना ही है और पांडवों को जागते वक्त नहीं मारा जा सकता ।
कृतवर्मा और कृपाचार्य उसकी बात मान गए और रात के वक्त तीनो पांडवों के शिविर की और बड़ गए । अश्वत्थामा ने देखा कि पांडवों के कक्ष के बाहर एक बड़े आकर के कोई दिव्य पुरुष उनकी रक्षा कर रहे हैं । तब उसने उन दिव्य पुरुष पर हमला कर दिया लेकिन उनपर कोई भी अस्त्र शस्त्र असर ही नहीं कर रहे थे ।
अश्वत्थामा शंकर जी का भक्त था इसलिए उसने मुश्किल वक्त मे उनको याद किया । ऐसा करने पर सामने खड़ा व्यक्ति शिव जी मे बदल गया । शिव जी ने अश्वत्थामा को बताया कि कृष्ण ही परम भगवान हैं और वे शिव जी समेत सभी देवी देवताओं के ईष्ट हैं । इसलिए कृष्ण जिस पक्ष मे होते हैं शिव जी और सभी देवता स्वतः ही उस पक्ष मे हो जाते हैं ।
तब अश्वत्थामा ने शिव जी से उसके पिता की मृत्यु का शोक व्यक्त किया और उनसे पूछा कि आखिर ऐसा कैसे हो गया । आखिर पण्डवों ने द्रोणाचार्य का वध कैसे कर दिया । शिव जी ने अश्वत्थामा को बताया कि ऐसा हो पाना असल मे संभव नहीं था लेकिन क्योंकि भगवान कृष्ण ऐसा ही चाहते थे इसलिए ऐसा हो गया ।
तब अश्वथामा ने शिव जी से कहा कि वे कम से कम धृष्टद्युम्न को मारने की अनुमति उसे दें । शिव जी ने उसे इस कार्य की ना केवल अनुमति दी वल्कि वे उसके शरीर मे प्रवेश कर गए । अश्वत्थामा सबसे पहले धृष्टद्युम्न के कक्ष मे गया और उसने धृष्टद्युम्न को मार मार कर जगा दिया और फिर इसी तरह मार मार कर धृष्टद्युम्न को मार डाला । इसके अलावा उसने धृष्टद्युम्न के पुत्रों को मार डाला और फिर उसके बाद पांडवों के पुत्रों को भी मार डाला ।
इसके बाद कृतवर्मा और कृपाचार्य ने पांडवों के शिविर मे आग लगा दी । जब अश्वत्थामा दुर्योधन को यही बात बताने पहुंचा तो दुर्योधन को बहुत दुख हुआ । उसने इस कार्य को गलत ठहराया और इसी के साथ अपने प्राण त्याग दिए ।
अश्वत्थामा को उसके पाप की क्या सजा मिली
जब अश्वत्थामा ने यह पाप किया तब उसे बहुत सुकून मिला । उसे लगा कि उसने अपने पिता की मौत का बदला ले लिया है । लेकिन जब द्रोपदी को यह बात पता चली तो उन्होंने भीम से अश्वत्थामा को पकड़कर लाने के लिए कहा ।
उधर अश्वत्थामा यह घ्राणित कार्य करने के बाद पांडवों को मारने के लिए सेना तैयार करने लगा । सबसे पहले वह भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचा और उनसे सुदर्शन चक्र मांगने लगा । भगवान ने उसे सुदर्शन चक्र दे तो दिया लेकिन अश्वत्थामा चक्र को धारण करने मे असमर्थ था ।
जब उसे लगा कि चक्र के तेज से उसके प्राण ना निकल जाएँ तब उसने भगवान से चक्र वापिस लेने की गुजारिश की । अश्वत्थामा ने भगवान को बताया कि वह सुदर्शन चक्र को उन्हीं के उपर छोड़ना चाहता था लेकिन अब वह समझ चुका है की उनका कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
इससे पहले की अश्वत्थामा एक सेना तैयार करता उसका सामना अर्जुन से हो गया और उसने अर्जुन के उपर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया । अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया लेकिन तभी वहाँ वेद व्यास जी आ गए और उन्होंने दोनो से ब्रह्मास्त्र को वापिस लेने के लिए कहा । अर्जुन ने तुरंत ही ब्रह्मास्त्र को वापिस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा को केवल ब्रह्मास्त्र छोड़ना आता था उसे वापिस लेना नहीं ।
अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र की दिशा बदलकर उसे अर्जुन की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर निर्देशित कर दिया । अर्जुन के पुत्र महाराज परीक्षित उस वक्त अपनी माता उत्तरा के गर्भ मे थे । अश्वत्थामा ने यह सोचकर ऐसा किया था कि वह पांडवों का एक भी वंशज जीवित नहीं बचने देगा । लेकिन ऐसा हुआ नहीं, भगवान श्री कृष्ण ने महाराज परीक्षित की ब्रह्मास्त्र से रक्षा की ।
भगवान ने अश्वत्थामा को यह श्राप दिया कि वह 3 हजार सालों तक इस पृथ्वी पर भटकता रहेगा । उसके शरीर से हमेशा दुर्गंध आती रहेगी जिस कारण से कोई भी उसके पास नहीं आना चाहेगा । पांडवों ने अश्वत्थामा की मणी उससे छीन ली जिसके बिना वह निस्तेज हो गया और दुर्गंध युक्त शरीर लेकर यहाँ वहाँ भटकने लगा ।
कुछ लोगों का कहना है कि अश्वत्थामा अभी भी जीवित हैं लेकिन महाभारत को हुए तीन हजार साल से अधिक हो चुके हैं इसलिए शास्त्रों के अनुसार अब अब अश्वत्थामा को जीवित नहीं होना चाहिए ।
इसी तरह की जानकारी पाते रहने के लिए हमारा व्हात्सप् ग्रुप जॉइन करें । ग्रुप जॉइन करने के लिए यहाँ क्लिक करें – GetgyaanWhatsappGroup
यह भी पड़ें – महाभारत के युद्ध में बर्बरीक ने क्या देखा