गांडीव धारी अर्जुन ने किस तरह किया कर्ण का वध किया । कर्ण और अर्जुन में गहरी दुश्मनी थी । कर्ण भी एक महान योद्धा था और उसके मन मे पांडवों के लिए किसी भी प्रकार की सहानुभूति नहीं थी । कर्ण एक ऐसा योद्धा था जो अर्जुन से टक्कर ले सकता था । कौरव सेना में द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह और कर्ण के अलावा कोई भी अर्जुन से टक्कर लेने मे समर्थ नहीं था ।
भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के वध के वगैर कर्ण का मारा जाना असंभव था इसलिए भगवान श्री कृष्ण के कहने पर सबसे पहले भीष्म और फिर द्रोणाचार्य को मारा गया । असल में द्रोणाचार्य के विषय में भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों को बताया कि द्रोणाचार्य को तब तक नहीं मारा जा सकता जब तक वे स्वयं अपने हथियार नीचे ना रख दें ।
इसके लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक योजना बनाकर भीम से एक हाथी को मारने के लिए कहा जिसका नाम अश्वत्थामा था । भीम ने एक ही वार हाथी के सिर पर किया और वह हाथी मर गया । भीम जोर जोर से चिल्लाने लगे कि अश्वत्थामा मारा गया, अश्वत्थामा मारा गया ।
द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्वत्थामा था जिससे द्रोणाचार्य को शक हुआ कि कहीं उनका बेटा तो नहीं मारा गया । भीम की बात पर द्रोणाचार्य को यकीन नहीं था इसलिए वे धर्मराज युधिष्ठिर से यह बात पूछने के लिए गए ।
युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य से कहा कि अश्वत्थामा मारा गया । युधिष्ठिर यह कहने ही वाले थे कि जो अश्वत्थामा मारा गया है वह एक हाथी है जब तक भगवान श्री कृष्ण ने शंख बजा दिया और द्रोणाचार्य को यह सुनाई नहीं दिया । धर्मराज झूट बोल नहीं सकते थे यह बात द्रोणाचार्य जानते थे इसलिए उन्होंने अपने बेटे की झूठी मृत्यु पर विश्वास कर लिया ।
ऐसा सुनकर द्रोणाचार्य ने अपने अस्त्र शस्त्र त्याग दिए और भगवान का ध्यान करते हुए अपने प्राण त्याग दिए । वहाँ मौजूद सब लोग देख पा रहे थे कि किस तरह द्रोणाचार्य को परम गति प्राप्त हुई ।
घटोत्कच ने बचाई अर्जुन की जान
कर्ण एक दानवीर भी हुआ करता था और अंग देश के भिक्षुकों को दान दिया करता था । कर्ण जब पैदा हुए तो उनके शरीर पर कवच और कुंडल मौजूद थे । इन कवच और कुंडल की वजह से अर्जुन कर्ण को नहीं मार सकते थे । अब यह बात इंद्र को पता थी इसलिए वे कर्ण से दान मांगने के लिए पहुंचे । दान मे उन्होंने कर्ण के कवच और कुंडल मांग लिए ।
कर्ण ने कवच और कुंडल इंद्र देव को दे दिए इसलिए इंद्र ने कर्ण को बदले में एक दिव्य अस्त्र दिया जो अर्जुन को मार सकता था । कर्ण ने यह अस्त्र अर्जुन को मारने के लिए बचाकर रखा था लेकिन बीच मे भीम पुत्र घटोत्कच ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया ।
घटोत्कच मायावी शक्तियों का इस्तेमाल करके कौरवों की सेना को बड़ी आसानी से मारने लगे । घटोत्कच ने कुछ इस तरह तबाही मचा रखी थी मानो एक ही दिन में युद्ध समाप्त हो जायेगा । घटोत्कच मायावी शक्ति का इस्तेमाल करके अनेक रूप ले लिया करते थे और अपना आकार बड़ा करके कौरवों को कुचल दिया करते थे ।
घटोत्कच जब दुर्योधन और कर्ण की तरफ बड़ने लगे तो दुर्योधन और कर्ण ने बहुत सारे तीर घटोत्कच पर चलाए लेकिन वे विफल रहे । तब दुर्योधन ने कर्ण से वह दिव्य अस्त्र चलाने को कहा जो इंद्र ने दिया था । कर्ण ने कहा कि वह अस्त्र केवल एक ही बार इस्तेमाल किया जा सकता है और वह अर्जुन पर उसे इस्तेमाल करना चाहता है ।
दुर्योधन ने कर्ण को समझाया कि अगर वह जिंदा ही नहीं रहेगा तो अर्जुन को कैसे मरेगा इसलिए उसे वह दिव्य अस्त्र घटोत्कच पर चला देना चाहिए ताकि कौरव जिंदा बच सकें । कर्ण ने ऐसा ही किया और वह दिव्य अस्त्र घटोत्कच पर चला दिया । घटोत्कच वह तीर लगने से वीर गति को प्राप्त हो गए और उन्होंने अपना आकार बड़ा किया फिर कौरव सेना पर जा गिरे ।
कर्ण और अर्जुन का युद्ध
दिव्य अस्त्र घटोत्कच का वध करके वापिस इंद्र के पास लौट गया । कर्ण अब बिना कवच कुंडल के था और उसके पास वह दिव्य अस्त्र भी नहीं था ।
द्रोणाचार्य के वध के बाद कर्ण बौखलाया हुआ था और उसने युधिष्ठिर महाराज को दो बार घायल कर दिया । यह बात जब अर्जुन को पता लगी तो अर्जुन ने कर्ण को मारने की कसम खा ली और गांडीव लेकर उसकी खोज में निकल गए । जब कर्ण और अर्जुन आमने सामने आये तो उन दोनो में घमासान युद्ध हुआ ।
युद्ध इतना घमासान था कि उन दोनो को छोड़कर और कोई भी नहीं लड़ रहा था । दोनो पक्ष एक जुट होकर कर्ण और अर्जुन का युद्ध देख रहे थे । कर्ण को पहले ही दो श्राप मिल चुके थे जिनके चलते कर्ण का जीत पाना असंभव था ।
पहला श्राप परशुराम जी से मिला था जिसका कोई जवाब नहीं था । परशुराम जी क्षत्रियों को शस्त्र विद्या नहीं सिखाते थे और कर्ण एक क्षत्रिय थे इयलये कर्ण ने एक ब्राम्हण का भेष बनाया और परशुराम जी से विद्या सीखी । एक दिन इंद्र ने एक कीड़े का रूप लिया और कर्ण को काटने लगे जब वे परशुराम जी की सेवा कर रहे थे ।
जब कर्ण का रक्त बहकर परशुराम जी के उपर गिरने लगा तो उनको पता चला कि एक कीड़ा कर्ण को बहुत देर से काट रहा है । परशुराम जी समझते थे कि इतना सरिरिक दर्द एक ब्राम्हण नहीं सह सकता । उन्होंने कर्ण से पूछा कि क्या तुम एक क्षत्रिय हो ।
कर्ण ने यह बात स्वीकार कर ली कि वह नकली ब्राम्हण के भेस में परशुराम जी को धोखा दे रहा था और इसलिए परशुराम जी ने कर्ण को श्राप दिया कि जब कर्ण को इस विद्या की सबसे अधिक जरूरत होगी तभी वो वह विद्या भूल जाएगा ।
कर्ण को एक यह श्राप भी मिला था कि युद्ध में उसके रथ का एक पहिया धस जायेगा । अर्जुन के साथ युद्ध करते वक्त ऐसा ही हुआ और कर्ण के रथ का एक पहिया धस गया । कर्ण ने उसे निकालने की बहुत कोशिस की लेकिन वह उसे निकाल नहीं पाया ।
कर्ण अर्जुन से उसे जीवित छोड़ने के लिए कहने लगा और उसने अर्जुन को युद्ध का नियम बताया कि रथ से विहीन योध्दा पर एक शस्त्र धारी योद्धा को वार नहीं करना चाहिए जो पहले से ही रथ पर सवार है । ना ही ऐसे योद्धा को मारना उचित है जो रणभूमि छोड़कर भाग रहा हो ।
भगवान कृष्ण ने कर्ण को याद दिलाया कि न तो उसने तब धर्म का पालन किया जब उसने द्रोपदी का अपमान किया और ना ही तब किया जब पांडवों का राज्य धोके से कौरवों ने हड़प लिया और अब जब जान पर बन आयी है तो वह धर्म का उपदेश दे रहा है ।
अर्जुन ने कर्ण की बात नहीं मानी और मौके पर ही उसे मृत्यु के घाट उतार दिया ।
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