अभी तक हमने पड़ा किस तरह द्रोपदी का विवाह हुआ और पांडवों के मध्य रखी एक शर्त को तोड़ने के लिए अर्जुन को वनवास के लिए जाना पड़ा । अर्जुन ने वन में जाकर क्यावकिया यह हम पड़ेंगे इस पोस्ट में । अगर आपने पिछली पोस्ट नहीं पड़ी है तो यहां आगे करके पड़ सकते हैं – द्रोपदी का विवाह
अर्जुन के विवाह की बात करें तो सबसे पहले विवाह के बारे मे आप सभी जानते ही होंगे लेकिन इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे अर्जुन के सारे विवाहों के बारे में । अर्जुन ने पहला विवाह द्रोपदी से किया था और उसके बाद दूसरा विवाह उलूपी से, तीसरा चित्रांगदा से और चौथा सुभद्रा से ।
द्रोपदी के साथ अर्जुन के विवाह की कहानी आपने जरूर सुनी होगी । कुंती पुत्र अर्जुन ने पानी मे घूमती मछली का प्रतिबिम्ब देखकर उसकी आँखों मे निशाना लगाया था । इस प्रकार अर्जुन स्वयंवर मे विजयी रहे और द्रोपदी का विवाह अर्जुन और बाकी पांडवों के साथ करा दिया गया ।
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घर आकर जब माता कुंती से अर्जुन ने कहा कि वह कुछ अनमोल लेकर आये हैं । माता ने बिना देखे ही कह दिया कि जो भी लाये हो आपस मे बाँट लो । अब अर्जुन दुविधा मे पड़ गए कि क्या किया जाए तभी भगवान श्री कृष्ण ने उनको बताया कि यह सब शिव जी के द्वारा दिये गए आशीर्वाद की वजह से हुआ है ।
असल मे द्रोपदी ने अपने पिछले जन्मो मे शिव जी की तपस्या करके उनसे यह वरदान माँगा कि उनको ऐसा पति चाहिए जो धर्मराज हो, शरीर से बलवान हो, शस्त्र विद्या मे निपुण हो, सहनशील हो । लेकिन यह द्रोपदी ने पांच बार कहा कि एक ऐसा पति प्राप्त हो, एक ऐसा पति प्राप्त हो । इसलिए शिव जी ने वरदान दिया कि द्रोपदी को इन खूबियों वाले पांच पति प्राप्त होंगे ।
द्रोपदी ने दोबारा शिव जी से कहा कि उनको यह सब खूबियां एक ही पति के अंदर चाहिए थीं । तब शिव जी ने कहा कि यह पाँचों गुण एक ही व्यक्ति के अंदर हो पाना संभव नहीं है इसलिए वरदान के अनुसार उन्हें पांच पति प्राप्त होंगे ।
भगवान श्री कृष्ण के कहने पर द्रोपदी का विवाह पांच पांडवों के साथ करा दिया गया । पांडवों के मध्य यह शर्त रखी गयी कि जब कोई भी पांडव द्रोपदी के साथ कक्ष में होंगे तो दूसरे पांडव अंदर प्रवेश नहीं करेंगे । अगर कोई इस शर्त को नहीं मानता तो उसे 12 वर्षों के लिए वनवास जाना पड़ेगा ।
एक बार महाराज युधिष्ठिर और द्रोपदी कक्ष में अकेले थे तभी एक ब्राम्हण अर्जुन से मदद माँगने के लिए आ पहुंचे । अर्जुन को मजबूरन अपना गांडीव धनुष लेने के लिए अंदर जाना पड़ा । इस बात के लिए अर्जुन को 12 वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा । हालाँकि महाराज युधिष्ठिर ने उन्हें जाने से रोका लेकिन अर्जुन नहीं माने और जंगल मे चले गए ।
जंगल जाकर किए अर्जुन ने तीन विवाह
अर्जुन ने वनवास स्वीकार किया और वे जंगल निकल गए । जंगल मे जब वे नहा रहे थे तो उनको एक नागकन्या उलूपी ने देख लिया और वो उनपर मोहित हो गयी । उलूपी ने अर्जुन से विवाह करने की इच्छा जताई तो अर्जुन ने कहा कि वे इस समय वनवास मे हैं और उन्हें इस समय शादी नहीं करनी चाहिए ।
लेकिन उलूपी ने कहा कि एक क्षत्रिय को किसी भी स्त्री के लिए मना नहीं करना चाहिए अगर वह उससे शादी करना चाहती हो । अर्जुन ने उलूपी की बात मान कर उससे शादी कर ली । अर्जुन और उलूपी लगभग एक वर्ष साथ रहे और फिर अर्जुन वनवास के लिए आगे बड़ गए ।
आगे जाकर अर्जुन को चित्रांगदा से आकर्षण हो गया । जब अर्जुन ने बताया कि वे कुंती पुत्र हैं लेकिन वनवास काट रहे हैं तो चित्रांगदा के पिता ने उसका विवाह अर्जुन से करा दिया । चित्रांगदा के कोई भाई नहीं थे इसलिए उनके पिता ने यह शर्त रखी कि अर्जुन और चित्रांगदा का पहला पुत्र अर्जुन चित्रांगदा के पिता को लौटा देंगे ताकि उनका राज्य आगे चलता रहे ।
कुछ ही समय बाद अर्जुन फिर वनवास के लिए आगे बड़ गए और इस बार तो द्वारका के पास पहुँच गए । जब भगवान श्री कृष्ण को यह खबर मिली कि अर्जुन आये हैं तो भगवान ने उनका स्वागत किया । हँसते खेलते हुए दोनो मित्र एक दूसरे के साथ बात कर रहे थे तभी भगवान ने देखा कि अर्जुन और उनकी बहन सुभद्रा एक दूसरे को देख रहे हैं और एक दूसरे को पसंद भी करते हैं ।
तब भगवान ने अर्जुन से कहा कि वे सुभद्रा के विवाह के लिए कोई योग्य वर ढूँढ़ रहे हैं । तब अर्जुन ने कहा कि वे भी एक योग्य वर हैं । भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि वे भी यही चाहते हैं कि सुभद्रा का विवाह अर्जुन के साथ हो जाए मगर बलराम भैया ने स्वयंवर का सुझाव दिया है । भगवान ने कहा स्वयंवर में न जाने सुभद्रा किसी और को पसंद कर लें इसलिए तुम सुभद्रा को पहले ही अपहरण करके ले जाओ । अर्जुन ने कहा जैसी आपकी आज्ञा प्रभु ।
भगवान कृष्ण ने कहा कि जब तुम भाग रहे होगे तो रथ की लगाम सुभद्रा के हाथ में दे देना । अर्जुन ने कहा जी प्रभु और अगले दिन जब सुभद्रा माता के मंदिर से वापिस लौट रहीं थी तो द्वारका पहुँचने से पहले ही अर्जुन उनको हर कर ले गए । यह सब इतना ज्यादा तीव्र हुआ कि वहाँ मौजूद सैनिक कुछ भी समझ नहीं पाए ।
सैनिक बस यही देख पा रहे थे कि किस तरह रथ पर अर्जुन और सुभद्रा सवार हैं और सुभद्रा रथ हांक रहीं है । यह खबर जब बलराम जी को पता लगी तो वे अर्जुन के प्रति क्रोधित हो गए । उन्होंने कहा अर्जुन ने यह गलत किया है लेकिन उन्होंने देखा कि कृष्ण एकदम प्रसन्न बैठे हुए हैं । जब बलराम जी ने उनसे पूछा कि उनकी बहन का अपहरण हुआ है तो उन्होंने कहा कि ऐसा तो हुआ ही नहीं ।
भगवान कृष्ण ने सैनिकों से दोबारा पूछा तो उन्होंने कहा कि सुभद्रा रथ हांक रहीं थी । भगवान ने कहा कि अपहरण तो तब होता जब अर्जुन रथ हांक रहे होते । बलराम जी ने यह बात मान ली और द्वारका में मामला ठंडा हुआ ।
जब अर्जुन वापिस पहुंचे तो द्रोपदी ने अर्जुन को डाँट लगाई । सुभद्रा जी ने द्रोपदी से कहा कि वे उनकी दासी के रूप में यहाँ रहेंगी तब जाकर उनका गुस्सा ठंडा हुआ । इस तरह अर्जुन के चार विवाह संपन्न हुए । 12 वर्ष बीत जाने के बाद अर्जुन इंद्रप्रस्थ वापिस आ गए ।
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